The Last Murder - 10 in Hindi Crime Stories by Abhilekh Dwivedi books and stories PDF | The Last Murder - 10

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The Last Murder - 10

The Last Murder

… कुछ लोग किताबें पढ़कर मर्डर करते हैं ।

अभिलेख द्विवेदी

Chapter 10:

"आप क्या कह रहीं हैं मुझे कुछ नहीं मालूम और ऐसा क्यों कह रहीं हैं ये तो बता दीजिये?"

"सब पता चलेगा जब डंडा पड़ेगा । सच बता दो नहीं तो कीबोर्ड चलाने लायक उंगलियाँ नहीं रहेंगी ।"

"क्या बताऊँ? किसके बारे में?"

"आशुतोष पर हमला तूमने करवाया है न? और इसके पहले भी जो 3 मर्डर हुए हैं, सबमें तेरा ही हाथ है न?, सच बता नहीं तो…"

इससे पहले की संविदा पर सरकारी दबाव पड़ता, तब तक रॉबिन 2-3 वकील दोस्त और कुछ पेपर लेकर पहुँच गया था । वकीलों ने पूछा तो पुलिस ने बताया कि अभी तक जितने भी मर्डर हुए हैं उसमें कहीं न कहीं संविदा के होने का हिंट है और आशुतोष के मर्डर में भी उसी के होने का शक है । चूंकि आशुतोष ने लेटर दिखाया तो वो समझ गए कि इतना आसान नहीं होगा संविदा को अरेस्ट करना । हालांकि संविदा ने खुद से कहा कि जो भी उससे बन पड़ेगा वो करेगी, बस उसे इसके लिए परेशान ना करें । कुछ फॉर्मेलिटी के बाद सभी ने वहाँ से विदा लिया ।

पुलिस के पास सबसे बड़ी समस्या यह थी कि कत्ल के जगह पर संविदा के होने का पुख्ता कोई सुबूत नहीं था, जो भी था वह शक के आधार पर था और ऐसे में अरेस्ट करना आसान नहीं था । इधर संविदा को अब डर लगने लगा था कि कहीं उसके राइटिंग पर इसका असर ना पड़े लेकिन उससे पहले इसका असर उसकी नौकरी पर पड़ा । शायद गौरव को इसी चीज़ का इंतजार था । उसने उसके थाने वाले इंसिडेंट का बहाना बनाकर उसे कंपनी से बाहर निकलने का रास्ता दिखा दिया था । उधर अंकिता ने अपने न्यूज़ कॉलम में एक ऐसा आर्टिकल लिखा जिससे कि सारा अटेंशन अंकिता पर किसी और की वजह से हो गया था । इस बार किताब की जगह उसकी पर्सनैलिटी चर्चा में थी । अंकिता ने यही लिखा था कि ऐसा कोई राइटर है जो जब भी कुछ फिक्शन लिखता है, वो सच हो जाता है । उसने तीनों नॉवेल का ज़िक्र करते हुए जान्ह्वी, मनीषा और सुमोना के मर्डर के कोइनसिडेंस को वाजिब एंगल दिखा दिया था । संविदा की टाइमलाइन और इनबॉक्स पर रिएक्शन्स के बाढ़ आ चुके थे । उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था । उसने रॉबिन से भी जब इस सिलसिले में बात करना चाहा तो उसने कहा बस अभी शांत रहने को । जबकि रॉबिन ने खुद उसके चौथे किताब का प्रमोशन शुरू कर दिया था ।

आशुतोष के प्रशंसक और मृत लेखकों के फॉलोवर भी संविदा के बारे में हर कहीं लिख और बोल रहे थे । हालाँकि आशुतोष के मर्डर से संविदा आज़ाद थी क्योंकि इस बात की पुष्टि हो गयी थी कि उसका कोई हाथ नहीं है । दरअसल उस दिन उसके हाथ में ही संविदा की तीसरी किताब थी और उसमें भी मर्डर की स्टोरी थी जो सुमोना के मर्डर से मिलती-जुलती थी । इसका फायदा पुलिस ने उठाया और हंगामा को शांत करने के लिए संविदा को लपेटा था । जब एक तरफ किसी का नुक्सान होता रहता है तो दूसरी तरफ उसी से जुड़े हुए का कुछ फायदा भी होता है । फायदा रॉबिन को ही हो रहा था । दरअसल उसी ने अंकिता को एक ऐसे आर्टिकल का आईडिया दिया था । इससे फायदा ये हुआ कि चौथे बुक के लिए बेताबी तो बढ़ी ही साथ में पुरानी तीनों किताब की डिमांड भी बढ़ गयी थी । संविदा के फॉलोवर्स तो बढ़ रहे थे लेकिन उसे ये सब अच्छा नहीं लग रहा था । रॉबिन ने चौथे बुक-लॉन्च का प्लान भेजा तो उसने नहीं करने की इच्छा ज़ाहिर की । रॉबिन किसी की इच्छा का गुलाम तो था नहीं । उसने कहा कि बुक तो आएगी ही, चाहे जैसे भी हो । संविदा समझ गयी कि यहाँ से लौटना इतना आसान नहीं होगा । हालांकि उसने सोशल मीडिया के थ्रू बता दिया था कि इस बार बुक रीडिंग में वो नहीं रहेगी लेकिन ऑटोग्राफ्ड कॉपी सबको मिलेगी । रॉबिन ने ऑलरेडी उसकी मार्केटिंग ये कहा कर की थी इस बार मेल राइटर की मौत होगी, चूंकि मृणाल की तो मौत हो चुकी थी इसलिए सबमें उत्सुकता था कि अब किसकी मौत होनी है । पुलिस भी अपने तरीके से मुस्तैद ही थी और वो हर वीक में एक बार संविदा से ज़रूर मीटिंग करती थी ।

सारी बात वहीं आकर ठहर जा रही थी कि कत्ल के वक़्त संविदा नहीं थी लेकिन जैसा उसने अपने नॉवेल में लिखा था, कत्ल वैसा ही हुआ था । पहली नॉवेल में कत्ल नाखून से था तो जान्ह्वी की मौत भी नाखून से हुई थी । वही स्टील के आर्टिफिशियल नाखून, जैसा कहानी में था । संयोग ये थे कि जान्ह्वी खुद नकली नाखून की शौकीन थी । संविदा उससे मिली तब उसने नहीं पहना था लेकिन जिस दिन कत्ल हुआ उसने पहना हुआ था । नौकरानी उस दिन थी नहीं, मांडवी भी साथ नहीं थी तो समझ नहीं आ रहा था कि कौन हो सकता है । जान्ह्वी की लाश के पास से कत्ल वाले आर्टिफिशियल नाखून, संविदा के पहले नॉवेल का वो पेज जिस पर कत्ल का विवरण था, किताब पर भी खून के छींटे थे । सब सामने होकर भी कुछ क्लियर नहीं हो पा रहा था ।

मनीषा का कत्ल भी संविदा के दूसरे नॉवेल की तरह सिगार कटर से हुआ था । सिगार कटर को तोड़ने से वो दो भागों में बंट जाता है । एक हिस्से से उसे घायल कर के दूसरे हिस्से से गर्दन पर रेतकर मौत के घाट उतार दिया गया था और ऐसा ही उसने दूसरे नॉवेल में लिखा था । ये भी कमाल था कि किसी नए कटर से नहीं, उसी कटर का इस्तमाल हुआ था जिसका इस्तेमाल मनीषा करती थी । इन सभी की लाश के पास संविदा की नॉवेल का होना सबको संविदा से जोड़ देता था । सुमोना के मौत भी सिगार कटर का इस्तेमाल हुआ था लेकिन तीसरे नॉवेल की तरह पहले उंगलियों को काटा गया था फिर कटर को तोड़कर उसके धारदार हिस्से से गर्दन को रेत दिया गया था । पुलिस ने हर एंगल से जाँच-पड़ताल की लेकिन मर्डरर में संविदा का डायरेक्ट या इनडाइरेक्ट लिंक नहीं मिल रहा था । इस बीच चौथी बुक मार्किट में उतर गयी और पिछली तीनों नॉवेल के मुकाबले, ये ज्यादा रफ्तार से निकल गयी । रॉबिन एक तरफ से संविदा को भी हेल्प कर रहा था और दूसरे एंड से अपना बिज़नेस को भी बढ़ावा दे रहा था । इधर पुलिस को समझ नहीं आ रहा था कि कातिल को पकड़ने के लिए कौन सा पैंतरा लिया जाए । क्योंकि चौथी किताब मार्किट में थी और डर था कि इस बार फिर किसी राइटर का मर्डर ना हो जाए । पुलिस संविदा पर नज़र रखे हुए थी लेकिन कोई ऐसा कनेक्शन नहीं मिला जो पोटेंशियल मर्डरर लगे ।

ऑफिस छोड़ने के बाद संविदा अपना सारा टाइम पांचवी किताब को लिखने, पुलिस इन्वेस्टिगेशन में मदद करने में लगा रही थी । सबसे अच्छी बात यही थी कि रॉबिन, अंकिता के साथ उसके रीडर का सपोर्ट बना हुआ था । अब धीरे-धीरे सब उसके पक्ष में लिखने लगे थे । बहुतों को लग रहा था कि ये मात्र संयोग है जबकि पुलिस मानती थी कि या तो संविदा का कोई दुश्मन है या फिर रॉबिन भी हो सकता है । लेकिन कोई सबूत था नहीं और रॉबिन का सर्किल ऐसा था कि सिर्फ शक के बेसिस पर गिरफ्तार नहीं कर सकते थे । चौथी किताब आये हुए 15 दिन हो चुके थे लेकिन कोई मर्डर ही नहीं हुआ और ये भी बात पुलिस की जान खाये जा रही थी क्योंकि हर किताब के आने के बाद मात्र हफ्ते-दस दिन के अंदर सारे मर्डर हुए थे और इस बार इतना वक़्त लग गया । चौथी किताब भी उन्होंने पढ़ ली लेकिन उन्हें समझ ही नहीं आ रहा था कि कैसे पता लगायें कि इस बार भी कोई राइटर ही होगा या इस नॉवेल के हिसाब से और भी कोई हो सकता है । चौथे किताब में 4 मर्डर हुए थे जिनके नाम थे आशुतोष, मृणाल, रंजीत और तनवीर । पुलिस के हिसाब से फेमस तो सिर्फ आशुतोष मृणाल नाम का एक ही बंदा था जो मर चुका था लेकिन ना तो उसकी मौत किताब के हिसाब से हुई थी और ना ही किताब के आने के बाद हुई थी । बाकी के दो नामों को ढूंढना मतलब सरसों में राई ढूंढने के बराबर और उससे बड़ा चैलेंज था सही कातिल को ढूंढना ।

इस बीच संविदा की एक्स-कलीग प्रशस्ति उससे मिलने आयी । वो उसकी पहली नॉवेल देने आयी थी । संविदा ने उसे वहीं ऑफिस में छोड़ दिया था । थोड़ी फॉर्मल बातें हुईं और वो जाने लगी । तभी संविदा ने गौर किया कि इस किताब का वो पन्ना गायब है, फटा हुआ है जिसमें कत्ल का तरीका लिखा हुआ था । उसने प्रशस्ति को रोक कर पूछा तो उसने थूक गटकते हुए बताया कि दरअसल वो एक बार डिनर टेबल पर रखकर पढ़ते हुए डिनर कर रही थी और उस पन्ने पर दाग लग गया था तो उसे साफ करने के चक्कर में वो पेज फट गया था । संविदा को अजीब तो लगा लेकिन उसने ज़्यादा कुछ नहीं कहा । बुक के आगे पीछे के पेज पर वैसे भी हल्दी-मसाले के ही दाग जैसे लग रहे थे । उसने किताब रख दी और सोशल मीडिया देख रही थी । उसने देखा कि रंजीत ने उसकी तारीफ में बड़ा लंबा पोस्ट डाला था । चूंकि वो थोड़ी थकी हुई थी तो उसने सोचा इतना लंबा पोस्ट वो सुबह इत्मीनान से पढ़ेगी । वैसे भी अब ऑफिस तो जाना है नहीं तो क्या टेंशन । लेकिन कोई नहीं जानता कि अगली सुबह किस करवट लेकर निकले । सुबह संविदा को उसके फोन ने उठाया । कॉल रॉबिन की थी ।