Paani re Paani tera rang kaisa - 9 - last part in Hindi Thriller by SUNIL ANJARIA books and stories PDF | पानी रे पानी तेरा रंग कैसा - 9 - अंतिम भाग

Featured Books
  • Fatty to Transfer Thin in Time Travel - 13

    Hello guys God bless you  Let's start it...कार्तिक ने रश...

  • Chai ki Pyali - 1

    Part: 1अर्णव शर्मा, एक आम सा सीधा सादा लड़का, एक ऑफिस मे काम...

  • हालात का सहारा

    भूमिका कहते हैं कि इंसान अपनी किस्मत खुद बनाता है, लेकिन अगर...

  • Dastane - ishq - 4

    उन सबको देखकर लड़के ने पूछा की क्या वो सब अब तैयार है तो उन...

  • हर कदम एक नई जंग है - 1

    टाइटल: हर कदम एक नई जंग है अर्थ: यह टाइटल जीवन की उन कठिनाइय...

Categories
Share

पानी रे पानी तेरा रंग कैसा - 9 - अंतिम भाग

9

10.9.2021

कुछ दिन अस्पताल में पड़े रहने के बाद सब ठीक हो गए।

बच्चे अस्पताल में पड़े अपने माँ बाप से मिले। घूँटन, ज़हर की असर, डर, मानसिक असर - यह सब देखते उनका इलाज़ ज़रूरी था।

जनता ने उस बचाने वाली टीम का खूब आभार व्यक्त कीया।

कुछ लोग ने कहा कि वहाँ गिरनार पर्वत की गुफाओं में तप करते सन्यासियों से सब ने अनुरोध किया था कि हमारे लिए प्रार्थना करें और उनके वाइब्रेशन भेजने से ही हम बचे। क्या कहें? मानने दो इन्हें। वह बचाने वाली टीम का तो आभार पूरी जिंदगी सब याद रखेंगे।

टीवी, मीडिया में हमारी ऐसी असंभव स्थिति में आठ आठ दिन ज़िंदा रहने की बात काफ़ी लोकप्रिय बनी।

मालूम हुआ कि पूरी स्पर्धा हमारी मान ली हुई दुर्घटना की याद में पहले तो केंसल ही कर दी थी। बाद में हम जिंदा निकले इस लिए फिर से रखी गई। फिर से वह रिहर्सल एक दो बार किए गए।

पहले से भी ज्यादा उत्साह के साथ हम उस स्पर्धा में आए।

15.10.2021

दशहरा का दिन आया। फिर से हम अपने वाद्यों के साथ स्टेज़ पर आए। सब की तालियां शुरू में ही मिली। हम आखिर मृत्यु पर विजय ले कर आए थे। मेरी बच्चों को सिखाई, ध्यान सिखा कर कम से कम हवा में कम से कम सांस हो सके उतने धीरे से लेनेकी टेक्निक काफ़ी सराहनीय रही और स्टेज़ पर से मुख्य मंत्रीजी ने मेरा आभार व्यक्त कीया।

हमने शुरू में वही प्रार्थना की जो गुफ़ा में की थी -

'गहरे अंधेरे से प्रभु परम तेजे तुं ले जा।

महा मृत्यु में से अमृत समीप ओ नाथ, ले जा।

तेरे है हम तुं जीवन का दान दे जा।'

 

बाद में मेहनत से कम्पोज़ कीया गया वह गीत पेश किया-

 

”रत्ती रत्ती सच्ची मैंने जान गंवाई है

नच-नच कोयलों पे रात बिताई है

अंखियों की नींद मैंने फूंकों से उड़ा दी

गिन गिन तारे मैंने ऊंगली जलाई है

आजा आजा जींद शामियाने के तले।

जय हो। जय.. हो..।

 

वाकई हमारी जान ऐसे रत्ती रत्ती जाती रह गई थी।

धूम धड़ाके के साथ पेश कीया गया यह गीत पूरा होते तालियाँ ने थमने का नाम नहीं लिया।

जग्गा और तोरल ने 'पानी रे पानी तेरा रंग कैसा..' गाया और हम सूचक नजरों से एक दूसरे के सामने देखते रहे।

पानी ने तो अपना रंग दिखाया था हमें!

आज हमारी टीम ही विजेता घोषित हुई। फिर से केमेरा की धुंआधार लाईटें हमारे पर मंडरा रही।

उस आठ दिन मौत से अठखेलियां याद रह जाएगी।

(समाप्त)