Ek Duniya Ajnabi - 33 in Hindi Moral Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | एक दुनिया अजनबी - 33

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एक दुनिया अजनबी - 33

एक दुनिया अजनबी

33-

"ये भी एक अलग कहानी है दीदी ---"संकोच से वह चुप हो गई थी लेकिन उसे सब कुछ खुलकर बताना था, वह चाहती थी कि अपने मन की सारी बातें इनसे साँझा करे | कुछ देर चुप रही, न जाने किन घाटियों में लौट गई थी ;

"जो टीचर मुझे पढ़ाने आते थे, उनसे मेरा मोह हो गया | वो तो मुझसे शादी करना चाहते थे पर आप जानते ही हैं --जब मेरे पिता मुझे न्याय नहीं दे सके तो उनका परिवार मुझे कैसे स्वीकार कर लेता ? "

"फिर ? " मृदुला की कहानी अजीब से मोड़ लेती जा रही थी जैसे कोई फ़िल्म हो|

"वो कहाँ है --बिटिया --? "

"मेरे पास ही, वहीं पर जहाँ मेरा लालन-पालन हुआ है |"

उसके पिता को मालूम है ? "

"बिलकुल दीदी, वो अक़्सर उससे मिलने भी आते हैं --उसको भी मालूम है कि वो उसके पिता हैं, दोनों का ताल-मेल बहुत अच्छा है | "फिर बोली ;

"दोनों एक-दूसरे को बहुत प्यार करते हैं --"

"वो कहाँ रहते हैं ? "

"पहले बरोडा थे, अब मुंबई में हैं, कॉलेज में प्रोफ़ेसर हैं ----"

"शादी हो गई उनकी ? "

"नहीं दीदी, बहुत ख़ुद्दार हैं, अपने माता-पिता के अकेले बेटे हैं | कॉलेज में पढ़ाते हैं , अपने माता-पिता की देखभाल करते हैं |"

"ऐसे तो तुम्हारी बेटी का भविष्य भी ---"

"नहीं भैया, जीवन में केवल शादी ही लक्ष्य नहीं है---बहुत कुछ है जीवन में करने को --"कुछ रुककर बोली ;

"ज़रूरी नहीं शादी सब कुछ दे दे, हम बिना शादी के भी बहुत कुछ पा सकते हैं |" कुछ रुककर बोली

"मुझे लगता है आज हमारी संवेदनाएं खत्म होती जा रही हैं फिर शादी का तमगा चिपकाकर लटकाने से क्या लाभ है ? "

"इसका मतलब तो शादी की संस्था ही बेकार हो गई तुम्हारे हिसाब से ? " शर्मा जी खुले विचारों के तो थे किन्तु परंपरावादी भी थे | समाज के नियमों के अनुसार चलने वाले शर्मा जी के लिए यह प्रश्न पूछना बड़ा स्वाभाविक था |
"नहीं, मेरा मतलब यह नहीं है, शादी एक व्यवस्था है जिसका पालन होना चाहिए लेकिन हमारे जैसों के लिए कौनसी व्यवस्था ? बताएं आप ? मेरी बिटिया को अगर कोई अपनाएगा तो उस पर एहसान करेगा, उसका कल्याण करने के लिए ही अपनाएगा जो न तो उसे मंज़ूर है, न ही मुझे ---मैं क्यों किसी से भी झूठ बोलकर कुछ भी रिश्ता बनाऊँ ---वो भी मेरे जैसी है दीदी "

दोनों पति-पत्नी उलझ गए थे, बिलकुल सही तो कह रही थी मृदुला ! उस दिन से मृदुला का यह एक घर ही बन गया था | मायके जैसा घर जो आस-पड़ौस में सबके मन में आशंका के बीज बोता रहता था |

"ठीक है मृदुला, तुम्हें इन लोगों ने पाला, तुम्हारा भी कर्तव्य बन जाता है इनका सहारा बनने का लेकिन अगर तुम इनके साथ ऐसे नाच-गाने में न आओ तो ? "शर्मा जी उसके लिए बहुत संवेदनशील हो चुके थे |

"ऐसा है भैया, वो जो भगवान है न, जिसे किसी ने देखा तो नहीं पर महसूस हम सब करते हैं वो कुछ कमी करता है तो उसकी जगह चार चीज़ें हाथ में थमा देता है, सर्वाइवल के लिए ---उन्होंने मुझे माँ शारदे का वरदान दिया, मेरे कंठ में शारदे का वास दिया, सब लोग मुझसे गाना सुनना चाहते हैं और मैं किसीको निराश नहीं करना चाहती | अगर मैं इन लोगों को थोड़ी सी खुशी दे सकूँ तो मेरे जीवन की सफ़लता है वरना मेरे जीवन का अर्थ क्या है? क्या और क्यों पैदा हुई मैं ----? मैं साथ आती हूँ तो मेरा गाना सुनकर लोग कुछ अधिक ही पैसे दे देते हैं ---"

विभा व शर्मा जी के आवाक, आश्चर्यचकित चेहरे को देखकर मृदुला ने फिर कहा ;

"सच्ची, आप दोनों सोचकर देखो, क्या अर्थ मेरे पैदा होने और जीने का, एक माँस का लोथड़ा ही न --जैसे मेरे पिता ने माँ से मेरे जन्म पर कहा था ---"

"अगर तुम्हारी बेटी कभी शादी करना चाहे तो ? "

"उसके लिए मेरी तरफ़ से मनाई नहीं है लेकिन वह भी मेरी तरह है, बिलकुल साफ़ पानी पर चलती धार सी ---वह न तो किसीसे कुछ छिपाएगी और न ही अपने आपको बदलेगी | हाँ, अपनी ड्यूटी ज़रूर पूरी करेगी, इतना मेरा विश्वास है | "

वह वास्तव में एक अजीब सा दिन था जो इस शर्मा परिवार को एक नए रिश्ते में बाँध गया था | वह रिश्ता बरसों से चल रहा था जिसकी संवेदना से पति-पत्नी जुड़े थे |इसी अधिकार से मृदुला यहाँ आती-जाती थी व सबके मन में खटकती थी | बच्चों से इस विषय में कोई बात नहीं की गई थी |