main samay hun - 2 in Hindi Short Stories by Keval books and stories PDF | में समय हूँ ! - 2

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में समय हूँ ! - 2

(अबतक : एक अपरिचित युवक राजा के पथ पर आकर उसे कहता है कि तुमहारा क्रोध तुम्हारे निर्दोष पुत्र का जीव लेगा व तुम्हारी मृत्यु का कारण तुम्हारी बेटी बनेगी | बाद में वो श्रीमान राजा की जान बचाकर राजा के अतिथि बन जाते है। राजा को भविष्य से आगाह करने की वजह से राजा उसे मायावी समज लेते है और कोटरी में डाल देते है , जाते जाते वो बोलता है

"तुम आओगे मेरे पास ,आज ही ,ओर तुम्हारी ही कैद में तुम केदी बन जाओगे" )

•••••••••••••••

(सभा फिरसे आगे बढ़ती है)

सलाहकार : "अच्छा हुआ महाराज समय रहते आपने सही निर्णय लिया।"


राजन : "मगर वो कौन हो सकता है ,एक क्षण लगता है वो हमारे प्राण हर लेंगे दूसरे ही क्षण हमे लगता है उसने हमारे प्राण बचा लिए। बड़ा विचित्र किरदार है इस मानवी का।


गुप्तचर : "महाराज हमे लगता है ये कोई चाल है दुश्मन राज्य के राजाओं की। आपका जीव बचाकर आपका विश्वास जीता ओर महल में घुस गया जो किसी गुप्तचर के लिए बहुत कठिन वस्तु है किसी भी महल की रक्षाकवच को पार कर पाना।


दूसरा गुप्तचर : " महाराज ! हो सकता है वो तीर उसकी चाल का एक भाग हो आपका विश्वास जितने के लिए। अन्यथा उसे कैसे पता की शिकारी का छोड़ा हुआ बाण आपको ही लगेगा।"


सेनापति : "में गुप्तचर की बात से सहमत हूं महाराज "


महाराज : "शिकारी का तीर व महल में घुसना एक षड्यंत्र हो सकता है, मगर ज़ुम्मर का गिरना व भविष्य का सटीक आगाह करना ?"


मंत्री : "महाराज वो बड़ा चालक है। वो राजसभागृह में प्रवेशते ही कुछ सोच रहा था। हो सकता है वो इसी षड्यंत्र के बारे में सोच रहा हो। व उसके मुख पर चिंता के निशान थे, हो सकता है वो चिंतित हो कि अगर उसकी कोशिश विफर रही तो वो नाकाम हो जाएगा"


महाराज : "सम्भव है "


महाराज : "फिर उसने ऐसा क्यों कहा कि मेरी पुत्री की वजह से मेरी मृत्यु होगी व में अपने निर्दोष पुत्र को मरूँगा !?"


गुप्तचर : "हो सकता है वो षड्यंत्र हो आपको बातो में उलझने का ताकि शिकारी अपना निशान सटीक ले सके"


महाराज :"हम्म… संभव है"


महाराज : " आप इस विषय मे राय दीजिये राजगुरुदेव श्री"


राजगुरु :" राजन ! एक क्षण के लिए भूल जाइए की आप महाराज है। हमे ये प्रतीत हो रहा है कि उसका मकसद आपको हानि पहचान नही बल्कि आपको होने वाली घटनाओं से आगाह करना है। हो।सकता है वह सबकुछ जानता हो । एक अतिथि को सभागृह में ज़ुम्मर कब गिरने वाला है वो नही पता होता ,महाराज !"


महाराज : "हम्म…सोचने वाली बात है!"


गुप्तचर :"हो सकता है कोई अंदर का व्यक्ति विद्रोह करके दुश्मनी राजाओ को सूचना देता हो। और उसी हिसाब से षड्यंत्र बनाए गए हो।"


राजगुरु : "तो फिर उसने राजा का जीव क्यो बचाया?"
जंगल मे बचाना चाहता है व महल में मारना चाहता है ये बात कुछ अटपटी नही लग रही ? "


दूसरा गुप्तचर : " महाराज ,उस मंदबुद्धि का रहस्य सुलझाने अर्थात हमे इस राज्य के बहार जाने की आज्ञा चाहते है।"


महाराज : "ठीक है, मगर ख्याल रहे जानकारी महल तक पहुचती रहे। अपनी सलामती का ख्याल रखना"


गुप्तचर : "जो आज्ञा महाराज"

राजगुरु :" महाराज हमे लगता है कि वो साधारण मनुष्य से कहि परे है । लेकिन उसका अर्थ यह भी नही की वो मायावी राक्षस है ।"

महाराज :"अब तो गुप्तचर कुछ पता करके ही बता सकते है उस व्यक्ति का रहस्य ।"

(महाराज सभा समाप्ति का आदेश दे कर शयन कक्ष की ओर बढ़ते है। मन मे वही ख्याल घूम रहे है ,कौन है वह, क्या वो मुजे मरना चाहता है या आगाह करना चाहता है। फिर जंगल की घटना ओर फिर ज़ुम्मर का नीचे गिरना । उसकी बातों से कुछ साफ नही हो पा रहा था । )

(महाराज थके महसूस कर रहे थे , उसका मगज मानो थम सा हो गया है। राजा मंदिर कक्ष में जाकर भगवान से प्रार्थना करते है ," प्रभु ,आप तो सब जानते हो मेरे साथ केसी परिस्थिति आन पड़ी है। कुछ उपाय बताओ प्रभु । )

(तभी एक सैनिक मंदिर की चौखट पर आ जाता है)

सैनिक :" महाराज की जय हो !"

(महाराज कोई उम्मीद से उसकी ओर देखते है)

सैनिक : महाराज ! वह आदमी कुछ भी स्वीकारने से मना कर रहा है और हर बात पे बस एक ही वाक्य दोहरा रहा है। " अगर तुम्हें बता दूंगा तो तुम्हारे महाराज मारे जाएंगे ।"

( महाराज का शरीर फिरसे गुस्से से कांप उठा )

(महाराज ने निर्णय किया कि वह स्वयं जा कर उनसे वार्तालाप करेंगे)

महाराज : "हम खुद रात्रिभोजन पश्चात कैदखाने में आकर उससे बात करेंगे। तुम जा सकते हो।"

(महाराज की जयहो बोलकर वह सैनिक चला जाता है लेकिन महाराज की चिंता आसमान छू चुकी थी और क्रोध मानो सातवे आसमान पर चला गया हो। वे मन ही मन सोच रहे है कि उस आदमी का सर धड़ से अलग करदे पर दूसरे ही क्षण उसे ख्याल आता है कि "उससे मेरे मन को शांति होगी ,न कि समस्या हल होगी। " )

(महाराज खुद पहेली बुझानेकी कोशिश करते हुए बोल रहे है)

" मेरा क्रोध ही मेरे निर्दोष पुत्र का जीव लेगा !"
"मेरी मौत का कारण मेरी पुत्री होगी !"
"मेरी ही कैद में में कैदी बनूँगा !"
"सैनिक को बता दिया तो में मारा जाऊंगा !"

"इन सभी बातों की कोई कड़ी एक दूसरे से नही जुड़ रही ! ऐसी क्या बात है जो वह दूसरों को बताएगा तो में मारा जाऊंगा । "

"अब इन सभी सवालों का जवाब वहाँ जाकर ही ज्ञात होगा।"




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क्रमशः
(Episode 2)