UJALE KI OR ---SNSMARAN in Hindi Motivational Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | उजाले की ओर---संस्मरण

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उजाले की ओर---संस्मरण

उजाले की ओर---संस्मरण

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नमस्कार स्नेही मित्रों !

'नन्ही-नन्ही बूंदियाँ रे ,सावन का मेरा झूलना ---'

हम जब छोटे थे सावन के माह के आते ही उत्तर-प्रदेश के जिस घर में झूले पड़े देखते ,मचल ही तो जाते ,हमारे लिए भी झोला डालो |

किसी किसी के घर में तो महीने भर पहले झूले पड़ जाते ,दिन और रात के खाने के बाद परिवार की लड़कियाँ,बहुएँ गीत गाते हुए झूले की पैंग बढ़ातीं |

जिस घर के आँगन में या बगीचे में मज़बूत ,विशाल पेड़ होते ,उस घर में उन मज़बूत पेड़ों की टहनियों पर रस्सी के सहारे डबल करके झूला डाला जाता |

जिन घरों में बड़े पेड़ न होते ,झूले तो उनके भी घर में पड़ते ---या तो बरामदे में या फिर सहन में !

बच्चों को,विशेषकर लड़कियों को झूले तो चाहिए ही होते |

उनके पिता भाई घर में झूले डालते और घर की बड़ी बुज़ुर्ग उनसे कहतीं कि अपनी बहन,बेटियों को झुलाएँ ---

नई-नवेली बहुओं के पति से भी कहा जाता कि वो अपनी पत्नी,बहनों को झूला झुलाएँ |

हमारे पड़ौस में एक बनिया परिवार रहता था | उन्होंने अपना खूब बड़ा सा घर पक्का करवा लिया था यानि पेड़ों के लिए कोई जगह नहीं थी |

उस परिवार में भी एक नवेली बहू और एक बड़ी बहू की चार साल की बेटी थी जो अपनी चाची के आगे-पीछे घूमती रहती |

छोटे बेटे के विवाह को कुछ महीने ही हुए थे |बहू बड़ी सभ्य व सुशिक्षित थी किन्तु घर के सबसे बड़े सदस्य यानि लाला जी को पसंद नहीं थी |

कारण यह था कि उनके छोटे बेटे ने 'प्रेम विवाह' किया था ---वो भी ब्राह्मण की लड़की से |

यह उसका बहुत बड़ा गुनाह बन गया था |

हमारी किशोरावस्था में हमने इस प्रकार की बहुत सी बातें देखीं हैं |

अधिकतर दुकानों के मालिकों को लाला जी कहकर पुकारा जाता था और कारखाने ,फैक्ट्री के मालिक 'सेठ जी' कहे जाते | अधिकतर सभी व्यापार करने वाले वणिक वर्ग में पुरुषों को बड़े सेठ जी या छोटे सेठ जी या फिर बड़े लाला जी ,छोटे लाला जी कहकर पुकारा जाता |

हमारे पड़ौसी लाला बिशम्भर नाथ अग्रवाल जी का बड़ा रौब था | उनका बड़ा बेटा नवीन कुमार अग्रवाल था जो अपने पिता की प्रोवीज़न की बड़ी सी दुकान पर जाता था ,नौकरों से काम करवाता |

बड़े लाला जी आराम से पहुँचते ,तब तक आधा दिन ख़तम हो जाता |

उनको कुछ करना तो होता नहीं था ,खूब बड़ा सा ---शहर का सबसे पुराना व व्यवस्थित 'स्टोर' था उनका |

अंदर वाले भाग में बड़े लाला जी के लिए बड़ा सा तख़्त बिछा था जिस पर मोटे तकिये व मसनद लगे रहते |

दुकान इतनी बड़ी थी कि उसे लगभग आठ नौकर सँभाल पाते ,नहीं तो ग्राहकों की भीड़ लग जाती ,उनको जल्दी सामान न मिल पाता |

लाला जी का मानना था कि ब्राह्मणों को देना चाहिए ,लेना नहीं किन्तु उनका छोटा बेटा इंजीनियरिंग में दिल्ली में पढ़ रहा था ,वहीं अपने साथ पढ़ने वाली सुजाता से उसे प्रेम हो गया |

और किसी के चाहते ,न चाहते उसने डिक्लेयर कर दिया कि वह मंदिर में सुजाता से विवाह कर रहा है |

इससे पहले सुजाता के माता-पिता बड़े लाला जी से मिलकर विवाह की बात करने आए थे लेकिन वो तो लाला जी थे --उसूलों के पक्के !

सो,छोटे बेटे ने अपने विवाह का खुद इंतज़ाम कर लिया |

लाला जी व परिवार को शॉक लगा किन्तु अब कुछ नहीं हो सकता था |

झक मारकर लाला जी ने छोटे बेटे ,बहू को घर में बुलान शुरू कर दिया | सुजाता भी दिल्ली में काम कर रही थी |

घर में आती तो बड़े भैया यानि जेठ की छोटी सी बिटिया डॉली उसके आगे-पीछे घूमती रहती |दोनों में बहुत दोस्ती हो गई थी |

सावन के दिनों में 'तीजों' का त्योहार आता है ,उससे ही महीने भर पहले सावन के झूले पड़ जाते हैं |

नन्ही डॉली पूरे से घर में घूमती हुई गाती फिरती --

'नन्ही मुन्नी बुदियाँ रे सावन का मेरा झूलना --- सुजाता चाची ने सिखा दिया था |

सहन में आमने-सामने ऊपर छत पर दो बेलन लगवाए गए थे ,जिन पर आमने-सामने दो झूले रहते |

जब सुजाता आती ,दोनों चाची बिटिया झूलों पर झूलतीं ,गाना गातीं |

बड़े लाला जी का मन सुलग उठता |बड़ी वाली मिल मालिक की बेटी थी और घर भरकर दहेज लाई थी और छोटी ठहरी ब्राह्मण की बेटी --जिनसे चाहते हुए भी लाला जी कुछ माँग नहीं सकते थे |

एक दिन घर में कोई नहीं था ,लाला जी छोटी बहू को जैसे भी करके घर से या कहें ज़िंदगी से निकाल देना चाहते थे |

उन्हीं दिनों मिट्टी के तेल के स्टोव चले थे | लाला जी ने ख़ास चाय-पानी के लिए स्टोव मंगवाया था |

उन्होने सुजाता को स्टोव पर चाय बनाने के लिए कहा |

सुजाता रसोई में गई ,उसे केरोसीन की गंध आ रही थी | सोचा,बहम होगा और माचिस से स्टोव जला दिया |

न जाने केरोसीन का कैसा छिड़काव किया गया था कि लपटें सीधी उसके चेहरे पर आईं,वह कुछ समझ पाती इससे पहले ही उसको लपटों ने घेर लिया |

घूमकर पीछे आई तो रसोईघर का दरवाज़ा बाहर से बंद था |

सुजाता घबरा गई ,घर में कोई नहीं था सिवाय बड़े लाला जी के !

कितना दरवाज़ा बजाया लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ |

वह बेहोश होकर रसोईघर में गिर पड़ी |

रसोईघर काफ़ी अंदर होने के कारण बाहर तक आवाज़ नहीं आती थी |

घंटा भर में सब ख़तम हो गया | पुलिस आई --छोटे व बड़े लाला जी दुकान में मिले |

किसी को पता नहीं था कि छोटी बच्ची डॉली अपने कमरे में सो रही थी | उसकी माँ व दादी उसे सुजाता के पास सुलाकर गईं थीं |

लाला जी तो रसोईघर की सांकल बाहर से लगाकर सीधे अपनी दुकान पर पहुँच गए थे लेकिन उन्हें ज्ञात नहीं था कि उनका चश्मदीद गवाह उनके घर में ही था |

डॉली ने सबको चिल्लाकर बताया था कि उसने दादा जी को रसोईघर की सांकल बंद करते हुए देखा था |

बच्ची सहम गई थी ।लाला जी को कैद कर लिया गया था लेकिन किसी की गुणवती बिटिया की ज़िंदगी समाप्त हो गई थी |

छोटी बच्ची मानसिक रूप से त्रस्त हो गई थी और उसने अपनी पूरी ज़िंदगी झूले को हाथ नहीं लगाया था |

आज वह साठ साल की है ,उस घटना का ज़िक्र आने पर वह आज भी दहल जाती है |

यह अमानुषता आज के ज़माने में भी कहीं न कहीं सामने आ जाती है |

इतना क्रूर क्यों हो जाता है मनुष्य ?

इंसानियत भूल जाता है मनुष्य !!

आपकी मित्र

डॉ. प्रणव भारती