Indradhanush Satranga - 17 in Hindi Motivational Stories by Mohd Arshad Khan books and stories PDF | इंद्रधनुष सतरंगा - 17

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इंद्रधनुष सतरंगा - 17

इंद्रधनुष सतरंगा

(17)

मोबले अस्पताल में

मोबले का एक्सीडेंट हो गया।

बुधवार के दिन चौक में बड़ी भीड़ रहती थी। उस दिन बुध-बाज़ार लगती थी। फुटपाथ की पटरियों पर सस्ते सामानों की दूकानें सजती थीं। महँगाई के मारे लोग, एकदम उमड़ पड़ते थे।

उस दिन भीड़ के डर से लोग गाडि़यों का रास्ता बदल देते थे। ग़लती से कोई मोटर-गाड़ीवाला भीड़ में फँस जाए तो इंच-इंच सरकने में उसे पसीने आ जाते थे। और भीड़ भी कैसी--औरतें, बच्चे, बूढ़े, कटोरा लिए भिखारी, बीच सड़क पर आराम फरमाती गाय।

पर मोबले को बुधवाले दिन ही चौक जाना पड़ गया। मन में घबराए हुए थे। दिल धकधक कर रहा था। पर काम ऐसा था कि जाना ज़रूरी था। मौलाना साहब होते तो उनके स्कूटर पर आराम से चले जाते। मौलाना साहब को स्कूटर चलाने का लंबा अनुभव था। हार्न बजाते, ब्रेक लगाते, लोगों का हाल-चाल पूछते और भीड़ में जगह बनाते वह बेफिक्र निकल जाते थे; भले ही कछुआ चाल से। मोबले सुकून से पीछे बैठे भीड़ को देखते रहते या दूकानों का विज्ञापन पढ़ते रहते।

पर आज मोबले अकेले थे और स्कूटर चलाकर उन्हें ख़ुद ले जाना था। मन में पहले से आ बैठी घबराहट ने उनका आत्मविश्वास और कमज़ोर कर दिया था।

मोबले थोड़ी दूर तक तो बचते-बचाते निकल आए, पर जब एक नौजवान लड़के ने सामने से लहराकर मोटर सायकिल निकाली तो हड़बड़ाहट में सँभल न पाए। संतुलन बिगड़ा तो बीच सड़क पर स्कूटर लेकर भहरा गए। बाज़ार में शोर मच गया। लोगों ने लपककर उठाया। दर्द के मारे मोबले की जान निकली जा रही थी। बाएँ पैर में ऐसा दर्द लहरें मार रहा था कि क़दम उठाना मुश्किल था। जैसे-तैसे आस-पास के दूकानदारों ने उन्हें लादकर अस्पताल तक पहुँचाया।

जब अस्पताल में उनका नाम-पता लिखा जा रहा था तो डॉक्टर का सहायक चौंका। उसने मोबले को हैरत से देखते हुए पूछा, ‘‘आप हिलमिल मुहल्ले से हैं?’’

‘‘जी---’’ मोबले ने दर्द से कराहते हुए उत्तर दिया।

‘‘तब तो आप को किसी दूसरे वार्ड में शिफ्रट करना पड़ेगा।’’

‘‘क्यों?’’

‘‘क्योंकि जब अपको लोग देखने आएँगे तब यह छोटा पड़ेगा।’’

यह कहकर वह हँसने लगा।

दर्द निवारक इंजेक्शन से मोबले को कुछ राहत तो मिल गई थी, पर दर्द की याद मन में अभी शेष थी। ऐसा दर्द जीवन में पहली बार हुआ था। ऐसी चमक उठती थी कि सारा शरीर थरथरा जाता था।

डॉक्टर देखने आया। जाँच के बाद एक्स-रे का पर्चा लिखते हुए सहायक से बोला, ‘‘इनकी फौज कहाँ गई?’’

‘‘मैं अकेला हूँ।’’ जवाब मोबले ने दिया।

‘‘हाँ, देख रहा हूँ,’’ डॉक्टर व्यंग्यपूर्वक हँसा, ‘‘लेकिन ख़बर पहुँचने दीजिए। भीड़ जुटते कितनी देर लगती है?’’

‘‘इत्मीनान रखिए, ऐसा कुछ नहीं होगा।’’

डॉक्टर ने मोबले की बात पर ध्यान नहीं दिया क्योंकि उसका अनुभव कुछ और ही कह रहा था। वह सहायक को आगे की जाँचों के निर्देश देकर चला गया।

मोबले ने कह तो दिया था कि कोई नहीं आएगा, पर मन कह रहा था कि लोग उन्हें देखने ज़रूर आएँगे। अगर मुहल्ले तक ख़बर पहुँच गई होगी, तो कोई बैठा नहीं रह सकेगा। गुप्ता जी तो हर बुध को बाज़ार जाते हैं। हो सकता है उन्हें किसी ने बताया हो। कटपीस कपड़े बेचने वाला गुल मोहम्मद का दोस्त है। संभव है उसने फोन कर दिया हो।

मोबले ख़्यालों में खोए हुए थे। तभी उन्हें बाहर जानी-पहचानी-सी आवाज़ सुनाई दी। बाहर मौलाना साहब खड़े थे। वह अपना ब्लड-प्रेशर चेक कराने आए थे। मोबले का चेहरा खिल उठा। लगा जैसे सारा दर्द भाग गया हो। अपनों की निकटता से आदमी का दुख सदैव हल्का हो जाता है। मोबले का झगड़ा मौलाना साहब से भले हो गया था; बोलचाल भी बंद थी; लेकिन मन में मैल न था। मौलाना साहब की आवाज़ पाकर वैसे ही ख़ुश हो गए जैसे परदेस में किसी अपने के मिल जाने पर कोई होता है।

मोबले कान लगाकर सुनने लगे। सहायक उनसे कह रहा था, ‘‘बाक़ी सब लोग कहाँ रह गए?’’

‘‘बाक़ी कौन?’’

‘‘अरे, अपने पेशेंट को देखने नहीं आएँगे?’’

‘‘पेशेंट! कौन-सा पेशेंट?’’ मौलाना साहब की आवाज़ में आश्चर्य था।

‘‘आपको नहीं पता?’’ सहायक बोला, ‘‘कालोनी के कोई दीपू मोबले साहब भर्ती हैं। उनका एक्सीडेंट हो गया है।’’

‘‘एक्सीडेंट---? कैसे ?’’ मौलाना साहब चीख़-से पड़े।

‘‘चौक में किसी से टकरा गए। ख़ैर, घबराइए मत। सब ठीक हो जाएगा। जाइए, मिल लीजिए। वो सामनेवाले वार्ड में हैं।’’

यह सुनकर मोबले पुलक उठे। सोचने लगे कि इतने दिनों के बाद आमना-सामना होने पर मौलाना साहब की क्या प्रतिक्रिया होगी। उन्होंने तय कर लिया कि आज वह सॉरी बोल देंगे। ग़लती तो उनकी ही है। अगर स्कूटर चलाएँगे नहीं तो सीखेंगे कैसे? अब आगे से अपने स्कूटर पर ही उन्हें ले जाया करेंगे।

मोबले ने उत्तेजना में आँखें बंद कर लीं और दरवाज़ा खुलने की प्रतीक्षा करने लगे।

जैसे-जैसे पल बीत रहे थे, मोबले अधीर हो रहे थे। पाँच मिनट बाद दरवाज़ा खुला। मोबले ने पुलककर आँखें खोलीं तो सामने सहायक खड़ा था। उसके हाथ में एक्स-रे था। कह रहा था, ‘‘भाई साहब आप भाग्यशाली हैं। सिर्फ हेयर लाइन फ्रेक्चर है। जल्द ही सही हो जाएगा। लेकिन प्लास्टर चढ़ाना पड़ेगा। फिलहाल, ये दवाएँ खा लीजिए।’’

सहायक वापस मुड़ लिया। पर जाते-जाते दरवाजे़ पर रुककर बोला, ‘‘आपके मुहल्ले के एक मौलाना साहब आए थे। मैंने उन्हें आपके बारे में बताया। बड़ा अप़फ़सोस कर रहे थे। लेकिन आश्चर्य है, वह आपको देखे बिना चले गए।’’

मोबले के हृदय पर जैसे हथौड़े की चोट पड़ी। बरबस ही आँखें छलक आईं। उन्होंने दोनों हाथों से चेहरा ढक लिया और फफक पड़े।

***