आज फिर साल का दूसरा महीना आया है सब के मन में अनेको समन्दर के बराबर उफान  है, विशेष कर  लड़कियो के मन में. पर कुछ समझ नहीं आता की क्या करू किस से बोलूँ,हा ये विचार सामान्य बात है.
पर मुझे ये विचार नहीं आए कभी भी की क्या करू क्या नहीं.मेरे जीवन  एक ही लक्ष्य उसके आ गये सब कोई  कुछ नहीं अपने पापा का............ 
एक ही सपना उनकी ब्बर शेरनी  नीली बत्ती में आए........मुझे उन लड़कियो पर  तरस  आता है जो  इन प्रेम के नवरात्रो  के  हथे  चढ़   जाती  है  क्यू करती हो अपने माँ -पापा की पगड़ी का अपमान मत बनो उन बेसी दरिंदो का  शिकार ,में क्या समझाना  चाहती हु तुम बहुत समझदार हो
मानो मत दिल की, दिमाग़ की सुनो बहुत लाभ देगा मानती हु ये लाभ अभी नजर नहीं आए गा पर जब भी  आए गा तेरी सात पुस्तो को डूबने से बचाये गा
अपने भविष्य की  ओर कुच करो  मत करू समय का दुरूपयोग  वरना समय तुम्हारा क्या  करेगा तुम  समाधान भी नहीं सोच पाओ गी   तुम  बनो उनकी  शेरनी ना की  कलह  का  घर.
मत फ़िसलो चन  रूपये  के उपहारो  के आ गये  नहीं इतनी सस्ती  माँ पापा की खुशियाँ ,
मेरा मन बहुत उदास है जो इस माह को बहुत अच्छा मानती उनके लिए जो उनके  जीवन की सबसे बड़ी बर्बादी का ज्वालामुखी है  आज ये सब  बहुत मन को भाता है पर ऐसा ना हो की  आज के बाद ये माह  याद भी ना हो 
मत बनो उनका शिकार तुम खुद बनो एक हथियार . तुम बहुत कुछ कर  सकती को बस कमी खुद को पहचान देने की  है जो तुम स्वंय को कोहिनूर बना सकती हो देखा है मेने बहुत को रोते या साफ शब्दो में कहु तो खुद को मरते हुए इस माह के बाद.
, "आज जो बोओ गे  कल वो ही काटो गे,"आज  का बीज कोहिनूर जैसा लगाओ  ना की ज्वालामुखी सा. शमा चाहती हु  बात कड़वी है पर ,सोला आना सत्य है 
कुछ मत  
कर ऐ  मासूम ना समझ, कर कुछ ऐ सा की आँखो पर लोगो का चश्मा ना रुके कानो की कड़वाहट के कारण बन तू उनके हौसलों की उड़ान जिसका सपना देखा था जब तू आई थी इस जहा में. मन बहुत खुश  होता है जब किसी लड़की को स्कूल जाते देखती  हु स्त्री सर का ताज है ना की किसी के हाथो की कटपुतली.
भूल जाओ इन सब बातों को भूल जाओ उस को जिसको तुम सब मानती हो नहीं है वो तेरे एक पल  का साथ ही, है तो वो बूढ़े माँ पापा ,प्यार बुरा नहीं कहा मैने पर जिस्मानी प्यार वो कब सही हुआ है
," प्रेम राधा  सा हो, लगन मीरा सी हो तृष्णा बंसी सी हो, " प्रेम का वास्तविक अर्थ है श्री कृष्णा ने  कहा है  गीता में की प्रेम बंधन नहीं प्रेम जिस्मो का मिलन नहीं, प्रेम बंधन मुक्त बंधन है . तुम किस बंधन में बँधते हो ये  बंधन तुम्हारे भविष्य का निर्णय धारक होगा.
आज ही तय कर लो क्या बनना है भूल जाओ उन बेश कीमती तोफों को जो तुमको अंधकार में ले जा रहै है ये प्रेम के दिन नहीं मौत के सौदागर है मत करो खुद का सौदा इन सौदागरो का............