Niyati - 2 in Hindi Fiction Stories by Seema Jain books and stories PDF | नियति - 2

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नियति - 2

नियति

सीमा जैन

अध्याय - 2

जिस कमरे में शिखा और दीपा ठहरे थे वह रोहन का ही था। अलमारियों में ताला नहीं लगा था, सामान करीने से लगा हुआ था । दीपा को नींद नहीं आ रही थी वह आंखे बंद करके लेटी हुई थी । लेकिन शिखा नजरें घुमा घुमा कर कमरे की प्रत्येक वस्तु को ध्यान से देख रही थी। वस्तुओं को वह रोहन से जोड़कर देख रही थी, उसके व्यक्तित्व को एक आकार देने की कोशिश कर रही थी। दीपा की बातों से उसे यह तो समझ आ गया था रोहन मेहनती और पक्के इरादों वाला नौजवान है । अपने बलबूते पर यह मुकाम हासिल करना एक बहुत बड़ी उपलब्धि है । रोहन के पलंग के सिरहाने वाली दीवार पर लगे पोस्टर नूमा तस्वीर में वह कमर तक नजर आ रहा था । तस्वीर में वह एक स्मार्ट और हृष्टपुष्ट युवक लग रहा था। माथे पर बिखरे हुए बाल और बनियान मे वह बेफिक्र खिलाड़ी जैसा लग रहा था। चेहरे पर शरारत भरी मुस्कान थी। शायद यह छः सात साल पुरानी तस्वीरों होगी । अब वह गंभीर और कार्य में व्यस्त रहने वाला उद्योगपति है। कैसा दिखता होगा अब?अधिक काम करते करते बाल उड़ गए हों, कुर्सी पर बैठे-बैठे मोटा हो गया हो। अपनी ही कल्पना पर शिखा को हंसी आ गई, वह कहीं पागल तो नहीं हो गई। नहीं हुई तो अगले चार दिन में इस कमरे में रहते हुए हो जाएगी। रोहन की उपस्थिति कमरे में हर कोने में महसूस हो रही थी। उसे कमरें में एक बेचैनी का एहसास हो रहा था‌ अगर रोहन की फोटो की तरफ पीठ करके बैठती है तो लगता है वह उसे पीछे से घूर कर देख रहा है और अगर वह उसकी तरफ मुंह करके बैठती है तो लगता है रोहन एक पल में बोलने लगेगा । उसे स्वयं पर आश्चर्य तो हो ही रहा था गुस्सा भी आ रहा था जिसको आज तक देखा नहीं उसको लेकर मन में इतनी हलचल कैसे हो सकती है।

दीपा का चचेरा भाई चुन्नू भागता हुआ कमरे में आया और बोला, "तैयार हो जाओ ताई जी बुला रही हैं। कह रही है खाना खा लो और उसके बाद कुछ गाना बजाना करेंगे "

आधे घंटे में सब हॉल में खाना खाने के लिए एकत्र हो गए । शिखा ने इतना शोर शराबा कभी नहीं देखा था, हर कोई बोलने में लगा हुआ था सुन कोई नहीं रहा था किसी की। दीपा की चाचियां बहुत तेज आवाज में बोलती थी, मारी भरकम शरीर की हंसमुख स्वभाव की सब एक साथ बोले जा रही थी, लग रहा था किसी साप्ताहिक हाट में आ गए हों। बच्चे अलग चीख चिल्ला रहे थे। शिखा को बड़ा अच्छा लग रहा था उसके घर में सन्नाटा रहता था । ऐसे माहौल के लिए तरसती रहती थी । एक दो बार उसे मां का ध्यान आया बेचारी अकेली बैठी होगी। लेकिन कोई ना कोई आवाज लगा देता उसे और वह मस्त हो जाती।

सुमन ने ढोलक पर गीत बजाने के लिए दो औरतों को बुला लिया था। बाहर बरामदे में इंतजाम किया था, ठंडी ठंडी हवा, आसमान में चांद की रोशनी और गीत संगीत की महफिल, समा बंद गया।

पुष्पा ने जोर से कहा, "ऐ लड़कियों यहां क्या सजावट का सामान बन कर आई हो । सारी ठुंठ की तरह धरती से चिपकी पड़ी हों। उठो नाचो गाओ उछल कूद मचाओ। "

उसका कहना था मानो बांध टूट गया हो। चाचा चाची बुआ फूफा बच्चे सबने नाचने के नाम पर जो धमाल मचाया मजा आ गया। समय का किसी को होश नहीं था। जब गीत गाने वाली औरतों ने हिसाब करने को कहा तब सब को होश आया कितनी रात हो गई है। लुढ़कते लुढ़कते सब अपने अपने कमरे में जाकर सो गए। सुबह देर तक सोते रहे। पुष्पा ने कमरे में आकर तीनों लड़कियों को जगाते हुए कहा, "दीपा और शिखा तुम दोनों रिया को लेकर पार्लर जाना। तुम दोनों भी वहीं तैयार हो जाना और रिया के साथ हर पल रह ना । "

उसके बाद सब चाय नाश्ता करके सगाई के कार्यक्रम के लिए तैयार होने में व्यस्त हो गए ‌। शिखा दीपा और रिया अपने कपड़े और अन्य सामान संभाल कर चली गई । रीया का लहंगा बहुत सुंदर था । शिखाऔर दीपा ने भी हल्का सा मेकअप कराया । शालिनी का जब फोन आया तो शिखा मेकअप करवा रही थी इसलिए अधिक बातें नहीं हो सकीं। लेकिन शिखा की चहकती आवाज से उसने अंदाजा लगा लिया था उसकी बेटी कितनी खुश है।

समारोह स्थल पर दुल्हन के साथ शिखा और दीपा भी चल रही थीं। सबकी नजरें दुल्हन के बाद शिखा पर ही पड़ रही थी । अनारकली सूट, हाथ भर चूड़ियां, हल्का सा मेकअप और कान में बड़े-बड़े झुमके, शिखा का रूप दमक रहा था। फोटोग्राफर का कैमरा बार-बार शिखा की तरफ अपने आप मुड़ जाता। समारोह में व्यवस्था बहुत अच्छी थी, खाने-पीने की बहुत किस्म थी। दीपा की कोई ना कोई चाची बार बार प्लेट में व्यंजन सजा कर लें आतीं थी। खाने के लिए बैरे तो नाश्ता लेकर घूम ही रहे थे । शिखा को चाचियों का मस्त मौला व्यवहार बहुत पसंद था। उसे लग नहीं रहा था वहां वह केवल दीपा की सहेली है बल्कि सबसे ऐसे घुल मिल गई थी मानो उन्हीं में से एक है । अगले दिन प्रातः से ही रस्में वगैरह शुरू हो गई, ईच और हल्दी का कार्यक्रम चल रहा था। दीपा और शिखा रात को होने वाले संगीत समारोह के लिए नाच तैयार कर रही थी एक दीपक शिखा साथ करने वाले थे और एक अलग अलग।

शाम को शिखा ने लहंगा पहना और झूम कर नाचीं। सब वाह वाह कर रहे थे। मेहंदी भी उसने मन से लगवाई, रात दो ढाई बजे तक गाने बजाने का कार्यक्रम चलता रहा। हर कोई मस्त होकर झूम रहा था, बच्चे तक हार मानने को तैयार नहीं थे। आखिर पुष्पा और सुमन को दखल देना पड़ा, पहले अनुनय विनय की फिर डांट डपट कर सबको अपने-अपने कमरों में जाने को विवश किया। अगला दिन भी बहुत व्यस्त था कुछ घंटों की नींद आवश्यक थी।

कमरे में आकर शिखा रोहन की तस्वीर से बात करने से अपने आप को रोक नहीं पायी । वह तस्वीर के सामने अलग अलग कोणों में घूमकर इतराते हुए पूछ रही थी, " अच्छा रोहन जी अब बता दीजिए मैं कैसी लग रही हूं? काश आपसे एक बार मुलाकात हो जाती तो दिल में आप की एक पुख्ता तस्वीर लेकर जाती। "

सुबह जब शिखा उठी तो कुछ थकान सी महसूस हो रही थी। इतनी मस्ती और उछल कूद की उसे आदत नहीं थी।

घर में बहुत गहमागहमी और शोर शराबा था । सब इधर से उधर भागते दौड़ते नजर आ रहे थे । शिखा सोच रही थी ये लोग कुछ कर भी रहे हैं या बिना काम के व्यस्त दिखने का नाटक कर रहे हैं । उत्साह में बस शोर मचा रहे हैं, चिल्ला चिल्ला कर एक दूसरे को निर्देश दे रहे हैं। शाम होते होते सब थक से गए, लेकिन खास समारोह के लिए तैयार होना अति आवश्यक था। हर कोई एक दूसरे से बेहतर दिखना चाहता था । सब ने अपने लिबास और उनसे मिलते-जुलते गहने व चप्पलों का बहुत मेहनत से चुनाव किया था। औरतें पार्लर जाकर बाल फुला फुला कर केश विन्यास बनवाने जा रही थी। दीपा की चाचियां तो इतनी लदी फदी लग रही थी कि शिखा सोच रही थी कि इन्हे उठने बैठने और चलने फिरने में कितनी परेशानी होगी। लेकिन समारोह के लिए नहीं श्रृंगार करेंगी तो कब करेंगी इसलिए उसे लग रहा था वे सब बड़ी प्यारी लग रही है।

रिया के साथ पार्लर में तैयार होकर दीपा और शिखा सीधे विवाह मंडप में पहुंच गयीं। विवाह मंडप सुषमा के बगीचे में ही लगवाया गया था, घर दुल्हन की तरह सजा था । एक इंच दीवार ऐसी नहीं थी जहां रोशनी ना हो। पेड़ पौधों पर भी छोटे-छोटे बल्ब ऐसे टिमटिमा रहे थे मानो जुगनू की बारात हो । रिया अच्छी लग रही थी लेकिन मायके छोड़ने का समय जैसे जैसे निकट आ रहा था उसके मन में उदासी बढ़ती जा रही थी ।

दीपा मजाक करते हुए बोली, "इतना मेकअप करके अपना मुंह मत लटका। सारी मेहनत पर पानी फेर देगी । रात दिन फोन पर जीजा जी से बात करती है तब कहती है एक-एक दिन भारी लग रहा है, कब आपके घर आऊंगी? और अब मुंह लटका कर दिखा रही है हमसे कितना प्यार है । "

रियाआश्चर्य से दीपा की तरफ मुड़कर बोली, "तू मेरी बातें सुनती है, तुझे क्या पता मैं क्या बोलती हूं ?"

दीपा हंसते हुए, "बेवकूफ सब प्रेमी ऐसे ही बातें करते हैं । "

रीया एकदम से झेप गई।

विवाह स्थल पर बहुत रौनक थी, कुछ दूल्हा दुल्हन के साथ फोटो खिंचवाने में लगे थे तो कुछ लोग खाने पीने में। दीपा और शिखा भी घूम घूम कर सबसे मिल रही थी । वर पक्ष के कुछ नौजवानों से चुहलबाजी और छींटाकशी भी चल रही थी । धीरे धीरे रात गहराती जा रही थी ‌शिखा को बहुत थकान महसूस होने लगी थी। जान पहचान वाले मेहमानों ने प्रस्थान करना शुरू कर दिया था | बस खास रिश्तेदार फेरों के लिए रुक गए थे। फेरों की तैयारी आरंभ हो गई थी, दूल्हा दुल्हन भोजन कर रहे थे। सब बैरे उन्हें परोसने में लगे थे। दो-तीन घंटे और लगने वाले थे विदा होने तक। शिखा को हल्का सा ताप महसूस हो रहा था, सिर घूम रहा था चक्कर से आ रहे थे । उसे लग रहा था कहीं गिर ना जाए । इतनी मस्ती जिंदगी में नहीं की थी जितनी इन चार दिनों में कर ली थी। आदत ना होने के कारण उसे बहुत थकान महसूस हो रही थी। उसने दीपा से कहा, "मुझे लगता है जा कर सो जाना चाहिए । इतना थक गई हूं कि हाथ पैरों में दर्द हो रहा है । बुखार सा भी लग रहा है । "

दीपा को भी लग रहा था एक-दो घंटे से शिखा पस्त लग रही है। उसका चेहरा उतरा हुआ सा लग रहा था, वह थकी हुई लग रही थी। दीपा ने हामी भरते हुए कहा, " ठीक है तू कमरे में जाकर सो जा, कोई बात हो तो मुझे बुला लेना। बुखार या बेचैनी अधिक महसूस हो तो मुझे बुला लेना मैं आकर दवा दे दूंगी। "

शिखा घर की तरफ चल दी, दो चाचियां भी घर की तरफ जा रही थी। एक बोली, "चुन्नू सो गया है, हल्की सी ठंड है । सोचा उसे कमरे में लेटा दूं, यह सुषमा जी ने अच्छा किया घर के बाहर ही मंडप लगवा दिया। "

दूसरी चाची लड़खड़ाती हुई चल रही थी और बड़बड़ा रही थी, "हे भगवान इतनी भारी साड़ी खरीद ली सबसे अलग दिखने के लिए । लेकिन जी का जंजाल बन गई है, इतनी भारी है कि संभाली नहीं जा रही है। लगता है इसके कारण गिर ही ना जाऊं। इतने मोटे नग लगे हैं सारा शरीर छिल गया है। सोचती हूं फेरों के समय के लिए कोई हल्की साड़ी पहन लूं। "

पहली चाची चिढ़ाते हुए बोली, " नाइटी पहन कर आना सबसे अलग दिखोगी। "

दुसरी चाची को सुझाव पसंद नहीं आया वह मुंह बनाती चली गई।

शिखा अपने कमरे में पहुंचकर कपड़े बदल कर लेट गई । दरवाजा अंदर से बंद नहीं किया, दीपा पता नहीं कब तक आती है। गहरी नींद लग गई और दीपा के खटखटाने पर भी नहीं खोला तो परेशान हो जाएगी । लेटे लेटे व रोहन की तस्वीर से बातें करने लगी, "यह आखिरी दिन है कल मैं चली जाऊंगी आपसे शायद कभी मिल ना पाऊं । लेकिन दिल के कोने में आपकी यादें, यहां बिताए पल औरआपका यह कमरा सब हमेशा के लिए अंकित हो गया है। काश एक बार आपसे मिल पाती है। "

लेटे लेटे शिखा कल्पना करने लगी अगर रोहन से मुलाकात होती तो क्या होता। शायद जितनी वह रोहन से प्रभावित हो गई थी उतना रोहन भी उसे पसंद करने लगता। इस घर में रोहन के साथ रहना कैसा लगता ? रिया की तरह वह भी फेंरे लेती, फूलों से सजे घर में दुल्हन की तरह सजी धीरे-धीरे इस कमरे में आकर इस पलंग पर बैठ जाती । धीरे से दरवाजा खुलता रोहन दूल्हा बना आगे बढ़ता, उसका घूंघट उठाता। रोहन की उंगली धीरे से माथे पर पड़ी बालों की लट को पीछे करती हुई गालों का स्पर्श करती उसके होठों को छू लेती। उसके मन और तन में एक गुदगुदाने वाला एहसास हो रहा था। वह न जाने किस मीठे से एहसास में डूबती जा रही थी। उंगली होठों से होते हुए गालों पर स्पर्श करती हुई नाइटी के बटन से उलझ रही थी। उसे लगने लगा यह सब क्या हो रहा है। उसका अवचेतन मन जागने के लिए झटपटाने लगा, लेकिन अचानक उसे अपने होठों पर बहुत अधिक भार महसूस हुआ। उसे लगा वह चीखना चाह रही है लेकिन आवाज नहीं निकल रही है। झटके से उसकी आंख खुल गई। वह एक पुरुष के नीचे दबी हुई थी। अंधेरे में समझ पाना मुश्किल था कि वह कौन था। वह उस पुरुष को अपने ऊपर से उतारने का प्रयास करने लगी पर असफल रही। वह उसके शरीर के साथ वह सब कर रहा था जिसकी व कल्पना भी नहीं कर सकती थी । वह उसे चूम रहा था उसके निजी अंगों को छू रहा था। शिखा का दम घुटने लगा ना वह चीख पा रही थी ना उसके नीचे से निकल पा रही थी। अचानक उसे एक तेज दर्द का एहसास हुआ जिसने उसके संपूर्ण शरीर को झकझोर दिया । उसके बाद वह पुरुष शिथिल हो कर उस पर ही पड़ा रहा।

हिम्मत करके शिखा ने उस आदमी को अपने ऊपर से धकेला। उसे लग रहा था मानो उसका शरीर बेजान हो गया है । वह लड़खड़ाती किसी तरह पलंग से उठी, अंधेरे में टटोल ती हुई सूटकेस तक पहुंची, जो कपड़ा हाथ आया पहन लिया । उसने रोशनी जलाई और अपना अंधाधुन जो सामान समझ में आया सूटकेस में भरा। अपना पर्स उठाया और कमरे से बाहर जाने लगे। पलंग पर वह आदमी औंधा पड़ा था। उसे उससे नफरत हो रही थी, जाते जाते ना जाने उसे क्या हुआ, पलंग के पास गई और उस आदमी को पलट कर सीधा किया, जिससे उसका चेहरा देख सके।

हे भगवान! यह तो रोहन था।

***