Meditation and Concentration in Hindi Book Reviews by Smita books and stories PDF | पुस्तक समीक्षा - आप भी सिद्धहस्त हो सकते हैं ध्यान और धारणा के...

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पुस्तक समीक्षा - आप भी सिद्धहस्त हो सकते हैं ध्यान और धारणा के...


निरंतर अभ्यास से धारणा और ध्यान में सिद्धहस्त
पुस्तक: धारणा और ध्यान
लेखक: श्री स्वामी शिवानंद सरस्वती
प्रकाशक: द डिवाइन लाइफ सोसायटी

स्वामी शिवानंद सरस्वती ने अपनी किताब 'धारणा और ध्यान' में स्पष्ट कहा कि यदि प्रतिदिन अभ्यास किया जाए, तो साधक के लिए ध्यान की अवस्था में आना संभव है। यदि आप दो-चार दिन अभ्यास करते हैं और आगे एक-दो दिन अभ्यास को छोड़ देते हैं, तो फिर मुश्किल है। आप दोबारा उसी
स्थान पर चले आते हैं, जहाँ से आपने शुरुआत की थी। निरन्तर अभ्यास ध्यान-धारणा की पहली शर्त है।
धारणा ध्यान के पथ पर अग्रसर करती है। अब साधक सबसे पहले यह समझें कि धारणा क्या है? यदि साधक मन को शरीर के बाहर अथवा भीतर किसी एक बिंदु पर केंद्रित करना सीख जाते हैं, तो फिर वहां उनका चित्त भी स्थिर हो जाता है, यही धारणा है। चित्त यदि अस्थिर है, तो आप कभी ध्यान में नहीं उतर सकते और चित्त की स्थिरता आती है उत्तम आचरण से। इस लिए व्यक्ति को सबसे पहले अपना आचरण उत्तम करना होगा। उत्तम आचरण के लिए भी निरंतर अभ्यास की जरूरत पड़ती है। कुछ अधैर्यवान साधक बिना किसी नैतिक प्रशिक्षण के धारणा का अभ्यास करने लग जाते हैं, यह उनकी भयंकर भूल है। नैतिक रूप से उत्कृष्ट होना सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। यदि आपके मन में लोभ, मोह, ईर्ष्या, क्रोध आदि जैसे दुर्गुण हैं, तो आप कभी भी ध्यानस्थ नहीं हो सकते हैं।
यदि आपका मन शांत होगा और वह पूरी तरह मनोविकारों से मुक्त होगा, तभी आप धारणा का अभ्यास कर सकते हैं।
कई योगाभ्यास कठिन भी होते हैं। उन्हें भी धैर्य के साथ सीखने की जरूरत है। योगाभ्यास से ही योगबल विकसित होते हैं, जिसकी मदद से हमारा शरीर स्वस्थ होता है।
जिस व्यक्ति ने योग व आसन में योग्यता हासिल कर ली तथा जिसने प्राणायाम के निरंतर अभ्यास से अपनी नाड़ियों और कोशों को शुद्ध कर लिया , वही धारणा का भी अभ्यास कर सकता है।
स्वामी जी पुस्तक में स्पष्ट करते हैं कि धारणा और ध्यान के मूल योगाभ्यास ही हैं। इसमें सिद्धहस्त होने के बाद ही ध्यान के चरम को पाया जा सकता है। अंतर्मन को जगाया जा सकता है और आध्यात्मिक पथ का पथिक बना जा सकता है। इस गूढ़ विषय को स्वामीजी ने बड़े ही सरल और सहज तरीके से बताया है, ताकि ध्यान-अभ्यास को नए सीखने वाले भी आसानी से समझ जाएं।स्वामी शिवानंद सरस्वती दक्षिण भारत से थे और पेशे से डॉक्टर थे। उन्होंने कई सालों तक मलेशिया में अपनी सेवा दी थी। जब उनमें अध्यात्म के प्रति प्रेम जाग्रत हुआ, तो वे उत्तराखंड के अल्मोड़ा चले आये। वहीं उन्होंने वर्षों तक ध्यान-योग साधना की और योग के प्रति आम लोगों को जागरूक करने का कार्य किया। लोगों को बताया कि योग के माध्यम से व्यक्ति निरोग रह सकता है। वहीं उन्हें स्वामी सत्यानन्द सरस्वती से भेंट हुई और उन्हें अपना शिष्य बनाया। स्वामी शिवानंद सरस्वती ने अध्यात्म, दर्शन और योग पर लगभग 300 पुस्तकें लिखी। स्वामी शिवानंद सरस्वती के शिष्य स्वामी सत्यानन्द सरस्वती ने मुंगेर में बिहार योग विद्यालय की स्थापना की। यह पुस्तक कंसन्ट्रेशन एंड मेडिटेशन का अनुवाद है।

स्मिता