केबीएल पांडे के गीत
गीत
हमारे पास कितना कम समय है
डाल पर अब पक न पाते फल हमारे पास कितना कम समय है
कौन मौसम के भरोसे बैठता है
चाहतों के लिए पूरी उम्र कम है
मंडियां संभावनाएं तौलती है
स्वाद के बाजार का अपना नियम है
मिट्ठूओ का वंश है भूखा यहां तक आगये दुर्भिक्ष भय है
डाल पर अब पक न पाते फल हमारे पास कितना कम समय है
हरे बनके सिर्फ कुछ विवरण बचे हैं
भरी मठ में ली उदासी क्यारियों में
आग की बातें हवा में उड़ रही हैं
आज ठंडी हो रही जिन गाड़ियों में
वह इससे क्या सारणिक लेगा यहां पर आरंभ से निस कर सकता है
डाल पर अब पक न पाते फल हमारे पास कितना कम समय है
वहां जाने क्या विवेचन चल रहा है
सभी के वक्तव्य बेहद तीखे
यहां सड़कों पर हजारों बिखरे रूट से वास्तविक है
पूछने पर बस यही उत्तर सभी के
यह गंभीर चिंता का विषय है
डाल पर अब पक न पाते फल हमारे पास कितना कम समय है
केबीएल पांडे के गीत
कभी-कभी बस आते रहना
यही बहुत है बंधु आजकल
कभी-कभी बस आते रहना
वैसे इस आपाधापी में
किसको फुर्सत आए जाए!
ब्याह बधाई शोक सांत्वना
मिल जाते हैं छपे छपाए!!
फिर भी कभी इधर से निकलो,
हम पर दया दिखाते रहना!
कभी-कभी बस आते रहना!!
राजकाज कितना मुश्किल है
छोटे लोग भला क्या जाने!
त्याग तपस्या के स्वर्णाक्षर
हम अज्ञानी क्या पहचाने !!
किस निशान पर बटन दबाना मालिक हमें बताते रहना!
कभी-कभी बस आते रहना
भला आप भी क्या कर सकते
जब सबका अपना नसीब है !
यह तो प्रभु की लीला ठहरी
वह अमीर है वह गरीब है !!
सभी चैनलों पर पूरे दिन हमें यही समझाते रहना!
कभी-कभी बस आते रहना
छोड़ो हम भी क्या ले बैठे
दो कौड़ी छोटी बातें बातें छोटी,
आखिर देश प्रेम भी कुछ है
जब देखो तब रोटी रोटी!!
करतल ध्वनि में आजादी का झंडा आप चलाते रहना
कभी-कभी बस आते रहना
ऐसा क्यों होता है
ऐसा क्यों होता है
कि धुले खुले आसमान में
अचानक भर जाते हैं
धुंए और आग की लपटों के बादल
धुंआ जिससे होना चाहिए था
हर घर में चूल्हा सुलगने का अनुमान
लपट
जिससे निकलना चाहिए थी
सिकती हुई रोटी की महक
लपट
जिसमें दमकता
खेलकर लौटे बच्चों
और काम पर से लौटे आदमी को
रोटी परोसती
ग़हिणी के चेहरे पर
सुख और सन्तोष
पर कहां से उपजी है
यह सीलन
जिसने आग और चूल्हे के रिश्तों में
भर दिया है ठंडापन
धुआं किसके इशारों पर
हो गया है बदचलन
ऐसा क्यों होता है
कि हर तरफ धधक उठता है
श्मशान
चारों तरफ बिखर जाती है
कटी हुइ चीख और कराहें
पास ही फडफडाता है
मुस्कराते चेहरे वाला
अधफटा इश्तहार
जिस पर लिखा है
हम सब एक हैं
ऐसा क्यों होता है
कि जानी पहचानी हवा में
अचानक धुल जाता है जहर
और आंखों का रास्ता रोक लेता है
कोई कारखाना
या नासमझ नफरत में तना हुआ चाकू
तब हर पहचान
एक मैने धब्बे में
बदल जाती है
दिशाओं की संभावना
पैरों के लिए नहीं
सिर्फ अंधेरों के लिए रह जाती है
ऐसा क्यों होता है
कि सपनों के लिए
जमीन तो बनती है
हमारी आंखें
और फसलें
बिश्रामर्ग़्रहों में उगती हैं
फिर घोषणा होती है
कि त्यौहार मनाया जायेगा
लुभावनी सूक्तियों के
सूखे बंदनवार
पानी छिड्क छिडक कर
घर घर टांगट दिये जाते हैं
फिर खुल जाता हैमोर्चा
हमें दे दिये जाते हैं
अदल बदल कर
वही पुराने हथियार
जो अश्वमेध पूरा हो जाने पर
वापस शस्त्रागार में रख दिये जाते हैं
कैसा हिसाब है
लडाई हम लडते हैं
जीत वे जाते हैं
लेकिन अब हमें
मौसम में बदलाव लाना है
ताकि सुबह की कामना लेकर
रात झंपी आंख के लिए
कल का सूरज
हादसा न बन जाये
केबीएल पांडे के गीत
गीत
सुभाषित भी नहीं कोई काम आए
ठिठुरते गणतंत्र में बस आपके घर गुनगुने हैं
हम यहां पर किस तरह हैं आपको अब क्या बताएं !
जगह भरने को छपी हो जिस तरह कुछ लघुकथाएं !!
विषय सूची तक में नहीं है नाम अपना
और ऐसा भी नहीं यह चौखते हमने बुने हैं !
ठिठुरते गणतंत्र में बस आपके घर गुनगुने हैं!!
जिंदगी में बस अभी तक यही हमको मिल सका है !
गलतियों का सफर पश्चाताप पर आकर थका है !!
सुभाषित भी नहीं कोई काम आए
बांके छोटा मगर कई विराम आए !
पंच तो हम थे मगर केवल फैसले हमने सुने हैं !
चतुर्थी गणतंत्र शोक का उपलक्ष है
पर मंच फूलों से सजे हैं ]
हाथ में विस्थापितों के
तथाकथित मुआबज़े है अॅअॅ
पेड़ पौधे गांव खेत मकान छूटे
पीढ़ियों के मिले-जुले विधान छूटे
अब हमें क्या फर्क पड़ता चने कच्चे या भुने हैं!!
ठिठुरते गणतंत्र में बस आपके घर गुनगुने हैं!!
रोशनी की पांडुलिपियों
को मिले कैसे प्रकाशन ]
जब पुरस्कृत हो रहे हैं
जुगनू ओ के भजन कीर्तन !!
महोदय सविनय निवेदन प्रार्थनाएं
हो गई भवदीय सारी कलाएं !
आप जिन पर चल रहे बे गलीचे हमने बुने हैं !
ठिठुरते गणतंत्र में बस आपके घर गुनगुने हैं!!
केबीएल पांडे के गीत
कभी-कभी बस आते रहना
यही बहुत है बंधु आजकल
कभी-कभी बस आते रहना
वैसे इस आपाधापी में
किसको फुर्सत आए जाए!
ब्याह बधाई शोक सांत्वना
मिल जाते हैं छपे छपाए!!
फिर भी कभी इधर से निकलो,
हम पर दया दिखाते रहना!
कभी-कभी बस आते रहना!!
राजकाज कितना मुश्किल है
छोटे लोग भला क्या जाने!
त्याग तपस्या के स्वर्णाक्षर
हम अज्ञानी क्या पहचाने !!
किस निशान पर बटन दबाना मालिक हमें बताते रहना!
कभी-कभी बस आते रहना
भला आप भी क्या कर सकते
जब सबका अपना नसीब है !
यह तो प्रभु की लीला ठहरी
वह अमीर है वह गरीब है !!
सभी चैनलों पर पूरे दिन हमें यही समझाते रहना!
कभी-कभी बस आते रहना
छोड़ो हम भी क्या ले बैठे
दो कौड़ी छोटी बातें बातें छोटी,
आखिर देश प्रेम भी कुछ है
जब देखो तब रोटी रोटी!!
करतल ध्वनि में आजादी का झंडा आप चलाते रहना
कभी-कभी बस आते रहना
गीत मेरी जिंदगी का प्यार है आधार है
जब बसंती ओढ्नी में पुष्प पंखुरिया विहंसती
मंजरी पर झूम कोकिल तान मुकुलों पर थिरकती।
सुरभि में हो अंध मतवाला मधुप कुछ खोजता जब
भावना बेसुध पवन के पालने में पेंग भरती।।
विकल अन्तर के बहुत से पृष्ठ रंग जाते सुनहली लेेखनी से तब,
मौन कह उठता यही मेरा सुखद संसार है
गीत मेरी जिंदगी का प्यार है आधार है
लुट रहा कुंकुम सितारे गय गये आंसू बहाते,
हृदय की पहचान पर भूले विहग मातम मनाते।
सुरभि वाहक मलय अपनी लिख रहा प्रियतम कहानी
क्षितिज पर बैठे चितेरे तूलिका में रंग लाते ॥
सज रहे तोरण नदी के नृत्य पर अंगडा़ उठा चन्दा
चली बारात रजनी की
हलचल कहती जग का मनचला व्यापार है।
गीत मेरी जिंदगी का प्यार है आधार है
स्वप्न के परिचित विभव क्या कल्पना में ही रहोगे
दो मुझे विश्वास पल भर धरा पर अभिनय करोगे।
खोल उर के द्वारा स्वागत को यहां बैठा भिखारी
बिम्ब से बातें करूं एकांत में जब तुम न होगे॥
खोजते तुम, पास ही मै यत्न करता हूं,
तुम्हारे सामने गांउ
गीत बिखरे बिन्दुओं का ही सजा आकार है॥।
गीत मेरी जिंदगी का प्यार है आधार है
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के बी एल पांडेय के गीत
सिसक सिसक कर मेरी मन-वीणा के तार अभी सोये हैं
अरूण ने सिन्दूरी घूंघट खोल जगत पर तीर चलाये,
तारे सोये सिहरे सरसिज अंगडा़ कर भंवरे मुस्काये।
जग सपनों में झूल रहा था पर मैंने अभिसार न जाना।
अंतर की उमडी़ पीडा़ के आंसू भी हंस कर राेये हैं
सिसक सिसक कर मेरी मन-वीणा के तार अभी सोये हैं ॥
मैंने भी अपने जीवन में मुस्कानों का मेला देखा
उजड़े उर की टीस छोड़ती विस्मृति की अधियारी रेखा
मेरा दीप नहीं सह पाया उपहासों के चंचल झोंके,
इन नयनों के खारे जल से मैंने तो छाले धोये हैं।
सिसक सिसक कर मेरी मन-वीणा के तार अभी सोये हैं ॥
मेरी पलकों में पढ़ लो तुम युग युग का इतिहास छिपाए
पतन उदय का सत्य चिरंतन जीवन का संगीत बनाये।
आशा को बरबस अपना कर नजर राह में बिछा रहा था
यह तो था मालूम नहीं मैंने प्रिय पाकर ही खोये हैं।
सिसक सिसक कर मेरी मन-वीणा के तार अभी सोये हैं ॥
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के बी एल पांडेय के गीत
तुम मुझे स्वर दो तुम्हें मैं गीत का उपहार दूंगा
खोजता था मैं अभी तक आंधियों में शांति के क्षण,
जिन्दगी से हार मांगे मौत से दो मधुर चुम्बन।
अमा के तम में अमर आलोक की बस कल्पना ही,
वह भ्रला आलोक क्याा जो मुस्कराये चार उडगण।
तुम अगर आओ लगत को ज्योति का आधार दूंगा॥
तुम मुझे स्वर दो तुम्हें मैं गीत का उपहार दूंगा॥
बंधनों के स्वर्ग को जिसने नियति का भार जाना,
मदिर उन्मादी दृगों को कैद कर समझे बहाना।
वह गगन का मुक्त पंछी दूर से ही हंस रहा जो
कौन सा विस्मय उसे यदि धरा पर भाये न आना।
तुम न ठुकराना इसे मैं माधवी उपहार दूंगा ॥
तुम मुझे स्वर दो तुम्हें मैं गीत का उपहार दूंगा
चार पल अभिसार कर लूं साध यह मन की पुरानी
रूठ जायेगबी कभी भी स्वयं इठलाती जवानी।
अधूरी आदि विस्म़ृत अंत भी अज्ञात जिसका
सुन सको तो कह चलूं मैं सिसकियों की ही कहानी।
सांझ जब रोने लगी मै भी रूदन का भार लूंगा॥
तुम मुझे स्वर दो तुम्हें मैं गीत का उपहार दूंगा
मान मत कर शशि तिमिर से ही सजी मुस्कान तेरी,
मोद तुमको दे रही है आंसुओं की तान मेरी।
देखना ही यदि तुम्हे प्रिय स्वप्न के जग का उजड़ना
फूंक दो जीवन शिखा रह जाय यह दुनियां अंधेरी।
जीत तुम ले लो प्रथम बस मैं तुम्हारी हार लूंगा ॥
तुम मुझे स्वर दो तुम्हें मैं गीत का उपहार दूंगा
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