Ek Duniya Ajnabi - 31 in Hindi Moral Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | एक दुनिया अजनबी - 31

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एक दुनिया अजनबी - 31

एक दुनिया अजनबी

31-

थक हारकर ये सभी उसी डॉक्टर के पास मृदुला को लेकर फिर से गए जहाँ उसको चैक करवाने ले गए थे और उस डॉक्टर के बारे में पूछताछ की जहाँ बच्चे का जन्म हुआ था | जिस स्त्री से किन्नरों को बच्ची मिली थी उसने किन्नरों को उस डॉक्टर की जानकारी व पता भी दिया था जहाँ उसका जन्म हुआ था | ढूँढ़ते-ढाँढते अब मृदुला को फिर से उसकी जन्मदात्री डॉक्टर के पास ले जाया गया | ऐसे केस गिने-चुने होने के कारण डॉक्टर को इसका पूरा ध्यान था |

डॉक्टर के पास बच्चे के पिता का नंबर भी था और पता भी | डॉक्टर को जब बच्चे के बारे में पता चला, खुद भी उसे बहुत आश्चर्य हुआ किन्तु प्रकृति की माया को कौन चेलेंज कर सकता है !

उन्होंने किन्नरों को बच्चे के पिता का पता दे दिया |सब बड़े पशोपेश में थे | बच्ची उनकी नहीं थी किन्तु सबकी लाड़ली थी और पूरी युवती बनने के बाद उसे अपने पास रखने में उन्हें संकोच हो रहा था |कैसे भरी-पूरी स्वस्थ्य बच्ची को ऐसे अस्वस्थ्य वातावरण में रखा जाय ? सबके मन में यह प्रश्न कुलबुला रहा था |

इन सबने मिलकर ही उसका नाम मृदुला रखा था | इतनी प्यारी, प्राकृतिक रूप से हर प्रकार से समर्थ लड़की देखकर बच्ची का जन्म करने वाली डॉक्टर आश्चर्य में थी और परमपिता का धन्यवाद भी कर रही थी | उसके प्रैक्टिस के पूरे समय में इस प्रकार का यह एक ही केस आया था | मृदुला बहुत खूबसूरत युवती में तब्दील हो रही थी पर उसका रहन-सहन व चलने का तरीक़ा किन्नरों से मिलता था जो उनके साथ रहने के कारण स्वाभाविक ही था |

मृदुला ने ज़िद करके लक्ष्मी माँ से पूरी बात पूछ ली, उसका मन हा-हाहाकार करने लगा ;

"बेटा, तू जाना चाहेगी न अपने घर --? यहाँ रहकर क्या करेगी? " सबकी आँखें सजल थीं परन्तु बच्ची को अपने पास रखना ठीक नहीं लग रहा था | उसके साथ अन्याय क्यों ?

डॉक्टर ने मृदुला के पिता को सूचना दे दी थी, वो भी भौंचक्के हो गए और अपनी बेटी से मिलने को उनका मन मचलने लगा | मृदुला के जन्म के बाद उनके घर में एक बेटी का जन्म हो चुका था किन्तु संतान के ज़िंदा रहने, वह भी अपनी बेटी की खूबसूरती की चर्चा सुनने के बाद उनसे रहा नहीं गया | उन्होंने अपनी पत्नी को भी सब बता दिया था | पत्नी एक माँ थी जिसे अपने बच्चे को देखने भी नहीं दिया गया था, उसे मृत घोषित करके उसका चेहरा भी नहीं दिखाया गया था |

उसका पति उसकी दृष्टि में अपराधी था|वह बेटी से मिलने के लिए उतावली होने लगी |उसकी बेचैनी बढ़ती ही जा रही थी | माँ का ह्रदय हाहाकार कर रहा था |कहीं न कहीं पिता अपने ऊपर बहुत शर्मिंदा भी था पर चिड़ियाँ खेत चुग गईं थीं, बहुत देर हो चुकी थी |

एक दिन साहस करके वह अपनी पत्नी को लेकर मृदुला से मिलने पहुँच ही गया | डॉक्टर ने उन्हें फ़ोन पर पता लिखवा दिया था |

"तुम्हारे माता-पिता आए हैं मृदुला " उन्हें लक्ष्मी माँ के कमरे में बुलाया गया | लक्ष्मी ने उन्हें अपने कमरे से सटे सजे हुए सिटिंग-रूम में बिठाकर उनकी ख़ातिरदारी की |

"कोई मुझसे तो पूछो, मैं क्या चाहती हूँ ? मृदुला भिनभिनाती हुई आई तो मगर उन्हें देखकर ज़ोर से रो पड़ी |

"बेटा ! तुम्हारे मम्मी-पापा हैं, तुम्हें साथ ले जाने आए हैं ---"लक्ष्मी ने उसे अपनी गोदी में छिपा लिया |

"पहले पिता नाम के जीव ने फेंक दिया, फिर माँ नामकी उस स्त्री ने छोड़ दिया जिसने अपना दूध पिलाकर मुझे ज़िंदा रखा | मेरे माता-पिता कौन हैं ? न मैं जानती हूँ, न ही जानना चाहती हूँ लेकिन अब मैं कहीं नहीं जाऊँगी ---" वह ज़िद में अड़ गई थी |

वहाँ सब मृदुला से बहुत प्यार करते थे, उसे सुबकियों से रोते देखकर सबका मन दुखी होने लगा "भाऊ, हमने मृदुला की आँखों में कभी आँसू नहीं आने दिए, हम इसे रोते हुए नहीं देख सकते |" लक्ष्मी ने बड़े प्यार से उन्हें समझाया |

दोनों पति-पत्नी की आँखों से आँसुओं का पतनाला बह रहा था | आँसू थे कि निकलने बंद ही नहीं हो रहे थे |

"हम कोशिश करेंगे यह आपके पास जाने के लिए मान जाए पर हम इस तरह इस पर दबाव नहीं डाल सकते ---" फिर कुछ रुककर उन्होंने मृदुला के पिता से पूछा ;

"आप अपने समाज को क्या कहोगे भाऊ, आपकी बच्ची अब तक कहाँ थी ? "

"अरे ! वो तो हम कुछ भी कह देंगे, रिश्तेदार के या हॉस्टल में या ----"

"देखा लक्ष्मी माँ, जो अपनी संतान के लिए पहले दिन से ही झूठ बोल रहा है, मुझे मरा हुआ बता दिया था | आपको लगता है वो आगे मुझसे या किसी से भी झूठ नहीं कहेगा ? ये मुझे झूठ से ही पालने वाले हैं | "