Best Friend - 2 in Hindi Short Stories by SURENDRA ARORA books and stories PDF | बेस्ट फ्रेंड - 2

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बेस्ट फ्रेंड - 2

बेस्ट फ्रेंड

सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा

(2)

9. सबक

" क्या कर रही हो माँ ?"

" कुछ नहीं."

" माँ कुछ नहीं का क्या मतलब लूँ ?"

" कुछ नहीं मतलब कुछ नहीं, क्या तुम देख नहीं रहीं."

" देख रही हूँ तभी तो मतलब पूछ रही हुँ, मानती हूँ कि पापा को गए अधिक दिन नहीं हुए है.उनके बिना आपके दिन खाली हो गए हैं और रातें वीरान, पापा की कमी दुनिया की कोई नेमत पूरी नहीं कर सकती पर.........! "

" पर क्या.....?"

" माँ नियति ने मुझसे मेरे पापा को छीन लिया और मुझे डर है कि तुम्हारी उदासी मुझसे मेरी मम्मी को छीन लेगी."

" बिटिया, मेरा यकीन करो मैं डिप्रेशन में नहीं हूँ. मैं बिलकुल ठीक हूँ."

" हर समय गुम- सुम बने रहने को ठीक रहना कहते हैं क्या, किसे धोखा दे रही हो माँ ? खुद को या हम सबको ? "

" क्या करूँ बेटा, तुम्हारे पापा से जुड़ी यादें दिल से उतरें, तभी तो कुछ और सोचूं ?"

" मम्मा, इसमें कोई शक नहीं कि पापा जैसा इस दुनिया में कोई नहीं था पर जाने वालों के साथ आज तक कोई नहीं गया और किसी के भी चले जाने से दुनिया का कोई भी काम रुकता नहीं है, मम्मा प्लीज इस दुःख से बाहर निकलिए, यह समय की मांग है. आप से अच्छा कौन जानता है कि पापा को घर में उदासी पसंद नहीं थी."

" बहुत दिन से राहुल भी नहीं आया, वो तो तुम्हारा फ़ास्ट फ्रेंड है लगता है दुःख के समय अपना साया भी साथ छोड़ जाता है."

" कैसी बातें कर रही हो मम्मा! यह ठीक है कि पापा हमारी दिनचर्या का आधार थे पर हर हाल में मजबूत बने रहना उनके जीवन का आदर्श था, किसी भी संकट के समय में, उन्हें मैंने कमजोर पड़ते नहीं देखा."

" राहुल ने कुछ कह दिया है क्या ? "

" राहुल कौन होता है कुछ कहने वाला, उसकी इतनी औकात नहीं है कि मुझे कुछ कह सके. आया था वो !आकर गुमसुम बैठ गया. मुझे अच्छा नहीं लगा. मैंने कहा कि हमें किसी की सहानुभूति नहीं चाहिए तो चुपचाप चला गया. मैं पापा का रास्ता नहीं छोडूंगी, पापा हर दुःख का सामना अकेले कर लेते थे." ?"

" बेटा ! ऐसा नहीं कहते, मुझे एक बार तुम्हारे पापा ने कहा था कि हमें ईश्वर से हमेशा डर कर रहना चाहिए और मैंने अपनी मैं, में उनकी बात यह कहकर काट दी थी कि वो ईश्वर ही क्या जो हमारे अंदर डर पैदा करे ? मेरी इस तीखी बात पर भी तुम्हारे पापा चुप लगा गए थे पर अब सोचतीहुँ कि मैं कितनी गलत थी, ईश्वर न सही हमें समय से हमेशा डर कर रहना चाहिए जो कभी भी बदल सकता है. ईश्वर स्वयं को समय के रूप में ही प्रकट करता है."

" आप ठीक कहती हैं मम्मा. पर राहुल न तो हमारा ईश्वर है और न ही समय का नुमाइंदा जो हम उसके आने का इन्तजार करते रहें. "

माँ को लगा उसकी बेटी अचानक बड़ी हो गयी है और बड़ी - बड़ी बातें भी करने लगी है, समय रहते इसे समय का ज्ञान करवाना होगा नहीं तो देर हो जायेगी, " बिटिया ! राहुल हमारे परिवार का ऐसा मित्र है जो तुम्हारे पापा की तरह केवल दूसरे के हितों की चिंता ही नहीं करता, उन्हें साधने की कोशिश भी करता है, ऐसे मित्र कभी भी खोने नहीं चाहिए. ऐसे ही लोग हमारे जीवन की पूंजी होते हैं, उन्हें अपने जीवन में संजोय रखने से जीवन समृद्ध बनता है.इसलिए तुम राहुल को फोन कर दो कि मैं उसे याद कर रही हुँ और वह आकर मिल जाए."

" ठीक है मम्मा. कर दूँगी फोन और उसे सॉरी भी बोल दूँग पर इस शर्त पर की तुम भी अपनी उदासी से बाहर निकलोगी."

" बिटिया, वह तो करना ही पड़ेगा, तुम्हारे पापा की इच्छा के लिए.

*******

10. साधना मैडम

स्कूल बहुत बड़ा था और उसका मालिक उससे भी बड़ा.स्कूल की सम्पत्ति करोड़ो की तो मालिक की सम्पत्ति अरबों की थी.

स्कूल में अध्यापक नियुक्त करने हों, बच्चों का प्रवेश हो या फिर शुल्क - संबंधी कोई भी व्यवस्था, हर मामले में मालिक का ही बोलबाला था. प्रधानाचार्या, जो अब अधेड़ हो चुकी थी ने अपनी जवानी से अब तक के दिन इसी विद्यालय की सेवा में ही बिताये थे, उसकी बात भी कभी - कभी मान ली जाती थी. अंदरूनी लोगों का कहना है कि विद्यालय में उसकी उपस्थिति को लेकर मालिक और मालकिन के बीच बहुत बार कहा - सुनी भी हुआ करती थी पर मालिक ने प्रधानाचार्या को विद्यालय से हटाने की सहमति कभी नहीं दी. प्रधानाचार्या की शैक्षिक - योग्यता भी हमेशा सवालों के घेरे में रही. परन्तु प्रधानाचार्या पर स्कूल - मालिक का वरद - हस्त हर विवाद को हमेशा दफन करता रहा. हर छोटी - बड़ी शिकायत शिक्षा क्षेत्र से जुड़े किसी भी अधिकारी के पास जाती तो मालिक की अरबों की सम्पत्ति में से निकली एक बून्द में ही अधिकारी की कुर्सी की कर्तव्य- परायणता पलक – झपकते ही गर्त में डूब जाती.

समय का पहिया सिर्फ घूमना जानता है अपनी ढलती उम्र और गिरते शारीरिक आकर्षण के कारण मालिक की पसंद बदलने लगी. विद्यालय में नई प्रधानाचार्या की नियुक्ति के विचार की भनक प्रधानाचार्या को लग गयी. इन समाचारों से प्रधानाचार्या के अंदर असुरक्षा का भाव घर कर गया. कुंठा उनके व्यवहार में दिखाई देने लगी.उनका व्यवहार अपने स्टाफ के प्रति भी अशोभनीय हो गया. उनके माथे पर क्रोध की लकीरों ने स्थाई जगह बना ली.

" साधना मैडम, लगता है तुम्हें अब अपना कमरा बदलना पड़ेगा. " एक दिन मालिक ने प्रधानाचार्या से कहा.

" क्यों, इस कमरे में क्या कमीं है ? इतने सालों से हमारे स्कूल का प्रिंसिपल - रूम यही है. "

" प्रिंसिपल - रूम तो यही रहेगा पर तुम्हारा कमरा यह नहीं होगा. "

" क्या मतलब ?"

" देखो, समय की सीरियसनेस को समझो, नया शिक्षा - अधिकारी बहुत सख्त है और बिकने वाला भी नहीं है. तुम्हारी डिग्रियों की जांच करवा दी तो स्कूल की मान्यता भी रद्द हो सकती है. इसलिए समय रहते नई और क़्वालीफायड प्रिसिपल रख ली है, उनके लिए ये कमरा खाली करना होगा." अरबों के मालिक ने चमकती हुई सफेद रंग की अपनी चप्पल उतारी और सामने पड़े सोफे पर पाँव पसार कर बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, “ कल से तुम्हारे बैठने की व्यवस्था स्कूल के बाबू -रूम में कर दी गयी है."

" चौधरी साहब ! इतने लम्बे अर्से तक की हर तरह के कमिटमेंट का यह परिंणाम है कि आप मुझे दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल फैंकें." साधना मैडम तड़प कर बोलीं.

" मैडम, तुम तो अकारण ही बात का बवंडर बना रही हो.तुम्हें निकाला थोड़े ही जा रहा है, तुम्हारी सिर्फ जगह बदली जा रही है. तुम्हें तो याद ही होगा कि तुम्हे भी यह कमरा इसी रास्ते से मिला था." चौधरी साहब ने बड़ी बेफिक्री से सोफे से अपने पाँव उतारे और नीचे रक्खी सफेद चप्पलों को फिर से पहन लिया.

साधना मैडम ने तय कर लिया कि अब उनकी प्रिसिपली के साथ - साथ नौकरी के दिन भी पूरे हो गए.

*********

11. किशोरी मंच

" मानसी चल जल्दी से खाना खा ले, मुझे ढेरों काम हैं."

" जल्दी न करो माँ ! पहले मुझे साबुन ला कर दो."

" साबुन के साथ रोटी खाएगी क्या ? "

" गुस्सा मत करो माँ, सुबह से घर से बाहर थी, हाथों ने न जाने कितनी चीजों को छुआ है, बहुत गंदे हो गए हैं. हो सकता है बहुत सी खतरनाक बीमारिओं के कीटाणु भी इनसे चिपक गए होंगें, अगर ऐसे ही खाना खा लिया तो वे सारे कीटाणु मेरे पेट में जाकर मुझे बीमार कर सकते हैं."

" बड़ी समझदार हो गयी है, जा मिटटी से हाथ धो ले, साबुन हो तो दूँ. इतनी महंगाई में बच्चों का पेट पालें या साबुन से उनके चेहरे चमकाएं."

" माँ घर में साबुन का होना उतना ही जरूरी है जितना कि रसोई में आटा. मिटटी से हाथ धोने का मतलब है कि बीमारियों के कीटाणुओं में और भी ज्यादा बढ़ोतरी और बिमारिओं को न्योता."

" तो बता क्या करूँ, घर में साबुन नहीं है."

" नहीं है तो मैं खुद जा कर ले आती हूँ."

" क्या सचमुच तू दूकान पर जा कर साबुन की टिकिया लाएगी ? आज तक तो बगल की दूकान से बिस्कुट ले कर आने में भी आनाकानी करती थी कि गली के लड़के, आती - जाती लड़कियों को तंग करते हैं.."

" हाँ माँ.पता भी है आज हमारे स्कूल में एक अनोखा कार्यक्रम रखा गया था जो अब से पहले कभी नहीं रखा गया. इस कार्यक्रम ने तो हम सब लड़किओं की सोच को ही बदल कर रख दिया है."

" बेटा ऐसा क्या था उस कार्यक्रम में जो उसके लिए तू इतना चहकरही है."

" माँ उस कार्यक्रम का नाम था किशोरी मंच.इसका आयोजन हमारे देश की केंद्रीय सरकार के अंतर्गत चलने वाले सर्व शिक्षा अभियान के अधिकारिओं ने करवाया था. इसमें हमारे स्कूल की बड़ी मैडम के साथ - साथ हमारी मैडम ने भी बड़ी अच्छी बातें बताईं. बातें ही नहीं बताईं, ऐसी ट्रेनिंग भी दी कि मन कर रहा था कि यह कार्यक्रम तो कभी खत्म ही न हो."

" स्कूल वालों ने ऐसा क्या सिखाया कि आज तू वो काम करने की बातें कर रही है जो तू पहले मेरे कहने पर भी नहीं करती थी."

" माँ ! पहली बात तो यह कि एक बहुत ही बुद्धिमान मैडम आयीं थी जिन्होंने बड़े अच्छे ढंग से यह बताया कि हम अपनी रोज मर्रा की जिंदगी में अगर सफाई से रहना सीख लें तो बहुत सी बिमारिओं से बच सकते हैं. इन छोटी - छोटी बिमारिओं के कारण जहाँ बीमार व्यक्ति के कार्य करने की ताकत में कमीं आती है वहीं घर और देश की कमाने की ताकत भी कम हो जाती है. हमारा फ़र्ज़ है की हम स्वयं को स्वस्थ रखें. हर व्यक्ति के स्वस्थ रहने से घर और देश दोनों अपने - अपने काम अपनी पूरी ताकत से करते हैं जिससे दोनों की माली हालत में सुधार होता है और खुशहाली आती है. इसलिए अब मैं अपनी और घर की साफ़ - सफाई का पूरा ध्यान रखूंगी."

" वाह ! मेरी बेटी तो एक ही दिन में इतनी बड़ी हो गयी. दूसरी बात क्या बताई किशोरी मंच में ?'

" हाँ ! एक और मैडम भी आई थी. उन्होंने हम लड़किओं को बताया कि हमें किसी भी हाल में खराब नियत वाले लड़कों से डरना नहीं है, अगर कोई खराब नियत से किसी लड़की के साथ बदसलूकी करे तो उसको सही सबक सिखाने में देर नहीं करनी है. इस काम के लिए उन्होंने वो तरीके भी बताये कि कैसे खुद की रक्षा करें और जरूरत पड़ने पर उन पर वार से पीछे भी न हटें. अब जब भी जरूरत होगी मैं अपनी सुरक्षा बिना किसी से डरकर खुद ही करूंगी."

" चलो मेरी सिरदर्दी खत्म हुई. अब तू खुद ही अपनी हर तरह की सफाई का भी ध्यान तो रखेगी ही साथ ही मजबूत भी बनेगी."

"हाँ माँ अब हम लड़कियों को दिल्ली की निर्भया की तरह बदमाशों से लड़ते हुए असमय काल का ग्रास नहीं बनना है बल्कि रोहतक की आरती और पूजा की तरह बदमाशों की पिटाई करके उन्हें जेल के सीखचों के पीछे भेजना है."

" वाह ! आज तो मेरी बेटी का रूप ही बदला हुआ है."

“ ठीक है मेरी शेर बच्ची अब साबुन की टिकिया तो ले आ. “

“ अभी लाइ माँ.”

**********

12. रावण लीला

" कुछ भी हो, राम जी ने सीता माता का त्याग किया, ये गलत किया." अन्नू ने टी. वी. पर राम - लीला देखते हुए कहा.

" राम जी मर्यादा पुरषोत्तम थे. उनके लिए राजधर्म सब कुछ था. इसीलिए उन्होंने सीताजी का त्याग किया." आलोक बोला.

"सीता जी उस समय गर्भवती थीं?वो कुछ नहीं !"अन्नू ने प्रतिवाद किया.

" देश के राजा के लिए लोकवाणी का बड़ा महत्व होता है." आलोक देश भक्ति के मूड में आ गया.

" पर सीता माता की पवित्रता की परीक्षा तो रामजी ले ही चुके थे.उनकी पवित्रता का सच जान लेने के बाद भी उन्होंने एक आम - आदमी के बड़बोलेपन को अपनी मर्यादा का आधार बनाया.यह कैसा न्याय है. " अन्नू ने फिर प्रतिवाद किया.

" जनता अपने राजा को शक की निगाह से देखे, यह उनके राजधर्म की मर्यादा नहीं थी. अरे मूरख इतनी सी बात तेरे दिमाग में नहीं बैठ रही. राजा, राजा ही नहीं, अपनी प्रजा का आदर्श भी होता है, पत्नी का तो वह सिर्फ पति होता है. चल छोड़ मुझे पता है कि तू इस पते की बात को कभी नहीं समझेगी. " आलोक ने पटाछेप करने की कोशिश की.

" मतलब पति, अपनी पत्नी को जब चाहे, जैसे भी चाहे अपनी इच्छा और समाज में अपनी पोज़िशन के हिसाब से तोड़ता - मरोड़ता रहे, यही उसका धर्म है." अन्नू, आज कुछ अलग ही मूड में थी.

" ये क्या लफड़ा ले बैठी. रामजी ने सीता को त्यागने के बाद खुद भी तो कष्ट में ही रहे, सीताजी की जगह, कोई दूसरी पत्नी थोड़े ही ले आये थे ! क्या यह उनकी मर्यादा का प्रमाण नहीं है ?"आलोक ने फिर से अपना बचाव किया.

" चलो मान ली तुम्हारी बात ! राम जी ने राजधर्म की खातिर अपनी गर्भवती पत्नी तक का त्याग कर दिया और फिर विवाह भी नहीं किया पर इससे यह कैसे सिद्ध हो गया कि जब सीताजी की अनुपस्थिति में अपने राज्य में जब राम जी अकेले थे, तब किसी रूपवती के रूप -माधुर्य से स्वयम को मुक्त कर पॉए होंगें ?जिस तरह उन्होंने अपने राजधर्म की मर्यादा का प्रमाण, सीता को त्याग कर दिया वैसे ही उन्हें अपनी पवित्रता का प्रमाण भी तो अपनी जनता को देना चाहिए था जिससे जनता में विशवास बने कि उनका राजा चरित्रवान भी है." अन्नू आज पूरे मूड में थी और सवाल पे सवाल दागे जा रही थी.

" जाता हूँ अभी राम जी के गावँ और पूछता हूँ उनसे कि मेरी बीबी को आप पर शक है रामजी. उसे बताओ कि तुम चरित्रवान हो या नहीं हो ! अब तो चुप कर जा, मेरी माँ." आलोक खीझ कर बोला.

अन्नू ने सोचा, चुप करने में ही भलाई है, नहीं तो राम की जगह, रावण लीला अभी शुरू हो जाएगी.

*********

13. हैरत

रात गहरा गयी थी. पर नींद की गहराई ललुआ से कोसों दूर थी, वह करवटें ही बदल रहा था.

रात तो कल भी गहराई थी पर कल नींद को थकी हुई मांसपेशियों ने जकड़ लिया था.देहात से शहर में आया हुआ लालू, जो शहर में आने के बाद अब लाला के नाम से जाना जाता है, ने कल दिन भर काम करवाने के बाद कहा था कि मजदूरी के पैसे कल देगा.

कल की तरह आज फिर उसने मलबा साफ़ करवाया पर जब मजदूरी देने की बारी आयी तो फिर दगा दे गया. बोला, " बैंक से पैसे नहीं निकले."

ललुआ ने पूछा, " क्यों ? " तो बोला, " बैंक - बाबू का बच्चा, बाबू नहीं, हरामी का पिल्ला है. कहता है कि हमारे दस्तखत बराबर नहीं हैं."

ललुआ बोला, " दस्तखत बराबर नहीं हैं, क्या मतलब ? "

" मतलब तो उस हराम की जात को पता होंगे. कह रहा था दस्तखत मेल नहीं खाते. "

" लाला जी, अब हमारी मजदूरी का क्या होगा ? " उसने गुहार लगाई. " घबराओ मत, तुमने ईमानदारी से काम किया है, कोई हरामखोरी थोड़े ही की है जिस दिन दस्तखत मेल खा जायेंगे, उस दिन तुम्हारी मजदूरी खरी." लाला ने उसकी मेहनत को मंजूरी दी.

भूख कल भी थी पर एक आस थी कि कल भूख नहीं होगी, सो नींद आ गयी. भूख आज भी है, भूख कल नहीं होगी, इसका कोई ठिकाना नहीं है. इसलिए नींद आँखों से कोसों दूर है.अब हालत यह हो गयी कि वो रतजगे की हालत में है. सोच रहा है कि क्या करे ? या तो उसे मार डाले जिसने उसकी मेहनत को निगला है या फिर खुद भूखा मर जाये !

दरवाजे पर जोर की टक्कर के कारण वह उठ बैठा है. अँधेरे में लाला की कांपती आवाज ने उसे डरा दिया, " ओ ललुआ. ले पिछले दस दिन की अपनी पगार. अगले दस दिन की भी पेशगी ले, पगार बरोबर है, अच्छी तरह से गिन लें पर काम पे आना बंद मत करिओ. "

इससे पहले कि वह कुछ समझ पाता, लाला जा चुका है. बड़े नोटों का एक बण्डल उसकी गोद में टिम - टीमा रहा हैं.अब उस टिम - टिमटिमाहट के कारण उससे सोते नहीं बन रहा है तो वह बाहर निकल आया.

उसने पाया कि वहां उसकी बस्ती के लोग टी.वी के सामने झुण्ड बना कर हैरत से बैठे हैं.

**********

14. गलती की जगह

आज नगर निगम के स्कूल के एक कमरे में बैठा था. कमरे में थोड़ी देर पहले एक सरकारी कार्यक्रम आयोजित हो कर हटा था और अब कमरा खाली जैसा था परन्तु छोटे छोटे बच्चों ने आना शुरू कर दिया था. सात - आठ बच्चे आ भी चुके थे. कमरे में जगह - जगह डेस्कों के ऊपर - नीचे, चाय के खाली कप और खाए हुए सामान के कागज के दोने बिखरे पड़े थे जो, अच्छे नहीं लग रहे थे. मैंने एक बच्चे से कहा, " बेटा कमरे का कोई डस्ट -बिन हो तो उसे ढूंढ कर ले आओ और उसमें दो बच्चे मिलकर यह कप और दोने डाल दो. " कद में एक छोटा बच्चा जिसकी नाक थोड़ी बह रही थी और कपड़े बेतरतीब थे, बिना झिझके चेहरे पर मुस्कान के साथ बोला, " छर जी, क्या हम नोकल हैं ? " मुझे उसका प्रश्न अधूरा समझ में आया. " मैंने उसे बात को स्पष्ट करने के लिए कहा तो उसने दोहरा दिया की हम नौकल नहीं हैं. " मुझे उस बच्चे की बात की कड़वी सच्चाई समझ में आगयी.पर मैंने चेहरे पर हसीं की चादर डाल कर कहा, " नौकर नहीं, तू तो मेरा बेटा है इसलिए मैं तुझे डस्टबिन लाने के लिए कह रहा हूँ. " बच्चा, शायद मेरी बात समझ नहीं पाया या फिर उसने मेरी बात को अनदेखा करके अपने खेल में व्यस्त हो गया.स्कूल शुरू होने में अभी थोड़ी देर थी.

मैं भी अपने काम में मशगूल हो गया पर जल्द ही मेरे चौकने की बारी आ गयी. एक दूसरा बच्चा जिसकी स्कूल - ड्रेस तरतीब से थी, चेहरा तुलनात्मक रूप से साफ़ - सुथरा था, उसके चेहरे पर मासूमियत के साथ - साथ एक विद्यार्थी की गरिमा भी झलक रही थी, कमरे में बिखरे चाय - नाश्ते के कचरे का सारा सामान एक डस्ट - बिन में समेटकर, कमरे के एक कोने में रखने लगा. मैं उसके छोटे - छोटे हाथों और उसकी सादगी को मन में उठ रहे अनसुलझे सवालों के बीच न जाने क्या सोचने को मजबूर था.

तभी एक विचार आया और मैंने वहां उपस्थित सभी बच्चों को अपने पास बुला कर पूछा, " तुम किस क्लास में पढ़ते हो.उत्तर मिला, " तीसरी क्लास में. " मैंने कहा, " अपनी हिंदी की किताब लाओ. "पहला बच्चा किताब ले आया.नाक उसकी बह ही रही थी.मैंने कहा, "पहला पाठ पढ़ो.”उसने बिना समय गवाए कहा, "मुझे पढ़ना नहीं आता, मैं नहीं पढूंगा." अब बारी अन्य बच्चों की थी.सभी ने अपनी - अपनी सामर्थ्य के साथ पाठ को पढ़ा. कहने की आवश्यकता नहीं है की जिस बच्चे ने कक्षा की सफाई को बिना कहे ही अपना कर्तव्य समझा था, उसने पाठ को पूरी दक्षता के साथ पढ़ा. मैंने बच्चों का नाम पूछा तो बाद वाले बच्चे ने अपना नाम देवेन्द्र बताया और पहले वाले बच्चे ने अपना परिचय मोहम्मद सईद कहकर दिया.

अब मैं बच्चों से विदा लेना चाहता था तब सब बच्चों ने समवेत स्वर से कहा, " सर जी ! आप कल भी आना और हमसे ऐसी ही बातें करना.

मेरे जहन में बवंडर था कि गलती कहाँ हो रही है !

***********

15. काबलियत

" इन्तजार की घड़ियां लम्बी ही नहीं तल्ख भी होती हैं. ठीक उसी तरह जैसे कोई परीक्षार्थी कितना ही मेधावी हो फिर भी परीक्षा के परिणाम के लिए तो संशय में रहता है कि परिणाम न जाने कैसा होगा ! "

" और जब परिणाम घोषित हो जाता है तब ?"

" उसके बाद परिणाम को स्वीकार करना मजबूरी होती है."

" भले ही परिणाम अपेक्षा के अनूकूल न हो, तब भी ? "

" हाँ तब, भी ! "

" क्या उससे जिंदगी पर कोई फर्क नहीं पड़ता ? '

" ऐसा कैसे हो सकता है, बहुत बार तो लगता है कि रात को आसमान में तारे नहीं चमक रहे, उनकी जगह ढेर सारे सुराख हैं और उनमें से आग बरस रही है जो सब कुछ जला कर राख कर देगी."

" सचमुच सबकुछ राख हो जाता है क्या ? "

" कभी - कभी तो हो सकता होता हो पर हमेशा नहीं."

" कब ऐसा नहीं होता ? "

" शुरू में तो असफलता की परिणति अक्सर अवसाद में होती है परन्तु अगर सोच लिया जाय कि दिन ढलने का यह अर्थ यह नहीं होता कि दिन फिर निकलेगा ही नहीं. जैसे ही यह बात समझ में आ जाती है तब मन रिलेक्स हो जाता है. दिनचर्या फिर से दौड़ने लगती है. आसमान में सुराख दिखने बन्द हो जाते हैं. असफलता मंजिल नहीं, एक पड़ाव बन जाती है. जहां रूककर, ऊर्जा को फिर से समेटा जा सकता है. "

" लगता है अब हमें किसी पार्क में चलकर बैठना चाहिए."

" इस मौसम में पार्क में जाने का क्या तुक है ?"

" क्यों, आजकल वहां जाने की मनाही है क्या ? "

" अरे भाई पतझड़ का मौसम है. सब तरफ पत्ती झड़े ठूठ से खड़े पेड़ और बिना फूलों वाली वीरान क्यारियां. वहां आजकल कुछ नहीं है. बिन हरियाली और फूलों के पार्क में जाने का क्या मतलब ? "

" इन दिनों वहां जाने का अपना ही रोमांस है. सूखे और अकेले खड़े पेड़ों से जब बात होगी तब वे ज्यादा अच्छी तरह से बता पाएंगे कि वे कैसे हर साल अपनी पत्तियों को खो देने के बाद भी हवा को आक्सीजन देना बन्द नहीं कर देते. इन्तजार करते हैं, पत्तियों को फिर से लाते हैं और फिर अपनी भरपूर ऊर्जा देने की काबलियत को अर्जित कर लेते हैं. वे बताते हैं कि फूल फिर उन्हीं पर आयेंगें. "

" ऐसा है तो चलो, पार्क में चलकर उनसे रूबरू होते हैं. “

***********

16. पहेली

" वो कहता है वह मेरे होठो का स्पर्श करेगा."

" इसमें गलत क्या है, यह तो होना ही था."

" क्या मैं उनके प्रति अग्नि के सामने दिए गए वचनो को अपमानित कर दूँ, उनके विशवास को तोड़ दूँ. कोई और मेरे शरीर को छू ले तो उनके प्रति मेरा समर्पण - बोध कलंकित नहीं हो जाएगा ? "

" तुम्हारा ह्रदय, तुम्हारे शरीर से अलग है, है न."

" ह्रदय शरीर से अलग है ?यह तू क्या कह रही है. उसके अलग होते ही तो शरीर, शरीर थोड़े ही रहता है, जड़ - पदार्थ बन जाता है."

" तो बता उसने तेरे ह्रदय को छुआ है या नहीं ? "

" मैं नहीं जानती ! "

" जानती तो खूब है पर स्वीकारना नहीं चाहती. "

".........हाँ! छुआ है उसने मेरा ह्रदय और ऐसा छुआ है कि ह्रदय भले ही मेरा है पर कम्पन उसकी छुअन की चुभन से उतपन्न होते हैं."

" तो फिर स्वयं को संतुष्ट करने वाली दलीलों से बाज आ. जो होना था वह तो हो चुका."

" मतलब...? "

" अब किस बात का क्या मतलब है, इसका उत्तर या तो अपने अंदर ढूंढ़ या फिर समय पर छोड़ दे, वो अपने आप दे देगा."

**************