Beti - 1 in Hindi Moral Stories by Anil Sainger books and stories PDF | बेटी - भाग -१

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बेटी - भाग -१

मेरी शादी हुए पाँच साल हो गए हैं लेकिन मैं आजतक न तो अपने पति को और न ससुराल वालों को समझ पाई हूँ | सब कहते हैं कि दुनिया बदल रही है साथ ही हमारे देश की सोच भी बदल रही है | मगर मुझे पता नहीं क्यों लगता है कि कहीं कुछ नहीं बदल रहा है | शायद मुझे अपने ससुराल के हालात देख कर ऐसा लगता हो | लेकिन फिर सोचती हूँ कि ऑफिस की दूसरी औरतों के भी तो कमो-बेश यही हाल हैं | ऑफिस की सहेलियाँ चाहे कुछ भी बोलें, कितना भी मॉडर्न बने लेकिन जब घर से फ़ोन आता है तो एक मिन्ट की बातचीत में ही सब कुछ समझ आ जाता है |

माँ-बाप के घर पर जब तक बेटी रहती है उसे सब कुछ बदला-बदला सा लगता है | उसे लगता है कि भारत भी मॉडर्न हो रहा है | हमारे समाज की सोच बदल रही है | अब लड़कियों को बोझ नहीं समझा जाता है | औरतें अब एक जिस्म या खिलौना नहीं रह गई हैं | वह भी अपने लिए जो अच्छा है पहन-ओढ़ सकती हैं | अपनी तरक्की के लिए जो ठीक है वह फ़ैसला ले सकती हैं | लेकिन ससुराल आते ही सब कुछ बदल जाता है |

मुझे आज भी याद है जब मैंने बीटेक करने के लिए बैंगलोर जाने का फ़ैसला लिया तो माँ ने जरूर गुस्सा दिखाया था लेकिन पापा ने पहली बार में ही हाँ कर दी थी | उनका यही कहना था कि बेटा यदि तुम अकेले रह सकती हो तो मुझे कोई एतराज नहीं है | बस हॉस्टल में रह कर बहक मत जाना | छोटा भाई भी खुश था लेकिन मेरा बैंगलोर जाना माँ को बिलकुल भी अच्छा नहीं लग रहा था |

एक रात मैंने माँ को कहते सुना कि तुम सारा पैसा बेटी पर ही लगा दोगे तो हमारे बेटे का क्या होगा | यह सुन कर पिता जी बोले कि तुम किस जमाने की बातें कर रही हो | आजकल बेटा हो या बेटी दोनो एक समान हैं | सब अपनी किस्मत लेकर आते हैं | कल यदि बेटे को आगे पढ़ना होगा तो उसका भी कोई न कोई इन्तेजाम हो ही जाएगा | यही बेटी तुम्हारे बुढ़ापे का शायद सहारा बन जाए लेकिन बेटे से उम्मीद न रखो | बेटे ही माँ-बाप को वृधा आश्रम में छोड़ कर आते हैं बेटी नहीं | पिता जी की बात सुन कर मुझे उन पर गर्व जरूर हुआ लेकिन माँ की बात मैं बैंगलोर जा कर भी भूल न पाई | माँ की बात हर समय मेरे कानों में गूंजती रहती थी | कई रातें मैंने करवट बदलने में निकाल दीं | बार-बार मुझे यही विचार आता कि माँ एक औरत होकर बेटी का का साथ न देकर बेटे का साथ क्यों दे रही हैं | कल जब अपने इसी बेटे के लिए बहू ढूंढने निकलेंगी तो बहू अच्छी पढ़ी लिखी और कमाती हुई चाहिए होगी | लेकिन अपनी बेटी से.....|

यहाँ कॉलेज के मौहोल ने कभी यह एहसास नहीं होने दिया कि मैं लड़की हूँ | हम लोग जब भी कॉलेज से बाहर मौज-मस्ती के लिए गए तो भी कभी ऐसा एहसास नहीं हुआ | हाँ ! कई बार छोटे या पारदर्शी कपड़ों में अपने आपको असहज जरूर महसूस करती थी | राह चलते पुरुषों की निगाहें ऊपर से नीचे तक ऐसे दौड़ती थीं जैसे उनकी आँखों में कोई एक्सरे मशीन लगी हो | पुरुष तो पुरुष ही होते हैं चाहे वह राह चलता जवान हो या बुजुर्ग या फिर सड़क किनारे भीख माँगता भिखारी |

मैंने छोटे या पारदर्शी कपड़े कभी भी इस सोच से नहीं पहने कि मैं अपने शरीर की नुमायश लगाना चाहती हूँ | बल्कि इस सोच से पहने कि मेरी फिगर सेक्सी है तो ऐसे में जो अच्छा लगे वैसा ही पहनू | लेकिन जब ऐसी ताड़ती निगाहें देखती थी तो यह सोचने को मजबूर हो जाती कि आखिर मैंने ऐसी ड्रेस क्यों पहनी | कई बार यह सोच भी आती थी कि हमें ऐसी ड्रेस उनके बीच ही पहननी चाहिए जो इसके आदि हों | यह सोच मुझे आज भी ठीक लगती है | हम अपनी सोच तो बदल सकते हैं लोगों की नहीं | छोटे या पारदर्शी कपड़े पहन ऐसे लोगों के बीच से निकलना जिन्हें रोटी भी नसीब नहीं है या फिर जिन्होंने शरीर के वह अंग कभी देखे ही नहीं हैं तो उनका ताड़ना शायद जायज भी है | गुंडे-बदमाश या फिर पैसे या रसूक के लोगों को पुलिस या बदनामी या जेल का कैसा डर | वह बलत्कार जैसा जघन्य अपराध करने से क्यों चुकेंगे | जिसके पास रोटी के लाले होंगे उन्हें जेल में रोटी तो मिलेगी | जो बदमाश होगा उसे जेल जाने से क्या डर और जो पैसे या रसूक के लोग होंगे वह इस बल पर बच ही जाएंगे | डर पुलिस का हो या फिर कानून का, एक न एक दिन दिल से निकल ही जाता है | डर के सहारे आप कितने दिन रह सकते हैं | मैंने अखबारों और टीवी पर सुना है कि फलाने देश में ऐसा सख्त कानून है कि वहाँ के लोग ऐसा करने की सोच भी नहीं पाते हैं | मेरा उनसे यही कहने को दिल चाहता है कि उनकी जनसंख्या और अपने देश की जनसंख्या को देखें | कई सौ गुणा ज्यादा है और वहां के सख्त कानून और अपने देश के कानून को देखो फर्क अपने आप समझ आ जाएगा | मुझे तो ऐसा ही लगता है कि औरतों पर अत्याचार सिर्फ और सिर्फ बौधिक विकास और कम जनसंख्या ही खत्म कर सकता है | बौधिक विकास और कम जनसंख्या से रोजगार और निजी स्तर ऊँचा होगा तो ही देश का भी होगा | जब देश का होगा तो स्वयमेव ही ऐसे अपराध रुक जायेंगे | हाँ ! जनसंख्या कम तो नहीं की जा सकती है लेकिन तेजी से बढ़ती जनसंख्या पर लगाम तो लगाई ही जा सकती है |

कॉलेज के दिन हर एक को हमेशा याद रहते हैं | मुझे भी कॉलेज व हॉस्टल की वह मस्ती और शरारतें आज तक याद हैं | कोई सोच भी नहीं सकता कि आज गुमसुम रहने वाली यह औरत एक समय चंचल स्वाभाव की लड़की थी | एक बार ऑफिस की एक पार्टी में जब मैंने कॉलेज में की मस्ती के बारे में अपने सहेलियों को बताया तो किसी को भी यकीन ही नहीं हुआ कि मैं ऐसा भी कर सकती हूँ |

मुझे आज भी याद है कि हॉस्टल के कमरे में मेरे साथ दो और लडकियाँ भी रहती थीं | एक का नाम शुभांगी और दूसरी का नाम नेहा था क्योंकि वह दोनों नार्थ इंडिया से थीं शायद इसीलिए हमारी दोस्ती भी जल्द हो गई | शुभांगी और मुझे नए से नए कपड़े और फैशन का शौक था जबकि नेहा को एक ही तरह के कपड़े पहनने का | वह हमें कहती तो नहीं थी लेकिन चाह कर भी ऐसे कपड़े पहनती नहीं थी | हमारे काफ़ी कहने पर एक दिन उसने मेरी टाइट जींस बहुत मुश्किल से पहनी और हमारे साथ बाजार घूमने गई | हरेक की निगाहें अपनी ओर उठती हुई देख उसे ऐसा शौक लगा कि वह अब जींस और छोटे टॉप से कम कुछ पहनती ही न थी |

नेहा का ऐसा पागलपन देख एक दिन मुझे शरारत सूझी | उस दिन शुभांगी सुबह ही अपनी सहेली से मिलने चली गई थी | मैं और नेहा ही कमरे में थे | नेहा काफी देर से मुझे नहाने को बोल रही थी और मैं जानबूझ कर आनाकानी कर रही थी | आखिर तंग आ कर जब वह एक जींस और टॉप निकाल टॉयलेट में गई तो मैंने चुपके से उसकी जींस के पीछे से कुछ धागे ब्लेड से काट दिए | वह टॉयलेट से आने के बाद जल्द ही वह जींस और छोटा-सा टॉप लेकर नहाने चली गई | वह जींस पहनते हुए कटे हुए धागे न देख पाए मैं बार-बार गुस्लखाने का दरवाज़ा खड़काते हुए चिल्लाने लगी ‘जल्दी कर क्लास का टाइम हो रहा है’ | ‘बस आई, बस आई’ कहते हुए वह जल्द से जींस और टॉप पहन कर जैसे ही बाहर निकली तो मैं अपनी हँसी छुपाते हुए गुस्लखाने में घुस गई |

जब मैं नहा कर बाहर आई तो वह शीशे में देख अपने बालों में कंघी कर रही थी | मैंने ध्यान से जब उसकी जींस को देखा तो अपनी हँसी रोक नहीं पाई | उसकी जींस बस फटने को ही थी | मुझे हँसता देख वह गुस्से से बोली ‘हँस क्यों रही है’ | मैं अपनी हँसी रोकते हुए बोली ‘तुम कुछ ज्यादा ही टाइट जींस पहनने लगी हो | तुम्हारी फिगर के हिसाब से ये जींस चीख-चीख कर कह रही है मुझे उतार दो मुझे उतार दो | कहीं जींस की हिम्मत टूट गई और फट गई तो क्या करेगी’ | वह मुंह सिकोड़ते हुए बोली ‘मैं सब जानती हूँ तुम लोग मेरी फिगर देख कर जलते हो’ | मैं हँसते हुए बोली ‘हाँ आज तो तेरी फिगर देख कर सारा कॉलेज जलेगा’ | वह बल खाते हुए बोली ‘अच्छी बात है | इसमें गलत ही क्या है | जो है सो है | जलने वाले जलते रहें | अभी तो सालो तुम और जलते अगर इस कॉलेज में लड़के भी होते’ | मैं उसकी बात को अनसुना कर हँसते हुए अपना बिस्तर ठीक करने लगी |

वह हमारे साथ क्लास में गई और डेस्क पर बैठी तो उसे महसूस हुआ कि उसकी जींस पीछे थोड़ी सी फट गई है लेकिन फिर भी वह क्लास खत्म होने तक चुपचाप बैठी रही | क्योंकि उसने टॉप भी छोटा पहना हुआ था इसलिए उसे फटी जींस को छुपाने का कोई उपाय भी समझ में नहीं आ रहा था | क्लास खत्म होने पर जब मैंने उसे उठने को कहा तो वह शर्माते हुए बोली ‘यार तू सही कह रही थी कि मैं आजकल कुछ ज्यादा ही टाईट जींस पहनने लगी हूँ’| उसकी बात सुन मैं मुस्कुरा कर बोली ‘सो तो है | तूने तो हम सब को आजकल मात दे रखी है’ | यह सुन वह झिझकते हुए बोली ‘यार मेरी जींस पीछे से फट गई है | अब मैं उठूं कैसे’ | शुभांगी गुस्से से बोली ‘साली बहुत फैशन की पड़ी थी न अब दिखा अपनी सबको’ | मैं हँसते हुए बोली ‘उठ तो सही’ | हम दोनों के काफी कहने के बावजूद भी जब वह नहीं उठी तो मैंने अपना दुपट्टा उतार कर उसे देते हुए बोला ‘ले इसे बाँध ले’ | मैं जानभूझ कर उस दिन पंजाबी सूट पहन कर गई थी | वह बहुत शर्माते हुए मेरा दुपट्टा लपेट कर लगभग भागती हुई हॉस्टल में कपड़े बदलने चली गई | रास्ते में उसे जो मिलता वही पूछता ‘क्या हुआ, फट गई क्या’ ? पूरे कॉलेज में यह बात जंगल की आग की तरह फ़ैल गई | उस दिन के बाद से उसे जो मिलता वह मज़ाक में यही कहता ‘पीछे मुड़ना, देखे कहीं आज फिर से तो नहीं फटी है’ | इतने मज़ाक के बावजूद भी उसने जींस पहनना नहीं छोड़ा | हर बार वह यह कह कर मुस्कुरा देती कि मुझे जींस पहनने की आदत नहीं है यह सब इसीलिए हुआ है |

एक और किस्सा मुझे आज भी ऐसे याद है जैसे कल की ही बात हो | मैं और नेहा दोनों शुभांगी की एक आदत से बहुत परेशान थीं कि वह रात को घोड़े बेच कर सोती थी और उस पर बहुत ज़ोर-ज़ोर से खर्राटे मारती थी | हमने सारे उपाय कर लिए लेकिन उसकी इस आदत को सुधार नहीं पाए | रात को हम कभी उसके चेहरे पर तकिया रख देते तो कभी उसका चेहरा कपड़े से बाँध देते | गुस्से में एक रात नेहा ने उस पर पानी तक डाल दिया था लेकिन उसकी आदत नहीं सुधरी | परेशान हो एक रात हमने हॉस्टल की अपनी दूसरी सहेलियों के साथ मिल कर उसे उसके बिस्तर समेत दूर बने टॉयलेट में छोड़ दिया और दरवाजे पर एक सफेद कपड़ा टांग दिया | वह जब रात को उठी तो सामने लहराते हुए कपड़े को भूत समझ कर अधेरें में टॉयलेट में चीखती-चिल्लाती घूमती रही | हमारी इस हरकत के लिए मुझे और नेहा को प्रिंसिपल के सामने पेश भी होना पड़ा | लेकिन एक अच्छी बात हुई कि शुभांगी ने इस घटना के बाद अपना कमरा बदल लिया | अब हम आराम से सोते थे | हमारी इस हरकत के बाद से हम दोनों कॉलेज में पोपुलर हो गए थे | हॉस्टल में कभी भी किसी को कोई परेशानी होती तो हमारे पास आता | नेहा हरयाणवी अंदाज में नेता की तरह उसे उसका समाधान बताती | उसका बोलने का अंदाज आज भी मुझे याद है ‘के हुआ छोरी, चिंता मते न कर | हम हैं न कुछ न कुछ कर दवेंगे’ |

बाकी के बचे तीन साल मैंने और नेहा ने कॉलेज में दादागिरी करते हुए ही निकाले | आज कोई सोच भी नहीं सकता कि मैं किसी जमाने में ऐसी भी थी | जैसे मैं माँ की बातें कुछ समय बाद एक बुरा सपना समझ भूल गई थी वैसे ही वक्त ने मेरी दादागिरी भी निकाल दी |

कॉलेज से पढ़ कर जब मैं घर वापिस आई तो सब कहते थे कि मैं बिलकुल बदल गई हूँ | हर किसी को बेझिजक जवाब दे देती हूँ | हर काम स्वयम करने को आतुर रहती हूँ | माँ तो कहती थी कि मैंने तो लड़की पढ़ने भेजी थी और तुम तो लड़का बन कर वापिस आई हो | वह अब सबके सामने मेरी तारीफों के पुल बनाते न थकती थी | बार-बार कहा करती कि बेटा मुझे तुझ पर नाज है |