Sad Rainbow - 2 in Hindi Classic Stories by Amrita Sinha books and stories PDF | उदास इंद्रधनुष - 2

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उदास इंद्रधनुष - 2

फ़ोन डिसकनेक्ट हो चुका था।कोमल चुपचाप अपने कमरे में लौट आई और बिस्तर पर निढाल लेट गई बत्ती बंद करने का उसका मन हुआ, रात गहराने लगी थी पर उसकी आँखों से नींद कोसों दूर थी। सीलिंग फ़ैन के चलने की आवाज़ कमरे के खालीपन को भर रही थीऔर कोमल की यादों के फाहों को अपनी हवा में उड़ा उड़ाकर पूरे कमरे में बिखेर रही थी।

प्रभाकर चाचा का हँसमुख चेहरा बार -बार उभरकर कर उसकी आँखों के सामने रहा था। अभी हाल में ही माँ ने फ़ोन पर उसे बतायाथा कि प्रभाकर बाबू आजकल बेहद परेशान और उदास रहते हैं।

कोमल याद करने लगी तीस-पैंतीस साल पहले की बातों को, जब मौज़ मस्ती के दिन हुआ करते थे , उन दिनों प्रभाकर चाचा का परिवारऔर हमारा परिवार आस-पास एक मकान छोड़कर रहता था

उन दिनों पापा के दोस्तों में सबसे क़रीब थे प्रभाकर चाचा माँ बताती हैं कि कॉलेज में साथ-साथ पढ़ने के बाद पापा राँची यूनिवर्सिटी सेएम एस सी करने चले गए थे और चाचा जी पटना यूनिवर्सिटी से एम एड करने के बाद भागलपुर जिला स्कूल में अंग्रेज़ी के अध्यापक केपद पर नियुक्त हुए।

इत्तफ़ाक से पापा भी अपनी पढ़ाई पूरी कर उसी विद्यालय में बायोलॉजी के अध्यापक बने ।नौकरी करने के बाद दोनों दोस्तों ने शादीकी। चाचा जी ने पहले शादी की फिर पापा ने ।चाची और माँ दोनों क़रीब-क़रीब एक ही उम्र की थीं और दोनों की आपस में ख़ूब अच्छीबनती।

आदित्य, उनका इकलौता बेटा था जिसे प्यार से आदि कहते थे, और इधर माँ पापा के साथ हम दोनों भाई बहन।


आदि हम दोनों भाई-बहनों का बालसखा भी था। हम साथ-साथ खेलते और पढ़ते भी थे

चाची बड़ी ख़ुश मिज़ाज और गुणी थीं ।पर, उनकी सबसे बड़ी कमी थी कि वे आदित्य को इतना लाड़ करतीं कि उनका सारा दिन उसी केपीछे बीतता ।उनके इसी लाड़ प्यार और आसक्ति ने आदि को थोड़ा ज़िद्दी और बिगड़ैल भी बना दिया था।

चाचा जी ने उन्हीं की ज़िद पर आदि का एडमिशन अंग्रेज़ी स्कूल में कराया था जबकि कॉलोनी के ज़्यादातर बच्चे ज़िला स्कूल में ही पढ़तेथे। आदि के मन में इस बात की भी ठसक थी कि वह अंग्रेज़ी स्कूल में पढ़ता है , यही कारण था कि वह सभी बच्चों पर अपना ख़ूबरूआब झाड़ता जबकि चाचाजी उसे इस बात के लिए अक्सर टोका करते तब वह उनसे नाराज़ हो कर हमारे घर चला आता ।तब हमघंटों कैरम खेला करते या फिर गप्पें हाँका करते

माँ और चाची की दोपहर की बैठक कभी ख़ारिज नहीं होती जाड़े के दिनों में दोनों बरामदे में बैठकर के धूप सेंका करतीं औरसाथ-साथ स्वेटर भी बुना करतीं, वहीं दो-चार औरतें और जातीं और स्वेटर के पैटर्न सीखतीं और इसी बीच हो जातीं दुनिया जहान कीबातें।चाची के बनाए हुए स्वेटर में ढेर सारे नए डिज़ाइन के होते हैं और सामने बेंत की छोटी सी डोलची में ढेर सारे रंग बिरंगे ऊन के गोलेहोते हैं और उसमें रखी होतीं अलग अलग नंबर की सलाईयाँ

जाड़े के हर तीन दिनों में साइकिल पर रंग बिरंगी इन्द्रधनुषी ऊन के गोले और लच्छियों को लादकर ऊन वाला आता तो सबसे पहलेचाची के बरामदे में रुकता और उसके बाद मोहल्ले के दूसरे घरो में जाया करता। चाची माँ को भी वहीं बुला लेतीं और दोनों सहेलियाँसलाह कर कई लच्छियाँ ख़रीद लेतीं।

फिर ऊन की लच्छियों को नमक पानी में डालकर रंग पक्का किया जाता , उसके बाद उन्हें धो कर अलगनी पर डाला जाता

हम सब जब स्कूल से लौटते तो अलगनी पर टंगे इन्द्रधनुष को देखकर ख़ूब ख़ुश होते, कभी कभी तो माँ और चाची जी के साथ बैठकरअपने दोनों घुटनों में लच्छियों को फँसाकर गोले बनाते , जाड़े भर ये अभियान चलता

उस दिन भी माँ और चाची जी अपने गप्प में मशग़ूल थीं साथ ही स्वेटर बुनने में।मैंने भीतर जाकर देखा तो डाइनिंग टेबल पर दाल चावलके साथ सिर्फ़ भिंडी की सब्ज़ी पड़ी थी ये देखते ही मेरा ग़ुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया पैर पटक हुए मैं बाहर बरामदे में गईऔर कुर्सी पर मुँह फुलाकर बैठ गई तो मुझे देखते ही माँ समझ गयीं पर फिर भी चुपचाप अपना स्वेटर बुनती रहीं क्योंकि उनका कहनाथा कि घर में नख़रे नहीं चलेंगे,जो बना है वही खाना है ।पर, चाची से रहा नहीं गया तो उन्होंने पूछ ही लिया बेटा कोमल खाना खाया क्योंनहीं? पर, मैं तो मुँह फुलाए बैठी रही ।मुझे चुप देखकर माँ ने ही कहा कि इसे भिंडी की सब्ज़ी पसंद नहीं, इसलिए नाराज़ है। ये सुनते हीचाची फ़ौरन अपने घर गयीं और डोंगे में बेसन की कढ़ी लाकर टेबल पर रख दिया और जाते जाते कह गईं -अरे अब तो मुस्कुरा दे कोमलबेटा , मुझे मालूम है तुम्हें कढ़ी चावल बहुत पसंद है जा, जाकर खाना खा ले और फिर जाना मेरे पास, स्वेटर का नाप लेना हैतुम्हारा।

दूसरे दिन ही मकर संक्रान्ति का दिन था सारी तैयारियां हो चुकी थीं, माँ ने क़तरनी चूड़ा, तिलकुट, तिलवा, तिल की रबड़ी , गुड़, गायके दूध का दही तक , सारा इंतज़ाम कर लिया था

भैया के साथ मैं भी लगी थी पतंगों को जमा करने, उन पर धागा बाँधने और लटई में धागा लपेटने में, मोहल्ले के सारे बच्चे व्यस्त थेअपनी-अपनी पतंगों के साथ।

सुबह-सुबह ही पूजा हो गयी , और माँ ने जैसे ही पूजा की घंटी बजायी कि सभी चेत गए कि नहाने का समय हो गया है। झटपट नहा धोकर हम सब तैयार हो गए और और रसोई में दान के लिए रखे गए तिल और बाक़ी सामग्रियों को छू लिया और जीमने लगे दही-चूड़ा औरआलू मटर की तीखी रसेदार सब्ज़ी, जिसकी गमक दूर दूर तक फैल रही थी।भूने मसालों की सौंधी ख़ुशबू और पूजा घर में जलतेअगरूधूम से पूरा घर सुवासित हो रहा था,धुले-धुले घर-आँगन मन को भा रहे थे