जय श्री राम का घोष अवकाश में गूँज उठा और खुशी और कौतूहल से भरा रावण धरती के उस हिस्से पर आ धमका जहाँ से यह घोषणा अभी भी गाहे बगाहे गूँज रही थी ।
रावण सूक्ष्म रूप में था जो कि धरती के जीवों के लिए अदृश्य रूप कहा जाता है ।
शहर के बीचोबीच एक बड़ा सा मैदान जिसमें एक तरफ मंच सुसज्जित था जिस पर कुछ गणमान्य लोग बैठे हुए थे । सामने के ही मंच पर रामलीला का मंचन किया जाने वाला था । रावण मंच के पीछे कलाकारों के बैठने के कक्ष में जा पहुँचा । राम , सीता और रावण का अभिनय करनेवाले पात्र एक गोल मेज के गिर्द बैठे हुए थे । मेज पर रखे गिलासों में शराब आधी भरी हुई थी । ऐसा लग रहा था जैसे जाम का एक दौर पूरा हो गया हो । दूसरे दौर के लिए नमकीन पर हाथ साफ करते हुए मूड बनाया जा रहा था । राम और रावण को एक साथ बैठे देखकर रावण आश्चर्य चकित रह गया और फिर अगले ही पल वह अठ्ठाहस कर बैठा " ....हा..हा...हा ..हा ....ये हैं कलयुग के प्रभु श्रीराम .....हा ..हा ..." और फिर ऊपर की तरफ देखकर दोनों हाथ जोड़ते हुए कातर स्वर में बोला ," धन्य हो प्रभु ! आपने त्रेता युग में ही मेरा वध कर मुझे कृतार्थ कर दिया था वर्ना कलयुग में ऐसे राम के हाथों वध होने से पहले मैं आत्महत्या ही कर लेता "
खिन्न मन से रावण वहाँ से निकला । उस मैदान के नजदीक बनी झुग्गियों के कुछ बच्चे सड़क पर खेल रहे थे । तभी लगभग साठ साल का एक आदमी उन खेल रहे बच्चों में से एक पाँच साल की गोरी चिट्टी लड़की को इशारे से अपने पास बुलाता है और अपनी जेब से चॉकलेट निकालकर उसे देते हुए उससे कहता है ' मेरे पास इससे भी बहुत अच्छे अच्छे चॉकलेट हैं । अगर तुम लेना चाहो तो चुपचाप मेरे पीछे पीछे आओ ' उसकी बात सुनकर रावण बहुत खुश हुआ ' वाह ! ये बुढ़ा व्यक्ति उस बच्ची से कितना प्यार करता है ! लोग कलयुग को झूठे ही बदनाम करते हैं । ' सोचते हुए रावण उस बुड्ढे के पीछे पीछे जा रही लड़की के पीछे चल दिया । वह यह देखना चाहता था कि वह बुड्ढा क्या वाकई उसे और चॉकलेट देने वाला है ? झुग्गी के कुछ दूर जाकर घनी झाड़ियों के नजदीक पहुँचकर उस बुड्ढे ने चारों तरफ देखा और फिर किसी को नजदीक न पाकर उसने झपटकर उस लड़की को पकड़ लिया और उसके मुँह को कसकर दबाए हुए उन घनी झाड़ियों के पीछे चला गया । अगले ही पल उस छोटी सी मासूम बच्ची की चीखें सुनकर रावण भी दहल उठा और सजल नेत्रों से बोला " हे राम ! क्या यही आदर्श स्थापित करने के लिए तुमने मेरा वध किया था ? मैं तो ऐसा कुकृत्य सोच भी नहीं सकता था । "
व्यथित हृदय लिए रावण और आगे बढ़ा कि तभी एक झपटमार एक महिला के गले से उसकी सोने की चैन झपटकर नौ दो ग्यारह हो गया । महिला वहीं बैठकर दहाड़ें मारकर रोने लगी थी । रावण और व्यथित हो देखते ही रह गया ' यह कौन सा नया व्यवसाय शुरू हो गया है ? जिसमें किसी को इस कदर कष्ट हो ! "
रावण तो सूक्ष्म रूप में विचरण कर रहे थे सो घूमते घामते पहुँच गए एक बड़े राजनेता के दफ्तर में । नेताजी के फोन की घंटी घनघनाई । उनके सहयोगी की घबराई हुई आवाज आई " क्या करूँ सर ! यहाँ स्थिति काबू के बाहर हो रही है ! आप कहें तो बल प्रयोग का आदेश दे दूँ ! " अगले ही पल नेताजी आदेश हुआ " कोई बात नहीं । उन्हें जो करना है करने दो , दो चार बसें दुकानें फूँक कर शांत हो जाएंगे । लेकिन उन पर बलप्रयोग की सोचना भी नहीं । इस जाति के सभी लोग मुझे वोट देते हैं ! समझे ? "
तभी एक और फोन आया " मंत्रीजी क्या किया जाय ! आपके पुतले फूंके जा रहे हैं । हाय हाय किये जा रहे हैं । "
मंत्रीजी ने पहलू बदलते हुए कहा " कोई बात नहीं । पानी की बौछार करवाओ लेकिन हम उनको बख्शेंगे नहीं । उनकी तरफ से कोई भी हिंसात्मक गतिविधि हुई तो तुम तुरंत फायरिंग का आदेश दे देना । समझे ? उनके भीड़ में शामिल होकर हमारे आदमी तुम लोगों पर हमले जरूर करेंगे । "
बात खत्म भी नहीं हुई थी कि तभी एक और फोन आया " मंत्रीजी ! अभी अभी एक भयानक हादसा हुआ है । "
" क्या हुआ है ? कितने मरे ? " मुँह से पान की पीक थूकते हुए मंत्रीजी बोले ।
" अभी अभी आपने जिस रावण के पुतले का दहन किया था उसीको देखने के लिए पटरी पर खड़े लोगों को ट्रेन ने कुचल दिया है । सैकड़ों लोग नहीं रहे । " सामने से सूचना दी गई ।
" कोई बात नहीं ! तुम अखबार वालों को बता दो कि अभी सारे काम छोड़कर हम उस स्थल का दौरा करने जाएंगे । तैयारी करो हमारे दौरे की । " मंत्रीजी का आदेश हुआ ।
" सर ! हमारे पास फोर्स पहले ही कम् है । आपका दौरा हुआ तो फोर्स आपकी सुरक्षा व्यवस्था देखेगी या राहत कार्य करेगी । आप अपना दौरा स्थगित कर दें कुछ समय के लिए तो बेहतर है । " उधर से अधिकारी का सुझाव आया ।
भड़के हुए नेताजी का जवाब था ," तुम हमको राजीनीति सिखाओगे ? जितना कहा है उतना करो । हमारे दौरे से बहुत होगा तो दो चार घायल लोग और मर जायेगा । तो क्या हो जाएगा । मरनेवालों के लिए सरकार ने पहले ही रकम घोषित कर दिया है । और हम क्या कर सकते हैं ? "
नेताजी की बात सुनकर रावण का दिमाग भिन्ना गया । अगले ही पल वह दुर्घटना स्थल पर थे । पटरी पर टुकड़ों में बंटे मानव शरीर को देखकर रावण की आंखों में भी आँसू छलक पड़े । " हे भगवान ! तेरे राज में क्या हो रहा है ये ? मैं तो समझ रहा था कि मेरे निधन के बाद अब धरती पर वास्तव में रामराज्य आ गया होगा । अमन चैन के साथ ही सभी सुखी व समृद्ध होंगे लेकिन यहां तो सब कुछ उल्टा हो रहा है ? "
दूर गगन से सब तमाशा देख रहे श्रीराम जी मुस्कुराए " सही कह रहे हो वत्स ! अब तो मैं उस दिन का इंतजार कर रहा हूँ जब लोग मेरे होने का सबूत मांगेंगे । "