इतने बूढ़े भी नहीं कि न समझे
आर 0 के 0 लाल
एक बेटे ने अपने पिता को निर्देश दिया कि उसके कुछ दोस्त आज उससे मिलने घर आ रहे हैं। जब तक उसके दोस्त ड्राइंग रूम में हों तब तक आप कृपा करके घर के अंदर ही रहिएगा। अगर किसी कारण से आपको वहां आना पड़े तो जल्दी ही कोई न कोई बहाना करके कमरे से चले जाइएगा। उसके पिताजी ने पूछा- ऐसा क्यों बेटा।अप्रत्याशित रूप से बेटे ने उत्तर दिया- “पिताजी देखिए अब आप बूढ़े हो गए हैं। आपको यह सब समझ में नहीं आएगा। आपसे जितना कहा जा रहा है वही कीजिए।” पिताजी के पास कोई विकल्प नहीं था। वह चुपचाप अंदर की कमरे में चले गए। थोड़ी देर बाद बेटे के दोस्त आए और करीब दो घंटे तक घर में रहे। उनकी पत्नी ने मेहमानों के लिए चाय नाश्ता बनाया और उसे पहुंचा कर उनके पास ही आकर गुमसुम बैठ गई।
उनका नाम अशोक है, जिन्होंने अपने बेटे ‘निखिल’ की पढ़ाई के लिए गांव छोड़ दिया था और शहर में एक साधारण सी नौकरी कर ली थी। उन्होंने निखिल को एमबीए कराने के लिए अपने गांव की जमीन भी बेंच दी थी। सोचा था जब निखिल नौकरी करेगा तो फिर से जमीन खरीद लेंगे।
अशोक उसके इस तरह के व्यवहार से बहुत दुखी रहते थे। उन्होंने अपने दोस्त सुरेश को यह बात बताई। उन्होंने अशोक को ढांढस बंधाया और कहा - “आप बेकार में ही दुखी हो रहे हैं। इस तरह की कहानियां तो अब हर घर में, हर समाज में सेंसेक्स की तरह बढ़ रही हैं। क्या हमें अपने बच्चों के इन रुझानों के खिलाफ विद्रोह करना चाहिए अथवा उनके उत्साह को देखना चाहिए। आज सवाल यह है कि क्या आप उन्हें अपने साम्राज्य की बागडोर सहर्ष सौंप देते हैं और अपने को वहां से अलग कर लेते हैं अथवा वहीं विलखते हुए पड़े रहते हैं।”
अशोक ने अपना रोना रोया- “यार मुझे नहीं पता कि मुझे कब समझ आएगी। बचपन से हर लोग यही कहते हैं कि तुम्हें समझ कब आएगी। जब मैं छोटा था तो घर वाले कहते थे तुम बड़े हो गए हो फिर भी तुम नहीं समझते हो। जब नौकरी करता था तो बॉस भी यही कहता कि तुमको तो कोई समझ ही नहीं है, घर में पत्नी तो हमेशा नासमझ होने की याद दिलाती रहती है और अब तो बच्चे भी कहने लगे हैं कि आप बूढ़े हो गए हैं नहीं समझोगे। आजीवन इस टिप्पणी से मैं भ्रमित हो गया हूं कि समझने के लिए बहुत छोटा हूं या बहुत बूढ़ा।”
सुनकर सुरेश हंसने लगा। समझाया कि यह पीढ़ी अंतराल यानी जेनरेशन गैप के कारण है। युवा आपकी सलाह पर ध्यान नहीं देते। वे आपके साथ सहानुभूतिपूर्ण रवैया विकसित करने के बजाय अपने अधिकारों और शक्ति पर ज्यादा जोर देना शुरू कर देते हैं जिससे आपमें अपनी गरिमा और महत्त्व से वंचित होने की भावना उत्पन्न हो जाती है फिर आप परेशान रहते हैं।”
अशोक में सुरेश से पूछा तो मुझे क्या करना चाहिए तुम ही बताओ। सुरेश ने कहा -”जहां तक मैं समझता हूं तुम्हें परेशान और मोह - आलिंगन में होने की जरूरत नहीं है। अगर तुमने कोई गलती की है तो उसको रियलाइज करो और अपने वर्तमान को आवश्यकतानुसार बदलने की कोशिश करो, इससे पहले कि आपके बच्चे आपको किसी कोने में फालतू चीज की तरह डाल दें। अपने जीवन को नए तरीके से जीना सीख लो। हमने तो देखा कि ज्यादातर लोग कुछ नया नहीं करते हैं और इसी तरह जीवन बिताने की कोशिश करते हैं अपनी वसीयत तक लिख देते हैं। फिर उनके पास अंत की प्रतीक्षा करने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता है। यह कोई सही तरीका नहीं है।”
कुछ बच्चे एक अलग माहौल में ही बड़े हुए होते हैं वे हमें महसूस कराते हैं कि हमारे पास उनके साथ करने को कुछ भी नहीं है। लेकिन आपके पास तो उनके साथ समान रूप से खड़े होने के लिए बहुत ज्ञान है। उनको समझ जाना चाहिए कि आप अभी भी उनके लिए महत्वपूर्ण हैं। उनकी जीवन में रूचि दिखाएं उनकी पसंदीदा गतिविधियों के बारे में पूंछें और जहां तक हो सके उनकी सहायता करें। इससे उनका ख्याल आप के प्रति बदल सकता है और फिर आप एक सामान्य पारिवारिक सदस्य के रूप में जीवन बिता सकेंगे।”
एक बात और है! आपने अपने परिवार के लिए, समाज के लिए न जाने कितनी भूमिकाएं निभाई हैं फिर क्यों आज अधिकांश भूमिकाओं से अकेले और अलग-थलग हो गए हैं। आप को लगता है कि पूरी दुनिया बेकार है और शायद इसी वजह से केवल आपका घर ही आपके जीवन का केंद्र बन गया है।
सुरेश ने सलाह दी - “मेरी बुद्धि तो कहती है कि फिर से आप सभी सामाजिक एवं घरेलू कार्यों में भागीदारी करें। इससे आपको लगेगा कि अभी आप जवान हैं। क्या आपने देखा है कि कोई राजनेता कभी बूढ़ा होता है? नहीं न। इसका कारण है कि वह हमेशा अपने को व्यस्त रखता है। हां जब भी जरूरत पड़ती है तो पार्टियां बदल लेता है और अपनी परंपराओं और कठोर प्रतिबद्धताओं का भी पालन नहीं करता। इसलिए आपको भी अपने तौर-तरीके को जरूरत के हिसाब से बदल देना चाहिए।
आप कंप्यूटर इंटरनेट जैसी नई तकनीकी को सीख सकते हैं और अपने आप को विभिन्न क्षेत्रों में अपडेट रख सकते हैं। इससे आपको लगेगा कि आप हर तरह के काम को करने में अभी भी सक्षम हैं। अगर आप चाहें तो इंटरनेट में विभिन्न लेखों का अध्ययन करें जिससे आपके परिवार की मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक समस्या को हल करने के लिए सहायता मिलेगी। इस प्रकार आप खराब स्मृति, अकारण भय, बेचैनी, अनिद्रा, निर्णय की विफलता, रोग प्रतिरोधकता की कमी जैसे मनोभ्रंश से अपनी रक्षा लंबे समय तक कर सकते हैं और अपने जीवन का भरपूर सब के साथ मिलजुल कर ले सकते हैं।
कई बरसों के बाद आज अचानक सुरेश को अशोक स्टेशन पर मिल गए। उनके साथ उनकी पत्नी भी थी। उनके कंधे पर मात्र एक झोला लटका रहा था। औपचारिक नमस्कार के बाद सुरेश ने पूछा - बहुत दिन बाद आपके दर्शन हुए? उन्होंने बताया- हां पिछले कुछ दिनों से मैं पर्यटन पर हूं और जीवन का आनंद ले रहा हूं। आपसे मिलने के बाद मैंने आपकी कहीं बातों को अपनाने का निश्चय किया। काफी विचार किया और लोगों को अच्छी तरह जांचा परखा। मुझे लगा कि मुझे अपना रास्ता एक नई तरीके से तय करना पड़ेगा। इसलिए सबसे पहले तरह तरह की जानकारियां एकत्र करने की कोशिश की। इसके लिए मैंने कंप्यूटर और इंटरनेट सीखा और उसका उपयोग करके देश-विदेश, ज्ञान-विज्ञान की बातें पढ़ डाली। मुझे अनेकों सांस्कृतिक, धार्मिक एवं भौगोलिक बातों का पता चला। जब भी जब मौका मिलता है तो ज्ञान हासिल करता रहता हूं।
फिर मैंने अपनी जीवनशैली को बदलने की कोशिश की। इसी क्रम में मैंने भ्रमण करना शुरू किया। हरिद्वार का नाम मैंने बहुत सुना था इसलिए वहां जाने का मन बनाया। इंटरनेट से सभी आवश्यक जानकारियां जुटाई। एक दोस्त ने बताया कि वहां पर शांतिकुंज नामक एक संस्था है वहां मैं अवश्य जाऊं। भारतीय संस्कृति, पूजा-पाठ, योग एवं आचार-विचार की व्यवहारिक बातें सहज सीखने को मिल जाएंगी। फिर हम वहां पहुंच ही गए और सच मानिए कि वहां कुछ दिनों में ही मेरे अनेकों विचार बदल गए। समझ में आया कि मुझे किस तरह जीवन व्यतीत करना चाहिए। मैं वहां से जुड़ गया यह झोला भी वहीं का है। वहां से प्रकाशित पत्रिका भी पढ़ता हूं और दूसरों को पढ़ाता हूं। मेरी कोशिश होती है कि मैं उनके कार्यक्रमों में शामिल हूं। इस प्रकार मैं कुछ खर्च किए बिना ही चुस्त-दुरुस्त हो गया हूं। अशोक ने बताया - मेरे घर का माहौल भी बदल गया है और अब हम सात्विक जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
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