Jivan unt pataanga - 14 - Last Part in Hindi Short Stories by Neelam Kulshreshtha books and stories PDF | जीवन ऊट पटाँगा - 14 - जीवन की डेटा एन्ट्री - अंतिम भाग

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जीवन ऊट पटाँगा - 14 - जीवन की डेटा एन्ट्री - अंतिम भाग

अंतिम एपीसोड - 14

जीवन की डेटा एन्ट्री

नीलम कुलश्रेष्ठ

श्री देसाई ने अपनी नजरें इधर-उधर घुमाकर इस ऑफ़िस का मुआयना किया । शहर के सबसे बड़े पॉश इलाके में ये स्थित था । इन्होंने आज ही अखबार में आधे पृष्ठ का रंगीन विज्ञापन देखा था । ऐसा विज्ञापन देना कोई रंगीन मज़ाक नहीं था । डेल्टा इंफोसिस प्रा.लि. का नाम इस विज्ञापन में देखकर बंगलौर की एक ही कंपनी याद आती थी । ‘इंफोसिस’ यानि सोफ़्टवेयर यानि करोड़ों रुपये । उसकी बारीकियाँ पढ़कर उन्होंने चैन की साँस ली चलो अश्विन का कहीं तो ठिकाना हो सकता है । नौकरियाँ नहीं हैं तो क्या इस एम.एन.सी.(मल्टीनेशनल कंपनी) कल्चर ने रोजी रोटी के कुछ और रास्ते निकाल ही दिये हैं । उनसे अश्विन का हताश हुआ पराजित चेहरा अब और नहीं देखा जा रहा था ।

अश्विन एम.सी.ए. करने के बाद करने के बाद एक कंप्यूटर कंपनी की ‘सेल्स मार्केटिंग’ मे लगा हुआ था । सुबह आठ बजे निकलकर रात के आठ बजे घर आ पाता था । धूप हो, बारिश हो या तबियत खराब हो, छुट्टी की बात सोच भी नहीं सकता था । पता नहीं किन-किन कंपनियों में मारा-मारा घूमता था । तनख़्वाह भी ढाई हज़ार रुपये, कंपनी के जितने कंप्यूटर वह बेच लेता था उसी हिसाब से कमीशन मिलता था।

अपने ज़हीन बेटे की ज़िंदगी को ढाई हज़ार या अधिक से अधिक पाँच हज़ार रुपये में गिरवी पड़ी देखकर छटपटाहट होती थी । उन्होंने एक दिन गुस्से में कहा भी था, “ये नौकरी छोड़ क्यों नहीं देते ?”

उसने लाचारी से आँखें उठाई थीं, “ये नौकरी छोड़ भी दूँ तो करूँगा क्या?”

“बहुत कुछ कर सकते हो । बैंक की, प्रशासन की प्रतियोगिताओं की पूरी तैयारी करो ।”

“आप देख तो रहे हैं लिखित परीक्षा दो वर्ष से पास करके इंटर्व्यू में मात खा रहा हूँ, नौकरी हथिया लेता है कोई सोर्सफुल लड़का या लड़की ।”

“तकनीकी उच्च शिक्षा लेकर भी बाज़ार में मारे-मारे घूमते हो मुझसे नहीं देखा जाता ।”

“और रास्ता ही क्या है?” कहकर वह मायूस हो चुप हो गया था ।

अभी उस नौकरी को पाँच महीने ही हुए थे कि बार-बार बीमार पड़ने लगा । सेल्स पर भी असर पड़ रहा था। इससे पहले कि कंपनी उसे निकालती उसने कंपनी को छोड़ दिया ।

नौकरी छूटते ही उसने अपने को कमरे में बंद कर लिया । न घूमने निकलता, न दोस्तों से मिलता । मम्मी कभी उसे खींच कर, डाँटकर लिविंग रुम में टी.वी. के सामने बैठा देती उसकी आँखें तो टी.वी. के पर्दे पर स्थिर हो जातीं लेकिन ध्यान कहीं ओर भटकता रहता ।

श्री देसाई ने ‘एम्प्लायमेंट न्यूज’ के अलावा और अख़वार मँगवाने आरंभ कर दिये थे । वे व अश्विन नौकरियों के विज्ञापन को लाल स्याही के घेरे में ले लेते थे लेकिन एक नौकरी जीवन के घेरे में नहीं आ पा रही थी ।

दोनों पिता पुत्र डेल्टा इंफोसिस प्रा.सि. के कार्यालय की शानौशौकत से प्रभावित बैठे थे । यू शेप के काउंटर के पीछे दो लड़के व एक लड़की मुस्तैदी से काम कर रहे थे । दाँयी तरफ बने एक केबिन को देखकर देसाई ने सोचा इसमें ज़रूर नीलेश याग्निक यानि कि डाइरेक्टर बैठे होंगे ।

रिसेप्शन के गुदगुदे सोफे पर पहलू बदलते हुए इन्होंने अश्विन से धीमे से कहा, “ऑफ़िस तो अच्छा है ।”

उसने सिर हिलाकर समर्थन किया । थोड़ी देर में चपरासी ने झुककर कहा, “आप लोगों को सर बुला रहे हैं ।”

उनके अंदर आते ही नीलेश ने बड़ी गर्मजोशी से उन दोनों से हाथ मिलाया । देसाई ने सीधे ही बता दिया, “देखिये ! डेटा एंट्री के विषय में मैं थोड़ा बहुत जानता हूँ । मैं अपने बेटे के लिये कोई काम ढूँढ़ रहा हूँ । जरा इसके ‘डिटेल्स’ बताईये ।”

“श्योर !” बहुत नफ़ासत से नीलेश ने कंधे उचकाये, “आजकल विदेशों में बड़े होटलों, हॉस्पिटल, शैक्षणिक संस्थानों के पास समय नहीं है इसलिये वे अपनी स्केन फ़ाइल के दस्तावेज बनवाने के लिये हमारे पास भेजते है । आपने शायद ‘ओबलाँग इ लायब्रेरी’ का नाम सुना होगा । नीलेश ने सीधे ही उनकी आँखों में देखकर पूछा ।”

“ऐं...हाँ....हाँ....।” ज़बरदस्ती उनके मुँह से निकल गया ।

“बस वही हमारे सबसे बड़े कॉन्टेक्ट हैं ।”

“आपका ये पहला ऑफ़िस है ?”

“ओ नो । बंबई, दिल्ली में हमारे ऑफ़िस हैं । वहाँ की प्रोग्रेस देखकर मैंने सोचा कि एक ऑफ़िस यहाँ भी खोला जाये । इस काम से मुझे एक सबसे बड़ी आत्मसंतुष्टि मिल रही है ।”

“क्या?”

“वे वह है बेरोजगारों को रोजगार दिलाना । वे मेहनत करते हैं और पैसा कमाते हैं ।”

“मेरा बेटा डेटा एंट्री का काम करना चाहता है । इसके लिये हमें क्या करना होगा?”

“डेटा एंट्री करने वाले कंप्यूटर ऑपरेटर्स कहलाते हैं । इनसे हम ढाई हज़ार रुपया सिक्योरिटी लेते है । वे ये काम घर बैठ कर भी कर सकते हैं ।”

“जी इस काम से आगे क्या उम्मीद की जा सकती है ?”

“अजी साहब! देखते जाइये, अभी-अभी तो ये काम आरंभ हुआ है जो विदेशी कंपनियाँ हमें काम दे रही हैं वह यहाँ के प्रतिभावान लोगों को अपने यहाँ भी बुला सकती हैं ।”

उन्होंने इस केबिन की नफ़ासत पर नजर डाली, सच ही ये अश्विन को कहीं भी पहुँचा सकता है ।

“पहले कॉल सेंटर्स व ट्राँसक्रिप्शन का ऐसा ही शोर मचा था । कुछ कॉल सेंटर्स तो बंद हो गये ।”

“उनके मालिक नाकाबिल रहे होंगे, बड़े शहरों में तो अभी भी धड़ल्ले से ये चल रहे हैं । मुझे कोई जल्दी नहीं है । आप सोच लीजिये वैसे मेरे पास इतना काम है कि मैं चार सौ लोगों को काम दे सकता हूँ।”

उन्हें जल्दी कैसे नहीं थी याग्निक इस शहर में नया आया है इसलिये नहीं जानता कि चार सौ लोगों के काम के लिये इस शहर में चालीस हज़ार लोगों की लाइन लग जायेगी । उन्होंने तुरंत ही कहा, “मैं ढाई हज़ार रुपया अभी देना चाहता हूँ ।”

“थैंक्स ! आप इस काम की पूरी डिटेल बाहर बैठे हमारे रेजीडेंट मैनेजर श्री सोमी कॉन्ट्रेक्टर से ले लीजिये । उन्हीं के पास रुपया जमा कर दीजिये ।यू नो ,मैं टूर के कारण अक्सर बाहर रहता हूँ इसलिये मैंने अपनी जगह सोमी को प्रोपराइटर बना दिया है। सारा फ़ाईनेंस उसी के नाम से होता है। "

उन्होंने एक समझदार व्यक्ति की तरह सलाह देने की कोशिश की, "लेकिन कंपनी के पैसे के लिये इतना विश्वास -----.. "

"अरे जी इसी विश्वास पर तो दुनियां कायम है. "”

केबिन से बाहर आकर उन्होंने देखा बाँयी तरफ लकड़ी का एक छोटा पार्टीशन बना था, बाहर नेमप्लेट लगी थी ‘सोमी कॉन्ट्रेक्टर ।’

देसाई व अश्विन कुर्सियाँ पीछे खींचकर उनके सामने बैठ गये । देसाई ने उनसे कहा, “अपने बेटे की सिक्योरिटी फीस देना चाहता हूँ ।”

“मोस्ट वेलकम ।” मैनेजर ने व्यावसायिक मुस्कान से मुस्कुराते हुए कहा ।

“मैं एक शंका दूर करना चाहता हूँ जो लोग ये काम करेंगे उन्हें पैसा किस हिसाब से मिलेगा ?”

“वैरी सिंपल । एम.एन.सी. हमें किसी फर्म की स्केन फ़ाइल भेजती है । मान लीजिये उसमें देखकर कोई एक हज़ार करेक्टर यानि लैटर्स यानि कि वर्ण टाइप करता है तो हम उसे एक शब्द मानकर पेमेंट करेंगे । अभी हमारी कंपनी नई है इसलिये एक शब्द के लिये छः रुपया देगी । बाद में धीरे-धीरे ये पैसा बढ़ाकर बीस रुपये प्रति शब्द कर देगी ।”

“क्या?”

“हाँ जी!” मैनेजर ने उत्साहित होकर कहा, “स्केनर से ये बहुत जल्दी प्रिंट हो जाता है ।”

“ये काम तो अमेरिका में भी हो सकता था ।”

“हो तो सकता था किंतु वहाँ महँगा बहुत है । वहाँ उन्हें प्रति शब्द दो डॉलर्स यानि कि नब्बे रुपये देने होते हैं । भारत में हमें हमारा कमीशन देने के बाद भी ये सस्ता पड़ता है । एज़ यू नो, भारत में लेबर कॉस्ट कम है और हाँ, साइज के हिसाब से भी टाइपिंग पेमेंट होंगे ।”

“वह कैसे ?”

“जो एक मेगाबाइट या गीगाबाइट टाइप करेगा उसे एक शब्द मानकर आठ रुपये दिये जाएँगे ।”

“वो क्या होता है साहब?” उनकी बुद्धि सच ही हताश हो चुकी थी।

“मतलब यदि एक लेटर या वर्ण को एक बाइट मान लें तो एक हज़ार चौबीस वर्ण किलो बाइट बना । एक हज़ार चौबीस को इतने से ही गुणा कर दिया जाये तो वह एक मेगाबाइट हुआ ।”

“बाप रे ! इतने सारे शब्द तब तो रुपया बहुत कम हुआ ।”

“नहीं साहब ! पहली पद्धति व मैगाबाइट वाइज़ पद्धति में दोनों में फ़ाइल में फ़ोटोज़ या रेखाचित्र होते हैं । पहली पद्धति में सिर्फ शब्द गिने जाते हैं किंतु दूसरी में जितनी जगह वह चित्र घेरे होता है उतने में जितने शब्द आ सकें उन काल्पनिक शब्द को भी गिना जाता है इसलिये टाइप करने वाले को फायदा ही होता है ।”

देसाई आश्चर्य से आँखें फैलाये प्रभावित हो गये । उन्होंने तुरंत ही अश्विन की सिक्योरिटी डिपॉजिट ढ़ाई हज़ार रुपया भर दिया । एक दस रुपये के स्टेम्प पेपर पर मैनेजर ने अपने व याग्निक के हस्ताक्षर करवा कर उन्हें दे दिया ।

उस दिन अपने ऑफ़िस में काम में देसाई का मन नहीं लग रहा था । इस समय कंप्यूटर खरीदने की बात तो सोची भी नहीं जा सकती थी । शिखा की शादी एक दो वर्ष बाद करनी थी लेकिन अब तो कंप्यूटर खरीदना ही है चाहे किसी भी हालत में । अश्विन के चेहरे की हताशा को किसी तरह पोंछना ही होगा । जब से उन्होंने एक बेरोजगार युवक की आत्महत्या की बात पढ़ ली थी तब से दिल ही दिल में एक डर बैठ गया था ।

अश्विन भी घर की परिस्थितियाँ समझता था उन्हें बार-बार समझा चुका था कि पुराना मल्टीमीडिया कंप्यूटर ले लेना चाहिये लेकिन वह ही जिद पर अड़े थे । एम.एन.सी. का मामला है हर चीज़ उसी के स्तर की होनी चाहिये इसलिये उन्होंने लोन के लिये एप्लाई कर दिया था।

कंप्यूटर आते ही जैसे अश्विन की जिंदगी में पंख निकल आये थे । वह पाँच-छः घंटे बैठकर टाइप करता रहता जैसे ही दस्तावेज डेल्टा इन्फ़ोसिस प्रा.लि. पहुँचाता, कॉन्ट्रेक्टर उसे तुरंत ही भुगतान कर देते । याग्निक तो अक्सर टूर पर बाहर रहते थे ।

दो महीने में अश्विन ने अच्छी खासी रकम कमा ली थी । घर के कोने-कोने में जैसे खुशी की तरंगे मचलने लगी थीं । अश्विन की मम्मी निहाल थीं बेटे की टाइपिंग स्पीड देखकर लेकिन देसाई की नज़र दूर बहुत दूर देख रही थी । उन्हें सपने में भी किसी परदेस की एम.एन.सी. का बोर्ड नज़र आता रहता जिसके पारदर्शी काँच के भव्य दरवाजे के सुनहरे हेंडिल को घुमाकर वह दरवाज़ा खोलकर अंदर चले जाते । नीचे रेड कार्पेट पर जैसे उनके कदम धँसते चले जाते । दाँयी तरफ एक लाइन में बने होते एक्ज़ीक्यूटिव केबिन्स की कतारें बड़े केबिन पर नेमप्लेट लगी होती उनके बेटे की जिसमें से झरती डॉलर्स की नशीली गंध ।

इसी सपने को पूरा करने के लिये वह याग्निक से मिलना चाहते थे लेकिन उनका काम अनेक शहरों में फैला हुआ था उनका यहाँ कम आना होता था । कॉन्ट्रेक्टर से उन्होंने कहकर रखा था जैसे ही किसी दिन याग्निक ऑफ़िस में आयें इन्हें तुरंत ही खबर करें ।

याग्निक के इस शहर में आने की खबर पाते ही वह एक किलो मिठाई का डिब्बा लेकर उनसे मिलने चल दिये ।

मिठाई का डिब्बा थोड़ी आना कानी के बाद लेने के बाद याग्निक मुस्कुराये, “देसाई जी ! इसकी क्या ज़रूरत थी ?”

“साब ! ये मैं नहीं एक पिता मिठाई दे रहा है । आपने मेरे बेटे की मुस्कुराहट वापिस लौटा दी है । वह आपके यहाँ का काम कर रहा है व कॉम्पटीशन की तैयारी कर रहा है ।”

“बहुत खूब ! इस शहर के डाटा ऑपरेटर्स में वही सबसे होनहार है ।”

“रियली!” कहते हुई देसाई की आँखों में सुदूर देश के किसी एम.एन.सी. ऑफ़िस में लगी हुई बेटे की नेमप्लेट कौंध गई ।

तभी नीलेश याग्निक की मोबाइल की रिंग बज उठी । नीलेश ने मोबाइल कान पर ले जाते हुए कहा, “हलो !....जी क्या कहा ? लोटस बैंक के मैनेजर पार्लीकर बोल रहे है..जी कहिये... मैं आप के फ़ोन का इंतजार कर रहा था...कोई खुशखबरी है ? हमारे साढ़े बारह करोड़ का एल.सी.(लेटर ऑफ क्रेडिट) स्विट्ज़रलैंड से आ गया... वाऊ ! इट्स ए ग्रेट न्यूज....क्या कहा आपका बैंक फ़ॉरेन एक्सचेंज के लिये ऑथोराइज़्ड नहीं है....ओ.के...आप ऐसा करिये उसे हमारे बंबइ एकाउन्ट में ट्रांसफ़र कर दीजिये....थैंक्स फ़ॉर योर ऑब्लीगेशन...नहीं जी कैसे नहीं है ?.....यदि आप नहीं हों तो हमारा तो बिज़नेस समाप्त हो जायेगा.... ओ.के. कभी घर आइये...दर्शन दीजिये ।”

खुशी जैसे याग्निक के चेहरे से छलकी जा रही थी । मोबाइल का स्विच बंद करते ही उसने गर्म जोशी से देसाई से हाथ मिलाया ।

देसाई नासमझ से सिर्फ मुस्कुराये जा रहे थे ।

नीलेश ने उत्साह से कहा, “साहब ! आपकी ये मिठाई मेरे लिये शुभ समाचार लाई है ।”

“क्या?”

“अभी बताता हूँ ।” उन्होंने घंटी दबा दी । कुछ सेकेंड्स में चपरासी आकर खड़ा हो गया, वे बोले, “गोपीराम ! भागकर हमारे लिये व ऑफ़िस में सभी के लिये बटरस्कॉच आइसस्क्रीम लाओ ।”

“ऐसी भी क्या खुश खबरी है जी ?”

“एक महीने से साढ़े बारह करोड़ के एल.सी. के कारण दिल्ली व बंबई के ऑपरेटर्स का पेमेंट रुका हुआ था । कितना बुरा लगता है जब हमारे ऑपरेटर्स काम करते हैं, हम समय से उन्हें पेमेंट नहीं दे पातें । अब मैं उन्हें पेमेन्ट्स दे सकता हूँ ।”

देसाई ने सोचा यदि सभी प्रोपराइटर अपने कर्मचारियों का इतना ख्याल रखे तो दुनिया स्वर्ग हो जाये।

तीसरे दिन ही नीलेश ने ऑपरेटर्स की एक मीटिंग रखी, “मैं सोच रहा हूँ, काम इतना बढ़ रहा है कि हर तीसरे दिन आप लोगों को पेमेंट करने में मिस्टर सोमी परेशान हो जाते हैं क्यों न आप लोगों के काम के हिसाब से पंद्रह दिन या महीने में पेमेंट कर दिया करें । अब हमारी कंपनी का एकाउंट यहाँ लोटस बैंक में हैं । आप चाहें चैक  कर लें । हम लोग अब चैक  से पेमेंट करेंगे । अब आप लोग निर्णय ले कि आप पंद्रह दिन में या एक महीने बाद पेमेंट चाहते हैं ?”

कुछ ऑपरेटर्स कहने लगे पंद्रह दिन, कुछ कहने लगे एक महीने बाद लेकिन बहुमत पंद्रह दिन वालों का था ।

अगले महीने नीलेश ने दो चैक  से बैंक से रुपया लिया । उसके बाद के महीने में चैक  बाउंस होने लगे । जब शोर मचने लगा तो सोमी कॉन्ट्रेक्टर ने समझाया, “हम इतना बड़ा ऑफ़िस लेकर बैठे हैं । कहीं भाग जाने वाले हैं ? लीजिये आप लोग याग्निक सर से बात कर लीजिये ।”

उन्होंने तुरंत ही उनके मोबाइल का नंबर डायल किया । वे उनसे बात करके बोले, “सर कह रहे हैं अश्विन को फ़ोन दो ।”

अश्विन ने फ़ोन ले लिया, “सर ! हमारे चैक  बाउंस हो रहे हैं ।”

“वह तो होंगे ही ।”

“क्यों सर?”

“एक बैंक के एल.सी. में कुछ स्पेलिंग की गड़बड़ है उसे वापिस भेजा है । जब दूसरा एल. सी. आयेगा तब पैसा जमा होगा तब आप लोगों के पेमेन्ट्स हो जायेंगे । सिक्योरिटी के लिये आप चैक  लेते जाइये । इकट्ठा पेमेन्ट हो जायेगा ।”

“ओ थैंक्स सर ! आपने हमारे संदेह को दूर कर दिया वैसे सर आप कहाँ से बोल रहे हैं ?”

“मैं मुम्बई एयरपोर्ट से बोल रहा हूँ । देल्ही जा रहा हूँ ।”

अश्विन ने अपने साथियों को इस बातचीत के विषय में बताया ।

“कहीं वे हमें चूना तो नहीं लगा रहे ?” सबने शोर मचाया ।

“शांत हो जाओ, प्लीज ! एक दिन मेरे पापा सर के केबिन में बैठे थे । उन्होंने सर की व बैंक मैनेजर की बात सुनी थी तब भी उनका एल.सी. लेट हो गया था । बंबई दिल्ही के ऑफ़िस के पेमेंट देर से किये थे । इस बार एल.सी. में स्पेलिंग की गलती है । खैर पेमेंट कहाँ जायेगा ?”

“यदि पेमेंट नहीं दिया तो साले इस ऑफ़िस का फ़र्नीचर  बेचकर अपना पैसा ले लेंगे ।” एक दादा जैसा लड़का बोला ।

इसके बाद एक और महीना बीता, तीसरा बीता, सब लोगों का क्रोध सीमा पार करने लगा । याग्निक सर ने अपने मोबाइल पर अश्विन से स्वयं बात की । “देखो ! एल.सी. क्लियर हो गया है । उस एम.एन.सी. के मैनेजमेंट की अपनी समस्याएँ चल रही थीं इसलिये इतनी देर हो गई । आई एम वैरी सॉरी ।”

“आप का एल.सी. पता नहीं कब जमा होगा । अब कोई ऑपरेटर इंतजार करने के लिये तैयार नहीं है।” अश्विन जोर से चिल्लाया ।

उसी दादा टाइप लड़के ने उसके हाथ से फ़ोन छीन लिया व फ़ोन पर दहाडा, “सर! यदि कल तक हमें पेमेंट नहीं मिलता तो हम आपके ऑफ़िस का सामान बेचकर अपना पैसा वसूल करेंगे ।”

“ओ भाई ! ऐसा मत करना ।” नीलेश का स्वर हड़बड़ा गया, “चलो मैं किसी भी तरह पैसे का इंतजाम करके सुबह दस बजे ऑफ़िस पहुँच रहा हूँ । आप सब लोग भी आ जाइये ।”

“अगर तुम नहीं आये तो?” वह दहाड़ा,

“अजी ! आप लोगों के बिना क्या मैं एक कदम चल सकता हूँ?”

“कूल यार!” अश्विन ने उस लड़के के कंधे पर हाथ रखा ।

“हम सब दस बजे ऑफ़िस आ जायेंगे । आप कल आ जाना वर्ना...”

“गुस्सा शांत करिये । मैं कल ही आपकी नाराज़गी दूर कर दूँगा ।”

दूसरी सुबह दस भी न बज पाये थे शहर के चार सौ परिवारों में सन्नाटा छाया हुआ था । सुबह का समाचार पत्र पढ़कर सब सन्न रह गये थे । हर भाषा के समाचार पत्र का एक ही मज़मून था प्रदेश के सबसे बड़े डेटा एन्ट्री स्केम का भंडाफोड़...। साथ में थी पुलिस काँस्टेबिल के बीच मुँह लटकाये सोमी कॉन्ट्रेक्टर का फोटो व साथ में ताला पड़े डेल्टा इंफोसिस प्रा.लि. के ऑफ़िस का फ़ोटो ।

श्री देसाई ने धड़धड़ करते कलेजे से पढ़ा, “कॉन्ट्रेक्टर गिरफ्तार लेकिन नीलेश याग्निक ऑपरेटर्स की सिक्योरिटी लेकर व उनसे प्रदेश के जगह जगह खोले ऑफ़िसों में मुफ्त में काम कराके पंद्रह करोड़ रुपये का फ़ायदा उठाकर फ़रार ।”

देसाई बड़बड़ा उठे, “तो साले ने लोटस बैंक के मैनेजर से झूठा फ़ोन करवाया था ।”

उस दादा टाइप लड़के ने अखबार पढ़कर सोचा ऑफ़िस को फ़र्नीचर सहित आग लगा आये लेकिन आगे पढ़कर सन्न रह गया क्योंकि आगे लिखा था, “ये ऑफ़िस व फ़र्नीचर  नीलेश याग्निक ने किराये पर ले रखा था ।”

उधर सोमी कॉन्ट्रेक्टर की माँ सोमी गिरफ़्तारी से अर्द्ध बेहोशी में थीं । उन्हें जैसे ही होश आता चिल्लाती, “सोमी ! मैंने पहले ही मना किया था कि तू इस कम्पनी का प्रोपराइटर मत बन । कोई वैसे ही लाखों रुपयों के कारोबार का ऑफ़िस किसी के नाम नहीं करता । क्यों रखने दी नीलेश को बंदूक अपने कंधे पर ? हाय !मेरा राजा बेटा जेल में क्या कर रहा होगा ?”

और अश्विन ? वह अपने को संभालने की कोशिश कर रहा था । धीरे-धीरे फिर वह अपने कमरे में बंद रहने लगा।

 

नीलम कुलश्रेष्ठ

e-mail—kneeli@rediffmail.com