Dah-Shat - 17 in Hindi Thriller by Neelam Kulshreshtha books and stories PDF | दह--शत - 17

Featured Books
Categories
Share

दह--शत - 17

दह--शत

[ नीलम कुलश्रेष्ठ ]

एपीसोड ---17

अस्पताल के बरामदे में रूककर राजुल उत्तर देता है “थोड़ा बुख़ार है ।”

“तुम्हारे दादा जी कैसे हैं ?”

“उन्हें परसों ‘हार्ट अटैक’ हुआ है डैडी कल अजमेर चले गये हैं ।”

समिधा ये सुन तनाव में घिरने लगी । उसने पूछा, “राजुल ! तुम्हारी पढ़ाई कैसी चल रही है ? कितने बजे स्कूल जाते हो ?”

“बारह बजे स्कूल जाता हूँ ।”

“ओ.के.।”

समिधा अभय को खाना खिलाते समय साफ़ देख पा रही है वह अपने आप में नहीं हैं । खाना खाकर वे आराम करने बेडरूम में चले जाते हैं । उनका अजीब-सी उत्तेजना में अस्पताल में उसे छोड़कर जाना । कहीं कुछ गड़बड़ है । वे दोनों मोबाइल नहीं रखते हैं लेकिन कविता की अक्ल उसके मोबाइल पर फ़ोन करके ठीक करनी ही होगी । वह पास के चौराहे के एस.टी.डी. बूथ से फ़ोन करने निकल आई ।

“कविता ! अस्पताल में राजुल मिला था, उसके दादाजी को हार्ट अटैक हुआ है ।”

“हाँ, ये तो कल रात ही निकल गये थे ।”

“अब तुम घर से बाहर मत निकल जाना । तुम्हें ‘वॉर्न’ कर रही हूँ । यदि निकली तो लौटकर अपने घर के सामने तुम्हें एन.जी.ओ. के लोग मिलेंगे ।” उसका उत्तर सुने बिना उसने, फ़ोन काट दिया ।

वह दृढ़ है, उसका वहम नहीं है । भय आराम कर ऑफ़िस के लिए निकलते हैं । उसका दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगता है । वह बड़ी गहरी असुरक्षा महसूस कर रही है । वह हिम्मत करके फ़ोन के पास आई । सीधे- सीधे वह उससे कैसे कहे ? उसका गला चटकने लगता है, वह फ्रिज से बोतल निकालकर पानी पीती है फिर फ़ोन के पास आती है । फ़ोन करे या न करे, वह हाथ बढ़ाती है फिर रुक जाती है । बेडरूम में चक्कर लगाकर फिर हिम्मत इकट्ठी करती है ।

कविता की ‘हलो’ सुनकर पूछती है, “कहाँ से बोल रही हो ?”

“हॉस्पिटल से ।”

“मैंने मना किया था न कि घर से बाहर मत निकलना ।”

“इनके ‘कलीग’ की पत्नी का ऑपरेशन हुआ है उसे देखने आई थी ।”

“मैंने मना किया था फिर भी तुम घर से निकल गईं ।”

“क्या मतलब?”

“कविता तुम्हारे कारण मेरे घर में लड़ाइयाँ हो रही हैं ।”

“मैं समझी नहीं । आप क्या कह रही हैं ?”

“ज्यादा स्मार्ट मत बनो । तुम्हारी हरकतें मुझसे छिपी नहीं है । मैंने तुम्हें पहले भी इशारा दिया था । हमारे घर में हंगामा करवा रही हो ।”

“आपकी बातें मैं समझ नहीं पा रही । अभी आपके पास आ रही हूँ ।”

समिधा अपने द्वारा किये सीधे आक्रमण से स्वयं ही थर-थर काँप रही थी लेकिन उसने अब अपने को सम्भाल कर दृढ़ स्वर में कहा, “आ जाओ ।”

उसने थोड़ी देर दरवाज़ा खोला । कविता घबराई हुई दरवाज़े के बीच में खड़ी थी ।

“नमश्का ऽ ऽ ऽ र जी ! मैं तो आपकी बात सुनकर हैरान रह गई इसलिए ‘मिसअंडरस्टेंडिंग’ दूर करने चली आई ।”

“तुम्हें क्या लगता है मुझमें अक्ल नहीं है ?”

“मीटिंग में भी अनुभा जी ने नोट किया था आप मुझे ‘एवॉइड’ कर रही हैं । मैं तो कुछ समझ नहीं पा रही थी ।” सारी दुनिया का भोलापन अपने चेहरे पर बिछाकर उसने कहा, “आप प्लीज़ ! बताइए मुझसे क्या ग़लती हुई ?”

“पहले पानी पी लो ।”

कविता ने अपनी उखड़ी साँसों पर काबू पाने की कोशिश की, “आपकी बात सुनकर भागती चली आ रही हूँ.....पानी तो पिऊँगी ।”

पानी पीकर उसने जैसे ही गिलास मेज़ पर रखा समिधा शुरू हो गई, “तुम्हारी बिल्डिंग में कोई औरत है जिसने अभय को अपनी इशारेबाज़ी में बाँध लिया है । हर वर्ष ये छत पर बारिश में घूमते हैं । तुम्हारे परिवार के सिवाय सब पुराने परिवार हैं ।”

कविता ने उसकी आँखों में आँखें डालकर कहा, “हमें भी तो तीन वर्ष हो गये हैं तो क्या आपको सोनल पर शक है ?”

समिधा का मन हुआ एक झापड़ इस औरत के गाल पर लगा दे उसका ध्यान बँटाने के लिए नीच अपनी ही बेटी का नाम ले रही है, “तुम्हें अपनी बेटी का नाम लेते हुए शर्म नहीं आ रही ?”

“तो उस औरत का नाम बताइए । हाँ, एक आऊट हाउस वाली भी हमारी बिल्डिंग में नई आई है ।”

“तुम इतनी गिरी बात कैसे कर रही हो ?”

“आपको किस पर शक है?”

“कुछ न समझने का नाटक क्यों कर रही हो ?”

“इनके पिताजी बीमार हैं, हम लोग भी महीनों से हैरान है और आप भी क्या सोच रही हैं ?” उसने अदा से गर्दन मटकाई जिससे उसके बुंदे भी झटका खा गये, “मैंने चौथ का चाँद ग़लती से देख लिया था तभी मुझ पर झूठा इल्ज़ाम लग रहा है...हें.....हें....हें....।” उसने फूट-फूट कर रोना शुरू कर दिया, “उस दिन कहानी का बहाना बनाकर मुझ पर शक कर रही थीं ?”

“इतना क्यों बन रही हो ?”

“हें...हें..... आप जानती हैं मैं कितने व्रत रखती हूँ, पूजा करती हूँ......।”

“और नाटक भी करती हूँ.......ये भी कहो ।”

“एक बार और मैंने चतुर्थी का चाँद देखा था तब भी मेरे ऊपर झूठा इल्ज़ाम लगा था । सीता माता पर भी लोग इल्ज़ाम लगाने से नहीं चूके थे ।”

समिधा की हँसी निकल गई, “तो आप सीता माता हैं ?”

“हाँ, मेरे हाथ पर जलता अँगारा रख दीजिये ।”

“कविता ! ये नाटक बंद करो । मैं ऐसा नहीं कह रही अभय की ग़लती नहीं है लेकिन उस औरत की अधिक ग़लती है ।”

“आपको विश्वास है कि वह हमारी बिल्डिंग में है ?”

“घर में कुछ इधर-उधर हो रहा हो तो हाऊस वाइफ़ की नज़र से अधिक देर छिप नहीं पाता ।”

उसने गीली आँखों को रुमाल से पोंछा व उठ खड़ी हुई, “इनको आप आ दीजिये तब मैं अपने ‘हसबैंड’ के साथ भाई साहब से बात करने आऊँगी ।”

समिधा भी उठ गई, “ज़रूर आना । क्या डर पड़ा है ?”

अभय के शाम को घर आने पर जब उसने दरवाज़ा खोला तो उनकी आँखे अंगारे बरसा रहीं थीं, चेहरा छटपटाया हुआ था । होठों पर एक गुस्से भरी क्रूरता थी । अब शक की कोई गुंजाइश नहीं थी, समिधा भी आँखों से अंगारे बरसाती उन्हें एकटक घूरती रही । उनके पास बैठकर वह चाय पी नहीं रही थी, निगल रही थी ।

रात के आठ बजे रोली एयर बैग लेकर उछलती कूदती घर में घुसी । चाय का कप हाथ में लेकर पूछने लगी, “क्या अभी-अभी आप लोग लड़कर चुके हैं ?”

“नहीं तो ।”

“आप दोनों के चेहरे बहुत ‘टेन्स’ हैं । इतना ‘टैंस’ तो मैंने आप लोगों को कभी नहीं देखा ।”

“कुछ बात नहीं है । बस काम अधिक करने से थकान हो रही है ।”

रोली रसोई में भी आकर दो तीन बार पूछ गई, “मॉम ! आप मुझसे कुछ छिपा रही हैं, कहीं कुछ मामला बहुत गम्भीर है ।”

वह फीकी हँसी हँसकर रह गई, “बेकार क्यों शक कर रही है?”

“जब मैं आनन्द से लौट आऊँ तब बताइए ।”

ये लड़की माँ के दिल की पर्तों में छिपे सत्य को सूँघ लेती है जैसे वह अपनी बेटी के ।

दूसरे दिन शाम को वह फट पड़ी, “रोली हम दोनों के ख़राब मूड को देखकर बार-बार कारण जानना चाह रही थी ।”

“तो बता क्यों नहीं दिया कि तुम सठिया गई हो ।”

“तुम्हें ये कहते शर्म महसूस नहीं हो रही ? कल ऑफ़िस से जब आये थे तो अपना चेहरा देखते, गुस्से से फटा जा रहा था । दोपहर में मेरे पास आकर वह घड़ियाली आँसू बहाकर गई थी ।”

“तुम उसे फ़ोन पर धमकाओगी तो बिचारी रोयेगी नहीं ।”

“तुम्हें कैसे पता लगा मैं फ़ोन पर उसे धमकाती हूँ ? अभय तुम समझ क्यों नही पा रहे कि मुझे पता लगने पर भी वह रुक नहीं रह रही है वह बदमाश औरत है । उसके पति को घुमाने का समय नहीं रहता, वह तुमसे खेल रही है ।”

“मुझसे खेल रही है या हम लोग दो महिने से घूम कर ‘एन्जॉय’ कर रहे हैं । तुम्हें क्या परेशानी है ?” इसके बाद की भाषा सुनकर वह तिलमिला गई ।

“क्या ? अभय ! तुम कभी इतने बेशर्म नहीं थे । तुमने देखा है तुम्हारा चेहरा कैसा सांवला व बदमाश जैसा होता जा रहा है । न देखने में अच्छी, न पढ़-लिखी । एक चीप औरत का खिलौना बनते जा रहे हो ।”

“तुम क्या बक रही हो ? मैं किसी का खिलौना नहीं बन रहा । एक घरेलू औरत पर इल्ज़ाम लगा रही हो, भुगतोगी ।” कहते हुए वह कमीज़ पहनकर घर से बाहर चले गये ।

ये दरिन्दगी अभय में पहले तो कभी नहीं थी । समिधा को लगा तनाव से उसका दिमाग न फट जाये । दिमाग से तनाव उतरता उसके दाँये कान के नीचे आ गया । वहाँ झनझनाहट होने लगी । धीरे-धीरे से झनझनाहट फैलती हुई आधी गर्दन के नीचे तक आ गई । उसने गर्दन के हिस्से को मला ये झनझनाहट बंद नहीं हो रही थी ।

दूसरे दिन अभय शाम को चाय पीते ही कम्प्यूटर के सामने बैठ गये । समिधा ने चुपके से जाकर पर्दे के पीछे से देखा तो स्क्रीन पर नज़र पड़ते ही आवाक रह गई । विदेशी वस्त्रहीन शरीर बिखरे हुए थे । स्पीकर से गाने की आवाज़ आ रही थी, “चल मेरे साथ कोई रात गुज़ार ।”

अभय यंत्रचालित मानव से बने आँखें स्क्रीन पर गढ़ाये इस सब में फँसे हुए थे । समिधा की गर्दन में फिर तेजी से झनझनाहट होनी आरम्भ हो गई । वह क्या कहे अभय से ? वह स्वयं ही वहाँ से हट गई ।

आधे घंटे बाद वह दोबारा उस कमरे में गई । वे वैसे ही सुध बुध खोये बैठे थे, गाना दूसरा था, “साँवरिया, साँवरिया मैं तो हुई बावरिया ।”

कौन किसको नीच हरकतों से बावरा बनाने की कोशिश कर रहा है ? अभय कभी कभी कम्प्यूटर पर पोर्नोग्राफी देखते थे लेकिन ऐसे शाम को घर लौटते ही किसी वहशी की तरह नहीं । रात में छटपटाते व बार-बार करवट बदलते अभय को कौन गंदगी में घसीट, गंदी बातों में सराबोर कर पागल सा बनाये दे रहा है ? वह अभय को समझाना चाहती हैं, “अभय तुम किसी प्यार व दोस्ती की तरफ़ नहीं बढ़ रहे हो । किसी के प्यार के आकर्षण से चेहरे एक खिले सौन्दर्यबोध से जगमगा उठता है लेकिन तुम्हारी ये उत्तेजना, एक वहशीपन है जो तुममें जानबूझकर जगाई जा रही है ।”

ऐसे घिनौने पाठ हर दिन अभय को पढ़ाये जाते हैं, वे अपने आप में नहीं रहते । सिर्फ़ एक रास्ता हो सकता है, ‘मोबाइल’ का कान से उतर कर दिल दिमाग़

पर छाती घिनौनी बातें । उसे याद ता है कविता के पास नृत्य नाटिका का कैसेट है । वह उसे फ़ोन करती है, “कविता ! क्या हाल-चाल है ?”

कविता पुराने आत्मविश्वास से हँस दी, “मेरे तो ठीक हैं, अपनी कहिए ।”

“नृत्य नाटिका क़ैसेट तुम्हारे पास है, उसे भिजवा देना ।”

“हाँ, कहिए उस औरत का पता लगा?”

नीलम कुलश्रेष्ठ

ई –मेल---kneeli@rediffmail.com