31---
यूँ तो जीने को पूरी हो जाती हैं तमाम साँसें
तुम्हारे बिन कहीं उखड़ी सी हो जाती हैं
बहुत दूर जाना है दहशत अभी से है क्यों ये
और समुंदर की गहराई का माप भीतर है
तेरी यादों का सिलसिला हरेक पल चलता
न जाने कौनसी है साँस जो तुझसे है जुदा
मेरे भीतर तो एक खलबली सी रहती है
जाने कौनसी चिंगारी की आँच सहती है
मेरे भीतर खुदा किसी ने बोया है
रात और दिन का सारा ही चैन खोया है
पत्ते-पत्ते पे लिखी सारी दास्ताँ कैसे
अँधेरे में टिमटिमाती हो रौशनी जैसे
वैसे मुझको जहाँ में कैसी और क्या है कमी
बस एक आस तेरी न दिखाई देती है
मेरे कानों में जैसे एक सदा सी आती है
वह तो भीतर ही कुछ सुकूँ सा पाती है
तेरी आवाज़ है जो गाँठ खोल जाती है ||
32----
मुहब्बत नहीं शरीरों में ढलती है जो
पैग़ाम खुदा का है मुहब्बत
एक परवाह है, एक आह है
दुआ की ताबीर है मुहब्बत
बैरागी मन की बात सुनाऊँ
या खुद को मन में उलझाऊँ
नहीं समझ आता है कुछ भी
कैसे मन की पीर बताऊँ
ज़र्रे ज़र्रे पर बैठे हैं जो काले, मटियाले बादल
आँखों के आँसू पी लूँ या बहने दूँ उनको गालों पर
सुबक रहा है भीतर ही जो
कैसे उसको चुप करवाऊँ ?
चन्दन की शाखों में लिपटी
सीढ़ी पर कैसे चढ़ पाऊँ ??
33---
तुम्हारे बाद कैसा शाम का ये साया है
हर लम्हा उखड़ा हुआ सा पाया है
क्यों आँखों में कोई रोशनी नहीं दिखती
ये है कैसा सफ़र ज़िंदगी नहीं दिखती
ये नज़ारे बहुत खामोश हुए लगते हैं
रूह की पोषाक पे पैबंद लगे दिखते हैं
यहाँ जीने की आरज़ू करूं मैं क्योंकर
मुझको सारे ही तो अनमने से दिखते हैं
वो कसमसाते हुए साए सिमट के रोए हैं
सारे लम्हे हैं जो आँसुओं ने भिगोए हैं
जीने को जीना होगा, हरेक साँस को पीना होगा
आँसू की भी रहती नहीं कीमत कोई
लगे जंगल में खड़ा है ये राही कोई ||
34---
रिश्तों में नहीं होता कोई नफ़ा या नुकसान
रिश्ता होता है दिल की खिड़की से झाँकता
एक नाज़ुक अहसास जिसमें नहीं होती कोई फाँस
तुमने निभाए सदा रिश्ते, जूझते हुए
रिश्ते होते नहीं खत्म, वे नींव में धँस जाते हैं
तुम्हें, मुझे, सबको अपनी कहानी सुनाते हैं
प्यार बिखरा जाते हैं, जीने की अदा सिखाते हैं
जब कभी सूखने लगता है कोई रिश्ता
उसे फिर से हरा कर जाता है तुमसा फ़रिश्ता
बातें दो ही तो होती हैं या तो निचुड़ जाता है रिश्ता
या फिर से प्यार की बरसात होती रहती है
फिर से हरा हो पनप भी सकता है रिश्ता
इसके लिए खुद को संभालना होता है
मुहब्बत की अदा को जानना होता है
वो नन्हा सा रिश्ता फिर से नन्ही कली बन
खिलखिलाता है, जीने को नये रंग में रंग जाता है
शायद बिना बात बहुत कुछ कह भी जाता है ||
35-----
प्यार है क्या बताओ तो सही
जिंदगी का सबक सीखो-सिखाओ तो सही
आज प्यार की सही दास्ताँ सुन लें
कोई हसरत न बाक़ी हो, रोशनी बुन लें
प्यार छुअन है एक मासूम सी
जिसकी कोई किसीसे भी न लड़ाई है
ये बिखरी रहती है सारे ही सूं उजारे सी
और फिर बंद होती जाती है दिलों में यूँ
जैसे कोई परवरदिगार की इनायत हो
जो वो बाँटता रहता है सबको बस यूँ ही
आओ, इसको संभालकर रख लें दिल में यूँ
और बाँटें इसी दुनिया में सबको मुस्काकर ||
36----
नहीं मिलता किसी को भी मुकम्मल जहाँ
ढूंढते फिरते हैं हम खुशियाँ यहाँ-वहाँ
बस एक मन की कोर ही छूट जाती है
जहाँ ख़ुशी अपने आप बसी रहती है
ख़ुशी है एक ऎसी नेमत जो
जितनी बाँटेंगे उतनी ही बढ़ती जाती है
ये गुलिस्तां बना देती है सूखे जंगल को
और उसमें खिलाती फूल हरेक रंग के ये
एक छोटी सी और नाज़ुक सी ज़िंदगी है ये
इसको हम सब बसर करें मुहब्बत से
ये नफ़रत ज़िंदगी की सबसे बड़ी दुश्मन है
अगर इसकी जगह प्यार बसा हो
तो न कोई ग़म है ||
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