Yaarbaaz - 14 in Hindi Moral Stories by Vikram Singh books and stories PDF | यारबाज़ - 14

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यारबाज़ - 14

यारबाज़

विक्रम सिंह

(14)

मुख्यमंत्री तक पहुंच गई तुरंत ही मुख्यमंत्री ने श्रम अधिकारी से बात की ,आप मैनेजमेंट से बात कर जल्द से जल्द मामला शांत कीजिए युवा वर्ग वहां आकर बैठ गया है। श्रम अधिकारी को काटो तो खून नहीं,"आज कंपनी के जीएम से बात कर मामला शांत कर आता हूं" श्रम अधिकारी उसी दिन करीब चार घंटे के अंदर ही अनशन में बैठे लोगों के पास आए और अपनी गाड़ी से उतरकर कहा " प्रिय भाइयों मैनेजमेंट ने आप सबकी बात मान ली है जैसे आप सब पहले कार्य कर रहे थे वैसे ही कार्य करेंगे करते रहेंगे। भले ही मैनेजमेंट आपको आगे परमानेंट करे या ना। पर आप जिस तरह थे आपको उसी तरह ले लिया जाएगा। " यह सुनकर सभी खुश हो गए। पर एक टीस रह गई क्या जीवन भर कॉन्ट्रेक्ट में ही काम करते रह जाएंगे। फिर भी सब चुप रहे। यह सोच कर की पहले नौकरी तो ज्वाइंट कर ली जाए। श्रम अधिकारी ने नींबू पानी ले जाकर श्याम को पिलाकर उसका अनशन तुड़वा दिया।

इस बात से श्याम की चारों तरफ अच्छी खासी चर्चा हो गई थी । उसी वक्त जहां उसकी प्रतिष्ठा मजदूरों से लेकर गांव तक बन गई थी उसी वक़्त जिला के एमएलए के ऊपर एक स्त्री का बलात्कार का आरोप लग गया था एक तरफ श्याम की तारीफ छप रही थी तो दूसरी तरफ एमएलए की कुकर्मों की खबर छप रही थी। लोग अखबार दिखाकर यह कहते देख लो जो काम एमएलए जी को करना चाहिए था वह साधारण सा कॉलेज का अध्यक्ष रह चुका, मजदूरों के लिए लड़ रहा है ऐसे समय में विपक्षी पार्टी भी श्याम की तरफदारी में लग गई। ऐसा होने लग गया था जैसे श्याम के मामूली लड़का ना होकर एक बहुत बड़ा नेता मंत्री हो। ऐसे ही वक्त पार्टी ने निर्णय लिया एमएलए को पार्टी से निरस्त कर दिया जाए और श्याम को एमएलए का टिकट दे दिया जाए । क्योंकि कुछ विपक्षी पार्टी उसे एमएलए का टिकट देने का विचार कर रही थी। यह सुनकर ऐसा लग रहा होगा कि जैसे बैठे-बिठाए किसी को कुछ मिल गया हो ऐसा नहीं था श्याम के काम उसके आचरण और ना जाने कितनी बातें जो जिला में फैल चुकी थी उसे पार्टी को लगने लगा था कि युवा एमएलए का चुनाव जीत सकता है। सही मायने में श्याम को उसके फायदे के लिए नहीं अपने फायदे के लिए चुनाव में खड़ा किया था। पार्टी को लगता था युवा नेता के रूप में उभर सकता है। । उसी पार्टी के कुछ कार्यकर्ता और कुछ नेता इस बात के खिलाफ थे कि एक नए नवेले और युवा लड़के को जिसको राजनीति का 'र' भी नहीं पता वह क्या चुनाव लड़ेगा? और सब टिकट देने के खिलाफ होते मगर इन सब के बीच भी पार्टी के मुख्य को लगता था कि यह लड़का ही चुनाव जीत सकता है। और श्याम को आखिर पार्टी ने एमएलए का टिकट दे दिया। फिर खलबली मच गई खासकर श्याम के चाचा ताऊ और पलटन की तो हवा ही निकल गई। कालीचरण ने पलटन से कहना शुरू किया ,"पलटन लड़का खेल खेल रहा है देख लो तुम्हारे ही इंस्पेक्टर से तुम्हें हथकड़ी लगवा दी अब सुनने में आ रहा है चुनाव लड़ने जा रहा है अगर जीत गया ना पलटन तो तूने अब तक लेखपाल को लेकर फर्जी पेपर बनवा कर जमीन हड़पी है सब का हिसाब लेगा।"

"हिसाब लेने के लिए बचेगा तब ना"

"मतलब"

"मतलब समझ जाओगे।"

.....

चारों तरफ खेतों की हरियाली ही हरियाली नजर आ रही थी। यह वह खेत की जगह थी जहां सिचाई की कोई सुविधा नहीं थी। किसान राम भरोसे रोपाई कर छोड़ देते थे। खेतों के बीचों बीच एक छोटी सी खाली जगह एक बुलेट खड़ी थी अब बुलेट के ठीक सामने एक लड़का आंखों में काला चश्मा और गले में सफेद गमछा सा लटकाए हुए खड़ा था उसने साधारण सी पैंट शर्ट पहन रखी थी और पैरों में उसके चप्पल थी चेहरे से देख के गुंडे मवाली जैसा दिख रहा था या वह खुद को ऐसा बना कर रखता था कि लोग समझ जाए कि मैं गुंडा मवाली हूं और ठीक उसके साथ वही पलटन यादव भी खड़ा था। पलटन ने उसे एक फोटो दिखाते हुए बोला," एकदम बचना नहीं चाहिए।"

उसने भी अपनी पान की पीक को थोकते हुए कहा," ऐसा जगह ठोकेंगे सीधा परलोक सिधार जाएगा" पलटन उसके बाद एक लिफाफा उसके हाथ में थमा दिया था।लड़का मुस्कुराते हुए लिफाफे को अपने पॉकेट में घुसा लेता है और उसके बाद कहता है,"ठीक है चलते हैं काम होने के बाद मेरा दूसरा लिफाफा भी तैयार रखिएगा" बुलेट में बैठकर किक मारकर निकल गया था।

चक के चक्कर में पलटन ने जो दीवानी में केस दर्ज किया था एक लंबा समय बीत चुका था असफलताओं का लंबा सिलसिला शुरू हो चुका था ना पलटन ही सफल हो पा रहा था ना श्याम। तारीख पर तारीख हर तारीख पर कोर्ट पर हाजीर हो जाना और पैसों के खर्च से पलटन पर भी खर्च बढ़ता चला जा रहा था इससे उसे महसूस हुआ कि घर की हालत भी बुरी हो जाएगी। अब उन्हें लगा आने वाला वक्त श्याम का होगा इससे कि पहले श्याम कुछ फतेह हासिल कर ले इससे पहले ही उड़ा देना अच्छा रहेगा।

दूसरी तरफ श्याम को कुछ भी फर्क नहीं पड़ रहा था शाम को पता था कि सच्चाई में बड़ी ताकत होती है बड़े-बड़े दिग्गज लोगों ने भी सच्चाई की राह पर चलकर ही फतेह हासिल की हैं । वह जब चलेगा कारवां कारवा अपने आप जुड़ता चला जाएगा कोई साथ दे या नहीं। चाहे कुछ हो जाए वह सच का दामन नहीं छोड़ेंगे कहीं पढ़ा था श्याम ने सच्चाई, ईमानदारी हो तो जीत हासिल होती है।

........

चुनाव की टिकट मिलने के बाद उसके दिनचर्या दिन रात लोगों के बीच में घूमने और भाषण देने में बीतने लगा था। वह गांव-गांव सारा दिन घूमता रहता था। लोगों की परेशानियां सुनता रहता था और चुनाव जीतने पर परेशानियों को दूर करने की बात कह कर आता था। लोगों का विश्वास भी श्याम पर था कि यह बाकई ही अपनी शर्तों को पूरा करेगा।

उस दिन भी वह कमांडर के ऊपर खड़ा भीड़भाड़ का अभिनंदन कर रहा था सही मायने में अपना और अपनी पार्टी का प्रचार कर रहा था और सबको वोट देने के लिए आग्रह कर रहा था साथ में राकेश और राहुल भी उसके साथ खड़े थे सही मायने में राकेश और राहुल अब उसके दाएं बाएं हाथ थे और आगे पीछे उसके साथ उसके साथी और भी थे । श्याम लोगों को हाथ जोड़ कर नमस्कार कर रहा था। एक स्टील कैमरा मैन लगातार सब की फोटो खींच रहा था एक वीडियो कैमरा मैन वीडियो भी बना रहा था। उसी वक्त भीड़ से दो लोग अजीब तरीके से श्याम को देख रहे थे। मगर दोनों अलग-अलग दो दिशाओं में थे दोनों ने आंखों में चश्मा लगा रखा था सारी पब्लिक श्याम को देखकर हल्ला कर रही थी । जीतेगा भाई जीतेगा श्याम भाई अपना जीतेगा। एक व्यक्ति छोटा सा बंदूक जैकेट से निकाल कर तभी फायर कर देता है। उसी वक्त राकेश श्याम को कवर कर एक बंदे को जीप में चढ़ाने की कोशिश कर रहा था। गोली राकेश कंधे में जा लगती है। एकाएक राकेश के कंधे से खून निकलने लगा और राकेश कमांडर में गिर गया। दूसरा व्यक्ति उसी वक्त कट्टा चोरी से निकाल ही रहा था। किसी और के पहले ही फायरिंग होने से वह संभल नहीं सका। और किसी ने उसे देख लिया उसे पकड़ लिया गया और पब्लिक उसे मारने लगी। मैंने गोली नहीं चलाई मैंने आत्म रक्षा के लिए बंदूक निकाला था । जिसने गोली चलाई थी वह निकल कर भाग गया। 18 पुलिस उस बंदे को उठाकर ले गई और उस जगह अफरा-तफरी मच गई और विरोधी पार्टियों के खिलाफ नारे बाजी शुरू हो गई। पत्रकार वहां आ गई पत्रकारों को भी लोग बाग यही कहने लगे कि विरोधी पार्टी का साजिश है। सही मायने में इस फायरिंग में श्याम को जिताने के और ज्यादा मोहर लगा दी थी।

......

खेतों की हरियाली के बीचों-बीच फिर उसी स्थान पर बुलेट खड़ी थी और उसी अंदाज में वह लड़का खड़ा था उसने अपनी बंदूक पलटन की कनपटी में लगाई हुई थी "साला दो लोगों को सुपारी दे रखा था"

" हम काहे ला दो लोगों को सुपारी देंगे भाई गलतफहमी है कुछ"

"फिर गोली कौन चलाया?"

"वही तो पूरा जिला जानना चाह रहा है" उसकी खोपड़ी से वह बंदूक को हटा लेता है जैसे उसका गुस्सा शांत हो गया हो "अपने लड़के को तो पुलिस उठाकर ले गई है"

"कहीं वह सब का नाम ना उलट दे"

"नहीं नाम नहीं उल्टेगा उसने कहा है गोली चलने पर उसने डर से बंदूक निकाली थी। उसने कहा है कि वह श्याम का समर्थक है बस कट्टा में ऐसे ही लेकर चल गया था।

"मानो या ना मानो यह विरोधी पार्टी का ही काम था इस बार श्याम का जीतना बहुत संभव लग रहा है।"

"ऐसा ही मुझे भी लग रहा है श्याम का जितना एकदम पक्का है"

"बेहतर यही होगा कि तुम मुझसे पंगा ना लो और दीवानी से अपना केस वापस ले लो"

....

अब तो चाय की दुकान से लेकर चौराहे तक अखबार से लेकर लोकल न्यूज़ तक में श्याम की चर्चा थी अब चर्चा और भी अधिक बढ़ गई थी । इस बंदूक की गोली ने लोगों को और श्याम के समर्थन में उतार दिया था एक संवेदना श्याम के प्रति लोगों की जुड़ गई थी । एक चाय की दुकान में कुछ लोग बतिया भी रहे थे, पहला व्यक्ति "किसी भ्रष्ट मंत्री ने लड़के की सुपारी दे दी है।"

दूसरा आदमी "हम तो इस बार श्याम को ही वोट देंगे"

तीसरा आदमी "यही लड़का भ्रष्ट मंत्रियों का सफाया करेगा हमारा वोट इस बार श्याम को ही जाएगा"

लोग पार्टी को कम और श्याम को वोट देने की बात ज्यादा करने लगे थे ऐसा लग रहा था कि पार्टी से श्याम नहीं श्याम से पार्टी है।

उधर कन्हैया भी दुकान से लेकर हर जगह यह कहने लगा कि श्याम की जीत पक्की है वह तो यह भी कहने लगा कि मुझे तो शक है कि पलटन ने ही ऐसा कुछ काम करवाया है पर गांव के लोग भी विश्वास नहीं कर रहे थे कि पलटन इतना बड़ा भी काम करवा सकता है ।अगर यह सब करवाना होता तो उसने दीवानी में केस दर्ज नहीं किया होता। अब तो जितने मुंह उतनी बातें थी कि आखिर गोली किसने चलाई। अब तो अमरनाथ भी श्याम के तरफ से उतर गया था वह भी हर जगह भाषण में कह रहा था कि श्याम जैसा नेता मिलना मुश्किल है श्याम को वोट देकर उसे विजयी करें।

.......

अचानक से एक दिन न्यूज़पेपर और न्यूज़ चैनल पर दिखाया जाने लगा कि गोली चलाने वाले व्यक्ति की शिनाख्त हो गई है। सुपारी देने वाले व्यक्ति की रात की नींद ही उड़ गई उसे लगा अब तो जैसे बचना मुश्किल ही हो जाएगा।

पलटन की हालत खराब हो गई थी उसे 105 बुखार चड़ गया था दस्त भी लग गई थी उसे लग रहा था कि कभी भी उसके दरवाजे पुलिस आ जाएगी और से हथकड़ी लगा कर ले जाएगी।

रात का समय हो चुका था बारिश खूब जोरो से हो रही थी। एक लंबी सी कार जंगल के बीचो-बीच रुकी । उस गाड़ी से एमएलए साहब उतरे । वही एमएलए साहब जिसे कुछ समय पहले बलात्कार के जुर्म में पार्टी ने निरस्त कर दिया गया था उसके उतरते ही एक नौकर झट से छाता लेकर उसके पास आ गया। एक व्यक्ति मुंह में पान चबाते हुए उसके पास आया। उसने जींस, जैकेट और टोपी पहन रखी थी। उसने मंत्री जी के पास आकर कहा,"कैसे याद किया है मंत्री जी किसी को उड़ाना है।" तुम्हारा फोटो आ रहा है टीवी में।"

" क्या हमारा फोटो आ रहा है।" तभी पीछे से गोली की आवाज आती है और वह गोली जैकेट वाले के पीठ में धनाधन लग जाती है वह वहीं ढेर हो जाता है मंत्री अपने व्यक्ति से कहते हैं, इसको कहीं ठिकाने लगा दो ताकि पुलिस तो पुलिस , सीबीआई भी इसे पाताल से खोज न पाए।

सच भी है हुआ पुलिस शिनाख्त करने के बाद भी उस शख्स को कहीं से भी ढूंढ नहीं पा रही थी आखिर वह कहां गायब हो गया।

........

उन्हीं दिनों मैं अपनी एमए की जोर शोर से पढ़ाई में लगा हुआ था । साथ ही जो भी मेरे एडमिड कार्ड मुझे आ रहे थे उनका रिटेन एग्जाम देने जाने लगा था। मगर रिटेन एग्जामिनेशन के बाद भी मैं कहीं पर भी पास नहीं हो पा रहा था। या तो मेरी तैयारी में कमी थी या फिर मेरे भाग्य का दोष था। मैं नहीं समझ पा रहा था । कई बार मुझे लगता था कि इस बार में निकल जाऊंगा पर नहीं निकल पाता था। सिर्फ यह मेरे साथ नहीं था। कॉलोनी में मेरी तरह कई लड़के और लड़कियां थी जो मेरी तरह प्रयास कर रहे थे। कई ऎसे थे बैंगलोर मुंबई नौकरी करने चले गए थे। कई हार मान चुप चाप घर बैठे थे। खैर मेरी मेहनत रंग लाई एक -दो जगह में रिटेन पास भी हुआ पर इंटरव्यू के बाद मेरा मेरिट में कोई नाम नहीं आया। फिर मैं भाग्य को दोष देकर चुपचाप बैठ गया और आगे और फॉर्म भरता गया और तैयारी करता गया । अब तो हालत ऐसी थी कि ना मुझे नौकरी मिली थी ना ही बबनी के पिता को बबनी के लिए नौकरी वाला लड़का मिल रहा था। उस दिन मुझे महसूस हुआ नौकरी भगवान से भी कोई ऊंची चीज है । और जो व्यक्ति इस नौकरी को पा जाता था समझे वह भगवान मिल गया । और मैं भगवान को नहीं पा, पा रहा था।

मैंने भी हार नहीं मानी थी। आखिर कभी न कभी भगवान् खुद दया कर मेरे पास आ जाएगा। और मैं हर रोज अपनी साइकिल ले कर एक शॉर्टकट जंगल के रास्ते से होता हुआ स्टेशन के पास एक हलदार की दुकान पर पहुंच जाता था। वह मोटे गत्तों में सफेद कागजों में नौकरी का विवरण लगा टांग दिया करता था। जिसमें बी. ए. ,एम. ए., बी.एस.सी,दसवीं,बारहवी आठवीं, पास की नौकरी का विवरण छपा होता था। वहां साइकिल खड़ी कर सबसे पहले विवरण को ध्यानपूर्वक पढ़ता था और देखता था कि मैं कहां फिट हूं । और कौन सा फॉर्म मुझे लेकर जाकर भरना है। वह हर फॉर्म दस रुपए के हिसाब से दिया करता था। उन दिनों इंटरनेट ऑनलाइन का सिस्टम बहुत कम ही होता था। दुकानदार एक लिफाफे में फॉर्म डाल कर दे दिया करता था । मैं उसे दस रुपए में खरीद कर फॉर्म लेकर आया करता था।

फार्म लाने के बाद कई प्रक्रिया से मैं गुजरता था खास करके अपने सर्टिफिकेट और रिजल्ट को मैं एक जानवरों के डॉक्टर से अटेस्टेड कराने जाता था कई बार भगा भी दिया करता था कि बाद में आओ कई बार वह आराम से अटेस्टेड करके दे दिया करता था।

ऐसे ही वक़्त जब पूरी कॉलोनी निराश बैठी थी कि कॉलोनी में भूचाल मचा। यूं तो हमारे शहर रानीगंज में भूचाल आते रहते थे कभी कहीं धरती फट गई,तो कभी धरती धस गई,कभी डायनामाइट फटा। इस बार भूचाल यह आया कि दुर्गापुर स्टील प्लांट में भारी मात्रा में बारहवी पास लड़को की वैकेंसी निकल गई। अब तो ऐसा था कि हालदार की दुकान में बेरोजगार लड़को की भीड़ लग गई। लड़के फार्म भर भर के पोस्ट करने लगे। करीब दो हजार लड़को की बहाली होने वाली थी।

अब तो आए दिन ही डीएसपी को लेकर कॉलोनी में लड़के चर्चा करते रहते थे। "मैंने तो यूं ही भर दिया है, साला बिना सोर्स के कुछ नहीं होगा। फिर सरकारी नौकरी के लिए चार पांच लाख लगेंगे। इतना रिस्क लेकर कौन पैसा देगा।"

बातें गर्म दूध की तरह उबाल लेती थी और जल्द ही डंडी हो जाती थी। अब तो कई गली नुक्कड़ में इस्पात मंत्री के जान पहचान वाले भी निकलने लगे थे। कोई कहता बर्नपुर में एक जनाब हैं,उनसे इस्पात मंत्री की सीधी बात होती है। कोई इसी बात को कुछ घुमाकर कहते,"अमां यार! अब वह कुछ भी नहीं रह गया है,अब उसकी भी कुछ नहीं चलती है। अब तो वह कभी बीजेपी,तो कभी कांग्रेस,तो कभी सीपीआई, के ऑफिस में बैठा मिलता है। इनमें से कुछ ऐसे भी लड़के थे,जो पैसे और सोर्स पर विश्वास नहीं करते थे और मेरिट पर नौकरी लेना चाहते थे,"क्या यार! तुम लोग सिर्फ पैसे और सोर्स की बातें करते रहते हो,आखिर वरुण की बात कौन नहीं जानता , फर्स्ट क्लास एम ए करने के बाद एसएससी की परीक्षा में सेलेक्ट होने के लिए उससे किसी दलाल ने एक लाख लिए मगर काम नहीं हुआ फिर पैसे निकालने के लिए लोहे के चने चबाने पड़े मगर दूसरे साल बिना सोर्स और पैसे के सेलेक्ट हो गया। हां वरुण हमारी कॉलोनी का ही एक सीनियर लड़का था जिसने नौकरी के लिए बहुत संघर्ष किया और यहां तक कि सोर्स के लिए पैसे भी फसाय थे मगर वह पैसे पूरी तरह से डूब गए थे उसके बाद उसने अपने जीवन में यह संकल्प किया कि मैं कभी भी पैसे देकर नौकरी लेने की चाहत नहीं रखूंगा और उसने यह जान लिया था कि पैसे देकर नौकरी नहीं होती है मेरिट में निकलने वाला लड़का ही नौकरी ले सकता है।