हम न थकें है ओर न थकेंगे।
भारतीय है ओर भारतीय ही रहेंगे।
शहादत की कसम ख़ाओ
फरेबियो, अब ओर नहीं बिकेंगे।
देखते है किसकी हिम्मत है छूने की,
यह झंडे देश के कोने कोने में लहरेंगे।
वतन है, हमारा वतन, तुम क्या जानो
वतन की उल्फत, सदेय इसकी हिफ़ाज़त करेंगे।
जन्मांतरों मैं भी भारतीय पहचान मिले,
ऐसी उस ख़ुदा से रोज़ दुआ करेंगे।
न रोक सका है कोई हमें, न रोक सकेगा,
दिन ब दिन उन्नतियो की उचाए छुएंगे।
इसी मिट्टी की साक्षी में जन्म लिया है,
आख़िरी इस मिट्टी में ही कहीं खो जायेंगे।___Rajdeep Kota
इस अजनबी से पता नहीं मेरी क्या ताल्लुकात(संबन्ध) है।
जितनी बार मिलू उसे, लगता कि पहली मुलाक़ात है।___Rajdeep Kota
घर से निकलकर, कुछ दूर हो गया।
ढाई अक्षर क्या पढ़ लिए, मगरूर(अभिमानी) हो गया।
नशे से भागते फिरता था वो आज तक
बुतखाने से क्या गुज़रा, नशे में चूर हो गया।
बोहोत घमंड था उसे अपनी जायदाद पे
अब क्या करेगा,देखो मजदूर हो गया।
तकदीरवान होगा सायद,एक दिनों
चाय बेचता था, आज मशहूर हो गया।
___Rajdeep Kota
जूठ, सच को बहका रहा है सुनो।
सच, जूठ न हो जाए कहीं__Rajdeep Kota
जेल में धकेल दिया मुझे,सायद कसूरवार समझते होंगे।
वे सब मेंढ़क इस कुएं को ही संसार समझते होंगे।___Rajdeep Kota
मेरे दास मेरे मालिक बनने चले है
चौर साहूकार बनने चले है... ___Rajdeep kota
बुतपरस्त अब नहीं रहा में, निराकार को मानता हूं।
कोई भी हो किरदार,अच्छी तरह निभाना जानता हूं।
बात शराफ़त की हो, सियासत की हो, या हो कुछ ओर, होठों पे रोज़ लफ़्ज ए ईमान रखता हूं।
अब यह आंसू भी शरारती अंदाज के हो गए है,
घर से निकलू तो चौकोर वस्त्र लिए निकलता हूं।
माना कि में बरफ का एक सख़्त टुकड़ा हूं,लेकिन
मत भूलो की उष्णता में आहिस्ता आहिस्ता पिघलता हूं।
सायद, तेरी काफ़िरे नेमत(कृतघ्नता) देख ही आज
इतना जलता हूं, इसलिए ऐसी ग़ज़लें लिखता हूं।
___Rajdeep Kota
कुछ गुत्थियां सुलझाने मेरा अतीत में जाना हुआ। देहलीज से गुज़रा ही कि उसका दरवाज़े से बाहर आना हुआ।
सूरज ढला की रोशनी गायब हो गई,ओर
फ़िर आसमान में चांद का छाना हुआ।
घर मैं पैर रखे नहीं की अभी से निकाला जा रहा है।
जूठा हो या हो सच्चा, प्यार दिखाया जा रहा है।
लगता है कोई बली का बकरा मिल गया है उसे
इसलिए हमे भुलाया जा रहा है।
ज़ख्म बेहत गहरा है, लगा ,दवाइया देंगे मुझे,
यहां तो वहीं ज़ख्म बार बार दुखाया जा रहा है।
मुझे शक बार बार होगा, कहता हूं तुझे
हररोज कईयो को बेहलया जा रहा है।
मुझे तो मार दिया उन्होंने, यहां तक तो ठीक था,
अब मेरी कब्र को भी मिटाया जा रहा है।
किसने आवाज़ दी ओ ख़ुदा के बंदे,
अज़ीज़ को ज़रा खिसक के कहां मैने"देखो मुझे बुलाया जा रहा है।
अफीम समझू, समझू मद्य की सुरा
जो यहां किसी के नाम बार बार पिलाया जा रहा है।
कल अख़बार मैं शहादत का वोही मसला छपा था,
पता नहीं सिपाही ख़ुद सो रहे है या सुलाया जा रहा है।
सच कुछ ओर है जूठ कुछ ओर है
अख़बार मैं कुछ ओर ही दिखाया जा रहा है।___Rajdeep Kota
कुछ दबे पड़े है राज़ मेरे भीतर सदियों से।
मिला था कल ख़्वाब में परियों से।
कल मेरी बस्ती में एक सूरज ,
भयभीत हो गया था कई दीयो से।
यह मुहब्बत मैं जलने की बात है
सर्दता नहीं मिलेंगी मुझे कई दरियो से।
वे स्वयं आग का ज्वाला है जलने को न कहो उसे
अभी बैठा है तो सिर्फ़ अपनी मजबूरियों से।
बोहोत दिनों से भूखा था
खाने बैठा तो ख़ाकसार(दिन, रंक) याद आ गया।
गुत्थियों से, तजुर्बों से, मुहब्बत से हराभरा
संसार याद आ गया।
____Rajdeep Kota
मेरे हिस्से के कुछ दिए उन्हें देकर आया हूं।
मेरे दुश्मनों की नींद हराम करके आया हूं।
सुना है तेरी सांसो जहां बड़ा वीरान पड़ा है सदियों से,
फ़िक्र मत कर,मेरे नाम के कुछ पौधे बुनकर आया हूं।
तेरी आंखों को जिस जिस दिन रुलाया है मैंने
उस उस दिन में ही आंसू बन बाहर आया हूं।
तेरे जिस्म के पत्थर इर्द गिर्द उखड़े पड़े है,
में उसकी मरम्मत करने आया हूं।
ओर नए चांद उगाने होंगे हमें "राज़"
अंधेरे ने मुझसे कहा था,में इस जहां पे हुकूमत करने आया हूं।_rajdeep Kota
एक उल्फत के ही साझेदार क्यों बन जाते हैं सब।
खिलते सूरज से हैं, फ़िर जुगनू क्यों बन जाते है सब।___Rajdeep Kota
हैं इश्क़ तुझे जितना भी लिंखु
ग़ालिबन सब कम ही पड़ेगा।___Rajdeep kota