Niyati - 4 in Hindi Women Focused by Apoorva Singh books and stories PDF | नियति... - 4

Featured Books
  • انکہی محبت

    ️ نورِ حیاتحصہ اول: الماس… خاموش محبت کا آئینہکالج کی پہلی ص...

  • شور

    شاعری کا سفر شاعری کے سفر میں شاعر چاند ستاروں سے آگے نکل گی...

  • Murda Khat

    صبح کے پانچ بج رہے تھے۔ سفید دیوار پر لگی گھڑی کی سوئیاں تھک...

  • پاپا کی سیٹی

    پاپا کی سیٹییہ کہانی میں نے اُس لمحے شروع کی تھی،جب ایک ورکش...

  • Khak O Khwab

    خاک و خواب"(خواب جو خاک میں ملے، اور خاک سے جنم لینے والی نئ...

Categories
Share

नियति... - 4

लगभग एक घंटे में मै अपने ग्राम पहुंच जाती हूं।घर पहुंच कर आदतन सबको प्रणाम कर हाथ मुंह धुलने के बाद अपने कमरे में जाती हूं।बड़े दिनों बाद अपने कक्ष में पहुंच कर मुझे बड़ा सुकून मिलता है।सबसे पहले पूरे कमरे का जी भर कर निरीक्षण कर लेती हूं उसके बाद आराम से अपनी चीजो को खंगालने लगती हूं।लेकिन वहां मेरी कुछ नाम मात्र की ही चीजें मुझे दिखाई देती हैं।जिनमें कुछ अच्छे कपडे,कुछ नोवेल्स,और कुछ डेकोरेटिव वस्तुएं जो मैंने खुद वेस्टेज से बनाई होती थी।जिनमें चूड़ियों और दीपो के जरिए बनाया गया हैंगिंग झूमर,प्लास्टिक बॉटल से बनाया गया खूबसूरत सा पॉट, और मोटे कलर्ड कागज की सहायता से बनाया गया वॉल डेकोरेट 🌲 ट्री होता है।मेरा बाकी का सामान कहां ये सोच कर थोड़ा परेशान होती हूं।तभी मुझे मेरी छोटी बहन कृति दिखती है और उससे अपने कमरे से गायब हुए सामान के विषय में पूछती हूं तो वो कहती है अब वो कक्ष आपका नहीं है सुमति जीजी और मै रहते है उसमे।आपका सामान तो मम्मा ने भरकर उपर स्टोर रूम में रखवा दिया।

ये सुन कर क्रोध तो बहुत आता है लेकिन किस पर गुस्सा जताऊं कोई ऐसा है ही नहीं वहां जिसे अपना समझ कर अपने मन की बातें शेयर कर सकूं। कृति से कर लेती थी लेकिन अब तो वो सुमति के साथ ज्यादा उठने बैठने लगी थी सो मै चुपचाप वहां से निकल गई।और अपनी पसंदीदा जगह जाकर बैठ गई तथा आसमान की ओर निहारने लगी।शायद इसी उम्मीद में कि माता रानी किसी न किसी को मेरी लाईफ में भेजेंगी जिससे मै अपने सीक्रेट शेयर कर सकूंगी।

खैर बैठे बैठे शाम से रात हो गई और मै वापस से मां के पास आ गई और चुपचाप उनकी मदद करने लगी। डिनर के समय घर के सभी सदस्य एकत्रित हुए और आज काफी दोनों बाद मैंने सबके साथ भर पेट खाना खाया।हॉस्टल का खाना खाते खाते मै तो जैसे पक ही गई थी।वहीं डेली का रूटीन कभी कोई बदलाव ही नहीं..बस वही दाल,चावल,रोटी,मिक्स अचार,और रायता वो भी हींग जीरे के तड़के वाला।।बस हर दिन सुबह यही सब मिलता और शाम को आलू की सब्जी के साथ रोटी।पूरियां तो कब से न खाई थी।

डिनर के समय दादाजी ने पिताजी की ओर देखकर कुछ इशारा किया जिसे मै तो समझ न पाई लेकिन पिताजी ने गरदन झुकाकर उनकी बात को सहमति प्रदान की। पिताजी उठकर ड्राइंग रूम की तरफ गए और वहां से एक बॉक्स उठा लाए।जो उन्होंने मेरी तरफ बढ़ाया।मैंने धीरे धीरे उस बॉक्स को पकड़ा और अपने पास रख लिया।ये देख उन्होंने कहा इसे खोल कर देखो रखने के लिए नहीं दिया है।जी पापा कह मै वो बॉक्स खोलती हूं जिसमें एक सादा सैमसंग का फोन रखा होता है।मै हैरानी से पापा की तरफ देखती हूं तब वो कहते है बाहर रहती हो अब तुम्हे एक मोबाइल फोन रखने की जरूरत है।जिससे हम सब तुमसे संपर्क कर सकें। और हां इसमें एक सिम भी पड़ा हुआ है जो मेरे नाम पर है।जिससे जब चाहे तब मै तुम्हारी डिटेल चेक करता रहूं।

जी पापाजी कह मै वो फोन रख लेती हूं।सभी अपने अपने कक्ष में चले जाते है।मै भी शिफ्टेड रूम में पहुंच जाती हूं और फोन चलाना सीखने लगती हूं।

कृति मेरे पास आती है और मुझसे घर परिवार मोहल्ले की ढेरो बाते शेयर करती है।

घर में किसी ने भी मुझसे ये नहीं पूछा क्या हाल है तुम्हारे,तुम्हे वहां ठीक लगता है कि नहीं, कोई दिक्कत परेशानी तो नहीं है तुम्हे। इस बात की तो उम्मीद ही नहीं थी मुझे सो इग्नोर कर दिया।
रात्रि व्यतीत हो जाती है।अगले दिन मुझे वापस आना होता है सो करीब आठ बजे वहां से निकल आती हूं।हॉस्टल पहुंच कर रश्मि के साथ सीधा कॉलेज के लिए निकलती हूं।अक्सर रास्ते में मुझे ऐसा लगता था जैसे मेरे पीछे कोई चल रहा होता है।किसी की नजर मेरा पीछा करती है लेकिन जब मुड के देखती हूं तो कोई नजर नहीं आता है।मै इसे मन का वहम समझ इग्नोर कर देती हूं।और रश्मि से कहती हूं....

मै - रश्मि तेरे मुंह में तो कल साक्षात मां सरस्वती विराजमान थी तुमने कल चमत्कार का बोला था और देखो मेरे साथ चमत्कार हो भी गया पापाजी ने मुझे फोन दिला दिया।

रश्मि - सच में।फिर तो ट्रीट बनती है।ला दिखा कौन सा वाला दिलाया है एंड्रॉयड है या विंडो फोन।।

मै - ओह हो रश्मि एंड्रॉयड और विंडो फोन का मै क्या करूंगी कौन सा मुझे किसी से बातचीत करनी होती है बस घर से फोन आने के लिए ये सादा फोन काफी है।

मेरी बात सुन रश्मि का खिला हुए चेहरा फुस्स हो जाता है और बुझी हुई आवाज़ में कहती है कमाल है ये 2007 चल रही है और तुम न जाने किस सदी में जिए जा रही हो।मैडम आब जो समय आने वाला है वो टेक्नोलॉजी का है।नए नए अविष्कार होते जा रहे है।और आने वाले समय में मोबाइल फोन जीवन का एक महत्वपूर्ण भाग बन जाएगा। हर क्षेत्र में हमारे लिए ये उपयोगी रहेगा।बहुत से इंपॉर्टेंट कार्य तो घर बैठे इसके जरिए ही पूरे हो जाय करेंगे।और तुम कह रही हो तुम्हे करना क्या है।अरे ये जरूरी तो नहीं है न यार कि हम किसी कार्य के लिए ही मोबाइल चलाना सीखे।बस उसका उपयोग आना चाहिए न जाए कब ये सीखा हुए कार्य में आ जाए।

अच्छा ठीक है रश्मि तुम अपना वाला फोन चलाना सिखा देना अब खुश।बातो ही बातो में हम दोनों लेक्चर वाली क्लास में पहुंच जाते हैं।जहां बाकी सभी दोस्त हमारा इंतजार कर रहे होते हैं।मै बस एक फॉर्मली छोटी सी मुस्कान चेहरे पर रखती हूं और सभी से हाई हेल्लो कह अपनी सीट पर बैठ जाती हूं।

लेक्चर ख़तम हो जाता है और हम सब एक साथ जाकर कैंटीन की शोभा बढ़ाते हैं।अचानक मेरी नज़र कैंटीन वाले अंकल पर पड़ती है जिन्हे देख मुझे एहसास होता है कि वो आज कुछ ज्यादा दुखी है।वो जो स्वाभाविक मुस्कान रहती थी उनके चेहरे पर वो नहीं है।उनकी उदासी देखकर मै उनके पास जाती हूं और उनसे बातचीत करते हुए उनकी उदासी का कारण पूछती हूं।पहली बार उनकी उदासी का कारण किसी ने पूछा होता है जिस वजह से उनकी आंख भर आती है और भावुक हो कहते हैं बिटिया आज मेरे बच्चे का स्वास्थ्य खराब है और मै उसके साथ समय भी व्यतीत नहीं कर पा रहा हूं कॉलेज की इस जॉब के कारण।क्यूंकि यहां कोई देखभाल करने वाला जो नहीं है कुछ कम ज्यादा हो गया हिसाब में तो दिक्कत हो जाएगी।आज आते समय मेरे बच्चे ने मेरे हाथो को कस कर पकड़ लिया था मतलब वो मुझे आने नहीं देना चाहता था यहां..मै बस अभी एक घंटे में आ जाऊंगा ये कह कर घर से निकल आया।मेरा हृदय तबसे कार्य में लग है नहीं रहा है बार बार मुझे अपने बच्चे का ख्याल आ रहा है...।मै बस कुछ समय अपने बच्चे के साथ व्यतीत करना चाहता हूं जब तक कि उसे दवा दिलवा लाऊ बस इतना ही।क्यूंकि मेरी पत्नी इतनी पढ़ी लिखी नहीं है जो इस शहर के रास्तों को याद कर डॉक्टर के पास जा सके और उसे दवा दिला कर ला सके।।

कैंटीन वाले अंकल की बात सुन कर मै कहती हूं बस अंकल इतनी सी बात आप चिंतित न होइए आपको आपके बच्चे के पास जाना है न आप जाइए।कितना समय लगेगा आपको ज्यादा से ज्यादा दो घंटे है न।क्यूंकि आपका घर यहां से महज सात मिनट की दूरी पर है।और वहां से थोड़ा आगे पुष्पांजलि है आप आराम से वहां से दवा दिलवा लाएंगे हैं न।

कैंटीन वाले अंकल खुश होकर कहते है हां बिटिया।दी घंटे तो तुमने ज्यादा बताए है मुझे मुश्किल से पचास मिनट लगेंगे।।

मै - फिर ठीक है अंकल आप जाइए और मुझ पर भरोसा रखिए आपके हर चीज का हिसाब किताब रख लूंगी और आपको पूरा ब्यौरा भी दे दूंगी।आप बस जाकर अपनी पत्नी को भेज दीजियेगा और ये लॉकर का ताला लगा कर जाइएगा।

अरे बिटिया तोको इतने समय से जानत रहे हम कभी कौनो बेईमानी नहीं करी तुमने बल्कि ज्या पैसे पहुंचने पर लौटा भी देती हो।बहुत ही ईमानदार हो तुम।मोहे तो पर पूरा भरोसा है।लेकिन ई बताओ कि तुम्हे रेट कैसे याद रहेंगे यहां के सामान के।

मै - अरे अंकल ये मेनू बुक कब काम में आयेगी।इस पर रेट तो दिए ही रहते है न।

अंकल - ठीक बात है बिटिया तो मै निकलता हूं और जाते जाते साहब को बोलता हुआ जाऊंगा इस बारे में ताकि तुम्हे कोई प्रोफेसर सर परेशान न करे अगर यहां आ गए तो..

मै अंकल की बात पर मुस्कुरा देती हूं और ठीक है कह काउंटर के उस तरफ चली जाती हूं।तथा अंकल की रिस्पांसिबिलिटी देखने लगती हूं।जब थोड़ी देर हो जाती है और मै नहीं पहुंचती सबके पास तो अमर उठ कर काउंटर के पास आ जाता है।और मुझे उस तरफ देख हैरान होकर पूछता है ये सब कब शुरू कर दिया तुमने निया।

उसके चेहरे के एक्सप्रेशन देख मुझे थोड़ी सी हंसी आ जाती है और मै हंसते हुए कहती हूं बस अभी कुछ देर पहले। आप बताइए आपको क्या चाहिए?? ऑर्डर कीजिए मेनू लिस्ट तो देख ही ली होगी आपने।
कह पहली बार मै अमर के सामने खिलखिलाती हूं और अमर देखता रह जाता है अचानक से उसके मुंह से निकलता है ब्यूटीफुल स्माइल ...।और देखता रह जाता है।मै अमर को इस तरह मुझे देखते हुए देख सकुचा जाती हूं।और अमर से कहती हूं क्या हुआ अमर ऐसे क्या देख रहे हो आज पहली बार देख रहे हो क्या जो इस तरह बिन पलके झपकाए देखते ही जा रहे हो।

अमर कहता है सच कहूं??
मै - हां,बिल्कुल।।
अमर - सच कहूं तुम मुस्कुराते हुए ज्यादा खूबसूरत लगती हो।तुम्हारे ये जो दाई तरफ दांत के उपर दांत है न तुम्हारी मुस्कुराहट में चार चांद लगा देता है।आज पहली बार तुम्हारी मुस्कुराहट देखी और मै तो इस मुस्कान का कायल हो गया।

मै अमर की बात सुन कर अंदर ही अंदर बहुत खुश होती हूं क्यूंकि पहली बार किसी ने मेरी तारीफ जो कि होती है।

मै - तारीफ के लिए शुक्रिया अमर।।अब बाते बाद में और भी छात्र खड़े हुए है लाइन में अगर कुछ ऑर्डर करना है तो करो नहीं तो आप हटिए बकियो को आने दो।

अमर - ठीक है मिस निया।आप पांच कप कोल्ड कॉफी का ऑर्डर तैयार कीजिए मै अभी आकर ले जाऊंगा।।कह अमर वहां से चला जाता है और मै अपने कार्य में लग जाती हूं।कुछ देर में अमर वापस आता है मुस्कुराता है और अपना ऑर्डर लेकर चला जाता है।

अमर से सभी मेरे विषय में पूछते है तो वो सबसे कहता है कि निया तो अपने इंसानियत का धर्म निभाने में व्यस्त है। और कैंटीन के काउंटर की तरफ देखने का इशारा करता है ...

सभी मेरी तरफ देखते है जहां मै अपने कार्य में तल्लीनता से लगी हुई होती हूं।

रश्मि - ये लड़की वाकई में सीधी ही है फट से तैयार हो जाती है जरूरतमंदो की मदद के लिए।खैर चलो हम सब उसकी मदद करते है।जानती हूं वो मदद नहीं लेगी।तो वहां मौजूद रहकर ही उसका हौसला बढ़ा सकते हैं।

अमर - क्यों मदद नहीं लेगी वो हमारी।ऐसा क्यों कह रही हो तुम!! और उसने कब मदद लेने से इंकार की

रश्मि - हॉस्टल में कई बार।।एक बार तो मैडम को फिवर था।फिर भी उसने अपने सारे काम खुद किए जैसे कि खाना लेने खुद से जाना।अपने वस्त्र खुद से धोना।मैंने बहुत कोशिश की उसकी मदद करने की लेकिन नहीं ...

ओह तो मैडम थोड़ी स्वाभिमानी है जहां तक होगा बिना आवश्यकता के किसी की मदद नहीं लेगी।हेल्प कर देगी सबकी..अमर खुद से ही बड़बड़ाते हुए कहता है।

सभी उठकर मेरे पास आते हैं।मै उस समय ऑर्डर तैयार करने में व्यस्त होती हूं।

अक्षत अमर सुचिता,रश्मि सभी एक साथ कहते है हम कुछ मदद करे।सभी को देख कर एक स्वाभाविक मुस्कुराहट आती है चेहरे पर और एक छोटा सा जवाब देती हूं न। मै खुद स कर लूंगी।वैसे भी बस लगभग एक घंटे की ही तो बात है।

रश्मि अमर से फुसफुसाते हुए कहती है देख लो टाल दिया न।चलो यहीं खड़े होकर अपनी दोस्त का हौंसला बढ़ाते है।

अमर - ओके रश्मि।।कहता है और वो पांचों मुझे अकेला नहीं छोड़ते तथा मेरा साथ देने के लिए वहीं एक टेबल पर बैठ जाते है।अपना लेक्चर मिस कर देते है।

अमर चोरी चुपके तिरछी नज़रों से मुझे देख रहा होता है जिसे मै नोटिस कर लेती हूं।लेकिन अमर से कुछ कहती नहीं हूं।क्या कहूं उससे इसकी लाईफ है क्या करना है क्या नहीं ये निर्णय उसका होना चाहिए।
खैर तब तक अंकल वापस आ जाते है।मै उन्हें सारा हिसाब किताब लिख के दे देती हूं और सारे पैसे उन्हें देकर वहां से अपने दोस्तो के पास आ जाती हूं।जो वहां ऊंघते हुए बैठे होते है। उन सब को देख कर एक बार फिर से मेरी हंसी छूट जाती है।क्यूंकि सबके हावभाव ही ऐसे होते हैं।

अमर तो हाथो के उपर चेहरा रख गरदन टेढ़ी कर ऊंघ रहा है तो वहीं अक्षत टेबल पर सर टिका एक हाथ नीचे लटकाए बैठे हुए है। और आशीष की आंखे बंद मुंह खुला ..

मेरी हंसी सुन सभी एकदम हड़बड़ा कर उठ बैठते है और चारो ओर देखने लगते हैं।उन्हें देख कर मै अपना पेट पकड़ हंसते हुए कहती हूं आज तुम सब के ऊंघने के तरीके देख मै खुद को रोक नहीं पाई सॉरी। हां लेकिन कुछ देर पहले सब के सब ऐसे लग रहे थे जैसे न जाने कितने थके हारे हो घर से ढेर भरे का कार्य करके कॉलेज आते हो।

अमर थोड़ा मुंह बनाता है और कहता है हो गया न तुम्हारा तो अब चुप।।एक दम चुप।वही अक्षत कहता है यार बहुत बदल गई हो अब तुम निया।अब तो खुल कर मुस्कुराने भी लगी हो।बहुत अच्छा है ये..

और नहीं तो क्या अक्षत जब कॉलेज आई थी तब तो इसकी आवाज़ भी बड़ी मुश्किल से सुनने को मिली थी और अब देखो..सब संगत का असर है।कहते हुए आशीष उनका साथ देता है।

ओह गॉड अब आप लोग हरकत ही ऐसी कर रहे थे तो इसमें मी क्या करू।खैर अब क्लास तो है नहीं तो चलो हॉस्टल चला जाए।

घर ?..नहीं आज तो बाहर घूमने जाने का मौसम है। भई बारिश होने के पूरे पूरे आसार नजर आ रहे है और तुम्हे हॉस्टल सूझ रहा है।चलो हम सभी दोस्त आज आगरा की सैर पर चलते हैं।वैसे भी हम लोग एक साथ आउटिंग पर नहीं गए।आज मौसम भी है और हम सभी के पास समय भी है।क्या ख्याल है दोस्तो?? अमर उत्साहित होकर सबसे पूछता है और सभी तैयार भी हो जाते है सिर्फ मुझे छोड़कर।मेरी न सुन रश्मि थोड़ा सा गुस्सा आ जाता है और वो गुस्से में मुझसे कहने लगती है..

रश्मि - मुझे पता है तुम क्यूं नहीं जा रही हम सबके साथ।।क्यूंकि तुम डरती हो अपनी फैमिली से अगर उन्हें पता चल गया तो न जाने क्या सलूक करे।अपनी जिंदगी अपने तरह से नहीं जियोगी बल्कि यहां कोलेज में भी फैमिली के उसूलों पर चलोगी।

मै - (रश्मि से) नहीं यार ऐसा नहीं है।मै बस अभी नहीं जा सकती।लेकिन क्यों ये भी नहीं बता सकती सॉरी।मै हॉस्टल जा रही हूं मुझे देर हो रही है।

कहते हुए मै वहां से चली आती हूं और हॉस्टल पहुंच जाती हूं।और सोचती हूं अपना खर्च निकलने के लिए मुझे कुछ न कुछ तो करना ही होगा नहीं तो इसी तरह आर्थिक कमी के कारण अपने दोस्तो के साथ कहीं भी नहीं आ जा सकुंगी।लेकिन कैसे यहां कौन मेरी मदद करेगा।ये शहर तो अभी तक अनजान है मेरे लिए।अब किससे सहायता लूं।रश्मि से।नहीं अगर उसने मेरी परेशानी सारे दोस्तो को बता दी तो सब कैसे रियेक्ट कर दे क्या भरोसा।।लेकिन कुछ न कुछ तो करना होगा।क्या मै फिर से बच्चो को ट्यूशन देना शुरू कर दूं। हां ये सही रहेगा।इससे मेरी फैमिली में किसी को कोई परेशानी भी नहीं होगी और मेरा भी काम हो जाएगा।

अमर को मेरा न कहना शायद अच्छा नहीं लगता तभी वो मेरे पीछे पीछे हॉस्टल आ जाता है।और मेरे कमरे की खिड़की खुली देख खिड़की के पास आकर एक चिट लिख पत्थर की सहायता से मुझ तक पहुंचाता है।अचानक आई कुछ गिरने की आवाज़ सुनकर मेरा ध्यान भंग होता है और मै सामने की तरफ देखती हूं तो एक चिट लिपटा हुआ पत्थर दिखाई देता है।मै चिट उठा लेती हूं और जल्दी जल्दी पत्थर हटा उसे पढ़ती हूं उस पर लिखा होता है जल्दी से नीचे आओ तुम,नहीं तो मै उपर आऊंगा सोच लो तुम्हे क्या करना है... अमर।
ये चिट देख मै जल्दी से उठ कर खिड़की के पास पहुंचती हूं।जहां अमर को उपर देखते हुए ही पाती हूं।उसे देख मेरे तोते उड़ जाते हैं और मै जल्दी से खिड़की लगा लेती हूं।और हैरानी से वहीं बैठ जाती हूं।..ओह गॉड अब ये क्या नई बला है।और अमर क्यूं मेरी खिड़की पर इस तरह की हरकत...
अगर किसी ने देख लिया तो बवाल हो जाना है।मुझे अमर से इस हरकत के विषय में बात करनी ही होगी नहीं तो कल को इसकी हिम्मत और बढ़ सकती है।

ऐसा निर्णय ले मै अपना बैग उठा,पैरो में स्लीपर डाल कर बाहर निकल जाती हूं और अमर को इशारा कर कॉलेज पहुंचने के लिए कहती हूं तथा खुद भी पहुंच जाती हूं।जहां बाकी सब मुझे देख हैरान हो जाते हैं।

अमर वहां पहुंच जाता है तो मै उसके सामने वो चिट आगे कर पूछती हूं ये सब क्या है अमर।।ये कैसी ओछी हरकत है।जब मैंने पहले ही साफ साफ कह रखा है कि हमारी दोस्ती सिर्फ हाई हेल्लो तक ही सीमित रहेगी तो फिर ये सब क्यों और किसलिए।।

मेरी बात सुन अमर कहता है अरे मिस नियति ज्यादा ओवर रिएक्ट न करो ये बस तुम्हे यहां बुलाने का एक तरीका था और कुछ नहीं।अगर तुम्हे बुरा लगा हो तो उसके लिए तहे दिल से माफी चाहता हूं और वाला करता हूं आगे से ऐसा कुछ नहीं होगा।

मै - थैंक्स।अमर।। बस आगे से ऐसा कुछ नहीं होना चाहिए।क्यूंकि तुम्हारे लिए ये भले ही छोटी सी बात हो लेकिन मेरे लिए इस छोटी सी बात से पढ़ाई भी स्टॉप हो सकती है।

खैर बताओ क्यों यहां बुलाना चाहते थे आप।क्या कारण है।।

अमर - एक जॉब है तुम्हारे लिए करना पसंद करोगी। बच्चो को ट्यूशन देनी है।यही कोई tenth stenderd.

और यहां से ज्यादा दूर भी नहीं है संजय पैलेस स्थल पर कुछ कोचिंग क्लासेज है।वहीं एक टीचर की जरूरत है अगर तुम्हे करनी हो तो बताओ।

अमर की बात सुन कर मुझे सच में हैरानी होती है और एक ही बात दिमाग में आती है मुझे जॉब की आवश्यकता है ये बात इसे कैसे पता।और वो भी मैंने अभी कुछ देर पहले ही तो सोचा था बच्चो को पढ़ाने के लिए और यहां ये जॉब की बात कर रहा है।...ये कैसा संयोग है...।

अमर - क्या हुआ जवाब तो दो करना है या नहीं।
मै अमर को तुरंत हां कर देती हूं। तो अमर मुझे एक कार्ड देता है और कहता है अभी इस पते पर जाकर इंटरव्यू दे आओ। तुममें टैलेंट है तुम्हारा चयन शत प्रतिशत हो जाएगा।

मै अमर को थैंक्स कहती हूं।रश्मि कार्ड ले लेती है तथा मै रश्मि को साथ लेकर कोचिंग क्लासेज पहुंच जाती हूं जहां इंटरव्यू देती हूं और मेरा चयन हो जाता है।मै दोपहर की शिफ्ट लेती हूं क्यूंकि सुबह मुझे कॉलेज जाना होता है।

वहां से आकर अमर को थैंक्स कहती हूं।तभी मुझे ख्याल आता है ये सब तो घूमने जाने वाले थे गए नहीं क्यों।मै रश्मि से पूछती हूं तो रश्मि कहती है ये अमर का फैसला था यार.. कि हम सभी दोस्त जाएंगे तो साथ जाएंगे नहीं तो कोई नहीं जाएगा।मै रश्मि से कहती हूं मेरी वज़ह से आप सभी रुक गए घूमने नहीं गए ये जान कर मुझे बहुत बुरा लग रहा है।

मेरी बात सुन कर रश्मि तपाक से कहती है बुरा लग रहा है न तो अगले महीने की तेरी सेलरी से सबका घूमना पक्का।और तुम्हे साथ चलना पड़ेगा।।और हां तेरे घर मै बात कर लूंगी आखिर इतने दिन तक तेरी घर पर बात कराते कराते इतना विश्वास तो गेन कर लिया होगा मैंने कि तेरे घरवाले तुम्हे मेरे साथ कहीं बाहर जाने से रोके नहीं।

रश्मि की बात सुन मुझे न जाने क्यों एक राहत मिलती है और मै उसके गले से लग जाती हूं।

लो हो गई फिर से इमोश्नल।सभी एक साथ कहते ये।अरे अब हां तो कह दो तो हम सबको तसल्ली मिल जाए कि हां अगले महीने की हम सबकी आगरा भ्रमण ट्रिप पक्की है।

मै भी हंसते मुस्कुराते रश्मि से अलग होते हुए हुए हां कह देती हूं।सच में अमृता जी वो पल मेरी लाईफ के खूबसूरत पलों में से एक थे।जिन्हे मेरी नियति ने मेरे लिए चुरा लिए थे।

नियति जो अपनी दास्तां सुनाते हुए भावुक हो जाती है।चेहरे पर मुस्कुराहट के साथ साथ आंखो में आंसू आ जाते है मानो नियति के सामने उसका अतीत किसी चलचित्र कि तरह चल रहा हो।

अमृता रति से चाय नाश्ते के लिए कहती है और स्वयं कुछ देर बैठ कर नियति से इधर उधर की बाते करने लगती है। सॉरी नियति हां,एक छोटा सा ब्रेक लेना चाहूंगी।वो क्या है न मुझे इस समय एक कप चाय और कुछ हलका लेने की आदत है अगर नहीं मिला तो मेरे सर में दर्द होने लगेगा और फिर किसी कार्य में मन नहीं लगेगा।

नियति (सब समझते हुए) - अरे कोई बात नहीं अमृता जी।आपको जो भी चाहिएगा आप बेझिझक होकर कह दीजियेगा।।

अमृता - जी बिल्कुल मिस नियति।

रति चाय नाश्ता लेकर आती है और अमृता तथा नियति को सर्व कर देती है।

नियति अमृता के इस व्यवहार के लिए धन्यवाद देती है और सोचती है मुझे पता है अमृता जी आप ऐसा क्यों बोल रही है क्यूंकि अतीत के पन्नों को पलटते पलटते हम कुछ देर के लिए बहुत ही भावुक हो गए थे इसी भावुकता को दूर करने के लिए आपने ब्रेक लेने का बहाना किया।

अमृता - आपके अतीत के बारे में जानकर सच में काफी अच्छा महसूस कर रही हूं मै।करीब पंद्रह मिनट का ब्रेक हो गया है अब आप आगे सुनाइए आप की जॉब फाइनल हो गई उसके बाद क्या हुआ ..

नियति - साक्षात्कार के बाद हम सीधा कॉलेज ही पहुंच गए।रश्मि के कहने से मैंने एक डेयरी मिल्क चॉकलेट खरीद ली थी जिसे हम सभी दोस्तो ने मिल बांट कर खाई।
मैंने अमर को इस बात के लिए धन्यवाद कहा।अमर आपने सच में मुझे जॉब दिलाकर एक उपकार ही किया है इस जॉब की मुझे सच में बहुत आवश्यकता थी।मेरी बात सुनकर अमर कहता है अगर इतना ही उपकार मान रही हो तो मेरे साथ एक कप कॉफ़ी के लिए चलो।उपकार खत्म।

उसकी कॉफी की बात सुन कर मै सोच में पड़ जाती हूं।फिर थोड़ी देर बाद कहती हूं ठीक है लेकिन मै अकेले नहीं आ सकती रश्मि भी मेरे साथ आयेगी।

अमर - क्यों भरोसा नहीं है मुझ पर।
मै - नहीं,बात भरोसे की नहीं है।वो क्या है पहली बार मै कोलेज के बाहर जाऊंगी अकेले तो मुझे थोड़ा अजीब लगेगा।रश्मि साथ होगी तो थोड़ा कंफर्ट महसूस कर पाऊंगी।इसीलिए कह रही थी।

ओह हो जस्ट चिल।।मेरे लिए यही बहुत है कि तुम मेरे साथ चल रही हो।फिर चाहे अकेले चलो या रश्मि के साथ कोई परेशानी नहीं है।

ये सभी बाते अमर ने धीरे से मुझसे कही थी जिस कारण कोई और नहीं सुन पाता है।

अमर - नियति एक बात कहना चाहता हूं तुमसे, तुम्हे मुझमें चाहे लाख बुराइयां नजर आती हो लेकिन मै दिल का बुरा नहीं हूं।भले ही मेरी गर्लफ्रेंड रही हो लेकिन अपनी मर्यादा जानता हूं मै।इसीलिए तुम्हे मुझसे डरने की आवश्यकता नहीं है।बाकी मैंने पहले से ही स्पष्ट कह रखा है कि मै ऐसा कोई कार्य नहीं करूंगा जिसमें तुम्हे अनकमफर्टेब्ल महसूस हो।अमर की बातो का आशय समझ कर मै उसकी चेहरे की तरफ देखने लगती हूं जहां उसकी आंखे मेरे ही चेहरे पर टिकी होती है।ये देख मै अंदर ही अंदर सहम जाती हूं ये सोचकर ये अमर हर बार मेरी ही तरफ देखते हुए क्यूं मिलता है।मै थोड़ा रूड होकर कहती हूं..

अपने मुंह मियां मिठ्ठू बनना अच्छी बात नहीं अमर प्रताप सिंह।बाकी आप जगह बता दीजिए किस जगह हमें पहुंचना होगा कॉफी के लिए हम पहुंच जाएंगे रश्मि के साथ।

ओह माय गॉड..सच में निया तुम आओगी..तो फिर जगह है आगरा का फेमस रेस्टोरेंट बीकानेर वाला।।अरे वही भगवान टाकीज के पास जो है।और कल शाम पांच बजे।क्यूंकि होस्टल में सात बजे तक एंट्री होने देते है तो तुम्हे वापस जाने में कोई परेशानी भी नहीं होगी। और शाम को धूप भी कम रहेगी। वो खुश होते हुए एक ही सांस में सब कह जाता है।

मै अमर के इस तरह खुश होने पर हैरान रह जाती हूं।क्या सच में कोई किसी के बस एक कप कॉफी के लिए हां कहने से इतना खुश हो सकता है।एक दम मासूम निश्छल बच्चे के जैसे।

ओह हो क्या बाते हो रही है अकेले अकेले अमर नियति।।हम भी तो यहां है भई हमसे भी शेयर किया जाए। यूं बिन दोस्तो के अकेले अकेले शेयर करना गलत बात है।।

कुछ नहीं अक्षत नियति कह रही थी कि मैंने उसे जॉब दिलाकर उपकार किया है तो बस वही कह रहा था कि एक कप कॉफी के लिए चलो उपकार खत्म हो जाएगा...अमर ने अक्षत से मुस्कुराते हुए कहा।

ओह ये बात है कॉफी के लिए पूछा जा रहा है।चलो इस बार तुम दोनों ही चले जाओ अगली बार के लिए मेरी तरफ से सभी की ये ट्रीट पक्की।

नहीं नहीं।सभी दोस्त ही चलते हैं।अकेले वो मज़ा कहां जो सबके साथ आता है।और हम सब तो दोस्त है न और दोस्ती में शेयरिंग होती है, अकेले अकेले नहीं।मै सभी से ये बात कहती हूं।

अक्षत - वाह!! नियति क्या बात कहीं है तुमने।।चलो फिर आज कॉफी पर सभी दोस्त चलते है वो भी शेयरिंग के साथ।

अमर - ह्म्म।।चलो चलेंगे आज ही।वही बीकानेर वाले में। डन ...।।

अमर मेरे पास धीरे से आकर कहता है ये तो आज की बात है कल की कॉफी पर इसका अफेक्ट न पड़े प्लीज़।।बड़ी मुश्किल से तुमने हां कहा है मेरे साथ कॉफी के लिए तो आज सभी दोस्तो के साथ और कल अकेले मेरा मतलब तुम और रश्मि दोनों।ये गोल्डन चांस मै नहीं खो सकता।

अमर की बात सुनकर मै उससे धीरे से कहती है हूं बोल तो दिया चलेंगे कल।अपनी कही बात से पलटना मुझे नही आता।

सुचिता मेरे और अमर की बातो पर गौर देने की कोशिश करती है लेकिन कुछ सुन नहीं पाती।

थोड़ी देर बाद हम सभी ई रिक्शा कर रेस्टोरेंट में पहुंच जाते हैं।और वहां जाकर हम सभी एक छह कुर्सी वाली टेबल पर बैठ जाते हैं।

आशीष जाकर कॉफी का ऑर्डर कर आता है।और आकर वापस हम सब के पास आ जाता है।

अक्षत - कुछ भी कहो ये रेस्टोरेंट थोड़ा सा महंगा जरूर है लेकिन क्वालिटी अच्छी है इसकी।एक दो बार पहले भी मै आ चुका हूं यहां अपने दोस्त राघव के साथ।

सुचिता - हां सो तो है।मै और अमर भी अक्सर आते रहते है यहां।कहते हुए अमर के चेहरे की तरफ देखने लगती है शायद उसके चेहरे के भावों को समझने की कोशिश कर रही हो।

अमर - थोड़ा सा सकपका जाता है और कहता है हां ये बात तो है अब फ्रेंड्स के साथ आने में आनंद ही अलग है।वैसे नियति ये बताओ तुम कभी कॉफी पर गई हो किसी के साथ।

मै - कॉफी पर जाना तो दूर कभी कॉफी देखी तक नहीं।।मेरे घर तो केवल चाय ही चलती है वो भी सिर्फ बड़ों के लिए।हम बच्चो के लिए तो सिर्फ दूध होता है।

ओह गॉड ... सीरियसली नियति।।मतलब आज तुम लाईफ में पहली बार कॉफी पियोगी।।अमर हैरानी से मेरी ओर देख कर कहता है मानो मै कोई परजीवी हूं और हमारे ग्रह पर कॉफी नाम की वस्तु मिलती ही नहीं हो..

मै - अब ऐसे अजूबे की तरह मत देखो इधर।। लाईफ में कभी न कभी कोई कार्य पहली बार किया ही जाता है।सो आज कॉफी का आनंद लेना ये मेरे लिए पहली बार होगा।

बातो ही बातो में कॉफी आ जाती है और सभी बतियाते हुए कॉफी का आनंद लेने लगते हैं।

अमर - सो नियति.. कैसी लगी तुम्हे कॉफी।।

मै - it's too good।

रश्मि - मेरे प्यारे दोस्तो एक बात बताना चाहूंगी बिल्कुल नई और ताज़ी ताज़ी।।अपनी नियति के पास भी मोबाइल फोन आ गया है अब। हां सादा है लेकिन फोन तो है।

मै रश्मि की बात सुन कर घुर कर उसे देखती हूं।क्यों उसने ये बात बताई सबको।अरे मेरे पास फोन होना और न होना एक जैसा ही है न।क्यूंकि घर और रश्मि के अलावा किसी और कि कॉल उस पर आई और पापाजी ने जवाब मांगा तो मै क्या बोलूंगी, मुझसे तो बहाना भी न बनाया जाएगा।

रश्मि मेरी इस हरकत पर मुझसे कुछ कहती उससे पहले ही सभी कहते है क्या बात है ये तो बहुत अच्छा हुआ अब अगर हम में से किसी को भी इतिहास के किसी टॉपिक में कोई दिक्कत हुई तो नियति को कॉल लगा उससे क्लियर किया जा सकता है।

रश्मि मेरे घूरने के कारण को समझ जाती है और बाते घुमा कर कहती है ओह हो कॉल पर क्यों वीडियो कॉल पर क्यों नहीं। अब इतने सारे नए नए ऐप्स है उनका इस्तेमाल करना नियति को सिखा देंगे उनका इस्तेमाल कर पढ़ाई भी आसान हो जाएगी सबके लिए।कॉल पर कौन बैलेंस खर्च करे।बस डेटा रिचार्ज करा लो छुट्टी।

अक्षत - बात तो सही है तुम्हारी रश्मि।लेकिन फिर भी दोस्तो का नम्बर तो रखना ही चाहिए।भले ही कभी कॉल न करो।इमरजेंसी में काम आ जाता है।

रश्मि - बिल्कुल।।और मेरी तरफ देखते हुए रश्मि कहती है नियति मुझ पर भरोसा करती हो न हम सभी दोस्त है और एक दोस्त ऐसा कोई कार्य नहीं करेगा जिससे दूसरे दोस्त को प्रॉब्लम हो।तुम अपना नम्बर हम सब से शेयर कर और सबकी तरफ से मै वादा करती हूं कोई भी तुम्हे तुम्हारे नम्बर के जरिए कॉल नहीं करेगा।

मै रश्मि की बात पर यकीन कर नम्बर शेयर कर लेती हूं।

कॉफी खत्म हो जाती है और हम सभी शेयरिंग से पैसे इकट्ठे कर पेमेंट कर देते है। और सभी अपने अपने घर के लिए निकल जाते हैं।

हॉस्टल पहुंच रश्मि मुझसे कहती है क्या बात है निया ये अमर से कुछ ज्यादा ही घुलामिली हो रही है।जरा बच कर रहना उससे।थोड़ा सा फ्लर्टी बंदा है।

मै - व्हाट..रश्मि..ऐसा कैसे सोच रही हो तुम यार..
अब तुम है बताओ एक दोस्त की तरह ही तो नॉर्मली बातचीत करती हूं मै वो भी सबके सामने।और तुम तो न जाने क्या सोच रही हो।फ्लर्टी होगा वो अपने लिए मुझे उससे क्या लेना..बस मेरे साथ अच्छा व्यवहार कर रहा है वो अच्छे से बातचीत करता है तो बस मै भी एक दोस्त की तरह बात कर लेती हूं।उससे ज्यादा सोचने कि मुझे इजाज़त भी नहीं है और न ही मै सोचना चाहूंगी।

रश्मि - ओह हो तुम तो सीरियस हो गई।।मै तो सोच रही थी चलो थोड़ा बहुत टांग खिचाई कर ली जाए।

मै - ओह चलो फिर ठीक है।अच्छा आज का जो लेक्चर मिस हो गया वो कवर कैसे होगा क्यूंकि हम सभी दोस्त तो आज कैंटीन की शोभा बढ़ाने में व्यस्त थे।

रश्मि - कोलेज के और स्टूडेंट से पूछ लेंगे।इसमें कौन सी बड़ी बात है।

चलो अच्छा है।तो फिर अब तुम मुझे अपना ये विंडो फोन चलाना सिखा ही दो। तुम कह रही थी न।

रश्मि - हां हां बिल्कुल, नेकी और पूछ पूछ....
रश्मि मुझे उस फोन को ऑन ऑफ करना,वॉल्यूम कम ज्यादा करना,कैमरे का उपयोग किस तरह से किया जाता है,सोंग वगैरह कहां किस फंक्शन से प्ले किए जाते है सब बताती है।जिसे देख मै रश्मि से कहती हूं।ये जो सारे फंक्शन अभी तुमने मुझे बताए है मेरी समझ से इन सब के हिंट के तौर पर इनके ये नाम रखे गए है।जैसे कैमरा जिसका यूज सबको पता है फोटो क्लिक करने के लिए किया जाता है।इसी तरह ये क्लॉक फंक्शन है जहां समय से रिलेटेड फंक्शन कार्य करेंगे।और ये जो फोन जैसा बना हुआ है इसका यूज आई थिंक कॉल से रिलेटेड होगा है न क्यूंकि इस सादा फोन में भी यही मार्क दिया गया है।

रश्मि - क्या बात है बड़ी स्मार्ट हो बस जरा सा बताया और तुम तो पूरी जड़ तक पहुंच गई हर फंक्शन के बहुत जल्दी समझती हो चीज़ों को।

मै रश्मि की बात सुन उसकी तरफ देखते हुए कहती हूं रश्मि अगर कोई कुछ सीखना चाहे तो कई तरीकों से सीख सकता है जैसे कि सुनकर,देखकर,किसी से पूछ कर।।...

हां और तुम इन तीनों तरीकों से सीख लेती हो।अब जब तुम्हे मूल मंत्र समझ में आ ही गया है तो ये कुछ सोशल ऐप्स है इन्हे डाउनलोड कर लो और दिए गए निर्देश के अनुसार इन सभी का इस्तेमाल करो। मुझे उम्मीद है तुम बिन किसी कि मदद से कर लोगी।ये फोन मैंने अपने फोन से कनेक्ट कर दिया है।अब आराम से इस्तेमाल करो।मै चली स्टडी करने।
ये कह रश्मि उसके हाथ में पकड़ा हुआ फोन मुझे थमा देती है और all the best कहते हुए स्टडी टेबल पर जाकर बैठ पढ़ाई करने लगती हैं।

मै निर्देशों कि मदद से सोशल अकाउंट बना लेती हूं और उसे इस्तेमाल करना भी सीखने लगती हूं।अगले दिन मै कॉलेज जाती हूं तो रश्मि सभी को मेरे इस नए अचीवमेंट के बारे में बताती है जिसे सुन मेरे दोस्त पहले तो थोड़ा हंसते है जिसे देख रश्मि को बहुत बुरा लगता है वो मेरे लिए सबसे कुछ कहने ही वाली होती है मै उसे इशारा कर रोक देती हूं और सभी को लाइब्रेरी जाने का कह वहां से निकल लेती हूं।

रश्मि - क्यूं यार तुमने मुझे क्यों रोका।। माना कि हम सब दोस्त है लेकिन इस तरह तुम्हारा मज़ाक नहीं बनाना चाहिए।

मै - हां।लेकिन मेरे बारे में सबसे अच्छे से तुम्हे पता है उन लोगो को नहीं।तो उनका ऐसा रिएक्ट करना तो बनता है न।उन सभी को बस इतना ही पता है कि मुझे फोन रखना अलाउ नहीं है अभी दो दिन पहले ही तो फोन मिला है मुझे रखने को मेरे लिए ये नई बात है लेकिन उन सभी के लिए नहीं समझी मेरी झांसी की रानी..रश्मि..☺️।।

मेरी बात सुन रश्मि कहती है हां ये भी सही है।मै बेकार में ही उन पर गुस्सा करने लगी थी।
खैर तुम जाओ लाइब्रेरी मै जाती हूं नोटिस बोर्ड देखने क्यूंकि मैंने सुना है कि वो जो डांस कॉम्पटीशन हुए थे न अब कॉलेज लेवल पर अब फिर से होने वाले है डिस्टिक लेवल पर।अगर ये खबर सच है तो बड़े काम की है।अगर सच होगी तो नोटिस लगा होगा बोर्ड पर।

मै - ठीक है जाओ।और हां लौटते हुए यही लाइब्रेरी आके मिलियो।मै यहीं बैठ कर कुछ किताबें देख लेती हूं रूम पर पढ़ने के लिए।।

रश्मि जाते हुए कहती है हां ठीक है यहीं आ जाऊंगी मै।

कुछ ही मिनट हो पाए होते है मुझे लाइब्रेरी में बैठे हुए कि सभी दोस्त वहां आ जाते है और मुझसे प्रश्न करने लगते है जिसे देख मै उन्हें चुप होने का इशारा कर बाहर आने को कहती हूं।

सभी मेरा इशारा समझ बाहर आ जाते है फिर मुझसे प्रश्न पर प्रश्न करने लगते हैं।

अक्षत - क्या बात है नियति तुम आज हम सब से दूर दूर भाग रही हो।

अमर - और बस हाई हेल्लो करी और रश्मि को लेकर यहां चली आई क्यूं?

आशीष - और हम सब ने थोड़ा मस्ती क्या कर ली तुम तो बुरा ही मान गई।।

सुचिता - अरे हम सब दोस्त है और ये टांग खींचाई तो लगी ही रहती है दोस्तो में अब भला इन
सबके बिना कैसा जीवन।।

ओह हो इतने प्रश्न एक साथ अब तो सोचना पड़ेगा किसका जवाब पहले दूं।अब सबका एक ही जवाब है वो सुनो..मुझे जल्दी में यहां आना पड़ा क्यूंकि लेक्चर के टाइम में केवल दस मिनट बचे हुए थे इससे पहले किताबे इश्यू कराना जरूरी था क्यूंकि लेक्चर के तुरंत बाद मुझे संजय पैलेस पहुंचना होगा न आज मेरी जॉब का पहला दिन जो है। सॉरी जल्दी में सबको नहीं बोल पाई अब कारण समझ गए होंगे आप।

तब तक रश्मि आ जाती सभी को बाहर ही एक साथ खड़ा देख हैरानी से मेरी तरफ देखती तो मै उसे चुप रहने का इशारा कर देती हूं।हम सभी वहां से लेक्चर रूम की तरफ चले जाते है।दोपहर से मुझे कोचिंग ककस लेनी होती है तो मै सभी को बाय कह वहां से जाने लगती हूं जिसे देख अमर का मुंह लटक जाता है ।मै कारण समझ जाती हूं और उसके पास जाकर कहती हूं शाम पांच बजे डन मै और रश्मि पहुंच जाएंगे..।।मेरी बात सुनकर अमर मुस्कुरा देता है।जिसे देख मुझे भी एक अंदरुनी खुशी मिलती है।और बदले में मै भी मुस्कुरा देती हूं तथा वहां से कोचिंग सेंटर चली आती हूं।जहां आज मेरी पहली क्लास होती हैं।मै अपना लेक्चर लेती हूं जो बच्चो को बहुत पसंद आता है।मेरे दो लेक्चर रखे गए होते है जिन्हे अटेंड कर मै रश्मि को कॉल करती हूं और सीधा भगवान टाकीज पहुंचने को कहती हूं।संजय पैलेस से सात मिनट का रास्ता होता है सो मै पैदल ही जल्दी जल्दी कदम बढ़ा वहां पहुंच जाती हूं और रश्मि को साथ ले रेस्टोरेंट पहुंचती हूं पांच मिनट पहले ही पहुंच जाते है हम।वहां जाकर देखते है तो अमर वहां बैठा हुआ हमारा ही इंतजार कर रहा होता है।

अमर हमें देख खड़ा होता है और हम दोनों के लिए कुर्सियां निकाल देता है हम दोनों बैठ जाती है फिर अमर बातचीत शुरू करता है।

थैंक्यू निया।।मेरी बात मान तुम बस एक बार मेरे साथ कॉफी ये लिए आई।तुम्हे बता नहीं सकता मै अभी इस समय कितना खुश हूं।तुम न मेरी आंखो में एक बार झांक कर देखो तुम्हे इसकी कुछ झलकियां तो मिल ही जाएगी।

ओह गॉड।।ये अमर भी न जाने कैसी उलजलूल बाते कर रहा है।इतनी खुशी किस कारण से हो सकती है किसी को।।हॉस्टल पहुंच मै रश्मि से बात करूंगी इस विषय में।

रश्मि अमर की बात सुन कर उसकी तरफ देखने लगती है तो पाती है कि अमर मुस्कुराते हुए एकटक नियति की तरफ देख रहा होता है।रश्मि उसकी बातो का अर्थ समझ जाती है लेकिन उस समय उससे कुछ कहती नहीं है।

अमर - कॉफी के साथ और कुछ लेना पसंद करोगी।।या मै जाकर कॉफी ही ऑर्डर कर दूं।

रश्मि - कॉफी नहीं कोल्ड कॉफी।आज उसका स्वाद दिलवाते है निया को।

अमर - ओके।और तीन कप कोल्ड कॉफी का ऑर्डर कर देता है।

अमर - नियति एक बात बताओ तुम्हे डांस के अलावा भी कुछ और शौक रखती हो।

मै - न में गरदन हिला देती हूं।

रश्मि लगता है तुम्हारी इस दोस्त ने अभी न बोलने की कसम खा रखी है।बस गरदन से ही काम चला रही है।

नहीं अमर ऐसा तो कुछ नहीं है ये बोलती तो है और कितना बोलना सीख गई है ये परिवर्तन तो हम सभी देख रहे है कहते हुए रश्मि मुस्कुरा देती है।

खैर तुम बताओ अपने बारे में कुछ ...कहां से हो, फैमिली बैकग्राउंड,हॉबीज वगैरह सब।अब दोस्त हो तो इतना तो हक बनता है जानने का..?

हां क्यों नहीं।।मुझे तुम्हारी दोस्त की तरह बताने से कोई गुरेज नहीं है।अमर की ये बात सुन मै चिढ़ते हुए कहती हूं ...ये तो अच्छी बात है न..बताओ बताओ .अब हैबिट कि बात है ये किसी को अपनी फैमिली के बारे में बातचीत करना पसंद है किसी को नहीं।।

अमर - हां सो तो है..!!जैसे कि तुम।।पढ़ाई से रिलेटेड तो ढेरो सवाल पूछ लो उससे इतर कुछ पूछो तो चुप्पी साध लोगी या फिर बात ही घुमा दोगी।।

मै - आप मेरी बात क्यों लेकर बैठ गए आपसे रश्मि ने आपके बारे में पूछा है मेरे विषय में नहीं तो उसका जवाब दीजिए न...

अमर - हां सॉरी रश्मि मै बताता हूं ...मेरी फैमिली में मेरे मां पापा,एक बहन और एक छोटा भाई है।यहीं लोकल में ही रहता हूं।पापा गवर्नमेंट जॉब में है।और मेरी तो अभी स्टडी ही हो रही है।

ओह that's good।।
तब तक बैरा कॉफी लेकर आ जाता है। कॉफ़ी पीते हुए बात आगे करते है।

रश्मि तुमने अपने बारे में कुछ नही बताया।।थोड़ा सा तुम भी बताओ।।

अब मेरे बारे में कुछ विशेष तो है नही बताने को फिर भी आपने पूछा है तो बता ही देती हूं मैं भी निया की तरह लोकल से नही हूं।बल्कि एक गांव से ही बिलोंग करती हूं।फैमिली में मां पापा, एक भाई और हम दो बहनें है।पापा जो है वो अध्यापक हैं।

वाओ क्या बात है।।पापा जॉब में और तुम भी पढ़ाई के साथ जॉब की तैयारी कर रही हो ऐसा मुझे लगता है।।क्योंकि तुम्हारे हाथ मे मैने कॉम्पटीशन की ही किताबे ज्यादा देखी है।

रश्मि - हां सही पहचाना।।स्टेट pcs की तैयारी कर रही हूं।

मैं -- अब अगर बातें ख़त्म हो गयी हो तो घड़ी पर भी नज़र डाल लो छह दस हो रहे है और एंट्री सात बजे तक ही होती है।

ओह गॉड।बातो बातो में पता ही न चला।अमर अब हम लोगो को जाना होगा।बाकी बातें कल करते है कॉलेज में।बाय बाय।।मैं भी अमर को जाते हुए मुड़ कर बाय कहती हूँ।और रश्मि के साथ होस्टल के लिए निकल आती हूं।

होस्टल आकर मैं चेंज करने लग जाती हूँ।वही रश्मि आदतन मोबाइल के नोटिफिकेशन चेक करने लगती है।जिंसमे अमर का मैसेज भी पड़ा हुआ होता है थैंक्स।।

रश्मि रिप्लाई कर देती है।योर वेलकम।।
अमर -- एक बात बताओ रश्मि ये नियति ने अभी तक कोई सोशल अकॉउंट नही बनाया क्या। मैंने तो ढूंढ कर भी देख लिया लेकिन मुझे मिली ही नही।

हां अमर कल शाम को ही उसने अपना अकॉउंट बनाया है।मेरी आईडी पर एड है वो निया कपूर के नाम से।।

अमर - ओह तभी।। मैं नियति नाम से ढूंढने में लगा रहा तो मिलती कहाँ से खैर मैं अभी उसे रिक्वेस्ट सेंड करता हूँ।एक दोस्त की तरह फॉर्मल बातचीत तो की ही जा सकती है।

रश्मि - हां बिल्कुल।
मैं बाहर आकर रश्मि वाला मोबाइल उसके फोन से कनेक्ट कर स्टडी करने लगती हूँ।तभी मेरे फोन पर नोटिफिकेशन टोन आती है जो अमर के फ्रेंड रिक्वेस्ट की होती है।मैं उसे एक्सेप्ट कर लेती हूं और वापस से अपने कार्य मे लग जाती हूँ। कुछ देर बाद दोबारा टोन बजती है जो राघव की फ्रेंड रिक्वेस्ट की होती है। मैं उसे इग्नोर कर देती हूं क्योंकि तब मैं उसे जानती नही थी। लगभग दो घंटे बाद मैं ब्रेक लेती हूं और फोन दोबारा उठा कर देखती हूँ।तो पाती हूँ उसमे अमर के कुछ मेसेज पड़े हुए होते हैं।।

मैं एक एक कर पढ़ती हूँ।थैंक यू मेरी रिक्वेस्ट एक्सेप्ट करने के लिए।आई एम वेरी हैप्पी टुडे।

मैं मेसेज पढ़ कर कहती हूँ इसमे थैंक यू की कोई बात नही।अब फ्रेंड हो तो इतना तो बनता है।

अमर - थैंक यू अगेन।कम से कम तुमने कहा तो मैं तुम्हारा फ्रेंड हूँ।

मैं - ओके।।अब कल बात करते है स्टडी का टाइम हो गया।बाय।।कह मैं फोन साइड से रख देती हूं और अध्ययन में लग जाती हूँ।

अगले दिन कॉलेज में मैं सभी दोस्तों से मिलती हूँ और हाई हेलो करने के बाद अक्षत से राघव के विषय मे पूछती हूँ।

मैं - अक्षत क्या आप राघव को जानते हैं।
अक्षत - हां।।मेरा बचपन का दोस्त है।
मैं - ओके।वो क्या है ना मेरे पास फ्रेंड रिक्वेस्ट आई है इसीलिए पूछा।।

अक्षत - ओके।। स्वभाव का अच्छा है।चाहो तो एड कर सकती हो।

मैं - ठीक ।।।
सभी लेक्चर रूम में पहुंच जाते है और लेक्चर अटेंड कर मैं कोचिंग चली जाती हूं।जहाँ अपना लेक्चर देकर मैं वापस रूम पर आ जाती हूँ।कुछ देर रेस्ट करने के बाद मैं रश्मि के फोन से डेटा कनेक्ट कर नेट सर्फिंग करती हूं।और सोशल एकाउंट पर राघव की फ्रेंड रिक्वेस्ट एक्सेप्ट कर लेती हूं।

राघव - हेल्लो ।।
मैं फॉर्मली रिप्लाय कर देती हूं।
राघव - आप वही है न जो आगरा कॉलेज की डांस प्रतियोगिता में जीती थी।

मैं - जी।।वही हूँ।

आप बहुत अच्छा डांस करती है सच मे।रिदम ताल की अच्छी समझ है आपको।
मैं - थैंक्स।ओह गॉड मैं तो भूल ही गयी कपड़े पड़े हुए हैं निकालने को।खुद से ही बड़बड़ाते हुए मैं कहती हूँ।
मैं राघव को बाय कहती हूँ और फोन साइड में रख कार्य में लग जाती हूँ।

अगले दिन डेली रूटीन का कार्य कर मैं कॉलेज के लिए निकल जाती हूँ।कॉलेज में सबसे मिलती हूँ।
अमर - हाय नियति।।आज थोड़ा सा लेट हो गयी।क्यों?

मैं - अब हो गयी तो हो गयी।।फिलहाल क्लास रूम में चलते हैं।नही तो लेक्चर मिस हो जाएगा।

अमर - सो तो है। ठीक है चलो चलते है।अक्षत मैं,रश्मि,सुचिता अमर आशीष सभी क्लास रूम की तरफ चल देते हैं।
जहां आज हम सबकी जगह पर दूसरे छात्र बैठे हुए होते हैं।जिस कारण हमें सबसे पीछे बैठना पड़ता है।और सबसे पीछे बैठने के कारण लेक्चर तो मेरे सर के ऊपर से निकल जाता है।और मुझे पहली बार वहां नींद आने लगती है।खैर जैसे तैसे लेक्चर तो कम्पलीट हो जाता है और हम सभी पिंजरे से निकले पंक्षियों के समान वहां से निकल भागते हैं।और बाहर गार्डन में जाकर ही दिखते हैं।

अमर - क्या बात है आज तो सभी वहां से ऐसे नौ दो ग्यारह हुए हैं जैसे किसी ने जबरदस्ती बैठा रखा हो और जाने की परमिशन मिलते ही वहां से निकल भागे हो।ऐसा क्यों?

क्योंकि हम सब बोर हो गए थे ।।सभी एक साथ कहते है।

दूसरे लेक्चर में समय होता है सो हम सभी वहीं बैठ कर मस्ती करने लगते है।मौज मौज में हिस्ट्री क्विज करने लगते है।जिससे उसका रिविजन भी हो जाता है।ये देख अमर कहता है --

अमर - क्या यार ये पढ़ाई इतनी इम्पोर्टेन्ट क्यों है।कॉलेज में भी पढ़ाई,घर मे भी पढ़ाई।।थोड़ा बहुत तो इससे छुटकारा मिलना चाहिए कि नही।।
उस पर ये नियति इससे तो पढ़ाई से इतर कोई बात ही न कर पाओ।अभी विषयो से संबंधित कोई प्रश्न पूछो तो फटाक से जवाब मिल जाएगा और अगर ये पूछ लिया कि दीवाना फ़िल्म में कौन सी एक्ट्रेस है तो उसके लिए सर खुजाने लगेगी।बस किताबी ज्ञान ही रखती है ये तो।

अमर की बात सुन पहली बार मुझे एहसास होता है कि ये इतना बुरा भी नही जितना मैंने सोच रखा है इसके बारे में।आज पहली बार इसने मेरे काम की बात कही है।सिर्फ किताबी ज्ञान रखने से मुझे जीवन मे सफलता नही मिलने वाली।किताबों से इतर भी पढ़ाई और जानकारी रखनी जरूरी है।

मैं अमर को इसके लिए थैंक यू कहती हूँ।तभी अक्षत के घर से कॉल आता है उसकी मां ने उसे फौरन घर आने को बोला होता है। अक्षत सभी को बाय कह घर के लिए निकल जाता है।
मैं - रश्मि चल आज थोड़ा मार्किट के लिए निकलते है जरा सा काम है मुझे मार्केट में।। अब अकेले तो मुझसे ये शॉपिंग होनी नही है।तो तू ही चल साथ में।

रश्मि - कहाँ चलना है ये तो बता।।
राजा की मंडी पास है न यहां से तो चल वही चलते है फिर मेरी क्लासेस का टाइम हो जाएगा तो मैं वहीं से संजय पैलेस निकल जाऊंगी और तुम रूम में लिए निकल जाना।

रश्मि सबसे तेज आवाज में कहती है -ओह माय गॉड!! आज तो चमत्कार हो गया।हमारी पढ़ाकू मैडम मार्किट जाने का कह रही है।

उसका रिएक्शन देख मैं उसे आंख दिखाते हुए कहती हूँ चुप कर यार।चल अब।।माना कि अब हम होस्टल में रहते है लेकिन कुछ चीज़ों की जरूरत तो पड़ती ही है न अपने इस्तेमाल करने के लिए वो तो नही देंगे न होस्टल वाले। सो अब ज्यादा भाव न खाओ!! चलो!! कहते हुए मैं रश्मि को अपने साथ बुला ले जा ही रही होती हूं कि तभी मार्किट जाने की बात सुन अमर रश्मि से कहता है मार्किट जाना है चलो मैं छोड़ देता हूँ मुझे भी कुछ मोबाइल एक्सेसरीज खरीदनी है।पहले वहीं देख लूंगा अगर नही मिली तो फिर लौटते हुए शाह मार्किट से देख लूंगा।
उसकी बात सुन मेरे चेहरे की हवाइयां उड़ जाती है

हे अम्बे मां।मैं तो नही जा सकती इसके साथ किसी ने चुगली कर दी घर, तो मेरे लिए सवालों के पहाड़ खड़े हो जाने है।और अगर संतोषजनक जवाब नही मिला तो फिर तो भगवान ही मालिक।।सकते हुए मैं अमर से मना कर देती हूं।

अमर - मुझे पता है तुम क्यों मना कर रही हो। तुम इतना मत सोचो ई रिक्शा से ही चलेंगे।फिर तो कोई दिक्कत नही होगी न तुम्हे और तुम्हारी फैमिली को।

ओह गॉड इसे कैसे पता चला।मैंने तो रश्मि के अलावा कभी किसी से अपनी फैमिली के बारे के डिसकस नही किया और इसे क्या सपना आ गया था ...

मेरे लिए अमर की कही ये बात हैरान कर देने वाली होती है तो मैं अमर की तरफ सवालिया नज़रो से देखने लगती हूँ।

अब इतना भी हैरान न हो चलो नही तो मार्किट में ही टाइम लग जायेगा तुम्हे और कोचिंग में लिये लेट हो जाओगी।

ओ गाइज।।रुको।। अगर तुम सभी यहां से जा ही रहे हो तो मैं यहां क्या करूँगी।।मैं भी चलती हूँ कुछ खरीदना तो नही है बस तुम सबका साथ ही दूंगी।।सुचिता अपना बैग उठाते हुए हम तीनों को रोकते हुए कहती है।

हां हां चलो, तुम भी चलो।अमर मुस्कुराते हुए कहता है।सुचिता,मैं,रश्मि अमर चारो निकल जाते हैं।वहीं आशीष हम सबके लिए अगला लेक्चर अटेंड करने के लिए रुक जाता है जिससे नोट्स के लिए हम में से किसी को भी कोई दिक्कत न हो।

कॉलेज से निकल हम सभी ई रिक्शा पकड़ मार्किट के लिए निकलते है।वैसे तो ज्यादा दूरी नही है कॉलेज से लेकिन मुझे सेंटर भी पहुंचना है समय से तो हम सभी इस कारण ई रिक्शे का ही चुनाव करते है।

अमर रश्मि और सुचिता आपस मे रास्ते मे बातें करते रहते है और मैं इन तीनो की बाते सुन कर सिर्फ मुस्कुराती ही रहती हूं।

राजा की मंडी हम सभी पहुंच जाते हैं।वहां से उतर हम सभी मार्किट की तरफ बढ़ जाते है।अमर आप सुचिता के साथ अपनी एक्सेसरीज देख लीजिये मैं रश्मि को ले जाकर अपनी शॉपिंग कर लेती हूं।जिससे दोनों का ही कार्य जल्दी हो जाएगा।

अमर - हम्म सही कहा।।इससे समय की भी बचत होगी।सुचिता चलो हम दोनों उधर चलते है कहते हुए अमर सुचिता चले जाते हैं

और मैं रश्मि को लेकर बुक शॉप पर जाती हूँ और करंट अफेयर की बुक खरीदती हूं।उसके बाद जनरल स्टोर जाती हूँ वहां से कुछ चीज़ें खरीदती हूँ।जिसे देख रश्मि कहती है क्या बात है नियति अभी पंद्रह दिन पहले ही तो तू ये सब लेकर गयी थी और अभी फिर से।

ओह हो रश्मि।।अब कब किस चीज़ की जरूरत पड़ जाये क्या पता।इसीलिए पहले से ही ले कर रख लेती हूं।समझी।।

हम्म समझ गयी।।रश्मि मुस्कुरा देती है।वहां से थोड़ा आगे बढ़ते हुए एक कपड़ो की शॉप होती है और मेरी नज़र वहां सामने ही टंगे हुए एक आसमानी रंग की फ्रॉक पर पड़ती है।रश्मि से कह मैं उस फ्रॉक को बार्गेनिंग कर खरीद ही लेती हूं।

हम दोनों ही वहां से चली आती हैं।रश्मि सारा सामान रूम पर ही ले जाती है और मैं कोचिंग की तरफ निकल जाती हूँ।आज अमर भी सुचिता के साथ वहीं चला आता है और वहां के मालिक से कुछ बातचीत करने लगता है।मैं अपनी क्लास में लगे शीशे से उसे देख लेती हूं।चूंकि आज वीकली टेस्ट का दिन होता है सो मैं सभी बच्चों को क्वेशचन बता उनका टेस्ट ले रही होती हूँ।

ये अमर यहां क्यों आया है।पूछुंगी उससे।वो तो मार्किट में था न यहां कैसे।मन ही मन सोचती हुई अपना कार्य करती जाती हूँ।लेकिन ध्यान बार बार अमर की तरफ ही खिंचा चला जाता है।कुछ ही देर बाद अमर और सुचिता वहां से चले जाते हैं।तथा मैं तल्लीनता से बच्चों पर ध्यान देने लगती हूँ।

शाम हो जाती है क्लास खत्म हो जाती है।मैं कोचिंग से बाहर निकलती हूँ कि बादलो की गडगडाहट और बिजली कौंधने की आवाज मुझे सुनाई देती है।मैं घबड़ाकर आसमान की तरफ देखने लगती हूं।ओह गॉड मेरी पसंदीदा बारिश होने वाली है और मैं अभी तक यहीं हूं रूम पर भी नही पहुंची।तो बारिश में भिगूँगी कैसे।।इस मौसम को देखकर तो लगता है ये बारिश कभी भी शुरू हो सकती है।अम्बे मां बस इतनी देर ये बारिश रुक जाए मैं अपने रूम पर पहुंच जाऊ।फिर जोरों से झमाझम बरसा देना प्लीज़ प्लीज़...

..... क्रमशः ....