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एक मनी-प्लांट की बेल ने
सजा रखा था घर को मेरे
दूर-दूर तलक फैली थी सुंदर बेल
एक किनारे से दूसरे किनारे तक
सच कहूँ तो वो मेरी हमजोली थी
देख हरियाली की एक चादर सी
मेरे चेहरे का कँवल खिला सा जाता था
मेरी आँखों की रोशनी भी तो बढ़ जाती थी
हरेक लम्हा मेरे साथ मुस्कुराता था
एक दिन यूँ अचानक चूं-चूं सुनाई दी मुझको
हरे पत्तों के बीच गुनगुना रहा था कोई
जैसे फुसफुसाता सा मुझको बुला रहा था कोई
वो तो जोड़ा था एक प्यारी सी चिड़िया का
मेरे कानों में वो मिसरी सी जैसे घोल गया
मैं समझ पाऊँ क्या होने लगा है मुझको यूँ
चूं चूं की आवाज़ ने मेरी आँखों और दिल पे कहानी लिख दी
सांझ के सात बजा करते थे जब घंटे में
हम दोनों ही बाहर निकल के आते थे
देखकर उस हसीन लम्हे को
हम आँखों ही आँखों में मुस्कुराते थे
हम मिलाते थे वक्त उनके वहाँ आने से
और तन्हाई दूर करते थे उनकी चूं-चूं से
हुआ क्या अचानक ही आना उनका बंद हुआ
जैसे आँसू से भिगोने लगा सारा ही समां
हमारे चेहरों की खुशी हो गईं ग़ायब एकदम
एक पंखी रहा रोता बैठ बेलों पर
फिर उसका आना भी हो गया था बंद ऐसे ही
और बेलें मेरे दिल जैसी ही मुरझाने लगीं
हम रहे बैठे ख़ामोश और गुमसुम से
हमारी हसरतें दिल में ही कुनमुनाने लगीं ||
26----
ये जो कुछ ख़्वाब पलकों पे सजा रखे थे
उन्हें आस की बूँदों से सींच रखा था
कुछ लम्हे भी ऐसे थे जो बीन रखे थे
उन्हें मुट्ठी में बंद करके भींच रखा था
आज मौसम के भी तो पर से निकल के आए हैं
ये न जाने कौनसे भीगे हुए से साए हैं
तमाम उम्र जिनसे जिरह सी करते रहे
उन्हें नाज़ो-अदा से दिल में अपने भरते रहे
वो ही टूटे हुए अब खड़े कगारे पर
उसने काटे हुए हैं जाने किस-किसके पर
ये बात कैसे बने जहाँ न सावन हो
सूखा पड़ता हो जहाँ बूँद न हो प्यार की नन्ही सी भी
दिन सुलगते हों और रातें न मनभावन हों
काँटे पहरों के जिस्मों पे बिठा रखे हैं
और बेकार ही अरमान सजा रखे हैं ||
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क्यूँ अँधेरा है यहाँ पर इतना
कोई चेहरा साफ़ नज़र नहीं आता
यहाँ शम्मा नहीं है किसी के हाथ में क्यूँ
क्यूँ ये बस्ती लगती है वीरानी सी
ये ज़िंदगी की ख़ता तो नहीं
हमें मिली है जो सज़ा ऎसी
हमने भी करम कुछ तो करे ही होंगे
हमको जो सूईं सी दिल में अपने चुभती हैं
उनके बीज हमने बोए होंगे क्यारी में
उनकी टीसें समेट भर ली होंगी आँचल में
हमने भी कुछ तो ख़ता की ही होगी उनके संग
जो हमें आज चुभला रहे हैं काँटे यूँ
आज आँखों में आब न रही है कोई
हमको बेशर्मी की अदा वो दिखला रहे हैं क्यूँ
कोई भी खुद को गुनाहगार कहता ही नहीं
ये कैसा छल है जो ख्वाबों को सज़ा देता है
सारे साफ़-सुथरे हैं तो गुनाह किसका है?
कुछ तो फाँसे सी चुभी हैं दिल में सबके
यूँ न कोई भी बेज़ार हुआ जाता है
ख्वाब तोड़के न मकबरे सजाता है ||
28---
आओ एक हल्की सी आवाज़ देके देखूं तो
शायद पहुँच जाए किसी के कानों तक
न लौट आए यूँ ही बिन सुने आवाज़ मेरी
हो सके पहुँच सके ये सभी के ख्वाबों तक
तरह-तरह के खिलौने सजाए जाते हैं
यहाँ कुछ आस के दीए जलाए जाते हैं
कभी तो झुरझुरी सी उठती है बदन में यूँ ही
जब आती याद है उनकी जाते हैं अचानक जो
क्या खेल खेला है तूने ओ आसमां वाले
जाने सोचा क्या और बना दी है दुनिया ये
सजा दिए हैं खिलौने ये रंग भर-भरकर
और उनमें साँस की भी धौकनी चला दी है
न जाने तूने दुनिया ये क्यूँ बना दी है
ये तेरा खेल है, इसका तू ही खिलाड़ी है
हैं यहाँ सब ही होशियार पर अनाड़ी हैं
क्यों फिर भी हम यहाँ आँखें झुकाए बैठे हैं
दिल की आवाज़ को क्यूँ हम सताए बैठे हैं
न जाने किसने सफ़र में हमें यूँ रोक लिया
ये सफ़र है बस कुछ दिनों का है ये खबर
फिर भी क्यों बेरहम से मन बनाए जाते हैं
मेरे आँचल की खुशी में गिरह क्यूँ लगती हैं
क्यूँ तन्हा ज़िंदगी के सुर सजाए जाते हैं ||
29---
चटकती धूप सिहरन जगाके जाती है
मेरे भीतर के सारे भेद खोल जाती है
तुम वहाँ क्यूँ खड़े हो ज़िन्दगी के पैताने
ये धूप वो है जो जाती है, लौट आती है
हमसफ़र मिलते हैं, खोते भी हैं फिर मिलते हैं
ये ज़िन्दगी का नशा है जो घुलता रहता है
कभी सोते हुए को ये जगा भी देता है
कभी हँसते हुए को ये रुला भी देता है
यही है दास्ताँ ग़म की भी और खुशियों की
यहीं हैं मंजिलें भी और यहीं हैं साहिल भी
कहाँ जाएँगे हम सब ही छुड़ाकर बाँहें
यहाँ से दूर तलक सायों की लकीरें हैं
और सदा देती हुई कुछ हँसी तस्वीरें हैं
जो पैदा हुआ है यहाँ, उसको तो जीना होगा
घूँट हर लम्हा उसे दर्द का पीना होगा
बेमौत न मरें ये ज़िंदगी का कहना है
साँस हैं जब तलक दिल का बोझ सहना है||
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हथेलियों में बंद ये कैसी खुशबू
किसी के दिल से आती ये कैसी खुशबू
ये खुशबू क्या है एक बुलावा है
किसी ने बंद कर मुट्ठियों में पुकारा है
कभी साँसों की उलझनें यहाँ दरकती हैं
ये मौसमी चालें हैं जो कहीं धड़कती हैं
ये आँखों की रोशनी कहीं पिघलती है
उदास हो चले हैं ये नज़ारे क्यूँ
सरगोशियाँ करते फिरें सहारे क्यूँ
ये खुशबू लेके आई है कहीं से ऎसी
रंजोगम में भी है खुशी नन्ही सी
उन नीम सी आँखों में कोई सदा सी बोली है
तेरी खुशबू है या कोई हमजोली है------||