Ek Duniya Ajnabi - 43 in Hindi Moral Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | एक दुनिया अजनबी - 43

Featured Books
  • انکہی محبت

    ️ نورِ حیاتحصہ اول: الماس… خاموش محبت کا آئینہکالج کی پہلی ص...

  • شور

    شاعری کا سفر شاعری کے سفر میں شاعر چاند ستاروں سے آگے نکل گی...

  • Murda Khat

    صبح کے پانچ بج رہے تھے۔ سفید دیوار پر لگی گھڑی کی سوئیاں تھک...

  • پاپا کی سیٹی

    پاپا کی سیٹییہ کہانی میں نے اُس لمحے شروع کی تھی،جب ایک ورکش...

  • Khak O Khwab

    خاک و خواب"(خواب جو خاک میں ملے، اور خاک سے جنم لینے والی نئ...

Categories
Share

एक दुनिया अजनबी - 43

एक दुनिया अजनबी

43-

कुंठित थी सुनीला, विश्वास ही नहीं कर पा रही थी, उनकी योजना पर लेकिन वातावरण देखकर और बातें सुनकर झुठलाना भी इतना आसान नहीं था | |

"मुझे तो लगा था मेरी सुनीला बहुत खुश हो जाएगी, यह देख-सुनकर ? " मंदा मौसी इतनी देर से बातें सुन रही थीं, अचानक बोलीं |

"मौसी कैसे भुला दें कि ब्रिटिशर्स ने कैसी भ्र्ष्टता फैलाई थी यहाँ, हमने तो ख़ैर देखा नहीं वह समय ? अपने बड़ों से सुना और किताबों में पढ़ा लेकिन ----"

"इन्होने राजा महाराजाओं को भ्र्ष्ट किया, योजनाबद्ध तरीके से भ्र्ष्टाचार को बढ़ावा दिया --आपको क्या लगता है कि इन्होने हमारी स्त्रियों के साथ ग़लत सुलूक़ नहीं किया ? आपको याद है न जो मम्मी की दोस्त थीं, उनकी माँ कैसी-कैसी बातें बताती थीं कि शरीर में से चिंगारियाँ निकलने लगती थीं ---"सुनीला बोली |

"आपके अनुसार हमें वो सब अत्याचार भुला देने चाहिएं जो उन्होंने किए थे ? जब हमारे देश में क़दम रखा तब भारत सोने की चिड़िया नहीं कहलाता था ? " निवि ने कहा |

"हाँ, दरसल उन्हें आर्थिक दृष्टि से संपन्न, राजनैतिक रूप में कमज़ोर भारत मिला और उन्होंने अपना कृत्य शुरू कर दिया |"प्रखर ने कहा |

"बेटा ----" मंदा मौसी कुछ कहना चाहती थीं लेकिन जॉन ने मंदा को रोक दिया |

"कहने दो --ज़रूरी है, मन में रखने से अच्छा, कोई भी पीड़ा किसी तरह निकल जाए और हम खाली हो जाएं, हल्के ----"

"आप मुझे कहें या मेरे बारे में कुछ भी सोचें मि.जॉन लेकिन यह तो सर्व विदित सच है ही कि इतनी धोखाघड़ी, भ्र्ष्टाचार और ग़रीबी कहाँ थी पहले भारत में, आप लोगों के आने से --"

"ठीक कहा आपने पर अब तो मूव ऑन करना होगा, कब तक उसके लिए रोते रहेंगे--या दोष देते रहेंगे ? फिर मैं तो भाई पक्का भारतीय हूँ, जिस माँ के गर्भ से निकला उसका अंश हूँ मैं--"

"पिता के भी हैं न ? " कड़वाहट से भरी हुई थी सुनीला |

"सुनीला, बेटा तुम तो इतनी समझदार हो, सहनशील भी फिर ----" मंदा मौसी इस कड़वी चर्चा से असहज थीं |

"मंदा ! सहनशीलता संस्कार हैं, उन्हें नापा तो जा नहीं सकता | हम अपने मन की तराजू पर उसे रख तो सकते हैं, पर नाप नहीं सकते ---सहनशीलता भी कभी तो अपनी सीमा तोड़ेगी ही न ? "जॉन ने बड़ी ही सरलता से कहा |

पता नहीं इसमें कितना आडंबर है ? सुनीला सोच रही थी | बड़ी-बड़ी बातें करने वाले अक्सर ऐसे ही बात करते हैं |

एक बार मन सोचता 'जजमेंटल होना भी तो ठीक नहीं ---क्या पता इस व्यक्ति में वही बातें भीतर तक हों जो यह जता रहा है | फिर भी वह असहज थी, मंदा मौसी को लेकर भी | लेकिन मंदा मौसी और उस व्यक्ति जॉन की समीपता सबको खूब दिखाई दे रही थी |

"इन सब बातों का कोई अंत नहीं, अपने-अपने विचार हैं, किसीके ऊपर थोपा नहीं जा सकता|"