Prerna Path - 1 in Hindi Motivational Stories by Rajesh Maheshwari books and stories PDF | प्रेरणा पथ - भाग 1

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प्रेरणा पथ - भाग 1

आत्म कथ्य

जीवन में जन्म की पहली श्वांस से मृत्यु की अंतिम श्वांस तक मानव संघर्षरत रहता है। हम कल्पनाओं को हकीकत में बदलने हेतु प्रयासरत रहते हैं। कभी खुशी कभी ग़म के बीच जीवन के 62 बसंत बीत गये। जो कुछ देखा, सुना और समझा उन विचारों को कहानी के माध्यम से व्यक्त किया है। ये रोचकता के साथ साथ, प्रेरणास्पद भी रहें, ऐसा मेरा प्रयास है। रचनाओं को सजाने, सँवारने में श्री राजेश पाठक ‘ प्रवीण ‘ एवं श्री देवेन्द्र राठौर का अमूल्य सहयोग प्राप्त होता रहा है। मैं उनका हृदय से आभारी हूँ।

राजेश माहेश्वरी

106, नयागांव हाऊसिंग सोसाइटी

रामपुर, जबलपुर ( म.प्र.) 482008

मोबाइल नं.- 9425152345

प्रेरणा के स्त्रोत

अपनी व्यथा को

कथा मत बनाइये

इसे दुनिया को मत दिखाइये

कोई नही बांटेगा आपकी पीड़ा

स्वयं को मजबूर नही

मजबूत बनाइये

संचित कीजिये

आत्म शक्ति व आत्म विश्वास

कीजिये आत्म मंथन

पहचानिये समय को

हो जाइये कर्मरत

बीत जाएगी व्यथा की निशा

उदय होगा सफलता का सूर्य

समाज दुहरायेगा

आपकी सफलता की कथा

आप बन जाएंगे

प्रेरणा के स्त्रोत।

ये रचनायें समर्पित हैं मेरी पत्नी श्रीमती पदमा माहेश्वरी को।

शुभकामनाओं के साथ।

अनुक्रमणिका

क्रमांक कहानी का नाम

1. आत्मविश्वास

2. विद्यादान

3. लक्ष्य

4. उत्तराधिकारी

5. निस्वार्थ सेवा

6. असली सुंदरता

7. श्रममेव जयते

8. चापलूसी

9. नकलची

10. सुबह का भूला

11. आदमी और संत

12. अच्छे दिन

13. अंतिम इच्छा

14. नाविक

15. प्रजातंत्र

16. जीवन का सत्य

17. स्वर्ग एवं नर्क

18. मोक्ष का आनंद

19. सच्ची तीर्थयात्रा

20. कचौड़ी वाला

21. लक्ष्मी जी का वास

22. चयन

23. प्रायश्चित

24. अंतिम दान

25. आनंद

26. बुद्धिमानी और अवसरवादिता

27. पतंग

28. विश्वास

29. घोड़ी वाला

30. संस्कार

31. विदाई

32. सेवा

33. श्रेष्ठ कौन

34. विनम्रता

35. जिद

36. चीकू

37. स्वार्थपूर्ण मित्रता

38. स्वरोजगार

39. सच्ची मित्रता

40. कर्म पूजा

41. पागल कौन

42 संयम

43. अहंकार

44. हृदय परिवर्तन

45. हिम्मत

46. व्यथा

47. हार जीत

48. मानव सेवा

1. आत्मविश्वास

कुछ वर्षों पूर्व नर्मदा के तट पर एक नाविक रहता था। वह नर्मदा के जल में दूर-दूर तक सैलानियों को अपनी किश्ती में घुमाता था। यही उसके जीवन यापन का आधार था। वह नाविक बहुत ही अनुभवी, मेहनती, होशियार एवं समयानुकूल निर्णय लेने की क्षमता रखता था। एक दिन वह किश्ती को नदी की मझधार में ले गया। वहाँ पर ठंडी हवा के झोंकों एवं थकान के कारण वह सो गया।

उसकी जब नींद खुली तो वह, यह देखकर भौंच्चका रह गया कि चारों दिशाओं में पानी के गहरे बादल छाए हुए थे। हवा के तेज झोंकों से किश्ती डगमगा रही थी। आँधी-तूफान के आने की पूरी संभावना थी। ऐसी विषम परिस्थिति को देखकर उसने अपनी जान बचाने के लिए किसी तरह किश्ती को एक टापू तक पहुँचाया और स्वयं उतरकर उसे एक रस्सी के सहारे बांध दिया। उसी समय अचानक तेज आँधी-तूफान और बारिश आ गई। उसकी किश्ती रस्सी को तोड़कर नदी के तेज बहाव में बहती हुई टूटकर टुकड़े-टुकड़े हो गयी।

नाविक यह देखकर दुखी हो गया और उसे लगा कि अब उसका जीवन यापन कैसे होगा ? वह चिंतित होकर वहीं बैठ गया। उसकी किश्ती टूट चुकी थी और उसका जीवन खतरे में था। चारों तरफ पानी ही पानी था। आंधी, तूफान और पानी के कारण उसे अपनी मौत सामने नजर आ रही थी। उसने ऐसी विषम परिस्थिति में भी साहस नही छोड़ा और किसी तरह संघर्ष करते हुये वह किनारे पहुँचा। उसकी अंतरात्मा में यह विचार आया कि नकारात्मक सोच में क्यों डूबे हुए हो ? जब आंधी, तूफान और पानी से बचकर किनारे आ सकते हो तो फिर इस निर्जीव किश्ती के टूट जाने से दुखी क्यों हो ? इस सृष्टि में प्रभु की सर्वश्रेष्ठ कृति मानव ही है, तुम पुनः कठोर परिश्रम से अपने आप को पुनर्स्थापित कर सकते हो।

यह विचार आते ही वह नई ऊर्जा के साथ पुनः किश्ती के निर्माण में लग गया। उसने दिनरात कड़ी मेहनत करके पहले से भी सुंदर और सुरक्षित नई किश्ती को बनाकर पुनः अपना काम शुरू कर दिया। वह मन ही मन सोचता था कि आँधी-तूफान मेरी किश्ती को खत्म कर सकते हैं परंतु मेरे श्रम एवं सकारात्मक सोच को खत्म करने की क्षमता उनमें नही हैं। मैंने आत्मविश्वास एवं कठिन परिश्रम द्वारा किश्ती का नवनिर्माण करके विध्वंस को सृजन का स्वरूप प्रदान किया है।