Chuninda laghukathaye - 4 in Hindi Short Stories by Lajpat Rai Garg books and stories PDF | चुनिंदा लघुकथाएँ - 4

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चुनिंदा लघुकथाएँ - 4

लाजपत राय गर्ग

की

चुनिंदा लघुकथाएँ

(4)

सोचा, थोड़ा पुण्य कमा लें...

पुनीत सुबह सैर को जा रहा था। मेन रोड पर चार-पाँच युवक आने-जाने वालों को चाय और बिस्कुट लेने के लिये आग्रह कर रहे थे। उन्होंने सड़क के किनारे एक मेज़ पर चाय की बड़ी टंकी, डिस्पोजेबल गिलास और पार्ले बिस्कुट के छोटे पैकेट रखे हुए थे। पुनीत ने उनसे पूछा - ‘किस खुशी में चाय पिलाई जा रही है?’

‘अंकल, आज मौनी अमावस्या है। सोचा, थोड़ा पुण्य कमा लें।’

‘शाबाश, बहुत बढ़िया। लगे रहो।’

और पुनीत आगे बढ़ गया। लगभग एक घंटे की सैर के बाद लौटते हुए उसने देखा कि लड़के जा चुके थे। लेकिन, सौ-डेढ़ सौ मीटर के दायरे में डिस्पोजेबल गिलास जगह-जगह बिखरे पड़े थे।

पुनीत सोचने लगा, लड़कों ने पुण्य कमाया है या वे पाप के भागीदार बने हैं?

*****

चूड़ियाँ

रात का तीसरा पहर आरम्भ हो चुका था। सुरतिया की आँखों से नींद नदारद थी। दस बजे तक जब मंगल घर नहीं लौटा तो उसने अपने पड़ोसी सत्तू का दरवाज़ा खटखटाया और उससे अपनी चिंता ज़ाहिर की। सत्तू ने पूछा - ‘भाबी, लच्छो सो गई के?’

‘हाँ, वो तो बापू-बापू करती इब्बे सोई सै।’

‘भाबी, तू लच्छो के पास जा, मैं भाई ने देखके लाऊँ सूँ।’

आधेक घंटे बाद उसने आकर बताया था कि मंगल ने अपनी ड्यूटी करने के बाद शराब बहुत ज्यादा पी ली थी और स्टेशन पर हुड़दंग मचाने लगा तो रेलवे पुलिस ने उसे पुलिस लॉकअप में डाल दिया। अब तो सुबह ही कुछ हो पायेगा। तब से सुरतिया बेचैन थी, इसीलिये नींद उससे कोसों दूर थी। वह सोच रही थी कि मंगल शराब तो कभी-कभार पी लेता था, किन्तु ऐसा तो उसने पहले कभी नहीं किया। जिस दिन शराब पीता था, उस दिन भी आठ बजे तक तो घर लौट आता था। इन्हीं दुश्चिंताओं से घिरी वह खाट पर पड़ी करवटें बदल रही थी कि लच्छो नींद में बुड़बुड़ाई - ‘अम्मा, बापू आ गया, मेरी चूड़ियाँ ले आया?’

सुबह जब मंगल ड्यूटी पर जाने लगा तो लच्छो ने उससे कहा था - ‘बापू, शाम ने आते हुए मेरे लिये चूड़ियाँ ज़रूर ले के आइओ’ और मंगल ने खुशी-खुशी ‘हाँ’ कर दी थी, क्योंकि आज उसे पगार मिलनी थी।

सुरतिया सोच में पड़ गई, पता नहीं, मंगल ने लच्छो के लिये चूड़ियाँ ली होंगी या नहीं, लेकिन खुद के लिये ज़रूर ‘चूड़ियों’ का बन्दोवस्त कर लिया।

*****

विदेश से आई टाई

शाम को रोहन जब घर आया तो उसकी पत्नी ने उसे एक पार्सल दिया। पार्सल अमेरिका से उसके दोस्त सतिन्दर सिंह ने भेजा था। वह और सतिन्दर दोनों एम.ए. में यूनिवर्सिटी में अंग्रेज़ी विभाग में इकट्ठे थे। एम.ए. करने के बाद रोहन तो प्रतियोगी परीक्षाओं में दो वर्ष तक किस्मत आजमाता रहा और अन्ततः अपने पैतृक व्यवसाय में ही लग गया। लेकिन एम.ए. करने के तुरन्त बाद सतिन्दर अमेरिका रह रहे अपने रिश्तेदारों की मदद से वहाँ पहुँच गया और दो-एक साल इधर-उधर छोटी-मोटी नौकरियाँ करने के बाद न्यूयार्क में एक बैंक में अच्छी नौकरी पा गया। इस दौरान दोनों मित्रों ने निरन्तर पत्रों के माध्यम से एक-दूसरे से सम्पर्क बनाये रखा। जैसे ही सतिन्दर को बैंक-जॉब से पहली तनखाह मिली, उसने अपने मित्र के लिये एक बढ़िया-सी टाई खरीदी और रोहन को भेज दी।

यह पहला अवसर था रोहन के लिये कि विदेश से उसके लिये पार्सल आया था। उसने उत्सुकतावश शीघ्रता से पार्सल खोला। उसमें सतिन्दर के पत्र के साथ एक सुन्दर-सी टाई थी। उसकी खुशी इसलिये भी बढ़ गई कि यह टाई उसके पसंदीदा रंग के सूट के साथ मैच करती थी। उसने टाई उलट कर देखा। उसके पीछे स्टिकर पर लिखा था - डंकम तिवउ पउचवतजमक इतपब (आयातित वस्त्र से निर्मित)।

रोहन सोचने लगा, हो न हो, यह टाई भारत से निर्यात वस्त्र से ही निर्मित हो!

*****

बाइक

बलवान ने घर में घुसते ही पुकारा - ‘बापू, बापू कहाँ हो?’

अन्दर के कोठे से बाहर आते हुए प्रभजोत ने कहा - ‘क्या बात है, मैं तो यहीं हूँ।’

‘बापू, मुझे बैंक का बाबू मिला था। उसने बताया कि अपना दो लाख का लोन मंजूर हो गया है। किसी वक्त भी बैंक में आकर कागज पूरे कर दो और दो लाख की रकम तुम्हारी।.....बापू.....’

‘चलो, यह तो अच्छा हुआ। बिजाई से पहले लोन मंजूर हो गया। लेकिन, तू कुछ कहता-कहता रुक गया था। क्या कहना चाहता था तू?’

बलवान ने सकुचाते हुए कहा - ‘बापू, मेरे सारे दोस्तों के पास बाइक हैं। मैं ही अकेला हूँ, जो अभी भी साइकिल घसीटता हूँ। लोन की रकम में से मेरे लिये एक बाइक खरीद दो ना!’

प्रभजोत ने सहज भाव से कहा - ‘पुत्तर इस समय नहीं और लोन की रकम में से तो बिल्कुल नहीं। मैंने नई तकनीक से खेतीबाड़ी को आगे बढ़ाने के लिये लोन लिया है। इसमें से एक पैसा भी मैं फिजूलखर्ची में खर्च करना नहीं चाहता।.....हाँ, अपनी गुड्डो की कॉलेज की पढ़ाई के लिये जो खर्च करना पड़ेगा, वह जरूर इस रकम में से करूँगा। तू तो दसवीं के बाद हाथ खड़े कर गया, किन्तु गुड्डो ही अब मेरा सपना पूरा करेगी।’

बलवान ने एक और कोशिश करते हुए कहा - ‘बापू, चलो मैं सैकिंड हैंड बाइक ही ले लेता हूँ। उसमें तो कोई बहुत बड़ी रकम नहीं लगनी; पन्द्रह-बीस हज़ार में ही आ जायेगी। इतने से तो कोई खास फर्क नहीं पड़ना।’

‘पुत्तर, तू फिर नासमझी कर रहा है। पन्द्रह-बीस हज़ार से बहुत फर्क पड़ता है।’

थोड़ा रुककर प्रभजोत ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा - ‘पढ़ाई में तू आगे नहीं जा पाया, कोई बात नहीं। अब भी मेरा सपना पूरा करने में तू मददगार बन सकता है।’

‘वो कैसे बापू?’

‘फिलहाल ऐसा कर, नई तकनीक से फसल बढ़ाने में तू दिल लगाकर मेरा साथ दे। देखते-ही-देखते फसल से आमदनी कई गुणा बढ़ जायेगी। इस तरह न केवल हम कर्ज़ा लौटाने की पोजीशन में आ जायेंगे, बल्कि कुछ बचत भी कर लेंगे। फिर तुझे सैकिंड हैंड नहीं, नई बाइक लेकर दूँगा ताकि दोस्तों के बीच तू भी सिर उठाकर चल सके।’

*****