Himadri - 20 in Hindi Horror Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | हिमाद्रि - 20

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हिमाद्रि - 20



                   हिमाद्रि(20)
 
 
 
उमेश परेशान हाल घर पहुँचा तो उसे देख कर दुर्गा बुआ भी घबरा गईं। वह फौरन पानी लेकर उसके पास पहुँचीं। उमेश के पानी पी लेने के बाद उन्होंने पूँछा।
"भैया क्या बात है ? बहुत परेशान लौटे हो। पुलिस स्टेशन में क्या बात हुई।"
उमेश ने बुआ को बैठने को कहा। बुआ उसके पास बैठ गईं। उमेश ने पुलिस स्टेशन में गगन ने जो कुछ कहा था वह सब बता दिया। 
"बुआ... क्या आपने कभी कुमुद को ऐसी हरकत करते देखा है। मैं तो इधर होटल के काम से इधर उधर दौड़ रहा था।"
बुआ सब सुन कर शांत हो गई थीं। उमेश के सवाल पर कुछ देर सोंचने के बाद बोलीं। 
"भैया हमने तो ऐसा कुछ नहीं देखा। पर तुम्हें तो पता है कि बहूजी हमको ज़्यादा पसंद नहीं करती हैं। हम भी नहीं चाहते थे कि हमारे कारण तुम दोनों के रिश्ते में कोई खटास आए। इसी वजह से हमने क्वार्टर में रहने की बात कही थी। जब तुम काम के लिए बाहर रहते थे और यहाँ कोई काम नहीं होता था तो हम बहूजी से पूँछकर क्वार्टर में चले जाते थे। हो सकता है कि अकेले में बहूजी ऐसा करती हों।"
"कुछ समझ नहीं आ रहा है बुआ कि क्या सच है। पुलिस स्टेशन में जो कुछ पता चला उससे तो लगता है कि हिमाद्रि कुमुद के दिमाग की उपज है। सच का पता कैसे चले।"
बुआ को डायरी वाली बात याद आई। उन्होंने कहा।
"भैया सुबह बहूजी का सामान पैक करते हुए हमें कपड़े में लिपटी एक डायरी मिली थी। शायद बहूजी ने उसमें कुछ लिखा हो।"
"तो बुआ वह डायरी लाकर मुझे दीजिए।"
बुआ फौरन कुमुद और उमेश के बेडरूम में गईं। कुछ ही देर में वह डायरी लेकर आ गईं। देखते ही उमेश पहचान गया कि उसने ही यह डायरी कुमुद को दी थी।
"बुआ मैं स्टडी में जाकर इसे पढ़ता हूँ। जब तक बहुत ज़रूरी ना हो मुझे डिस्टर्ब मत कीजिएगा।"
उमेश स्टडी में जाकर डायरी पढ़ने लगा। दुर्गा बुआ इस नई परिस्थिति के बारे में जानकर चिंता में पड़ गई थीं। अभी तक वह समझ रही थीं कि सारा मामला सुलझ गया है। पर अब यह नई समस्या उत्पन्न हो गई है। वह मंदिर में जाकर बैठ गईं। दिया जला कर वह ईश्वर से प्रार्थना करने लगीं। 
जैसे जैसे उमेश डायरी के पन्ने पलट रहा था सारी तस्वीर उसके सामने स्पष्ट होती जा रही थी। डायरी में जो हैंड राइटिंग थी वह कुमुद की ही था। कुमुद ने डायरी में वही कहानी लिखी थी जो तांत्रिक क्रिया के दौरान उसने हिमाद्रि बन कर सुनाई थी। स्पष्ट हो चुका था कि हिमाद्रि कुमुद के दिमाग की ही उपज थी।
यह तो स्पष्ट हो गया था कि जो भी था वह प्रेत का चक्कर नहीं था। लेकिन कई सवाल थे जो उमेश को परेशान कर रहे थे। वह उनके जवाब तलाशने का प्रयास कर रहा था। पर उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था।
डिनर का समय हो गया था। लेकिन उमेश अभी भी स्टडी में था। बाहर बुआ बेहद परेशान थीं। जब बहुत देर तक उमेश बाहर नहीं आया तो मजबूरी में बुआ ने दरवाज़ा खटखटाया। 
"बुआ अंदर आ जाइए।"
बुआ अंदर गईं। उमेश डायरी लिए हुए बैठा था।
"भैया रात के दस बजे हैं। डिनर का समय हो गया है। इसलिए दरवाज़ा खटखटाया।"
"बुआ....हम जो समझ रहे थे मामला उससे ठीक उलट है। इस डायरी में कुमुद ने हिमाद्रि के बारे में लिखा है।"
"तो इसका मतलब यह है कि कुमुद पहले से ही हिमाद्रि के बारे में जानती थी।"
"बुआ...हिमाद्रि कुमुद के दिमाग की ही उपज है। डॉ. गांगुली ने सही कहा था कि कुमुद जो सोंचती है उसे वास्तविक मान लेती है। उसने हिमाद्रि के बारे में सोंचा और उसे सच मान लिया। उसके इर्दगिर्द इतनी बड़ी कहानी रच डाली।"
"अब क्या करोगे भैया ?" 
"मैं कल ही डॉ. गांगुली से मिल कर उन्हें सब बताता हूँ। कई और सवाल हैं जिनके जवाब नहीं मिल रहे हैं। शायद डॉ. गांगुली कुछ मदद कर दें।"
बुआ के दिमाग में भी एक सवाल घूम रहा था।
"भैया अजीब बात है। बहूजी ने इतना सब रच डाला। पर हमारे सामने कभी कोई ज़िक्र नहीं किया। हमें तो कानों कान पता भी नहीं लगा।"
"यही सब तो पता करना है बुआ। मैं कल सुबह ही डॉ. गांगुली से एप्वांइटमेंट लेकर उनसे मिलने जाता हूँ।"
 
उमेश डॉ. गांगुली के सामने बैठा था। उसने सारी बात उन्हें तफ्सील से बता दी थी। सब सुन कर डॉ. गांगुली भी गंभीर हो गए।
"उमेश बाबू मैंने पहले ही आपको उस डॉ. निरंजन प्रकाश से आगह किया था। वह एक नंबर का फ्रॉड है। मेरे स्टाफ में एक व्यक्ति ने उसे आपकी सूचना दी थी। मैंने उसे नौकरी से निकाल दिया। पर आप पढ़े लिखे होकर उसके चक्कर में पड़ गए।"
डॉ. गांगुली की बात सुन कर उमेश बहुत लज्जित हुआ।
"मैं क्या करता ? यकीन तो मुझे भी इन सब चीज़ों पर नहीं था। लेकिन उस समय कुमुद का आचरण बहुत अप्रत्याशित था। वह मर्दानी आवाज़ में बोल रही थी। मैं उसकी इन हरकतों के कारण बहुत घबरा गया था। घरवालों ने दबाव डाला तो मैंने उस डॉ. निरंजन को बुला लिया। उसके बाद जो कुछ हुआ उससे मेरा यकीन उन सब बातों पर होता चला गया।"
डॉ. गांगुली समझ गए कि उनकी बात से उमेश लज्जित हुआ। है। उन्होंने बात संभालते हुए कहा।
"उमेश बाबू ऐसा हो जाना कोई बड़ी बात नहीं है। आप अपनी पत्नी को लेकर फिक्रमंद थे। खैर अब यह ध्यान रखिएगा कि आपकी पत्नी को मनोचिकित्सक की ज़रूरत है किसी ओझा तांत्रिक की नहीं।"
"डॉ. कुछ सवाल हैं जो मुझे परेशान कर रहे हैं। मुझे उनके जवाब चाहिए।"
"पूँछिए जो पूँछना चाहते हैं।"
"यह सब कुमुद के दिमाग में कई दिनों से चल रहा होगा। पर हमें कुछ पता ही नहीं चला।"
"इसका सीधा सा कारण है कि कुमुद यह सब एकांत में कर रही थीं। हिमाद्रि के इर्दगिर्द उन्होंने अपनी अलग दुनिया बसाई थी। यह उनकी निजी दुनिया थी। वह नहीं चाहती थीं कि आप लोग इनकी इस दुनिया के बारे में जानें।"
"किंतु उसने ही मुझे प्रेत द्वारा दुष्कर्म की बात बताई थी। बाद में उसने ही प्रेत बन कर हमसे बात की। तांत्रिक क्रिया के दौरान तो उसने सारी कहानी बता दी।"
डॉ. गांगुली कुछ देर ठहर कर बोले।
"जैसा कि उस चोर ने बताया था कि कुमुद हिमाद्रि से बात कर रही थीं। इसका मतलब पहले जो चरित्र उनके दिमाग में था उसे वह अपने जीवन में प्रत्यक्ष देखने लगी थीं। वह जब भी अकेली होती थीं तब वह हिमाद्रि को अपने आसपास महसूस करती थीं।"
डॉ. गांगुली एक बार फिर रुके। 
"उमेश बाबू सेज़ोफ्रेनिया के मरीज़ अपनी कल्पनाओं को सच मानते हैं। वह चाहते हैं कि दूसरा भी ऐसे ही करे। कुमुद ने उस दिन आप लोगों को यकीन दिलाने के लिए ही आपकी बुआ को जबरन क्वार्टर भेजा था। अगले दिन बुआ के बहुत ज़ोर देने पर ही उन्होंने दरवाज़ा खोला। ताकि लगे की मामला बहुत गंभीर है। उन्होंने अपना वह हुलिया भी खुद ही बनाया होगा।"
"पर डॉक्टर ऐसा कैसे हो सकता है ? मैंने खुद उसकी कलाइयों पर निशान देखे थे।"
"उमेश बाबू मेडिकल रिपोर्ट दुष्कर्म की पुष्टि नहीं कर रही थी। आपकी पत्नी इसके लिए जिस प्रेत को ज़िम्मेदार ठहरा रही थीं। अब आपको भी पता है कि वह उनके दिमाग की ही उपज था। अपनी कलाइयों पर निशान बनाना कठिन है पर असंभव नहीं।"
"चलिए यह मान लेते हैं। पर कुमुद ने उस दिन रात में पेट दर्द की बात की। फिर अस्पताल से लौटने के बाद हिमाद्रि बन कर उत्पात किया। वह सब क्यों ?"
"यह समझना तो बहुत आसान है। वह शुरू से ही आपको प्रेत वाली बात पर यकीन दिलाना चाहती थीं। पर आप उन पर यकीन नहीं कर रहे थे। वह सब कुछ आपको यकीन दिलाने के लिए था। वर्ना मेडिकल रिपोर्ट में तो सब कुछ सही आया था। जब अस्पताल से लौटने पर भी आप पूरी तरह उनकी बात मानने को तैयार नहीं थे तब उन्होंने पहली बार खुद प्रेत बन कर आपसे बात की।"
उमेश के मन में अभी भी कुछ सवाल थे। पर सेशन का समय समाप्त हो गया था। अतः डॉ. गांगुली ने उसे अगले दिन का समय दे दिया।