main samay hun - 5 in Hindi Short Stories by Keval books and stories PDF | में समय हूँ ! - 5

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में समय हूँ ! - 5

(अबतक : अक्षरवंशिका के राजा अभयराज के गुप्तचर बंदी बना लिए गए है। गुप्त सूचनाए प्राप्त करनेके सारे स्रोत बंध हो गए है। अपरिचित महाराज को समजाता है कि उसके गुप्तचर सहीसलामत है। मध्यरात्रि को होने वाले युद्ध की रणनीति बना ली जाती है और वैसा ही हो रहा है जैसी युद्धनीति बनाई गई थी।

दुश्मन सेना के घोड्सवर के घोड़े गीली मिट्टी में फिसल रहे है। ऊपर से राजन की सेना तीर से पीछे आ रहे बाणवीर को विन्ध रहे है जबकि उसे आगे चल रहे घोड्सवार को चाहिए था। सामने से अति प्रकाशित रोशनी धनुष की सेना की आंखों में चुभ रही है।उसे देखनेमें हो रही मुश्किलो का फायदा अभयराज की सेना उठा रही है।

यह देखकर महाराज प्रसन्न हुए और अपरिचित की ओर देखकर थोड़ा मुस्कुराये ।

एमजीआर कोई खुश नही था तो वह थी धनुष की सेना और उसका सेनापति। वह सब देखकर आश्चर्य में तो है पर बहुत क्रोधित भी है )

अब आगे :

घोड्सवार सैनिको को लगा यह उचित समय है किल्ले में प्रवेश करने का वह जल्दी से जाकर मुख्य द्वार तोड़ देंगे।

जवाबी कार्यवाही में राजन के भी कई सिपाही बाण की चिता पे सो गए पर अभयराज की सेना के मुकाबले राजा धनुष की बड़ी सेना मारी गई थी। यह सब देखकर राजा का कुछ बोझ हल्का हुआ वही दूसरी तरफ दुश्मन सेनापति बलसेन का क्रोध और बढ़ता जा रहा था।

मुख्य द्वार पर कहि सैनिक इकठ्ठे हो कर दरवाजा तोड़ने की कोशिश में लगे हुए थे। कुछ क्षणों के लिए जवाबी कार्यवाही रोक दी गयी। दुश्मन सेनापति बलसेन को लगा राजा की तैयारी की कसर का फायदा उठाया जाए ओर पीछे खड़े बाणवीरो ओर बाकी बचे तलवार धारियों को आगे जाकर आती तीव्र हमला करने का आदेश दिया।

उधर बारूद भरी मटकिया तैयार थी ।

जला जला कर किल्ले की दीवार से मटकिया फेंकी जा रही है। मटकी टकराकर फूटते ही बहुत बड़ी ज्वाला का रूप ले रही थी। काफी भयानक द्रश्य है यह । सैनिक आग की लपटों में जल रहे है। एक साथ कई सैनिक घायल हो रहे है । मटकियों की बौछार अभी भी शुरू है चारो तरफ आग ही आग है। महल के चारो तरफ मानो एक क्षेत्र बन गया है ज्वाला की लपटों का । एक छोटे से बारूद भरी मटकिओ ने राजा धनुष की सेना का बड़ा हिस्सा नाकाम कर दिया।

बलसेन तो मानो आग में जल रहा है उसके गुस्से का कोई ठिकाना नही है वह आग बबूला बन रहा है। "आखिर कैसे कोई बिना जानकारी के अनिश्चित आक्रमण की इतनी पूर्वतैयारी कर सकता है। वह जैसे तैसे करके अपने आप को संभालता है। उसे अब भी विश्वास था कि वह जीत जाएगा ओर राजा अभयराज के छोटे से राज्य पर कब्ज़ा कर लेगा।

अभी भी सेना का बड़ा हिस्सा निपटाना बाकी है। महाराज व्याकुल है युद्ध के अंत के लिए । उधर सुरंगों में दूसरा युद्ध शुरू हो चुका था । इधर हाथीओ के जुंड ने महल का दरवाजा तोड़ दिया । सेना अधिक रोशनी से कम रोशनी में आते उसे कुछ दिखाई नही दे रहा था। जब तक वह रोशनी में अपने आप को संतुलित करते तब तक पता नही क्या हुआ सैनिको की चीखने ओर गिरने की आवाज़ें आने लगी। घोड़ो की हिनहिनाने की आवाज़ शुरू हो गई। आवाज़ से पता चला तीर की बौछार हुई है। कम रोशनी नीचे खड़े सैनिको को किल्ले के ऊपर खड़े सैनिको को पहले मार गिराने का आदेश मिला क्योकि वह सबसे बड़ा खतरा बना हुआ था ।

इधर सुरंग में खून बहने लगा था । कई सिपाही मारे जाने लगे और कहि घायल पड़े है । सुरंग में चीखने चिल्लाने की आवाजो का गुंजन हो रहा था। युक्ति से सुरंग में अभयराज की सेना के थोड़े सिपाही धनुष की बड़ी सेना को मार गिरा रहे थे।

अब बलसेन के मन मे संदेह होने लगा था । "कोई तो है जो इस राजा को गुप्त जानकारी दे रहा है। या फिर कोई अंतर्यामी या फिर कोई शतरंज का माहिर खिलाड़ी जो हर चल के लिए तैयार रहकर सामने वाले को हराने में माहिर हो। मुजे बुद्धि से काम लेना होगा अब ताकत नही रही सेना में !"

" जाग जा बलसेन , कोई युक्ति लगा तेरी सेना हारने को आई है। हार गया तो राजा अभय मार देगा ,जीत कर नही गया तो महाराज धनुष मार देंगे। प्राण बचा ने के लिए तुजे हिम्मत दिखानी होगी। तुरंत निर्णय ले बलसेन …" बलसेन अपने आप से बोलकर रथ घुमाता है और महल से बाहर निकल कर पश्चिम से उतर की तरफ रास्ता मोड़ लेता है। ऐसे करके पूरे महल के चारो ओर चक्कर लगाकर देखता है कि महल के चारो कोनो में एक भी कोना कमजोर कड़ी नही है।

वह जानता है बहुत कम समय है उसके पास फिरभी वह हिमत नही हारता।

तभी खबर आती है कि सुरंग के अंदर से घुसने वाला दल कमजोर हो रहा है । वहा पर अंदाजे से कई गुना ज्यादा सैनिक मौजूद है। हथियार व यंत्रो की मदद से राजा धनुष के सिपाही ढेर होते जा रहे है।अब बलसेन का बल कमजोर होने लगा है। उसका दिमाग काम करना बंद कर देता है ।

उसको कोई रास्ता नही दिखता।

ओर फिर… वह अश्वरथ ले कर मैदान छोड़ कर भाग जाता है ।उसे शायद कर्म से ज्यादा जान प्यारी थी या फिर हो सकता है वह कोई और योजना की कड़ी हो।


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क्रमश :
(में समय हूँ ! - 5)