likh rahe ve nadi ki antarkathaye in Hindi Poems by कृष्ण विहारी लाल पांडेय books and stories PDF | लिख रहे वे नदी की अन्तर्कथाऐं,

Featured Books
Categories
Share

लिख रहे वे नदी की अन्तर्कथाऐं,

गीात

क्ृष्ण विहारी लाल पांडेय

घाट पर बैठे हुए हैं जो सुरक्षित

लिख रहे वे नदी की अन्तर्कथाऐं,

आचमन तक के लिए उतरे नहीं जो

कह रहे वे खास वंशज हेैं नदी के,

बोलना भी अभी सीखा है जिन्होने

बन गये वे प्रवक्ता पूरी सदी के!

और जिनने शब्द साधे कर रहे वे

दो मिनट कुछ बोलने की प्रार्थनायें.......

थी जरा सी चाह ऐसा भी नही ंथा

आँख छोटी स्वप्न कुछ ज्यादा बड़े थे,

बस यही चाहा कि सुख आयें वहां भी,

जिस जगह हम आप सब पीछे खडे़ थे!

दूर तक दिखते नहीं है आगमन

पर क्या करें मिटती नहीं ये प्रतीक्षायें...........

पुरातत्व विवेचना में व्यस्त हैं वे

उंगलियों से हटाकर दो इंच माटी,

हो रहे ऐसे पुरस्कृत गर्व से वे

खोज ली जैसे उन्होने सिंधु घाटी!

ब्ंाधु ऐसे जड़ समय मेंकिस तरह

हम बचाकर जीवित रखें संवेदनायें......

सब तरफ आनंद है राजी खुशी है

हम सभी आजाद है जकड़े नियम में,

तैरती है झिलमिलाते रंगवाली

मछलियां ज्यों कांच के एक्वेरियम में!

सिर्फ पानी बदलता रहता हमारा

नहीं बदली है अभी तक विवशतायें.........

घाट पर बैठे हुए हैं जो सुरक्षित

लिख रहे वे नदी की अन्तर्कथाऐं,.......

-----

डॉ0 कृष्ण विहारी लाल पांडेय

उम्र

लगभग चौहत्तर साल

प्रकाशन

दो कविता संग्रह

सम्प्रति

स्नातकोत्तर महाविद्यालय से प्राध्यापक से सेवा निवृत्ति बाद स्वतंत्र लेखन

सम्पर्क

70, हाथीखाना दतिया मध्यप्रदेश 475661

09425113172

गीात

क्ृष्ण विहारी लाल पांडेय

घाट पर बैठे हुए हैं जो सुरक्षित

लिख रहे वे नदी की अन्तर्कथाऐं,

आचमन तक के लिए उतरे नहीं जो

कह रहे वे खास वंशज हेैं नदी के,

बोलना भी अभी सीखा है जिन्होने

बन गये वे प्रवक्ता पूरी सदी के!

और जिनने शब्द साधे कर रहे वे

दो मिनट कुछ बोलने की प्रार्थनायें.......

थी जरा सी चाह ऐसा भी नही ंथा

आँख छोटी स्वप्न कुछ ज्यादा बड़े थे,

बस यही चाहा कि सुख आयें वहां भी,

जिस जगह हम आप सब पीछे खडे़ थे!

दूर तक दिखते नहीं है आगमन

पर क्या करें मिटती नहीं ये प्रतीक्षायें...........

पुरातत्व विवेचना में व्यस्त हैं वे

उंगलियों से हटाकर दो इंच माटी,

हो रहे ऐसे पुरस्कृत गर्व से वे

खोज ली जैसे उन्होने सिंधु घाटी!

ब्ंाधु ऐसे जड़ समय मेंकिस तरह

हम बचाकर जीवित रखें संवेदनायें......

सब तरफ आनंद है राजी खुशी है

हम सभी आजाद है जकड़े नियम में,

तैरती है झिलमिलाते रंगवाली

मछलियां ज्यों कांच के एक्वेरियम में!

सिर्फ पानी बदलता रहता हमारा

नहीं बदली है अभी तक विवशतायें.........

घाट पर बैठे हुए हैं जो सुरक्षित

लिख रहे वे नदी की अन्तर्कथाऐं,.......

-----

डॉ0 कृष्ण विहारी लाल पांडेय

उम्र

लगभग चौहत्तर साल

प्रकाशन

दो कविता संग्रह

सम्प्रति

स्नातकोत्तर महाविद्यालय से प्राध्यापक से सेवा निवृत्ति बाद स्वतंत्र लेखन

सम्पर्क

70, हाथीखाना दतिया मध्यप्रदेश 475661

09425113172