Aaghaat - 24 in Hindi Women Focused by Dr kavita Tyagi books and stories PDF | आघात - 24

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आघात - 24

आघात

डॉ. कविता त्यागी

24

मई का महीना था । मनाली के होटलों में गर्म प्रदेशों से जाने वाले पर्यटकों की भीड़ थी । उन्हीं में से एक होटल में एक युगल अपने जीवन की सभी चिन्ताओं, जिम्मेदारियों और मर्यादाओं से मुक्त होकर आनन्द भोग रहा था । पहाड़ी का ठंडा वातावरण और अपने-अपने परिवार से दूरी उस युगल के आनन्द को कई गुना बढ़ा रहे थे। वह युवक और उसकी साथी युवती, दोनों ही विवाहित थे और उस समय अपने-अपने जीवन-साथी से छिपकर उस ठंडे वातावरण का आनन्द ले रहे थे। यदि उन दोनों से उनके जीवन-साथी के विषय में बात की जाए, तो दोनों ही अपने-अपने जीवन-साथी से पूर्णतः सन्तुष्ट थे। उन्हें जो कुछ अपने जीवन-साथी से चाहिए था, मिला। युवती ने जिस पुरुष के साथ विवाह किया था, वह अकूत सम्पत्ति का स्वामी था। यद्यपि वह पहले से ही विवाहित था, किन्तु युवती को इससे कोई पफर्क नहीं पड़ता था। उसे केवल पुरुष की सम्पत्ति का मोह था, इसलिए युवती ने प्रेम-प्रपंच करके उस पुरुष का पहली पत्नी से विवाह-विच्छेद कराने का सपफल प्रयास किया। तत्पश्चात् उसके साथ कोर्ट में विवाह कर लिया। विवाह से पूर्व वह युवती एक कम्पनी में कार्यरत थी और प्रगतिशील विचारों को धारण करने वाली थी। विवाह के पश्चात् भी उसे मर्यादा के बन्धन स्वीकार्य नहीं थे । अपने विचारों और व्यक्तित्व के चलते युवती ने पति पर शासन करना और उसके धन का दुरुपयोग की सीमा तक उपभोग करना आरम्भ कर दिया था, जिसे पति ने परिस्थिति की विवशता के रूप में स्वीकार कर लिया था । पत्नी का कई-कई दिन-रात घर से बाहर रहना उसे रास नहीं आता था, इसलिए वह उस दिन का स्मरण करके पछताता रहता था, जब उसने अपनी पूर्व-पत्नी को तलाक देकर इस युवती के साथ विवाह-सम्बन्ध स्थापित करने की भूल की थी । अपनी इस भूल पर पश्चाताप् करते हुए वह अनेक बार अपनी पूर्व पत्नी तथा बेटी से मिलने के लिए जाता था, जो पति से विवाह-विच्छेद होने के बावजूद उसके वृद्ध माता-पिता के पास रहती थी । युवक वहाँ पर माता-पिता की तिरस्कारपूर्ण फटकार सुनकर वापिस लौट आता था और आकर शराब में डूबकर सुख ढूँढने का प्रयास करता था। उसके दिन-रात शराब में डूबे रहने से युवती चैन की साँस लेकर स्वच्छन्दतापूर्वक जीवन जीती थी ।

होटल में स्वच्छन्दतापूर्वक आनन्द का उपभोग करने वाली इस युवती का साथी युवक भी कुछ उसी प्रकार की परिस्थितियों से ग्रस्त है । इसने जिस लड़की से विवाह किया था, वह अत्यन्त शान्त, सुशील और पतिव्रता है । उसकी शालीनता से प्रभावित होकर ही युवक ने उसके साथ विवाह करने के लिए अनेक प्रकार के प्रयास किये थे, तब कहीं जाकर यह उससे विवाह करने में सफल हुआ था। उसे एक पतिव्रता, एकनिष्ठ प्रेम करने वाली तथा उसके वंश को आगे बढ़ाने वाली लड़की का पाणिग्रहण करके जितनी प्रसन्नता थी, उससे अधिक प्रसन्नता शायद इस बात की थी कि वह वर्षों तक घर से बाहर किसी परायी स्त्री के साथ रातें रंगीन करता रहा है, किन्तु भोली-भाली प्रेमनिष्ठ पत्नी ने कभी अपने पति-परमेश्वर पर सन्देह नहीं किया । वह उस पर विश्वास करती थी और अपना अन्ध-प्रेम उस पर लुटाती थी। यद्यपि उसने इस युवती के साथ अपने विवाह-पूर्व अवैध सम्बन्ध के विषय मेें अपनी पत्नी को विवाह की प्रथम रात्रि की प्रथम भेंट के समय ही बता दिया था, परन्तु, फिर भी उसकी पत्नी आज तक अपने पतिव्रत-धर्म पर अटल है। यही कारण है कि वह युवक अपनी पत्नी से सन्तुष्ट है । पत्नी के प्रति उपेक्षापूर्ण व्यवहार के साथ ही गैरजिम्मेदारी के कारण कई बार उसके गृहस्थ-जीवन में कड़वाहट आ चुकी है, लेकिन अतिरिक्त आनन्द-उपभोग करने के लिए वह विवाहेतर सम्बन्ध बनाने का आदी-सा हो गया है, इसीलिए दो-तीन दिन से इस युवती के साथ वह मनाली के इस होटल में ठहरा हुआ है। विवाहेतर सम्बन्धें के विषय में यही विशेषताएँ युवती की भी हैं । इन दोनों का अवैध-विवाहेतर सम्बन्ध तब से चला आ रहा है, जब उन्होेेंने किशोरावस्था में पदार्पण किया था । दोनों स्वच्छन्द स्वभाव के थे, इसलिए परस्पर विवाह नहीं कर सके, लेकिन यथासम्भव चोरी-छिपे अवसरानुरुप मिलते रहते हैं। उनके अनुसार चोरी से मिलने में और नियमों-मर्यादाओं को तोड़ने में जो आनन्द है, वह मर्यादा में बँधकर जीवन-साथी के साथ जीने में कहाँ ? वह जीवन तो शीघ्र ही एकरस होने के कारण व्यक्ति को ऊबा देता है। जीवन की इसी एकरसता और ऊब को दूर करने के लिए युवक और युवती दोनों ही नित्य प्रति नये-नये विवाहेतर सम्बन्ध बनाते रहते हैं और अपने-अपने स्वच्छन्द अनुभवों को परस्पर बाँटते हैं ।

होटल में पहुँचने के तीसरे दिन की शाम को, जो चाहे-अनचाहे उस युगल के लिए वहाँ पर अन्तिम शाम सिद्ध हुई, अपने कमरे से निकलते हुए युवती की मुलाकात एक अन्य युवती के साथ हो गयी। वह उसके बगल वाले कमरे में अपने पति के साथ ठहरी हुई थी । बातें करते-करते दोनों को जब कुछ अधिक समय हुआ, तो परस्पर परिचय के पश्चात् घनिष्ठता बढ़ने लगी । तभी अन्दर से युवक निकला। युवक को देखते ही बगल के कमरे वाली युवती चैंक पड़ी -

"आप यहाँ ?

उसके चौंकते ही युवक भयभीत-सा उल्टे पाँव कमरे में लौट गया। वह पुनः आश्चर्यपूर्ण मुद्रा में बोली -

‘‘वाणी जी ! ये आपके पति है ?’’

‘‘हाँ ! नेहा जी, इन्हें देखकर आप ऐसे असहज क्यों हो गयी ? क्या आप इन्हें पहचानती हैं ?

‘‘हाँ, मैं इन्हें अच्छी तरह पहचानती हूँ और ये भी मुझे पहचानते हैं ! शायद इसीलिए मुझे देखकर वापिस कमरे में चले गये हैं ! मुझे पूरा विश्वास है कि... !’’

‘‘कि ...?’’ वाणी ने प्रश्न पूछने के ढंग से स्पष्टीकरण की भूमिका आरम्भ की।

‘‘यही कि ये रणवीर हैं, मेरी सहेली के पति !’’

‘‘नेहा जी, ये बहुत संकोची स्वभाव के हैं और बहुत ही शर्मीले हैं, इसलिए आपको मेरे साथ खड़ा देखकर वापिस लौट गये हैं ! कभी-कभी लोगों की शक्ल-सूरत एक-दूसरे से मिलती-जुलती होती है न, तब ऐसा ही भ्रम हो जाता है कि यह हमारा परिचित है ! अन्यथा आपकी सहेली का पति आपकी सहेली के साथ ही तो होगा, वह मेरे साथ कैसे हो सकता है ?’’

वाणी का उत्तर सुनकर न तो नेहा को उस पर विश्वास ही हुआ और न ही सन्तुष्टि ! किन्तु, उसके पास विश्वास करने के अतिरिक्त कोई विकल्प नही था । कमरे में लौटकर नेहा ने अपनी शंका के विषय में अपने पति को बताया। नेहा के पति ने उसको परामर्श दिया कि वे मनाली में अपनी छुट्टियों का आनन्द लेने के लिए आये हैं, किसी की निजी जिंदगी में ताक-झाँक करने के लिए नहीं ! नेहा ने अपने पति से अनेक बार आग्रह किया कि वह एक बार उसके साथ वाणी के पति से मिलने का प्रयास करें ! नेहा के पति को अपनी पत्नी का यह आग्रह अभद्रतापूर्ण लगा, इसलिए उसको यह स्वीकार्य न था।

दूसरी ओर नेहा के साथ बातें बन्द करके जब वाणी कमरे के अन्दर गयी, उसने रणवीर को बताया कि नेहा ने उसको पहचान लिया है और अपनी वाक्पटुता से जैसे-तैसे करके वह नेहा को भ्रमित कर आयी है । वाणी की बातों से रणवीर कुछ आश्वस्त तो हुआ, किन्तु वह कोई खतरा नहीं उठाना चाहता था, इसलिए उसने तुरन्त मनाली छोड़ने का निश्चय किया।

रणवीर उसी रात मनाली से लौट आया, परन्तु पूजा के पास न आकर अपनी माँ के पास पहुँचा। वह जानता था कि नेहा अवश्य ही पूजा को उसके मनाली में रहने की सूचना देगी । प्रत्युत्पन्नमति होने के कारण उसने सर्वप्रथम स्वयं को निर्दोष सिद्ध करने के प्रमाणस्वरूप अपना मोबाईल माँ के पास छोड़ दिया, ताकि जब पूजा अथवा प्रियांश उससे सम्पर्क करें, तो फोन पर पहले उसकी माँ बोले । माँ द्वारा फोन रिसीव करने के पश्चात रणवीर को अपने पक्ष में सफाई देने की विशेष आवश्यकता नहीं रह गयी थी कि वह माँ के पास था। इसी के साथ रणवीर ने यह भी निश्चय किया कि पूजा यदि नेहा की बातों पर विश्वास करके उससे पूछताछ करेगी, तो वह पलटकर उस पर आरोप लगाऐगा कि वह उस पर बेबुनियाद शक करती है, जबकि पति-पत्नी का रिश्ता विश्वास और प्रेम पर टिका होता है ! यदि वह उसे प्रेम करती होती, तो पति-पत्नी के बीच में संदेह की दरार डालने वाली नेहा पर विश्वास नहीं करती, बल्कि अपने पति पर विश्वास करके नेहा को ऐसा कठोर उत्तर देती कि भविष्य में नेहा कभी इस विषय पर बात करने का साहस नहीं कर सके !

जैसा रणवीर ने सोचा था, वैसा ही हुआ। उसकी आशा और अनुमान के अनुरूप सुबह लगभग आठ बजे पूजा के पास नेहा का फोन आया। नेहा ने पूजा को पूर्वसंध्या की घटना का सारा वृत्तान्त कह सुनाया फिर एक स्त्री के स्वभावानुरूप जो कुछ सम्भावित था, वही हुआ। पूजा ने नेहा से सूचना मिलने के तुरन्त पश्चात् रणवीर से सम्पर्क किया। रणवीर की पूर्व नियोजित योजना के अनुसार फोन पर कुछ क्षण माँ ने बातें की, तत्पश्चात् रणवीर ने । जैसा कि रणवीर को पहले से ही विश्वास था, सास द्वारा फोन रिसीव करने पर पूजा को विश्वास हो गया था कि उस समय वह वाणी के साथ नहीं, अपनी माँ के साथ था । इस विश्वास के साथ भी पूजा के मन में रणवीर के प्रति सन्देह का बीज पड़ चुका था । उसको नेहा पर भी पूर्ण विश्वास था कि वह कभी निराधार मिथ्या सूचना नहीं दे सकती थी । नेहा की सूचना से तथा सास द्वारा फोन रिसीव करने से पूजा को विश्वास हो गया था कि भले ही रणवीर इस समय अपनी माँ के पास है, किन्तु पूर्वसंध्या वह वाणी के साथ ही था । इस विषय पर उसने फोन पर बात करना उचित नहीं समझा । कुछ औपचारिक सीमित बातें करके सम्पर्क काट दिया।

अगले दिन शाम के लगभग सात बजे रणवीर घर पर लौटा। कई दिन पश्चात् घर लौटने के कारण पूजा ने तथा उसके दोनों बेटों ने रणवीर के साथ ऐसा ही व्यवहार किया, जैसे प्रतीक्षारत व्यक्ति प्रेमपूर्ण मधुर व्यवहार करता है। रणवीर ने भी पत्नी और बच्चों के माधुर्य को स्वीकार करते हुए उनके प्रति स्नेहिल व्यवहार किया ; बातें की तथा सबके साथ बैठकर भोजन किया। प्रियांश और सुधंशु प्रसन्नचित्त होकर बातें कर रहे थे। कई दिन पश्चात् पिता को घर देखकर वे स्वयं तो प्रसन्न थे ही, साथ ही उन्हें इस बात की प्रसन्नता थी कि आज पिता के घर पर उपस्थित रहने के कारण उनकी माँ चिन्तामुक्त और प्रसन्नचित्त रहेगी ! परन्तु, उनका अनुमान बाल्योचित ही था, सही नहीं था । वे दोनों बच्चे अपनी बाल्यावस्था में सोचने-विचारने की सीमित शक्ति रखने के कारण तथा अपर्याप्त सूचनाओं के कारण माता-पिता के अन्तर्द्वन्द्व से अपरिचित थे । उस समय की वास्तविक परिस्थिति उनकी सोच से बहुत दूर थी । इसलिए माता-पिता के साथ कुछ देर तक बातें करके, भोजन करके तथा थोड़ी देर खेल-कूदकर वे दोनों सो गये।

रात का अंधकार बढ़ता जा रहा था । बच्चे स्वप्न की दुनिया में विचरण करने लगे थे, किन्तु रणवीर और पूजा की आँखों में नींद नहीं थी । देर-रात तक उनके कमरे की रोशनी मद्धिम नहीं हुई । पड़ोसियों का विचार था, सम्भवतः कई दिन तक परस्पर एक दूसरे से दूर रहने के कारण कोई प्रेमालाप चल रहा होगा ! या अपने गृहस्थ-जीवन को और अधिक सुखी बनाने के लिए पति-पत्नी दोनों मिलकर कोई योजना बना रहे हो सकते हैं ! या फिर अपने घर के दो दीपकों - प्रियांश और सुधांशु के भविष्य के विषय में कुछ सार्थक विचार-विमर्श कर रहे हो सकते हैं, ताकि बडे़ होकर दोनों बेटें उनका नाम उज्ज्वल करें ! मध्यम वर्ग के अधिकांश परिवारों में कोई भी दम्पत्ति जब देर रात तक जागता है, तो सम्भवतः उसके जागने के यही कारण होते हैं । किन्तु पूजा और रणवीर का दाम्पत्य-जीवन इतना सामान्य नहीं था । उनके कमरे में देर-रात प्रकाश होने का कारण भी कुछ असामान्य ही था । उस रात उनके कमरे का प्रकाश उनके दाम्पत्य-सम्बधों में अँधेरा बढ़ाने में अपना योगदान कर रहा था।

कुछ देर तक पूजा और रणवीर शांत-गम्भीर मुद्रा में मौन धरण किये बैठे रहे। दोनों के ही चित्त में एक अजीब-सा तूफान उठ रहा था । पूजा अपने मस्तिष्क में उठने वाली शंका - दो दिन पहले रणवीर कहाँ था ? का समाधन चाहती थी । वह इस विषय में विस्तार से जानना चाहती थी । साथ ही वह नेहा द्वारा बतायी गयी मनाली के होटल में घटित घटना पर रणवीर से स्पष्टीकरण चाहती थी, ताकि उसका चित्त शांत और शंका मुक्त हो सके ! किन्तु, इस शंका से मुक्ति इतनी आसान नहीं थी ! कहते हैं, शक की दवा तो वैद्य धनवन्तरि के पास भी नहीं थी । फिर भला इस युग में शंका का इलाज कैसे संभव हो सकता है ? वह भी तब, जब यह उक्ति चरितार्थ हो रही हो कि ‘धुआँ सदैव आग से ही उठता है।’ अर्थात पूजा की शंका निर्मूल नहीं थी । उसकी शंका को विश्वास में बदलने के लिए जिस प्रमाण की आवश्यकता थी, वह प्रमाण प्राप्त करना नितांत असंभव नहीं था, कठिन अवश्य था ।

पूजा में अपनी शंका को व्यक्त करने का साहस नहीं था, इसलिए वह शांत होकर अपनी मन को संयत करके उस विषय पर बातचीत करने की हिम्मत जुटा रही थी । वह अपने पति की प्रकृति से भली-भाँति परिचित थी, इसलिए उस समय उसके लिए अपना संदेह व्यक्त करना भी असंभव प्रतीत हो रहा था। साथ ही, वह संदेह व्यक्त करके परिवार के वातावरण को बोझिल नहीं बनाना चाहती थी, जोकि अपने बच्चों के हितार्थ उस समय उसके लिए अत्यन्त आवश्यक था।

पूजा की मनःस्थिति को रणवीर भी अच्छी तरह अनुभव कर रहा था और उसी के अनुरूप स्वयं को उत्तर देने के लिए तैयार कर रहा था। वह जितना-जितना पूजा की असहाय-दुर्बल मनःस्थिति का अनुमान कर रहा था, स्वयं उतना ही ढ़ीठ और दृढ़ हो रहा था । उस समय वह स्वयं को सबल अनुभव करते हुए एक ऐसी अप्रत्यक्ष विजय का अनुभव कर रहा था, जैसेकि बाज के समक्ष कोई निरीह पक्षी हो और उसके समक्ष उसकी पत्नी नहीं, कोई अशक्त शत्रु-पक्ष हो ! उसने अपने मन ही मन में योजना बना डाली थी कि यदि पूजा ने वाणी के विषय में बातें करना आरम्भ किया, तो वह उल्टे उसी पर निराधार शंका करने का आरोप लगाकर स्वयं को निर्दोष सिद्ध करेगा और पूजा को शंकालु-प्रकृति की घोषित करके उसके साथ आजीवन-सम्बन्ध निर्वाह करने में असमर्थ होने की धमकी देने से भी नहीं चूकेगा ! अपने-अपने ढंग से और अपनी-अपनी शक्ति के अनुसार दम्पत्ति ने पर्याप्त समय तक पृथक-पृथक विचार-मंथन किया और फिर दोनों एक साथ बोल उठे -

‘‘रात बहुत हो गयी है ! अब सो जाना चाहिए ! सुबह उठना भी है !’’

कहकर पूजा और रणवीर अपने-अपने विचारों और योजनाओं को चित्त् में धारण किये हुये एक दूसरे से मुँह फेरकर बिस्तर पर लेट गये । परन्तु दोनों की आँखों से नींद कोसों दूर थी ।

डॉ. कविता त्यागी

tyagi.kavita1972@gmail.com