khauf...ek ankahi dastan - 5 in Hindi Thriller by Akassh Yadav Dev books and stories PDF | खौफ़...एक अनकही दास्तान - भाग-5

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खौफ़...एक अनकही दास्तान - भाग-5

लिसा के मोबाइल के कॉल डिटेल्स से ये साफ हो गया था कि लिसा के फोन पर आने वाला आखिरी कॉल साहिल का ही था,और इन दोनों के ही फोन का उस वक़्त एक ही लोकेशन पर होना इस बात को और भी पुख्ता कर रहा था कि ,लिसा की हत्या के पीछे और कोई नही बल्कि साहिल ही है।
और इस वक़्त इंस्पेक्टर कुंदन सिंह अपने पुलिस जीप में बैठे सेठ हरबंस लाल की कोठी की तरफ ही बढ़ रहे थे।

आधे घँटे बाद ही ज़िप टायरों की चीखती हुई आवाज़ के साथ सेठ हरबंस लाल की कोठी के पोर्च पर खड़ी हुई....इससे पहले की सेक्युरिटी पर तैनात गोरखा कुछ समझ पाता,इंस्पेक्टर कुंदन चीते की फुर्ती से जीप से कूद कर बाहर निकले और धड़धड़ाते हुए कोठी के दरवाजे को एक जोरदार आवाज़ के साथ खोलते हुए अंदर पहुँच भी गए।
उसके पीछे पीछे बाकी के कांस्टेबल भी अंदर प्रवेश कर गए, गोरखे ने पुलिसकर्मियों की गतिविधियों को देखते हुए एक भी शब्द नही निकाले थे अपने मुंह से।

अंदर सोफे पर एक गेंहुए रंग का व्यक्ति नाइट गाउन पहने सोफे पर बैठ था। लम्बा चौड़ा कद सिर पर काले बालो के बीच कुछ सफेद बाल भी थे,हाथों की आठ उंगलियां कीमती रत्नों से जड़ित अंगूठी से सजी हुई थी....होंठो के बीच फंसी हुई थी एक कीमती सिगार,जिसके धुएं उनके नथुनों से अब भी हल्के हल्के निकल रहे थे।
ये साहिल के पिता और शहर के मशहूर बिजनेस मेंन सेठ हरबंस लाल थे ।
इस तरह पुलिस का अपने घर के अंदर आना बहुत नागवार गुजरा था सेठ हरबंस को,इसीलिए उन्होंने बड़ी ही नाराज़गी से कहा...!!
" ये क्या बेहूदगी है इंस्पेक्टर, किसी शरीफ इंसान के घर मे आने का ये कौन सा तरीका है तुम्हारा"??

इंस्पेक्टर कुंदन सिंह जरा सा भी तो नही ठिठका था सेठ हरबंस लाल की इन बातों से और फिर चेहरे पर पूरी दुनियां की कठोरता लाते हुए कहा " माफ कीजियेगा सेठ जी,पर आपने सही कहा पुलिस किसी शरीफ इंसान के घर मे इस तरह से नही आती,जिस तरह से मैं यहां आया हूँ"।

"ये क्या बदतमीजी है इंस्पेक्टर" लगभग चीख से पड़े थे सेठ हरबंस लाल और फिर बिफरते हुए बोले "आखिर बताओगे भी की ऐसी कौन सा गलती हो गई सेठ हरबंस लाल गोयल से की तुम्हे अपनी पूरी टीम के साथ उसकी कोठी तक आना पड़ा ?"

"सेठ जी शहर में होने वाली हत्याओं के बारे में तो आपको पता ही होगा" इंस्पेक्टर कुंदन ने सेठ हरबंस लाल की आंखों में झांकते हुए कहा.... फिर कुछ सेकंड रुकने के बाद बोला.. " हमारे पास सबूत है कि लिसा नाम की जिस रिशेप्शनिश्ट का कत्ल हुआ है,उसके पिछे आपके बिगड़े हुए नवाब यानी साहिल का हाथ है,और इसी लिए वारंट के साथ ही हम आए हैं...उसे गिरफ्तार करने के लिए !

सेठ हरबंस जो अब तक सोफे में लगभग पसरे हुए थे,थोड़े से संयत हो कर बैठ गए और इंस्पेक्टर कुंदन पर अपनी नज़रे टिकाते हुए बोले "तुम पागल हो गए हो इंस्पेक्टर, पता भी है तुम किस पर और क्या इल्ज़ाम लगा रहे हो ??"

हां सेठ जी ये सिर्फ मैं ही नही कह रहा सारे सबूत भी चीख चीख कर इसी ओर इशारा कर रहे हैं।

"वे सारे सबूत झूठे हैं बनावटी हैं इंस्पेक्टर"

क्योंकि जिस रात जब क़ातिल उस रिशेप्शनिश्ट को मार रहा था,तब मेरे बेटे साहिल का इलाज़ इसी शहर के एक नरसिंग होम में चल रहा था।
इसीलिए बेहतर होगा तुम अपनी इन्वेस्टिगेशन का रुख किसी और तरफ मोड़ कर असली गुनहगार को पकड़ने की कोशिश करो,शरीफ लोगों को इस तरह परेशान कर के तुम खुद की नौकरी को खतरे में डाल रहे हो !!

इन्स्पेक्टर कुंदन एक ऐसी शख्सियत के सामने खड़ा था ,जिसकी हैसियत एवरेस्ट सी ऊंची थी, और उस एवरेस्ट के सामने एक मामूली से कंकर के सामान था इंस्पेक्टर कुंदन...इसीलिए कसमसा कर रह गया वो ,और अपने आप को जब्त करते हुए बोला "पर सेठ जी इंक्वायरी के ऑर्डर्स हाई लेवल से आए हैं,इसीलिए साहिल से पूछ ताछ करने के लिए उसे हिरासत में लेना ही होगा,और कोर्ट के भी यही ऑर्डर्स हैं" ।।

"इंस्पेक्टर तुम गलत दरवाजे पर दस्तक दे रहे हो" अब तुम जा सकते हो,मेरा एक एक सेकंड बहुत कीमती होता है,अब इससे ज्यादा वक्त मैं तुम पर खर्च नही कर सकता"
यह कहते हुए सेठ हरबंस लाल उठ खड़े हुए !
इंस्पेक्टर कुंदन कसमसाते हुए आखिर में वहां से वापस लौट आये !!
★★★
रात के 11 बजे थे और डॉक्टर गोयंका अपने केबिन में अब तक बैठे हुए थे,वे कम्प्यूटर की स्क्रीन पर एक टक नज़रें गड़ाए उस पर चलने वाले वीडियो को देख रहे थे, उनका जिस्म पसीने से पूरी तरह भींगा हुआ था और पलकें मानो फ्रिज हो गई थीं, अपलक उनकी आंखें कम्प्यूटर स्क्रीन पर चल रहे उन दृश्यों को देखे जा रही थी और देखते देखते बार बार डॉक्टर गोयंका अपने थूक को निगल रहे थे ।
उनके केबिन में इस वक्त अंधेरा था और सिर्फ कम्प्यूटर स्क्रीन की रौशनी ही चमक रही थी और साथ ही चमक रही थी एक जोड़ी और आँखें भी जो डॉक्टर गोयंका के रिवाल्विंग चेयर के ठीक पीछे दीवार से चिपकी हुई थीं ।

जब तीन बार लागातार वो वीडियो प्ले कर देख चुके तो फिर उन्होंने कम्प्यूटर ऑफ कर दिया और फिर सीपीयू से पेन ड्राइव निकाल कर अपने मेज की दराज मे रख दिया और फिर उस दराज को लॉक करने के बाद अपने केबिन से चुपचाप निकल पड़े ।

अपने केबिन से बाहर निकलने के बाद डॉक्टर गोयंका अपनी फिएट तक आए और फिर उसका ड्राइविंग डोर खोलते हुए उसमे सवार हो गए ,फिर गाड़ी को स्टार्ट कर के आगे बढ़ गए....उनकी गाड़ी सूनसान सड़क पर चली जा रही थी..लेकिन उन्हें ये पता न था कि उस विधवा की मांग सी सुनी सीधी सड़क पर करीब एक किलोमीटर दूर से ही एक और कार उनकी कार पर नज़र रखे हुई थी ।

शहर से करीब 20 किलोमीटर दूर जा कर एक खुले मैदान में डॉक्टर गोयंका ने अपनी गाड़ी पार्क की और गाड़ी में ही चुपचाप बैठे रहे,शायद उन्हें किसी का इंतजार था...या किसी और को शायद डॉक्टर गोयंका का इंतजार था ?
कार में बैठे बैठे ही डॉक्टर ने 4 मिनट गुज़ार दिए..फिर उन्हें उसी बड़े मैदान के उत्तरी छोर से एक टॉर्च के जलने बुझने की रौशनी दिखाई देने लगी...तकरीबन हर 10 सेकंड में उस टॉर्च को जलाया बुझाया जा रहा था ।
प्रत्युत्तर में डॉक्टर गोयंका ने भी अपनी गाड़ी की हैडलाइट को उसी अंदाज में जलाने बुझाने लगे ।
धीरे धीरे चलते हुए एक रहस्यमय साए ने आखिरी बार यही कोई 20 फिट की दूरी से टोर्च को ऑन ऑफ किया...और फिर बेझिझक डॉक्टर गोयंका के करीब आ गया...और फिर दूसरी तरफ के दरवाजे को खोल कर डॉक्टर गोयंका की गाड़ी में सवार हो गया ।।
जैसे ही वो साया डॉक्टर गोयंका के कार पर सवार हुआ, डॉक्टर ने गाड़ी को फौरन स्टार्ट किया और फिर वापस शहर की ओर मोड़ दिया...और इसके साथ ही वो गाड़ी दोबारा डॉक्टर गोयंका के कार के पीछे लग गई ।

इस सारे दृश्य को दूसरी गाड़ी से डॉक्टर गोयंका का पीछा करने वाले शख्स ने न सिर्फ देखा बल्कि अपने उच्च स्तर के कीमती कैमरे में इन सारी गतिविधियों को कैद भी कर लिया।


★★★

नंदिता पसीने से पूरी तरह लथपथ हो चुकी थी और बेतहाशा भागी जा रही जा रही,बीच बीच मे वो पीछे मुड़ मुड़ कर अपने पीछे आ रहे उस साए को देख भी रही थी,और उसके दिल की धड़कनें शताब्दी को भी मात दे रही थी ।
और फिर दौड़ते दौड़ते नंदिता का पैर किसी पत्थर से टकरा गया और वो सड़क पर लहरा कर गिर पड़ी...अभी वो वापस उठ पाती की किसी के मजबूत हाथों ने उसके दोनों पांवो को पकड़ कर अपनी ओर खींच लिया।
और इसके साथ ही वो नंदिता पर झुकता चला गया...उसकी लाल आँखे मानों शोले बरसा रही थीं ।
नंदिता बार बार सिर्फ यही कह रही थी "छोड़ दो मुझे,भगवान के लिए छोड़ दो मुझे"। पर वो उस पर झुकता चला जा रहा था...और फिर अचानक ही नंदिता को अपने सीने पर रेंगते हुए हाथ महसूस हुए, और उसकी छटपटाहट और भी बढ़ती चली जा रही थी.. फिर एक ही झटके में नंदिता के बदन से उसका ब्लाउज नोच कर फेंक दिया गया और साथ ही....अपने आप को बचाने की आखिरी कोशिश करते हुए नंदिता ने अपनी लात को जोर से उस साए पर दे मारा,जिससे वो साया छिटक कर कुछ दूर जा गिरा,और इसी का फायदा उठा कर नंदिता दोबारा उठ खड़ी हुई भागने के लिए,लेकिन नंदिता के साड़ी का पल्लू अभी भी जमीन पर गिरा हुआ था,और वो पल्लू उस साए ने लपक कर अपने हाथों में ले लिया...नंदिता बुरी तरह आतंकित नज़रो से उस साए को देख रही थी...और उस साए की दो लाल आंखें लगातार नंदिता के सीने के उभारों को घूर रहे थे।
जब नंदिता को इसका इल्म हुआ तो नंदिता ने अपने दोनों हाथों को क्रॉस बना कर अपने सीने को ढंकने का प्रयास करने लगी...और उस साये ने बड़ी ही कुटिलता से मुस्कुराते हुए उसके पल्लू को ज़ोर से झटकते हुए उसके बदन से खींच लिया..और साथ ही लगभग चकराती हुई सी नंदिता दूर जा गिरी, अब उसके बदन पर सिर्फ एक लाल रंग का पेटिकोट ही बाकी बचा था, अब नंदिता अपने आप को पूरी तरह असहाय और लाचार समझते हुए और सब कुछ अपनी नियति मान कर अपनी किस्मत पर रोने लगी....वो हैवान धीरे धीरे उसकी तरफ बढ़ रहा था,और फिर उसने नंदिता के अधनंगे जिस्म को अपने कंधे में लाद कर पास ही सड़क के किनारे की झाड़ियों में ले गया और फिर नंदिता के उभारों से खेलने लगा... फिर उसके पेट और नाभियों को सहलाते हुए उसके पेटिकोट के नाड़े को एक झटके से खींच कर खोल दिया और फिर आहिस्ता आहिस्ता वो पेटिकोट भी उसकी टांगो से होता हुआ उसके जिस्म से जुदा हो गया...और इसी के साथ चमक उठीं वो दो सुर्ख आंखे...और फिर वो शैतानी फितरत वाला इंसान नंदिता के जिस्म पर छाता चला गया...नंदिता को ऐसा लगा कि उसके जिस्म पर कोई गर्म सलाखें पैवस्त कर दी गई हो, इसी के साथ गूंज उठी नंदिता की एक बहुत ही दर्द भरी चीख....और बुरी तरह हांफते हुए उठ बैठी नंदिता पूरा बदन पसीने से तरबतर था...वो अपने बेड पर बैठी बुरी तरह हांफते हुए अपनी सांसो को दुरुस्त करने में लगी हुई थी....वो सपना देख रही थी एक बेहद डरावना सपना !!
अपनी सांसो को सम्भालती हुई नंदिता अपने बेड से नीचे उतरी और फिर फ्रिज़ का डोर खोल कर पानी की बोतल निकाली और पीते हुए वापस अपने बिस्तर तक आई ,पानी पी चुकने के बाद उसने वो बोतल वहीं सिरहाने पर टेबल में रख दिया...खौफ के मारे वो बहुत आतंकित सी दिख रही थी,और आंखों से नींद तो मानो किसी परिंदे की तरह उड़ चुका था ।
नंदिता अब भी बुरी तरह हांफ रही थी...और कोशिश करने के बावजूद भी खुद को रोने से नही रोक पा रही थी ।

★★★
इंस्पेक्टर कुंदन सिंह इस वक्त साहिल के वार्ड में बैठे साहिल से लिसा मर्डर केस के विषय मे पूछताछ कर रहे थे ।

साहिल के शरीर के अधिकांश हिस्सों में पट्टी लगी हुई थी और पूरा सिर बैंडेज किया हुआ था...नाक में भी पट्टी लगी हुई थी।
बायीं टांग में भी प्लास्टर चढा हुआ था ।

" कल रात तुम कहाँ थे??" इंस्पेक्टर कुंदन ने बहुत ही कड़क आवाज़ में पूछा।
और साहिल,साहिल तो मानो सुना ही नही इंस्पेक्टर की बातों को। अंत मे इंसपेक्टर कुंदन ने लगभग डपटते हुए साहिल से कहा
"तुम्हे सुनाई नही देता"??

मैंने पूछा "कल रात तुम कहाँ थे??"

"इंस्पेक्टर साहब आप कल की बात रहे""??
"ये तो पिछले 3 रातों से हमारे नर्सिंग होम के इसी वार्ड में एडमिट है" इतना कहते हुए डॉक्टर मजूमदार मुस्कुराते हुए साहिल के वार्ड में दाखिल हुए।
और साहिल से मुखातिब होते हुए पूछे

"हलौ साहिल...हाउ आर यू यंग मैन ??"

फिर वे इंस्पेक्टर कुंदन की तरफ देखते हुए पूछे
"क्या बात है इंस्पेक्टर साहब"
"पर आप ये क्यूं पूछ रहे की सेठ हरबंस लाल के बेटे कल रात को कहां थे?"

इंस्पेक्टर कुंदन डॉक्टर की आंखों में झांकते हुए बोले "कल रात इसी जैसे एक अस्पताल में एक लड़की का खून हो गया है डॉक्टर"
"और हमें शक ही नही बल्कि पूरा यकीन है ,की ये नेक काम इन्होंने ही किया है"
डॉक्टर इंस्पेक्टर की बात से चौंका जरूर था,लेकिन फिर लगभग हंसते हुए बोला "इंस्पेक्टर साहब आप मज़ाक बहुत अच्छा कर लेते हैं"
"मगर साहिल का इलाज तो पिछले तीन दिनों से मैं खुद कर रहा हूँ"

"और आपको देख कर ऐसा लगता है कि साहिल अपने बेड से उठ कर किसी दूसरी जगह जा कर किसी का खून भी कर सकता है??""

इंस्पेक्टर कुंदन भी इसी बात को सोच तो रहे थे।
इंस्पेक्टर कुंदन जैसे पुलिसिए के आगे किसी भी मुजरिम या आम इंसान का झूठ बोल कर निकल जाना लगभग नामुमकिन काम था,इसीलिए साहिल से भी उसके सवालों का जवाब देना बहुत मुश्किल हो रहा था।

ख़ैर सवाल जवाब का सिलसिला काफ़ी देर तक चलता रहा आखिरकार बग़ैर कुछ हाथ लिये ही इंस्पेक्टर कुंदन सिंह जी को हॉस्पिटल से बाहर आ जाना पड़ा। पर साहिल की कुछ बेवकुफीयों ने इंस्पेक्टर कुंदन सिंह के शक को यकीन में जरूर बदल दिया था।

इधर ना जाने कौन कौन से खेल शुरू हो चुके थे। सब अपने आप को इस मकड़जाल से बचाने के लिए जी तोड़ कोशिश कर तो रहे थे पर उतना ही ज़्यादा वो इस खेल में फंसते जा रहे थे। और इस खेल का मुख्य किरदार अथार्त लिसा और एलिना का क़ातिल खुले आम चैन से जी रहा था और शायद अपने अगले शिकार की तलाश भी शुरू कर चुका था।

ना जाने कब पाशा पलटे और सारे रहस्यों का पर्दाफाश हो जाएं। इधर थोड़े से मानसिक आराम के लिए छुट्टी पर अपने घर गयी नंदिता ने जो इतना भयानक सपना देखा है, क्या ये सपना उसे आने वाले भयानक पलों के लिए आगाह करने को आया था...? कहानी जारी है....!!
क्रमशः