Deshdrohi in Hindi Classic Stories by राज कुमार कांदु books and stories PDF | देशद्रोही

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देशद्रोही



जब से कश्मीर में बाढ़ की विभीषिका थमी थी असलम बडी कशमकश के दौर से गुजर रहा था । टीले पर चहलकदमी करते हुए उसकी आँखों के सामने पिछले कुछ महीनों के दृश्य घूम रहे थे और वह गंभीरता से सभी बातों पर गौर कर रहा था । जब से वह पड़ोसी मुल्क में जाकर हथियारों की ट्रेनिंग लेकर वापस कश्मीर में अपने गाँव आया था , वह पूरे गाँव का हीरो बन गया था । जगह जगह उसके सम्मान में कार्यक्रम रखे जाने लगे थे । उसका रुतबा बढ़ गया था । भारत के प्रति उसकी जहर बुझी बातें सुनने के लिए दूरदराज के इलाकों में भी लोगों का हुजूम उमड़ पड़ता । अपने सामने उमड़ी भारी भीड़ देखकर उसके हौसले बुलंद हो जाते और वह पुरजोर जोश के साथ अपनी बात फिर से दुहरा देता जो वह अक्सर कहता था ,” इंशा अल्लाह ! बहुत जल्द हम कश्मीर को भारत से आजाद करा लेंगे । हमारा प्यारा कश्मीर एक आजाद मुल्क होगा इंशाअल्लाह ! ” और भीड़ पूरे जोश के साथ एक स्वर से ‘ इंशाअल्लाह इंशा अल्लाह ‘ कहकर उसकी बात का समर्थन करती । उसकी छाती चौड़ी हो जाती और वह अपनी बगल में रखी मशीनगन उठाकर उसे चुम लेता ।
उस दिन वह भोजन करके हाथ धो रहा था । रात के दस बज रहे थे जब पड़ोसी देश से उसके कमांडर ने उससे संपर्क किया । दुआ सलाम के बाद उसने हुक्म दिया ,” तुम्हें अभी इसी वक्त एक बड़े मिशन के लिए निकलना है । सबसे पहले तुम्हें ‘ मजलिश ए जिहाद ‘ के एरिया कमांडर के घर जाना है । उनके घर में अपने तीन बंदे बैठे हुए हैं । उन्हें अपने साथ लेकर जंगल के रास्ते तुम्हें बॉर्डर की तरफ बढ़ना है । बॉर्डर से पहले जो सेना का कैम्प है अलसुबह जब सब सोये होते हैं तुम्हें इसीका फायदा उठाकर उनमें से अधिक से अधिक काफिरों को मौत की नींद सुलाना है । ध्यान रहे कैम्प में तुम्हें पीछे की तरफ की दीवार फाँदकर घुसना है । सारा इंतजाम हो चुका है इंशाअल्लाह तुम्हें कैम्प में घुसने में कोई परेशानी नहीं होगी । अपने लीडरान बड़े रसूखवाले हैं जिनके श्रीनगर से लेकर दिल्ली तक के बड़े बड़े नेताओं से करीबी संबंध हैं । उन्होंने हमले के लिये यही समय मुफीद बताया है । सारा इंतजाम उन्हीं का किया हुआ है , तुम्हें तो बस काम को अंजाम देना है और इंशाअल्लाह , हम अपने मकसद में जरूर कामयाब होंगे । अव्वल तो काफिरों को मारने के बाद तुम्हें छिपछिपाकर वापस भाग आना है लेकिन अगर कहीं तुम अल्लाह को प्यारे हो भी गए ना तो फिक्र ना करना । जानते हो न कि तुम कितना नेक काम कर रहे हो । अपने ईमान और वतन के नाम पर कुर्बान होनेवाला सीधे जन्नत नशीन होता है जहाँ बहत्तर हूरें उसकी खिदमत के लिए तैनात होती हैं । जरा सोचो ! क्या रखी है इस दो दिन की जिंदगी में , अगर अल्लाह ने चाहा तो तुम्हें अपने पास बुला लेगा और फिर कयामत तक जन्नत में बहत्तर हूरों के साथ मजे से आराम फरमाना । वाह ! क्या बात है ! मुझे तो रश्क हो रहा है तुम लोगों से, तुम्हारी किस्मत से …..मैं तो चाहता था कि यह शबाब का काम मैं ही अंजाम दूँ लेकिन अल्लाह ने मुझे अभी बहुत बड़ी जिम्मेदारी सौंपी है । हाँ तुम्हारे मुल्क को काफिरों के चंगुल से आजाद कराने की जिम्मेदारी । …तो ठीक है ! तुम तैयार हो ? ” उधर से पूछा गया ।
” जी बिल्कुल ! ” उसने संक्षिप्त सा जवाब दिया ।
” फिर ठीक है ! तुम्हें मिशन पर अभी निकलना है । जल्द निकलो ! खुदा हाफिज ! ” कहकर उधर से फोन काट दिया गया था ।
” खुदा हाफिज ! ” बुदबुदाते हुए उसने फोन अपनी जेब के हवाले किया और घर में अपनी बूढ़ी अम्मी को आवाज लगाई ,” अम्मीजान ! मैं एक जरुरी काम से बाहर जा रहा हूँ । अपना ध्यान रखना और हाँ दरवाजे की कुंडी लगा लेना । ”
कहकर जवाब का इंतजार किये बिना करीब रखा मशीनगन कंधे पर लादकर वह बाहर अँधेरे में गुम हो गया ।
अगले कुछ ही मिनटों में वह एरिया कमांडर आलम डार के घर पहुँच गया । वहाँ असलम का ही इंतजार हो रहा था । सीमापार से आये हुए तीनों ही बंदे मजबूत कदकाठी के अफगान युवक लग रहे थे । दुआ सलाम और संक्षिप्त परिचय के बाद असलम उन तीनों के साथ वहाँ से निकल कर जंगल की तरफ बढने लगा , जहाँ से उसे छिपते छिपाते सरहद के नजदीक सेना के कैम्प में घुसकर आतंक मचाना था । चारों ही पर्याप्त गोला बारूद और असलहों से लैस थे ।
मंजिल नजदीक ही थी कि अचानक मौसम खराब होने लगा । देखते ही देखते आसमान से मोटी मोटी बूँदें बरसने लगीं । चारों एक चिड़ के विशाल वृक्ष के निचे खड़े होकर खुद को भीगने से बचाने का प्रयास करते रहे , लेकिन तेज बारिश में आखिर कब तक बचे रहते । समय भी तेजी से गुजर रहा था और बारिश थी कि लगातार तेज होती जा रही थी । हारकर चारों भीगते हुए ही अपनी मंजिल की ओर बढ़े ! शीघ्र ही मंजिल उनके सामने थी । सेना के कैम्प और उनके बीच बस एक बरसाती नाले का ही फासला था । पेड़ों की आड़ में छिपते छिपाते चारों नाले के किनारे आकर थम गए । नाले में पानी का तेज बहाव देखकर एक बार तो उनकी हिम्मत जवाब दे गई लेकिन उन्हें तो मौत का कोई खौफ था ही नहीं सो चारों ने मजबूती से एक दूसरे का हाथ थामा और नाले में कूद गए । मंशा थी किसी तरह पार कर लेंगे , लेकिन पानी के तेज बहाव में उनकी एक न चली और चारों पानी में बहने लगे । लहरों में बहते , चट्टानों से टकराते सब लहूलुहान हो गए थे । नाला बहते हुए कैम्प की दीवार से लगकर गुजरता था जहाँ सिपाहियों की बराबर नजर रहती थी । स्थानीय होने की वजह से असलम को यह बात पता थी । उसने जल्दी से अपने कंधे पर लदा भारी बैग पानी में बहा दिया और मशीनगन भी फेंक दिया । पानी से भरसक बचने की कोशिश के बावजूद वह सँभल नहीं पा रहा था । उसके तीनों साथी अब उसकी नजरों से दूर, पता नहीं कहाँ थे । शायद भारी बैग की वजह से तीनों पानी में नीचे चले गए हों । वह कैम्प की दीवार के करीब पहुँच चुका था जहाँ कुछ फौजी जवान हाथों में रस्सी लिए शायद उसीका इंतजार कर रहे थे । रस्सी के सहारे फौजियों ने उसे बचा लिया लेकिन उसके साथियों का कोई पता नहीं चला । शायद पहरे पर दूरबीन लिए खड़े जवान ने उसे पहले ही बहते हुए देख लिया था और अपने साथियों को खबर कर दिया था जिससे उसकी जान बच गई । एक घंटे की गहन पूछताछ के बाद उसकी स्थानीय पहचान से संतुष्ट होकर फौजियों ने उसे अपने घर जाने की इजाजत दे दी ।
अब तक दिन निकल चुका था और बरसात भी थम चुकी थी । रास्ते भर असलम का दिल उसे धिक्कारता रहा । उसके दिल की आवाज थी ” उन्हीं फौजियों को मारने गया था न तू जिन्होंने उस खतरनाक बहाव से तुझे बचाया । इतना ही नहीं भूल गया तीन साल पहले श्रीनगर में बाढ़ का वह शैतानी चेहरा जो पूरे श्रीनगर को लील जाने पर आमादा था , लेकिन खुदा के भेजे इन्हीं फौजी बंदों ने फरिश्तों की तरह बिना किसी भेदभाव के सबकी जान बचाई थी । एक पल यह नहीं सोचा था कि यह वही अवाम है जो उनपर पत्थर बरसाती है , उन्हें गालियाँ देती हैं । ” इसी तरह की तमाम बातें उसके जेहन में घूमती रहीं । वह चलता रहा ।असलम ने वापस आकर आलम डार से मुलाकात की और उसे सारा वाकया सुनाया । जो हुआ उसे अल्लाह की मर्जी मानकर आलम ने उसे घर जाकर आराम करने व अगले आदेश का इंतजार करने की सलाह दी । घर पर उसकी अम्मी उसका इंतजार कर रही थीं । पूछने पर उसने सारा वाकया सही सही अपनी अम्मी को बता दिया । अब तक उसकी असलियत से अंजान उसकी अम्मी को यह जानकर बड़ा दुःख हुआ । उसने बताया ” बेटा ! अलगाववादियों की जाल में फँस गया है तू । देख हमारी जन्नत का इन शैतानों ने क्या हाल किया है , पूरी तरह दोजख बनाने पर आमादा हैं ये शैतान इसे । लेकिन खुदा का शुक्र है कि उसने इस जन्नत में फरिश्तों के रूप में भारतीय फौजियों को हमारी खिदमत के लिए भेज दिया । क्या तूने ये नहीं देखा कि बाढ़ के वक्त सीमापार के लोगों की भी मदद इन्हीं फौजियों ने की थी ? और बदले में हम इन्हें क्या दे रहे हैं ? पत्थर , गालियॉँ , मनगढंत आरोप .......और जिल्लत सहने पर मजबूर कर रहे हैं उन्हें । लेकिन नहीं ! हम ऐसा नहीं कर रहे , चंद तुझ जैसे सिरफिरों की वजह से हम सभी कश्मीरी शर्मसार हैं । हम अधिक से अधिक कश्मीरी भारत और भारतीय सेना के साथ हैं । हम दिल से भारत को अपना वतन मानते हैं । बेटा ! हमने दुनिया देखी है । हम उस मक्कार देश के झाँसे में नहीं आनेवाले जिसने मजहब के नाम पर 1947 में पाकिस्तान गए हुए अपने मजहबी भाइयों को आज तक गले नहीं लगाया । आधे कश्मीर पर जो कब्जा जमाकर रखा है , कभी सोचा है उनके बारे में कि पाकिस्तान के हुक्मरानों के बारे में उनके क्या ख्यालात हैं ? वो सभी भारत में शामिल होना चाहते हैं । और मुट्ठीभर तुम जैसे दहशतगर्द कश्मीर को भारत से अलग करना चाहते हैं ! लेकिन याद रखो इंशा अल्लाह तुम्हारे यह मंसूबे कभी कामयाब नहीं होंगे । तुम समझते हो तुम्हें सुनने के लिए यहाँ की अवाम जमा होती है ? नहीं ! बहुत बड़ी गलतफहमी में हो तुम ! ये दहशतगर्दों के वो भाड़े के लोग होते हैं जो या तो उनके हाथों बिके हुए होते हैं या फिर उनसे खौफजदा डरपोक लोग ! भारत के बारे में कश्मीरियों के खयालात टटोलना हो तो आम चुनावों के वक्त देखो , इन शैतानों की धमकी के बावजूद 75 फीसदी से अधिक लोग चुनावों में भाग लेते हैं । सेना की भर्ती होनी है या सिपाहियों की बड़ी संख्या में ये उनमें शामिल होते हैं । ये हैं सच्चे कश्मीरी , और एक सच्चा कश्मीरी सबसे पहले सच्चा भारतीय है और उसके बाद मुसलमान …………!.” बड़ी देर तक उसकी अम्मी तरह तरह से उसे लताडती रही और वह खामोशी से सब सुनता रहा ।
गाँव के बाहर टीले पर चहलकदमी करते हुए वह यही सब याद करते हुए एक अजीब से कश्मकश में था । अम्मी के कहे एक एक शब्द किसी तेज नश्तर की तरह उसके दिलोदिमाग में गहरे पैवस्त हो रहे थे कि तभी उसके पास का सैटेलाइट फोन बज उठा । फोन सीधे कमांडर ने किया था । ” अस्सलाम अलैकुम जनाब असलम ! खैरियत तो है ! ”
” जी जनाब ! ” संक्षिप्त सा जवाब !
” मेरी बात ध्यान से सुनो ! तुम्हें वीराने में एक घर का इंतजाम करना है । हमारे एक कमांडर जो कि बम बनाने में माहिर हैं आज तुमसे मिलेंगे । उस घर में तुम्हें उन्हें और हमारे आठ दूसरे बंदों को पनाह देनी है । कुछ ही दिन में हम किसी बड़ी कार्रवाई को अंजाम देंगे । समझ गए ? ” उधर से कहा गया ।
” जी जनाब ! ” कहकर उसने अपना फोन जेब के हवाले किया ।
कमांडर के कहे अनुसार आलम के सहयोग से एक घर का इंतजाम हो गया । एक विशेष आतंकी की देखरेख में बहुत सारे घातक बम उस घर में बनाये जाने लगे । असलम अभी भी असमंजस में था । आज उसे खबर मिली थी कि उसके साथियों का काम पूरा हो गया है और अब वो अगले एक दो दिनों में यहाँ से निकल जाएंगे । आगे की जिम्मेदारी उसकी रहेगी । अपना इरादा मन ही मन पक्का करता हुआ वह रात बारह के आसपास उन आतंकियों से मिलने उस सुनसान घर में पहुँचा ।
उसके पहुँचने के आधे घंटे बाद उस घर के आसपास का इलाका भयानक धमाकों से थर्रा गया । घर का नामोनिशान मिट चुका था । आतंकियों की लाशें टुकड़ों की शक्ल में घर के चारों तरफ दूर दूर तक बिखर गई थीं ।
सुबह अखबारों में खबर छपी ” आतंकी अपनी ही साजिश में फँसे ..धमाकों में नौ दहशतगर्दो की मौत ‘
असलम की अम्मी को जब यह खबर पता चली , उसके हाथ दुआ के लिए उठ गए ” या मेरे मौला ! पाक परवरदिगार ! तेरा लाख लाख शुक्र है तूने मेरे असलम को गुनाहगार होने से बचा लिया । मैं जानती हूँ कि यह विस्फोट हुआ नहीं…. किया गया है ………मेरे देशभक्त बेटे के हाथों ! ”

राजकुमार कांदु