Ram Rachi Rakha - 1 - 7 in Hindi Moral Stories by Pratap Narayan Singh books and stories PDF | राम रचि राखा - 1 - 7

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राम रचि राखा - 1 - 7

राम रचि राखा

अपराजिता

(7)

उस दिन मैं अनुराग का पोर्ट्रेट बना रही थी। तय हुआ था कि वह शनिवार और रविवार दो दिन तीन-तीन घंटे निकालेगा। उस दिन रविवार था। हमारा फ्लैट दो बेडरूम का था। एक कमरे में बेड था जिसमे मैं और पूर्वी सोते थे। दूसरे कमरे में मेरी पेंटिंग्स के सामान रखे थे। उसी में अनुराग का पोर्ट्रेट बना रही थी। वह एक कुर्सी पर बैठा था।

लगभग तीन बज रहा होगा। पूर्वी खाना खाकर बेडरूम में लेटी थी। तभी डोरबेल बजा। मैंने दरवाजा खोला तो सामने गौरव, ऋषभ, विनोद, और प्रीति खड़े थे।

"ओह्हो...आज तो पूरी फ़ौज एक साथ..." सभी अन्दर आ गये। मेरे हाथ में अभी भी ब्रश था।

"पेंटिंग कर रही थी?" गौरव ने पूछा।

"हाँ, किसी का पोर्ट्रेट बना रही हूँ।"

"अरे तुमने प्रोफेसनली पेंटिंग कब शुरू कर दी।।" ऋषभ ने मजाक किया।

'किसका पोर्ट्रेट बना रही हो...देखें तो।" प्रीति बोली। सारे के सारे पेंटिंग रूम में आ गये। अनुराग से सभी का परिचय कराया। फिर हमलोग वापस ड्राइंग रूम में आकर बैठ गये। पूर्वी भी आ गई थी।

"आज हम लोग तुम्हें पार्टी के लिये इनवाईट करने आए हैं।" गौरव ने कहा।

"किस ख़ुशी में पार्टी दे रहे हो ?" मैंने पूछा

"पार्टी मैं नहीं बल्कि अंकित दे रहा है।" गौरव ने कहा, "बल्कि यूँ कहो कि हम जबरदस्ती ले रहे हैं।"

"प्रमोशन हुए चार दिन हो गये और महाशय बात को दबाकर बैठे थे।" विनोद बोला, "वो तो आज अचानक सुमीत मिल गया तो पता चला।"

'दैट्स ग्रेट! काफी समय से वह इसका इंतजार कर रहा था। रुको मैं उसे बधाई दे दूँ।" मैंने अंकित को फ़ोन मिलाया।

एक-डेढ़ घंटे के बाद सारे वहाँ से चले गये। अनुराग को भी आने के लिये कह गये।

'अच्छी खासी मंडली बना रखी है।" उनके जाने के बाद अनुराग ने कहा।

"हाँ, ये है हमारी पूरी मंडली। सारे के सारे बहुत अच्छे हैं।" मैंने कहा, " अब आज तो पोर्ट्रेट पूरा हो नहीं पायेगा।"

"ठीक है। आज तुम पार्टी एन्जॉय करो...मैं चलता हूँ अब। तुम लोगों को तैयार भी होना पड़ेगा न।"

'क्यों...तुम नहीं आ रहे हो पार्टी में?"

"वाणी, मैं कैसे आ सकता हूँ। जो पार्टी दे रहा है उसे मैं ठीक से जानता भी नहीं और न ही उसने इनवाईट किया है।"

"अब इतने भी फ़ॉर्मल न बनो...अंकित से मिल तो चुके हो तुम एक बार और रही बात इनविटेशन की तो सारे ही तुम्हें इनवाईट कर गये हैं। यदि उतना काफी नहीं है तो मैं तुम्हें इनवाईट करती हूँ।" मैंने उनकी आँखों में शरारत से झाँकते हुए कहा।

"अच्छा ठीक है...अब मैं चलता हूँ।"

"सीधे वहीं अंकित के फ्लैट पर आ जाना।" मैंने उसे अंकित का पता दिया।

पार्टी पूरे जोरों पर थी। सारे के सारे नाच रहे थे। कुछ देर बाद मैंने अचानक प्लयेर बंद कर दिया।

"क्या हुआ ?" सबकी निगाहें मेरी तरफ उठ गयीं।

"अब आज का स्पेशल परफोर्मेंस" कहते हुए मैंने सालसा की म्यूजिक चला दी और अनुराग के पास आ गई। उनके साथ डांस करने लगी। हमारा डांस ख़त्म होते ही। गौरव मेरे पास आ गया और बोला, "एक बार मेरे साथ।" मैं उसके साथ डांस करने लगी। गौरव भी अच्छा नाचतता था।

अनुराग हाल के किनारे पर लगी कुर्सी पर बैठ गया। जब हमारा डांस ख़त्म हुआ तो ऋषभ ने फिर से फ़िल्म म्यूजिक चला दी और सारे डांस करने लगे। अनुराग कुर्सी पर ही बैठा रहा। मैंने अनुराग को उठाने के लिये उसका हाथ पकड़ कर खींचते हुए बोली -"आओ न, लेट्स डांस"

“नहीं मन कर रहा है। थक गया हूँ। " उसकी आवाज़ सर्द थी। चेहरे पर कुछ उद्विग्नता सी दिखी।

'क्या हुआ... तबियत तो ठीक है न ?" मैं उसके माथे पर हाथ रखती हुई बोली।

"हाँ ठीक है...बस कुछ मन अच्छा नहीं है ।" वह खड़ा हो गया, "मुझे जाना चाहिए अब..."

"यूँ अचानक...अभी तो खाना-पीना भी नहीं हुआ है...क्या बात है?"

"कहा न कोई बात नहीं है...बस मन ठीक नहीं है।" उनकी आवाज़ थोड़ी खीझी हुई लगी। बाकी लोग भी पास में आ गये।

उसने अंकित से हाथ मिलाते हुए कहा, "मैं निकल रहा हूँ। एक बार फिर से तुम्हें मुबारकबाद और पार्टी के लिए धन्यवाद।" फिर सबकी ओर हाथ हिलाते हुए बोला, “ओके गायज, बा‌य, एंज्वाय द पार्टी! “

"खाना तो खाकर जाते।' अंकित ने कहा।

"सॉरी यार…खाने का मन नहीं हो रहा है। तबियत ठीक नहीं लग रही है।" वह हाथ हिलाते हुए फ्लैट से बाहर निकल गया। उसके जाने के बाद खामोशी हो गई। मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या हो गया। सब लोग एक दूसरे की आँखों में यही तलाश रहे हे कि क्या हुआ?

"आई थिंक, यह मेरे कारण हुआ।" गौरव ने खामोशी को तोड़ते हुए कहा, "मुझे लगता है कि उन्हें वाणी के साथ मेरा डांस करना अच्छा नहीं लगा। दूसरा कोई और कारण तो समझ में नहीं आ रहा है।"

पार्टी लगभग रुक सी गई। मुझे बहुत बुरा लग रहा था।

दूसरे दिन ऑफिस में अनुराग का फोन आया। कल की घटना के कारण मन खिन्न था। जो कुछ भी वह कह ररा था, मैं सिर्फ हाँ या ना में जवाब दे रही थी।

"शाम को आ रहा हूँ।" कहकर उसने फ़ोन रख दिया।

शाम को हम कैंटीन में बैठे थे। कुछ देर दोनों खामोश रहे। मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या कहूँ।

"नाराज़ हो?" उसने पूछा। मैं चुप रही। "आई एम सॉरी। मुझे पार्टी छोड़कर उस तरह नहीं आना चाहिए था।" वह बोल रहा था और मैं शून्य में देख रही थी।

"तुम कितने पोसेसिव हो !" मैंने कहा।

"हाँ...मैं हूँ...। मैं ये भी जानता हूँ कि यह गलत है, मुझे नहीं होना चाहिए...।" फिर कुछ रुक कर बोला, "पता नहीं क्या हो गया था, तुम्हें गौरव के साथ डांस करते देखकर।"

"क्या चाहते हो कि मैं अपने सारे दोस्तों से सम्बन्ध तोड़ लूँ?"

"नहीं, ऐसा तो मैं बिल्कुल नहीं चाहता..."

"अनुराग! वे सारे मेरे दोस्त हैं, जो कई सालों से मेरे साथ हैं। मेरे हर सुख-दुःख में मेरा साथ दिया है उन्होंने । तुम ऐसे करोगे तो कैसे चलेगा...?"

अभी तक मेरा और अनुराग का सम्बन्ध बिल्कुल एकाकी रहा था। हमारे बीच किसी और की उपस्थिति नहीं होती थी। कल पहली बार अन्य लोगों की उपस्थिति में हम मिले थे। उसका पोसेसिव होना मुझे अच्छा नहीं लगा। ऊपर से पार्टी में इस ढंग से व्यवहार की अपेक्षा मैंने नहीं की थी। हालाँकि आज उसने अपने व्यवहार पर अफ़सोस प्रकट किया था। फिर बहुत देर तक मन अशांत रहा।

मैंने स्वयं को समझाया- शायद यह एक क्षणिक बात थी। अनुराग ने मुझे अब तक किसी के भी साथ इस तरह नहीं देखा था। एकदम से ही ऐसी स्थिति उनके सामने आ गई थी इस कारण ही वह एक तात्कालिक प्रतिक्रिया रही होगी।

क्रमश..