Heartbreak - 57 in Hindi Thriller by Neelam Kulshreshtha books and stories PDF | दह--शत - 57

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दह--शत - 57

एपीसोड –57

अनुभा समिधा के बीच बातचीत ज़ारी है।

“समिधा ! इन बातों को छोड़ पिछला वर्ष तेरे जीवन का कितना सुन्दर वर्ष रहा है, तू नानी बनी है, अक्षत की शादी तय हो गई है।”

“ओ यस!” उन काले पंजे फैलाये दानवों के बीच जीवन की ये अलौकिक उपलब्धियाँ हैं, अपनी सुमधुर ताल पर चलती हुई।

***

“मॉम ! मोनिशा भाभी कैसी हैं?” रोली अमेरिका से पूछ रही है। सुमित रोली व बेटी को लेकर अमेरिका अपने माता-पिता से मिलने गये हैं।

“ वैरी  क्यूट।”

“सब कैसा चल रहा है?”

“सब भगवान ही अच्छा चला रहा है।”

“झूठ तो नहीं बोल रही?”

“नो !” अब वह रोली को क्या बताये कि अक्षत की शादी तो दूसरे शहर जाकर करनी है लेकिन रिसेप्शन तो केम्पस में ही देना है। जब केम्पस के दो प्रमुख व्यक्ति समिधा को पागल करार करने के लिए उतारू हैं तो वह कैसे केम्पस के क्लब में बेटे की शादी का रिसेप्शन दे पायेगी ? जो उसके घर का पानी बीच-बीच मे रुकवा देते हैं व उस भव्य समारोह में बिजली गुल करके या पानी का कनेक्शन बंद करके कुछ भी बाधा डाल सकते हैं। इसीलिए क्या हर विवाह से पूर्व गणेश श्री से प्रार्थना की जाती है कि विवाह समारोह निर्विघ्न अपनी पूरी उजास से सम्पन्न हो। जल, वायु, अग्नि को तो शकोरों में प्रतीकात्मक रूप से मूँद(बंद) देते हैं कि वह अपना प्रकोप न बरसायें। उनके साथ शुभ चीजें साबित हल्दी, सुपारी, राई व सिक्का रख देते हैं।

बाज़ार जाने से पहले सामान की लिस्ट बनाना, फिर ख़रीददारी, रिश्तेदारों की लिस्ट उनके लिए उपहार। लौटकर थककर पलंग पर आराम, फिर वह व अभय फ़ोन करने में जुट जाते हैं, निमंत्रण पत्र लिखने में बीच-बीच में अक्षत आकर ख़रीददारी करवाता है।

इस बार पत्र डाक से मिलता है विभागीय लिफ़ाफ़े में। समिधा को संबोधित करते पत्र पर अमित कुमार के हस्ताक्षर हैं व स्टेम्प लगी है। उस बात का मजमून ये है- “विकेश, सुयश, लालवानी के बयानों से प्रमाणित होता है कि समिधा व अभय के आपसी सम्बन्ध अच्छे नहीं है। इस झगड़े से हुए तनाव के कारण समिधा अधिकारियों से झूठी शिकायत करती रहती है।”

अमित कुमार की इस रिपोर्ट को मुम्बई व दिल्ली कार्यालय भेजा गया है। समिधा हँसे या रोये । गुंडे उसे पागल तो साबित नहीं कर पाये, तो यह नया मोहरा ढूँढ़ लिया है। समिधा शादी के बाद से ही इस कॉलोनी में रह रही है। ग़नीमत है उसे बीस-पच्चीस वर्ष से जानने वाले परिवार यहाँ स्थानांतरित होकर आ गये हैं, वह तुरन्त ही प्रेसीडेन्ट के नाम एक पत्र लिखती है कि अभय व समिधा के आपसी रिश्ते के विषय में सी.एम.एस., श्री सिन्हा, नीता व अनुभा से पूछताछ करवाये। एक कॉपी स्वयं दिल्ली डाक से भेज देती है। गुंडे यहाँ से रजिस्ट्री तो निकलने नहीं देंगे। इसलिए अक्षत के घर जाने पर एक कॉपी उसे पोस्ट करने को दे देती है। कुछ दिनों बाद वह अक्षत से पूछती है कि, “पत्र पोस्ट किया नहीं।”

“नहीं” वह धीमे स्वर में कहता है, “मॉम ! मैं इस नये वर्ष में एक भी पत्र पोस्ट नहीं करूँगा।”

“वॉट?”

“यस।”

वह दूल्हा बनने जा रहे अक्षत से क्या बहस करे ?कैसे उसका मूड खराब करे ? डाँट लगाये कि विभाग के लोग डंके की चोट बयान दे रहे हैं कि पति-पत्नी में बनती नहीं है। जो केम्पस में भी नहीं रहते और बेटा माँ का साथ देने से इंकार कर रहा है ?

समिधा लड़ते हुए जहाँ तक पहुँच गई है वह वहाँ से कैसे वापिस लौटे ? रोली यहाँ होती तो किसका पक्ष लेती ? वह समिधा का साथ नहीं छोड़ती, यह तय है। काँच और गोटे जड़े मिट्टी के कलश ख़रीदने में, पूजा की थाली, कलात्मक नारियल ख़रीदने में समिधा डूब ही गयी है।

अक्षत की शादी करके शहर लौटकर समिधा चिन्ता में घुली जा रही है। वह दिल्ली फ़ोन लगाती है, न प्रेसीडेन्ट मिलते हैं न सचिव लेकिन सूचना मिलती है कि शतपथी साहब रिटायर हो गये हैं। किन्हीं नये प्रेसीडेन्ट खोसलाजी ने पद संभाल लिया है।

क्या करे समिधा ? क्या करे ? वह आशालता जी को फ़ोन करती है, “नमस्कार !  भाभी जी!”

“नमस्कार ! अक्षत की शादी की मिठाई मिली, मैं स्वयं फ़ोन  करने वाली थी थैंक्स। और बताओ, कोई ‘हेल्प’ तो नहीं चाहिए।”

“नहीं भाभी जी! आप को पता है शतपथी साहब का ट्रांसफ़र हो गया है ?”

“कौन शतपथी साहब?”

“अपने नये प्रेसीडेन्ट। उनके स्थान पर कोई मिस्टर खोसला आ गये हैं।”

“अच्छा ? बहुत ख़बर रखती हो।”

“रखनी पड़ती है।”

समिधा निश्चित है फ़ोन मॉनीटर करवाने वाले अब विघ्न नहीं डालेंगे। रिसेप्शन की सुरक्षा का इंतज़ाम कर लिया है। अब अभय के विभाग के गुंडों का इंतज़ाम भी करना है वह सुयश की पत्नी को फ़ोन करती है, “नमस्ते, मैं समिधा बोल रही हूँ।”

“नमस्ते भाभी जी! कहिए कैसे याद किया?”

“सुयश ने तुम्हें बताया है  कि अक्षत की शादी तय हो गई है ?”

“ओ नो ! बट काँग्रेट्स टु यू।”

“थैंक्स! वह बताता कैसे? तुम्हें पता लग जाता कि मैं साइकिक नहीं हूँ। मैंने तुमसे फ़ोन पर पिछली बार बात की थी, विकेश व सुयश ने मेरे पति से झूठ बोला था कि मैंने तुमसे कहा है कि विकेश व सुयश को गुंडों से पिटवाऊँगी।”

“आप ये भाषा कैसे इस्तेमाल कर सकती हैं?”

“रोली के बेटी हुई है, डिलीवरी के लिए मैं ही गई थी। क्या साइकिक औरत ऐसा कर सकती है? इन दोनों के साथ लालवानी ने बयान दिये हैं कि हम पति-पत्नी में पटती नहीं है। इस तनाव में मैं शिकायत कर रही हूँ।”

“वॉट ! हम तो आप दोनों को बरसों से जानते हैं।”

“अब मैं इन्हीं गुंडों की भाषा में उत्तर दे रही हूँ यदि ये तीनों गुंडे ‘रिसेप्शन’ में आये तो अक्षत के दोस्त इन्हें पीट देंगे। तुमने शायद दीवाली से पहले नोट किया हो कि सुयश बहुत तनाव में था। मैंने दिल्ली प्रेसीडेन्ट से दोबारा शिकायत की है। यू आर वाइफ़ ऑफ़ सच ए क्रिमनल पिग।”

जो न उसका मिजाज़ है, न उसकी फ़ितरत समिधा वही भाषा का इस्तेमाल करती जा रही है।

क्लब के लॉन में डी.जे. के शोर शराबे में ख़ुशनुमा फूलों की महक में जलती-बुझती रोशनियों में रिसेप्शन सम्पन्न होता है। इस अवसर पर तो अहसास होता है कि हमने कितने रिश्ते कमाये हैं। बस वे तीन गुंडे कहीं अँधेरे में मुँह छिपाये पड़े होंगे । वह मनहूस घर भी बंद है। अभय चौपट मूड से मुँह फुलाये स्टेज पर फ़ोटो खिंचवा रहे हैं। रोली झिलमिलाते नेट के लहंगे में बाल लहराती क्लब के लॉन में तितली सी उड़ती मेहमानों से मिल रही है, अपनी बेटी व सुमित को मिलवा रही है। डी.जे. से सामने झूमती व नृत्य करती भीड़ में समिधा बहुत जोश व निश्चिंत होकर थिरक रही है।

अक्षत मोनिशा के साथ हनीमून पर चला गया है। घर व गेस्ट हाऊस के मेहमान विदा ले चुके हैं। पाँचवे दिन उस घर की बिजली जल उठती है। समिधा के माथे पर चिंता की शिकन पड़ जाती है वह फटाफट अनुभा को फ़ोन मिलाती है,  “अनुभा ! जब से इन्क्वॉयरी  हुई है वर्मा दिखाई नहीं दे रहा। उसके विभाग के पटेल तेरी पहचान के है। जरा पता कर कि वह कब से छुट्टी पर हैं। आइ एम श्योर वह ज़रूर लम्बी छुट्टी पर होगा।”

दूसरे दिन वह व्यग्रता से अनुभा को फ़ोन करती है, “अनुभा पता लगा?”

“हाँ, पटेल साहब कह रहे थे कि वर्मा के पैर में दर्द रहता था इसलिए दिसम्बर से छुट्टी पर थे। उन्होंने अपने ऑफ़िस के पास ही बाजवा में करोड़िया में मकान ले लिया है। वह उसी में अपनी बेटी व बीवी  साथ रह रहे हैं। उसकी सोसायटी का नाम है दीपक सोसायटी।”

“वॉट?”

“पटेल कह रहे थे कि वे तो उसके यहाँ गृहप्रवेश में भी गये थे। वे तो बहुत तारीफ़ कर रहे थे बड़ा शालीन परिवार है। वर्मा का पैर इसलिए ठीक हुआ है कि भगवान हमेशा अच्छों का साथ देता है। कविता भाभी जी को तो वहाँ सब जानते हैं।”

“ओ ऽ ऽ ऽ ....।” वो लोग क्या जाने कविता के कर्म। कभी वह इस घर में रहती है, कभी उसमें। केम्पस के घर के पर्दे व दरवाजे बंद रखती है,

पता नहीं लगता कि वह घर में है या बाहर। आउट हाऊस की कोकिला बाई रोज़  रात को उसके घर की बिजली जला देती होगी।

“क्या कविता ने केम्पस का घर खाली नहीं किया?”

“नहीं।”

समिधा को ध्यान आता है आज वेलेन्टाइन डे है। अभय लंच लेकर चलते हैं वह कहती है,“अभय सबको कविता ने बताया हुआ है सोनल अहमदाबाद में नौकरी कर रही है, वर्मा अजमेर में है लेकिन वे तो इसी शहर में है।”

“क्या बात कर रही हो?”

“क्यों तुम्हें पता नहीं है बाजवा की दीपक सोसायटी में कौन रह रहा है?”

अभय लम्बे लम्बे डग भरते चले जा रहे हैं।

तीर बेहद-बेहद सही निशाने पर लगा है। उसी दिन रात से वह अंधकार में डूबा हुआ है। तो ज़हरीली नागिन को बिल छोड़कर भागना पड़ा। समिधा आश्वस्त नहीं हो सकती। हफ़्ते भर बाद ही कार्मिक विभाग के इंस्पेक्टर को  फ़ोन  करती है। उसे नियम पता है लेकिन ‘और लोगों’ तक ये बात पहुँचानी है, “हमारे पीछे के  फ़्लैट वाला वर्मा ‘इन्क्वायरी’ से घबराकर बीमार होकर बाजवा में रह रहा है। ये ‘फ़ेमिली’ इज़ी मनी अर्न करने वाली है। उसकी पत्नी व बेटा केम्पस के घर में हैं। क्योंकि उसके कस्टमर्स सभी यहीं है।”

“यहाँ वर्मा की पत्नी ही रह रही है तो क्या कर सकते हैं?”

“कोई अपना मकान बनवाता है तो आस-पास पेड़े बाँटता है। उसके पड़ोसियों तक को नहीं पता कि उसने मकान बनवा लिया है। बाजवा के पड़ौसी समझते हैं कि वह वहाँ रह रही है। बीच-बीच में रिश्तेदारों की मौत का बहाना बनाकर आठ-दस दिन को एक घर से गायब हो जाती है। आप अपने बॉस से शिकायत करिये।”

“ठीक है मैं अपने बॉस से बात करूँगा।”

दूसरी रात वह देखती है उस घर की बिजलियाँ जल चुकी हैं पर्दे हट चुके हैं। फ़ोन मॉनीटर करवाने वालों ने कविता को हिम्मत दिला दी है।

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“भाभी जी ! नमस्कार ! मैं अमन बोल रहा हूँ।” फ़ोन से अभय के दोस्त व  बैचमेट की आवाज आती है, सुबह-सुबह।

“नमस्कार भैया जी। अभय बता रहे थे कि आप उनके यहाँ डिप्टी मैनेजर बनकर आने वाले हैं, काँग्रेट्स।”

“आने वाला नहीं हूँ, आज मैं चार्ज ले रहा हूँ। आपके यहाँ लंच पर आ रहा हूँ।” अमन पुरानी दोस्ती के कारण साधिकार कहते हैं।

“ओ.के.।” जब वह शादी होकर आई थी तब से अभय के इन मित्र को जानती है। बीच में कम मिले हैं लेकिन इनके परिवार से नज़दीकी व मधुर सम्बन्ध

वह जैसे बेसब्र हो उठी है, “अब देवर बॉस बनकर आ गये हैं तो मेरी सारी परेशानियाँ खत्म हो जायेंगी। मैंने कुछ गुंडों की रिपोर्ट दिल्ली प्रेसीडेंट से कर दी है।”

“क्यों?”

“लम्बी बात है, बाद में बताऊँगी।”

“आप चिन्ता न करें, एक-एक को देख लूँगा।”

दोपहर में खाने की मेज पर सलाद की प्लेट अमन की तरफ बढ़ाते हुए समिधा पूछती है कि “उषा की तबियत इतनी ख़राब क्यों हो गई थी? वह डिप्रेशन में क्यों रहने लगी?”

“इस उम्र में औरतो को अक्सर ऐसा हो जाता है।”

“बिना कारण ‘डिप्रेशन नहीं होता।”

अमन उसकी बात अनसुनी कर देते हैं। दूसरे दिन लंच पर समिधा उन्हें अपनी ‘कम्पलेन’ व सबूत दिखाती है।

“स्ट्रेन्ज।” उनकी आँखें फैल जाती हैं।

“उषा को गोधरा से यहाँ लेकर आइए  तब उसे मैं पूरी बात बताऊँगी।”

“ओ श्योर। इतवार को उन्हें लेकर आऊँगा।”

इतवार को वह उषा व अमन की राह देखती रह जाती है। अमन तीन दिन टूर पर जाने के बाद चौथे दिन लंच पर आते हैं। समिधा व्यग्रता से पूछती है, “मेरी प्रॉब्लम?”

अभय अमन से कहते हैं,“इन्होंने मेरे भाई से भी कह दिया है।”

समिधा तिलमिला कर कहती है, “भाई तो वह तुम्हारे ही हैं कानों में तेल डालकर बैठे हैं। तुम गुंडों में फँसे हुए हो और उन्हें नहीं बताती?”

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नीलम कुलश्रेष्ठ

ई -मेल – kneeli@rediffmail.com