The Last Murder - 7 in Hindi Crime Stories by Abhilekh Dwivedi books and stories PDF | The Last Murder - 7

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The Last Murder - 7

The Last Murder

… कुछ लोग किताबें पढ़कर मर्डर करते हैं ।

अभिलेख द्विवेदी

Chapter 7:

रॉबिन ने तीसरी नॉवेल की कहानी को पढ़ लिया था और वो खुश था कि भले मर्डर वेपन इस बार भी सिगार कटर था लेकिन कहानी का फ्लो और मर्डरर का तरीका खास था जिससे नॉवेल में थ्रिल अच्छा बन रहा था । कुछ फेरबदल के बाद उसने उसे ओके किया और प्रोमोशन का प्लान बना लिया ।

"तुमने पिछली बार ऑडियंस को बुक-रीडिंग का मौका नहीं दिया, इस बार ज़रूर देना । अब तुम्हारी फॉलोइंग भी बढ़ी है और लोगों में दिलचस्पी भी ।" रॉबिन ने एक कॉन्फिडेंस दिखाते हुए संविदा से कहा ।

"कैसे?"

"तुम्हारे सोशल मीडिया के सारे प्रोफाइल को देखते हुए टोटल तुम्हारे पास अभी 30 हज़ार फॉलोवर हैं । बस अब तुम्हें हर बात में अपनी किताब को ठूंसना होगा, चाहे फनी तरीके से या फिर संजीदगी से । अब कहीं भी कुछ भी बात करो तो सिर्फ किताबों से रिलेटेड करना ।"

"अच्छा.."

"क्या हुआ, इतनी बुझी हुई क्यों हो? दो दिन में बुक-लॉन्च है यार, ये सब शक्ल मत लेकर रहो । कुछ सीरियस बात है तो बताओ ।" रॉबिन ने थोड़ा सख्त होते हुए कहा था ।

"कुछ खास नहीं, बस मनीषा जी की मौत से थोड़ा दुःख हुआ । मुझे बहुत मन था कि एक बार उनसे मिल लेती ।"

"अच्छा हुआ नहीं मिली । जान्ह्वी से मिली तो उसकी मौत हो गयी और मैं डर गया था कि कहीं कुछ नुकसान ना हो जाये । फिलहाल मातम पर नहीं, बुक पर फोकस रखो । हाँ, उन्होंने अच्छा यही किया कि मरने से पहले भी तुम्हारी किताब का ज़िक्र किया था । तो समझो, तुम अमर हुई ।"

"आप को ज़रा भी अफसोस नहीं? मुश्किल से 37 की होंगी और वो भी हत्या के वजह से नहीं है हमारे साथ ।"

"सुनो, इन सब में ज़्यादा पड़ने की ज़रूरत नहीं है । इस फील्ड में लोग सिर्फ मरने पर ही याद करते हैं और तारीफें लिखते हैं । उनकी किताब कितनों ने पढ़ी थी? किताब छोड़कर सब सोशल मीडिया पर श्रद्धांजलि देने लगते हैं लेकिन ज़िंदा रहने पर कोई कद्र नहीं करता । और वैसे भी तुम्हारी बुराई ही करती थी, तो इतना सेंटी मत हो ।"

"लेकिन कोई नुकसान तो नहीं हुआ न अपना?"

"मैं होने ही नहीं देता । मुझे पता है ऐसे लोगों से कैसे निपटना है । अच्छा है अब नहीं है । जो सबके लिए ज़हर उगलेगा उसको ट्रीटमेंट भी वैसा ही मिलता है ।"

संविदा को रॉबिन की बात पसंद नहीं आयी । उसने बहस में पड़ने के बजाय वहाँ से निकलने में ही भलाई समझी । घर वापस आकर वो बुक प्रमोशन से रिलेटेड पोस्ट्स डालने में लग गयी । दूसरे दिन सुबह ही उसे एक अनजान नम्बर से कॉल आयी । पहली रिंग पर तो उसने नहीं उठाया लेकिन दूसरी रिंग के बाद उसी नम्बर से मैसेज आया कि ये नम्बर अंकिता कुलश्रेष्ठ का है तो उसने खुद ही कॉल बैक कर लिया । रॉबिन ने उसे सिखाया था भले और किसी से बनाकर मत रखो लेकिन प्रोफाइल को रीच देनी है तो जॉर्नलिस्ट से ज़रूर मिलकर रहो । संविदा को भी पता था कि कल बुक-लॉन्च होने वाला है तो शायद इसी सिलसिले में अंकिता को कुछ बात करना होगा ।

"हेलो संविदा! कल के लिए अग्रिम बधाई, कुछ खास तैयारी या सब नार्मल ही होगा कल?"

"नॉर्मल ही होगा लेकिन खास तरीके से । अभी नहीं बता सकती ताकि कल का सस्पेंस आप एन्जॉय कर सकें ।"

"मैं समझ सकती हूँ । वैसे भी तुम्हारी नॉवेल की कहानी अच्छा सरप्राइज़ भी देती है और हेडलाइंस भी ।"

"हेडलाइंस? मतलब कैसे?"

"तुम्हें वाक़ई नहीं पता या अनजान बन रही हो?"

"मैं समझ नहीं रही कि आप कहना क्या चाह रहीं हैं ।"

"लास्ट टाइम बुक-लॉन्च पर नहीं आ सकी थी लेकिन उसे पढ़ा ज़रूर है । और तुम्हारी दोनों नॉवेल को पढ़ने के बाद जो 2 मौतें हुई हैं, उसमें तुम्हारा नॉवेल वाला एंगल कोइनसिडेंस है या वाक़ई कुछ ऐसा…"

"अंकिता, ये क्या बकवास है? मैं ये सब क्यों करूँगी?"

"मैडम, लोग पब्लिसिटी के लिए कुछ भी कर सकते हैं । जान्ह्वी के मर्डर से कुछ दिन पहले तुम उससे मिली थी और मनीषा के मर्डर से कुछ दिन पहले रॉबिन उससे मिला था ।"

"व्हाट? रॉबिन उनसे मिले थे? मुझे तो कुछ नहीं बताया उन्होंने?"

"वो तुम्हें क्यों बताएगा? कुछ चल रहा है क्या तुम दोनों के बीच?"

"व्हाट द हेल? ये बकवास बातों के लिए फोन किया है, हाँ? दिमाग तो नहीं खराब है?"

"वेल, मेरा तो बिल्कुल ठीक है । कल मिलेंगे तब बात करेंगे । बेस्ट ऑफ लक कल के लिए । और कल वाली नॉवेल मुझे देखना है कितना और कैसा हैडलाइन बनाती है!"

ये कहकर अंकिता ने कॉल डिसकनेक्ट कर दिया था लेकिन झनझनाहट संविदा के पूरे बदन और अंदर तक थी । उसे समझ नहीं आ रहा था कि उसके साथ ये सब हो क्यों रहा है और कैसे हो रहा है । सबसे बुरा लगा कि अंकिता ने उसका नाम रॉबिन के साथ ग़लत तरीके से जोड़ा । उसने सोचा तुरंत अभी रॉबिन को कॉल कर के सब बता दे लेकिन उसे पता था कि अंकिता है भी उसी के नेटवर्क से तो कोई फायदा नहीं । क्या पता रॉबिन इस बात को ज़्यादा तवज्जो ना दे । वैसे भी वो बिज़नेसमैन ज़्यादा और इंसान कम है । मनीषा की मौत पर डिस्कशन से वो समझ गयी थी कि रॉबिन को सिर्फ अपने बिज़नेस, मार्केट और अपनी इमेज से मतलब है । संविदा ने इस बात से ध्यान हटाने के लिए सारा दिन बुक प्रमोशन से रिलेटेड पोस्ट्स डाले और अपने नेटवर्क के लोगों तक पहुँचने में समय लगाया । तीसरे बुक लॉन्च और बुक रीडिंग के सेशन कर के अब उसे समझ आ चुका था कि कैसे और क्या पैंतरे ज़रूरी हैं ।

अगला दिन मे-फेयर का शो-रूम अच्छा-खासा भरा पड़ा था । संविदा को देखकर इतनी खुशी हुई कि उसने तुरंत उसकी एक 10 सेकंड वाली वीडियो बनाकर अपने सोशल मीडिया की स्टोरी में डाल दिया । आज यहाँ कुछ जाने-पहचाने चेहरे भी थे और कुछ अनजाने भी । प्रोमिता, शहनाज़ और अंकिता भी थे । लेकिन ये देखकर उसे बड़ी खुशी हुई कि आशुतोष मृणाल भी हाज़िर था और दर्शकों के साथ बैठा था । लोगों से उसकी बातें हो रही थी, वो भी किसी को ऑटोग्राफ़ दे रहा था । रॉबिन ने इशारा किया और फिर बुक-लॉन्च के साथ रीडिंग का सेशन शुरू हुआ । जैसा संविदा ने सोचा था कि इस बार ऑडिएंस को मौका देंगे बुक-रीडिंग का, ठीक वैसा ही हुआ । इसका फायदा ये हुआ कि सबने उसे बहुत सराहा और सबको एक नया एक्सपीरिएंस हुआ । दबी आवाज़ में सब तारीफ कर रहे थे । कुछ ने तुरंत संविदा को टैग करते हुए सोशल मीडिया पर शेयर कर दिया जिससे उसके प्रोफाइल पर रिस्पॉन्स की बाढ़ आनी शुरू हो गयी । संविदा को ये सब देखकर अच्छा लग रहा था । रॉबिन के साथ शो-रूम मैनेजर भी खुश था कि आज काफी दिनों बाद इतनी भीड़ आयी थी । उसने मुस्कुराकर रॉबिन की तरफ देखा तो उसने भी मुस्कुरा कर सिर हिलाया । रॉबिन जैसे कहना चाह रहा था कि अब मज़ा आ रहा है, अब सब सही हो रहा है । संविदा की नज़र प्रोमिता और अंकिता से मिली । दोनों के चेहरे पर स्माइल थी लेकिन ऐसा लग रहा था जैसे अंकिता के दिमाग में कुछ और चल रहा है । कुछ देर में सेशन खत्म हुआ और फिर बुक-साइनिंग का काम शुरू हुआ ।

जहाँ आशुतोष पहुँचे वहाँ किसी और की बारी कैसे पहले आएगी । ना-नुकुर की फॉर्मेलिटी करते हुए भी सबने आशुतोष को ही आगे कर दिया । अपनी मुस्कुराहट से संविदा ने भी आभार जताया कि उसका आना और किताब लेना, संविदा के लिए उपलब्धि ही है । भले ही उसने किताब एक ही लिखा हो लेकिन उसके चर्चे बहुत थे और संविदा उसे इग्नोर नहीं करना चाहती थी । जो गमछा क्रांति कर सकता है वो अटेंशन कहीं भी ले सकता है और कैसे भी ले सकता है । हालाँकि आशुतोष के चेहरे पर हल्की मुस्कान में एक अपनत्व भी था । उसे पता था कि किस जगह पर कैसे अपनी उपस्तिथि दर्ज करवानी है क्योंकि उसका मकसद लेखन से राजनीति की ओर मुड़ना है और इसके लिए ग्राउंड पर पहचान या कहें तो रीच की बहुत जरूरत होती है । आशुतोष इसी के लिए यहाँ था ।

"मुझे बड़ी खुशी होती है जब देखता हूँ लोग बिना साल खत्म किये फटाफट किताब लिख लेते हैं । लेकिन इस बात का ध्यान रखना ज़रूरी है कि कितने लोग पढ़ रहे हैं । आपको क्या लगता है?" आशुतोष ने सवाल किया था ।

"मेरी रीच आप जैसी है नहीं और मुझे लगता है कि बनाने के लिए फटाफट किताबें आनी भी ज़रूरी है । चर्चा ही बटोरनी है तो किताब क्यों लिखूँगी? बिना मलतब के किसी भी सेलेब को गाली दूँगी अपने-आप चर्चा मिल जाएगी या किसी पर कोई क्राइम का गेम खेल लूँगी । आपको क्या लगता है?"

"मुझे तो अच्छा लगता है ये सब देखकर । ये बताइये, कब तक सारी फीमेल राइटर को मारेंगी? किसी मेल राइटर की भी मौत होनी चाहिए न?" आशुतोष ने हँसते हुए कहा ।

"होगा, बहुत जल्दी ही । अगली यानी चौथा वही होगा, मेल राइटर ही मरेगा!" संविदा को अच्छा लगा था । क्योंकि मृणाल ने सवाल से ये तो जता दिया था कि उसने उसकी किताबें पढ़ी हैं और पकड़ भी बनाये हुए है । संविदा को एक उम्मीद दिखी की लोग उसकी अगली किताब के लिए उत्सुक रहते हैं ।

आशुतोष मृणाल ने वहाँ से विदा ली । कुछ लोगों ने संविदा के ही किताब पर उसका ऑटोग्राफ़ ले लिया था । ये शायद रॉबिन को सही नहीं लगा । क्योंकि उसने शो-रूम मैनेजर को इशारा किया तो उसने जाकर मृणाल को धीरे-से कान में कुछ कहा और आशुतोष थोड़ा अग्रेशन वाला एक्सप्रेशन देकर वहाँ से निकल गया था । अच्छा था फिर कोई क्रांति नहीं रची ।