Child career has changed in Hindi Comedy stories by r k lal books and stories PDF | बन गया बच्चे का करियर

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बन गया बच्चे का करियर

बन गया बच्चे का करियर

आर० के० लाल

हर मां-बाप की तमन्ना होती है कि उसकी संतान एक अच्छा नागरिक बन कर सुखी जीवन यापन करें। मैं भी अपने बच्चे के पैदा होते ही इस दिशा में सोचने लगा था। पर बदलते सामाजिक मूल्यों के कारण मुझे कभी अच्छा नागरिक का मतलब ही समझ में नहीं आया इसलिए अपने बच्चे को किस ओर लेकर जाया जाए यह समझना मेरे लिए बहुत कठिन हो गया था । हर किसी को समझ नहीं होती कि अपने बच्चों का करियर बनाने के लिए कौन सा विकल्प को चुने। किसी खराब लाइन चुन लेने पर किसी का भी करियर खराब हो सकता था । मेरे जमाने में तो कोई स्कूल में मास्टर भी बन जाता था तो लोग कहते थे कि वह एक आदर्श व्यक्ति बन गया और उसे बड़ी इज्जत मिलती थी। अब उस तरह के मास्टर दिखते ही नहीं। अगर कहीं सड़क पर निकल भी आयें तो उन्हें नजरें झुका कर चलना पड़ता है। मेरे पिता ने प्रयास करके जहां मुझे नौकरी में लगवा दिया था वहीं जिंदगी काट रहा था लेकिन मैं तो पूरे विश्व में कहीं भी अपने लड़के को भेज सकता था , इसलिए इतने बड़े स्कोप का फायदा उठाना ही चाहिए था। अतः मैंने अपने लड़के के बचपन से ही उसका करियर बनाने की चिंता की , ऐसा करियर जो उसे इज्जत दे और पैसा भी।

अनेक लेखों और टीवी कार्यक्रमों को देख कर मेरे मन में बैठ चुका था कि बच्चों का विकास मनोवैज्ञानिक ढंग से ही करना चाहिए इसलिए मैं अपने लाडले के दूध के दांत टूटते ही अपने एक सहकर्मी श्याम से पूछा कि ये मनोवैज्ञानिक कहाँ मिलते हैं। श्याम ने कई नाम सुझाए तो मैं अपने लड़के को एक मनोवैज्ञानिक के पास उनकी परामर्श के लिए ले गया । कई टेस्ट और विकट परीक्षण के बाद उन्होंने अलग अलग कई घोषणाएं कर दीं , ठीक वैसे ही जैसे अखबारों में साप्ताहिक भविष्य छपा होता है जो सभी के लिए फिट बैठता है। शायद मुझे खुश करने के लिए बताया कि मेरा बेटा एक बड़ा अधिकारी बन सकता है। मनोवैज्ञानिक का तर्क भी सही लगा क्योंकि उसकी आदतें एक अफसर वाली ही थीं, जैसे वह देर तक सोता रहता, आलसी था, अपना काम स्वयं नहीं करता, सदैव घूमना पसंद करता था , लोगों पर बेवजह रौब झाड़ता रहता और अपनी बहन का सामान छीन कर खा जाता था । इतना ही नहीं वह डांट पड़ने से पहले ही रोने लगता था ।

एक विशेषज्ञ ने तो बता दिया था कि वह एक बड़ा वैज्ञानिक बन सकता है । मुझे सच लगा क्योंकि वह दिन भर घर की बहुमूल्य चीजों पर एक्सपेरिमेंट करता रहता था । रसोई घर में जाकर सभी सामानों को एक दूसरे में मिलाता और बहुत उत्साहित होता रहता था। मेरी पत्नी सभी सामान उससे बचाती फिरती । अगर उसे छूट दे दी जाती तो वह एक दिन भारत का आर्कमिडीज़ तो जरूर बन जाता। मगर हम डर गए थे कि वह कहीं कोई दुर्घटना न कर बैठे।

मुझे कुछ तसल्ली नहीं हुई इसलिए हम एक दूसरे मनोवैज्ञानिक के पास गए। अपने मैग्नीफाइंग ग्लास से निहारते हुए वे बोले थे कि आपका लड़का या तो इंजीनियर बनेगा अथवा तबला वादक। मैं खुश हुआ कि इंजीनियर बनेगा मगर अगले पल दुखी हो गया कि कहीं वह हमारे सिर का तबला ही न बजाने लगे। उसकी शक्ल भी अपने तबलची मामा पर ही जो गई थी। उसके दादा ने बताया कि यह दिन भर चीटों को पकड़कर मारता रहता है इसलिए इसे डॉक्टर बना दिया जाए तो बड़ी तरक्की करेगा।

मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था । सोचा बाद में देखेंगे अभी तो लड़का बहुत छोटा है। पहले किसी स्कूल में भर्ती करा दें। किस स्कूल में नाम लिखा जाए यह भी एक गंभीर बात बन रही थी। मेरी पत्नी ने कहा था हिंदी स्कूल में भर्ती कराओगे तो बिरादरी में नाक नहीं कट जाएगी। मैंने अपनी नाक सही सलामत रखते हुए उसे पास के किंडर गार्टन में दाखिला दिला दिया। बड़ी मेहनत के साथ मैं उसे सुबह शाम रटाता रहा था परंतु वह बाबा-बाबा ब्लैक शीप भी ठीक से नहीं बोल पाया था। सदैव ब्लैक शीप की जगह ब्लैक सीख ही कहता रहा। हार कर मैं भी संतुष्ट हो गया कि आज ब्लैक के जमाने में शायद यही अच्छी बात हो । हमने भी ब्लैक में उसके लिए कन्वेंट स्कूल में एक सीट खरीद ली थी । मैंने कई साल बाद महसूस किया कि उसकी बोलती स्कूल और घर दोनों में बंद हो गयी थी। अङ्ग्रेज़ी न आने के कारण वह स्कूल में खामोश बैठा रहता था और घर में कोई अङ्ग्रेज़ी नहीं समझता था इसलिए उसके बोलने का कोई मतलब नहीं था। पहले मैं अङ्ग्रेज़ी में रटता फिर उसे मार मार कर सब विषय रटाता तब वह किसी तरह पास होता ।

उसके कक्षा पाँच पास करते ही फिर मेरी चिंता बढ़ गयी थी कि उसे क्या बनाया जाए? डॉक्टर, इंजीनियर, नेता अथवा अभिनेता। जब उससे प्यार से पूछा जाता तो वह भी कंफ्यूज हो जाता। कुछ पड़ोसियों के घर की तड़क-भड़क देखकर कभी वह जूनियर इंजीनियर बनना चाहता , कभी एक्साइज इंस्पेक्टर तो कभी देवानन्द । रेलवे में नौकरी की बात उसे बहुत भाती थी क्योंकि उसमें ऊपरी पैसे मिलने का मौका होता था और स्वयं एवं पूरे मोहल्ले को फ्री घुमाने की सुविधा भी होतीं थी । हम काफी परेशान थे कि उसे साइंस दिलाएं अथवा आर्ट्स । बेवजह पढ़ाने में पैसा खर्च करने का कोई औचित्य नहीं था। क्या पता दहेज से कितना वसूल हो। बहुत रिस्क लेने की स्थिति में मैं कदापि नहीं था।

मैंने फिर सोचा कि लड़का कोई बड़ा अफसर बन जाए तो बड़ा मजा आ जाएगा। लोग कहेंगे कि देखो अफसर का बाप जा रहा है। घर में नौकर चाकर होंगे । आगे की नशल ही सुधर जाएगी, फिर तो सभी अफसर ही पैदा होंगे अपने खानदान में । अभी तो हम हर वर्ष ट्रांसफर कर दिए जाते हैं फिर हम दूसरों का ट्रांसफर करवा कर रुकवाया करेंगे और लाइफ का भरपूर मजा लेंगे। परंतु यह आसान नहीं था । पता चला कि सभी के लिए लिखित परीक्षा पास करनी पड़ती है जो मेरा बेटा कभी भी नहीं कर पाएगा। उसके लिए इंग्लिश भी आनी चाहिए। वह अंग्रेजी लिख तो लेता है पर संस्कृत की तरह। बॉक्स में सब्जेक्ट, वर्ब, एडजेक्टिव आदि सभी पार्ट ऑफ स्पीच होते थे पर कभी कोई पहले तो कभी कोई बाद में। वैसे जनरल नॉलेज उसका कुछ कम नहीं था सिनेमा की सभी तारिकाओं के अफेयर किसके साथ चल रहा है उसे जवानी याद था। मैं भगवान के सामने तरह तरह की मनौटी मनाता कि उसे कम से कम एम बी ए ही करा दो तो यू एस ए तो चला ही जाएगा। मैं भी हार मानने वाला नहीं था। सोचा था कि पढ़ेगा कैसे नहीं , पहले इंग्लिश मीडियम फिर विज्ञान दिला दिया , कई बार नकल करवाया तो इंटर पास हुआ था। फिर मैंने उससे बी एस सी करने या कोचिंग करके आई आई टी निकालने को कहा था । मगर उसने धमकी दी कि अगर उसे जबर्दस्ती वह सब कराया जाएगा तो वह घर छोड़ कर मुंबई भाग जाएगा। हार कर मैंने उसका नाम बी ए में लिखवा दिया क्योंकि यूनिवर्सिटी में क्लास करने नहीं जाना पड़ता था।

एक दिन सोचा था कि अगर बी ए कर लेता तो वकील बन सकता था उसके लिए कोई प्रतियोगात्मक परीक्षा नहीं होती थी। परंतु देश में वकीलों की संख्या बहुत हो गयी थी और वकालत जमाने के लिए बड़ी मेहनत की जरूरत पड़ती है। कम से कम पचास हज़ार की किताबें खरीदकर चैंबर में सजाना पड़ता है। इतना पैसा मेरे पास कहां से आएगा।

उसने एक बार स्वयं पुलिस इंस्पेक्टर बनने की ईच्छा जाहिर की थी परंतु लड़के का स्वास्थ्य, शरीर की बनावट और घर का माहौल उपयुक्त न होने के कारण कुछ नहीं हो सका था। काश मेरे पास पैसे होते तो डोनेशन देकर उसे किसी विदेशी मेडिकल कालेज में भर्ती करवा देता । किसी ने बता दिया था कि डॉक्टर बन जाने के बाद तो घर बैठे सब वसूल हो जाता है।

मैंने सोचा चलो उसे नेता बना दें , मेरे खानदान में कोई नेता नहीं था । राशन कार्ड बनवाने से लेकर रेलवे रिजर्वेशन तक सुविधा रहेगी। इस क्षेत्र में जाने के लिए न कोई प्रवेश परीक्षा है न किसी विशेष प्रशिक्षण की जरूरत। परंतु मोहल्ले के एक नेताजी ने बता दिया था कि बड़ा त्याग और तपस्या का पैसा होता है नेतागिरी का। सभी के बस का नहीं है , कोई नहीं जानता कि जुलूस में कब हाथ पैर तोड़ दिया जाए।

उसी बीच अखबारों एवं टीवी के माध्यम से पता चला था कि नौकरी में कुछ धरा नहीं है, इसलिए अपने बच्चों को स्वतः रोजगार कराएं । मैंने अपने लड़के को बहला-फुसलाकर जिला उद्योग केंद्र द्वारा आयोजित प्रोग्राम में भर्ती करा दिया था । वहां उसे रोज नाश्ता दिया जाने एवं परीक्षण के अंत में वजीफा देने का भी प्रावधान था। उसका आवेदन भी बैंक भेज दिया गया था पर वर्षों तक पता ही नहीं चला कि बैंक का ऋण मिलेगा या नहीं।

जब हम दोनों थक चुके तो मैंने सब कुछ उसके ऊपर ही छोड़ दिया। कुछ दिनों बाद पता चला कि उसे गाने बजाने का शौक था इसलिए उसने एक म्यूजिक पार्टी खोल ली थी , फिल्मी धुनों पर डांस भी करने लगा था । वह रंप गाता जो मुझे कभी समझ में नहीं आया परंतु उसकी बहुत डिमांड बढ़ गयी थी । आज वह विदेशों में भी अपने प्रोग्राम करने जाता है, खूब कमाई करता है। उसकी बदौलत हम भी विदेश जाते हैं । अब मुझे समझ आया कि बच्चों का करियर उसकी आंतरिक प्रतिभा, उनकी रुचि और अभिरुचि के अनुसार उन्हें स्वयं ही बनाने देना चाहिए , उन पर जबर्दस्ती अपनी चाहत नहीं थोपनी चाहिये । करियर का मतलब होता है जिस काम को करने में आपका मन लगे।

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