Niyati - 11 in Hindi Fiction Stories by Seema Jain books and stories PDF | नियति - 11

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नियति - 11

नियति

सीमा जैन

अध्याय - 11

शिखा आश्वस्त नहीं थी, वह रोहन के दिल को और टटोलना चाहती थी। लेकिन रोहन के होठ उसके गालों को चूमते हुए उसके कानों तक पहुंच रहे थे। उसकी बाहें कसती जा रही थी और शिखा का दिल अपना होश खोता जा रहा था। लेकिन दिमाग चाहता था पहले कुछ बातें और साफ हो जाए। उसने धीरे से रोहन को धकेलते हुए कहा, "जब एहसास हुआ रिया की शादी की रात क्या हुआ था तो कैसा लगा था । "

रोहन ने अपनी पकड़ ढीली करते हुए, उसकी तरफ देखते हुए कहा, " जब दीपा तुम्हें ढूंढती हुई आई थी तब समझ नहीं आया था माजरा क्या है, और जब समझ आया तो महसूस हुआ जो सुखद एहसास रात को हुआ था वह कोई सपना नहीं हकीकत थी। यह भी एहसास हुआ कि अनजाने में बहुत बड़ी गलती हो गई है। परंतु जब सब ने मुझे गुनहगार की दृष्टि से देखना शुरू कर दिया तो बहुत गुस्सा आया। खासतौर से जब तुम्हारी मम्मी ने बिना बात सुने मुंह पर दरवाजा बंद कर दिया था। मैं भूखा प्यासा इतनी दूर गाड़ी चला कर गया और उन्होंने मुझे अपना पक्ष नहीं रखने दिया । "बोलते बोलते वह चुप हो गया।

शिखा बोली, " मैंने जब कमरे में आपकी तस्वीर देखी और दीपा से आपके बारे में सुना था तो बहुत प्रभावित हो गई थी‌, आपके व्यक्तित्व से‌। घंटों बात करती आपकी तस्वीर से। एक ही बात मन में आती, पता नहीं आप से मुलाकात होगी कि नहीं। जब मिलेंगे तो आप मेरे बारे में क्या सोचेंगे। आपको मैं उतनी अच्छी लगूंगी की नहीं जितने आप मुझे लगने लगे थे। दो-तीन दिन तक मन में यही विचार उठते रहते थे ‌। आपके साथ कुछ हसीन सपने भी देखने लगी थे। लेकिन जो हुआ वह बहुत उलट हुआ। रात को जब कमरे में आई थी तो कसम खा सकती हूं कि कोई नहीं था कमरे में। मैंने कमरे में आकर रोशनी जला कर अपने कपड़े वगैरा बदले थे। "

रोहन कुछ सोचता हुआ बोला, " हो सकता है मैं बाद में आया हूं। कुछ थकान और कुछ नशे में, मैं सीधे अपने कमरे में आकर सो गया। लाइट भी नहीं जलाई, सोचा था बस एक घंटे की झपकी ले कर विदा के समय खड़ा हो जाऊंगा। मुझे मालूम नहीं था मॉम ने मेरा कमरा तुम तीनों लड़कियों को दे रखा था । बहुत बड़ी गलती हो गई, मैं आज तुमसे अनजाने में किए गए अपने उस अपराध के लिए माफी मांगता हूं। "

शिखा ने रोहन का हाथ पकड़ते हुए पलंग पर बैठते हुए कहा, "उस समय तो हतप्रभ रह गई थी, विश्वास ही नहीं हुआ ऐसे कैसे हो गया मेरे साथ वो सब। बहुत दुखी और निराश थी, होश नहीं कैसे घर पहुंची। और दुख का सबसे बड़ा कारण था की जो कुछ हुआ उसके पीछे आप थे। तब यह नहीं समझी थी आप से भी अनजाने में हुआ था यह सब। मां को देखकर और संताप बढ़ गया। मेरे कारण उनका दुख और बढ़ गया था, पहले जीवन में इतना संघर्ष किया था उन्होंने, इतना दुख झेला था। और अब उनको खुशी देने के स्थान पर और परेशानी का कारण बन गई थी। आप पर भी क्रोध बढ़ता जा रहा था, माफी मांगने आए नहीं। यह जानने की कोशिश नहीं की कि मैं ठीक हूं की नहीं। आप के कारण मुझे इतनी यातना झेलनी पड़ रही थी और आपको अपनी जिम्मेदारी का कोई होश नहीं था। "

रोहन आश्चर्य से बोला, " मैं उस दिन आया था माफी मांगने, लेकिन मम्मी जी ने मेरी बात तक नहीं सुनी। "

शिखा बोली, "हां मुझे बहुत बाद में पता चला, तब तक मैं आपको बहुत गैर जिम्मेदार इंसान समझती थी। मां ने मुझे नहीं बताया, सोचती होंगी इस घटना को भुला देना मेरे लिए ठीक रहेगा । तभी तो चाहती थी मैं आगे पढ़ूं या नौकरी करके अपने पैरों पर खड़ी हो जाऊं और यह सब बातें भूल जाऊं। "

रोहन दुखी स्वर में, "उनकी घृणा देख कर तो मैं घबरा ही गया था, मुझे ऐसा लगा वह मुझे पुलिस के हवाले कर देंगी या मेरा खून कर देंगी। "

शिखा उदासी भरी आवाज में बोली, "हां उस दिन तो बहुत क्रोधित और द्रविड़ थी, कुछ भी कर सकती थी। उन्हें लगा उनकी जिंदगी की कहानी पुनः दोहराई जा रही है। वे ऐसी मजबूरी की शादी के सख्त खिलाफ थी और अगर नियति गर्भ में नहीं आती तो कभी भी इस शादी को मंजूरी नहीं देती।"

रोहन बोला, "तो क्या उन्होंने जबरदस्ती बिना अपनी रजामंदी के शादी की थी?"

शिखा बोली, "मुझे भी अभी यह सब बातें पता चली है, जो बहुत दुखद थी। "

शिखा आगे कुछ और कह पाती की नियति ने रोना शुरू कर दिया । रोहन ने नियति को गोद में उठा लिया और पुचकारने लगा लेकिन वह चुप नहीं हो रही थी। शिखा ने उसको लिया और डायपर बदला । वह तब भी रोती रही। शिखा ने झेंपते हुए कहा, " नियति को भूख लगी है, आपको बाहर जाना पड़ेगा। "

रोहन को आश्चर्य हुआ, वह बाहर क्यों जाए । फिर समझ गया उसके सामने शिखा नियति को स्तनपान कराने में झिझक रही थी। उनकी शादी सामान्य नहीं थी, दोनों की शादी को भले ही कई महीने हो गए थे। लेकिन अभी एक झिझक की दीवार थी उन दोनों के बीच में। वह अनमने मन से बाहर चला गया, उसे समझ में आ गया था उसे ही यह दीवार तोडनी पड़ेगी।

शिखा को स्वयं अजीब लग रहा था रोहन को बाहर भेजते हुए लेकिन वह इतनी देर में ही शर्म से पानी पानी हो गई थी।

सुबह रोहन जल्दी ही शिखा के कमरे में आ गया और रोती हुई नियति को गोद में लेकर घुमाने लगा। शिखा फिर असहज हो रही थी, बिखरे बाल अस्त-व्यस्त कपड़े कैसे कंबल में से निकल कर बाथरूम जाए। रोहन ने उसकी तरफ देखते हुए कहा, " क्या हुआ उठकर फ्रेश हो जाओ, ब्रश नहीं करना क्या?"

शिखा धीरे से बोली, " आप नियति को लेकर बाहर जाओ, मैं दस मिनट में आती हूं। "

रोहन जोर से हंसता हुआ बोला, " मैडम आदत डाल लो बार-बार मैं बाहर नहीं जाऊंगा। आज शांति से कहकर तुम्हारा सारा सामान मेरे कमरे में स्थानांतरित करवा रहा हूं। फिर मेरे कमरे में से मुझे बाहर जाने को कैसे कहोगी। "

शिखा घबराकर बोली, "नहीं, अभी एक-दो हफ्ते और रुक जाते हैं । "

उसकी अजीब स्थिति थी रोहन के साथ एक कमरे में रहने के नाम पर मन में कुछ-कुछ हो रहा था तो घबराहट भी हो रही थी। रोहन मुस्कुराते हुए बोला, "नहीं अब तो एक दिन का भी सब्र नहीं हो रहा है । तुम दोनों में मेरी जान बसती है। चलो उठो जल्दी करो आलस मत करो। " शिखा ने कंबल के अंदर अपने कपड़े जैसे तैसे ठीक किए और फुर्ती से बाथरूम में घुस गई । रोहन की हंसी उसका पीछा कर रही थी।

नाश्ता करते हुए रोहन गंभीरता से बोला, "शांति के साथ मिलकर अपना सामान मेरे कमरे में लगा लेना। मैंने अपने कपड़े समेट कर अलमारी में एक तरफ लगा दिए हैं, जगह कम पड़े तो छोटी सी अलमारी का अलग से बंदोबस्त कर दूंगा। "

शिखा ने हामी में सिर हिला दिया, उसके और नियति के पास खास कपड़े नहीं थे इसलिए जगह कम नहीं पड़ेगी।

शिखा को बहुत अधिक मेहनत और समय नहीं लगा रोहन के कमरे में अपना सामान लगाने में‌। शाम को रोहन ने अलमारी देखी तो उसे अचंभा हुआ, वह बोला, " तुम्हारे और नियति के पास इतने कम कपड़े हैं, तो काम कैसे चला रही हो? और एक बार भी बोला नहीं, जरूरत थी तो बोलना चाहिए था ना। "

शिखा बोली, " बस काम चल रहा था, क्या बोलती? नियति के कपड़े तो मम्मी खरीद कर लाई थी, मेरा वजन कम हो गया नियति के होने के बाद तो पहले वाले कपड़े आ जाते हैं। "

रोहन उसके निकट बैठते हुए बोला, " शिखा सब बदरंगे हो गए हैं, तुम अपनी जरूरतें बताओगी नहीं तो मुझे पता कैसे चलेगा। चलो पहले संकोच था, लेकिन अब ऐसी कोई बात नहीं होनी चाहिए। हक से अपनी आवश्यकता मुझे बताओगी। "

शिखा ने सकुचाते हुए कहा, " ठीक है, नियति के लिए कुछ कपड़े और चाहिए कईं पर उल्टी कर देती है। "

रोहन बोला, " केवल नियति के लिए नहीं अपने लिए भी ले लेना तो चाहिए हो। जानती हो जब सब मुझे दोषी मान रहे थे तब मेरे दिमाग में आया था कही तुमने जानबूझकर लालच में आकर तो यह सब षड्यंत्र नहीं रचा। "

शिखा के चेहरे पर तनाव आ गया, वह बोली, " पहले भी मुझे आपकी बातों से लगा था, लेकिन मैं ऐसा सपने में भी नहीं सोच सकती हूं। "

रोहन ने उसका हाथ दबाते हुए कहा, " मैं यह बात समझ गया हूं, लेकिन विवाह समारोह में तुम्हारी तस्वीरें जो नजर आ रही थी वह तुम्हारे स्वभाव से बिल्कुल भिन्न थी। तुम उसमें शौकीन किस्म की ऐसी लड़की लग रही थी जो सब को अपने वश में करना जानती हो। मैंने शादी की वीडियो देखी, सब में तुम ही तुम छाई हुई थी । मुझे विश्वास हो गया था यहां का वैभव देखकर तुम्हारे मन में चालाकी पैदा हो गई है और तुमने मुझे फंसाने के लिए नाटक किया है। "

शिखा का दिल उदास हो गया, उसे लगता था शेखर उसके बारे में ऐसा सोचता होगा लेकिन उसके मुंह से सुनकर उसके दिल को ठेस पहुंची । वह कुछ बोलती, रोहन बोला, "इसलिए मुझे इस बात का आश्चर्य हो रहा था कि सुबह तुम बिना शोर मचाए कैसे चली गई और जब मम्मी जी ने हमारी शादी के लिए भी मैंने मना कर दिया तब तो बड़ा आश्चर्य हुआ था। "

शिखा उलहाना भरी आवाज में बोली, " मम्मी के मना करते ही तुरंत पारूल से शादी करने की इतनी क्या जल्दी थी?"

रोहन झेंपते हुए, "असल में गुस्सा बहुत आ रहा था उस समय। बिना मेरी बात सुने हर किसी की नजर में अपराधी था, तुम्हारी मम्मी ने मेरा पक्ष सुना नहीं, ना माफ करना ना सजा देना । ऐसे व्यवहार कर रही थी जैसे मेरा अस्तित्व ही ना हो‌‌। जब उन्हें मुझसे कुछ लेना-देना ही नहीं था तो मुझे क्या‌। मैंने सोचा जिंदगी में आगे बढ़ना ही बेहतर होगा। इस तरह से जो अपमान महसूस कर रहा था शायद कुछ कम हो जाता। फिर पारुल को मैं बचपन से जानता हूं, उसके साथ सहज हूं। उसकी आदतों से वाकिफ हूं। "

शिखा धीरे से बोली, "उसके साथ शादी करके आप अधिक खुश रहते । " रोहन हंसते हुए बोला, " खुश का तो मुझे पता नहीं, एक समांतर रेल की पटरी की तरह जीवन गुजारते रहते अपनी अपनी दुनिया में। तुम मुझे हर बार चौका देती हो, मुझे पता ही नहीं होता किस स्थिति में तुम्हारी प्रतिक्रिया क्या होगी ? लड़कियां कपड़ों के लिए मरी जाती है लेकिन तुम अपनी तरफ से कुछ फरमाइश नहीं करती हो। मुझे लगता था तुम बहुत ही सुख सुविधा के पीछे पागल हो। पहले तुम मुझे ऐसे घूरती थी जैसे कच्चा चबा जाओगी, लड़ने के लिए तैयार रहती थी । और अब इतनी संकोची हो गई है, ज़रूरत बताने तक में जवान नहीं हिलती। "

शिखा बोली, "अलग अलग स्थिति में अलग-अलग प्रतिक्रिया होती है । शादी के समय नफरत करती थी, इसलिए परवाह नहीं थी आप मेरे बारे में क्या सोचते हैं । तब आपकी खुशी कोई मायने नहीं रखती थी। लेकिन अब स्थिति बदल गई है, ना आपको परेशान कर सकती हो ना परेशान देख सकतीं हूं। "

रोहन और करीब खिसकते हुए धीरे से फुसफुसाया, " क्या बदल गया है यह नहीं बताओगी, मेरे लिए क्या महसूस करती है यह तो बताओ । "

शिखा शरमाते हुए रोहन को धक्का देकर कमरे से बाहर जाते हुए बोली, " चलिए खाना खा लीजिए ठंडा हो जाएगा। "

रात को स्थिति और अजीब हो गई थी, शिखा बहुत असहज हो रही थी। पलंग पर एक कोने में बैठी थी। रोहन उसकी परेशानी समझते हुए बोला, "शिखा परेशान मत हो, मैं समझ सकता हूं इतनी कम उम्र में तुम पर दोनों शादी और मातृत्व की जिम्मेदारी एक साथ आ गई है ‌। कहां तो तुम शादी के लिए भी तैयार नहीं थी और कहां तुम्हें इतनी मानसिक और शारीरिक परेशानियों का सामना करना पड़ा । इसलिए अपना समय लो मुझे कोई जल्दी नहीं है किसी भी तरह की। बस मैं चाहता हूं नियति को पालने में मैं तुम्हारी सहायता कर सकूं। "

शिखा ने राहत की सांस ली, रात को नियति कई बार उठती । रोहन तुरंत उसे गोद में ले लेता, उठाकर कमरे में ही चहलकदमी करने लगता। शिखा को आराम भी मिलता और प्रसन्नता भी होती रोहन का नियति के प्रति प्रेम देखकर।

रोहन ने शिखा के अकाउंट में पैसे डाल दिए थे। रविवार आने में अभी चार-पांच दिन थे । शिखा अगले दिन नियति को शांति के पास छोड़कर बाजार से अपने लिए कुछ कपड़े खरीदने चली गई। रोहन के साथ कितने कपड़े खरीदती, नियति के भी लेने थे। फिर अपने लिए उसके साथ खरीदते हुए उसे शर्म आती। शाम को रोहन के आने से पहले उसने नई कुर्ती पहन कर हल्का सा मेकअप किया। रोहन की आंखों में अपने लिए प्रशंसा देख कर उसे तसल्ली हुई।

अगले दिन दो ढाई बजे के करीब शिखा के पास पारुल का फोन आया। उलाहना भरे स्वर में बोल रही थी, " कैसी हो? ऐश कर रही हो ?तुम्हें क्या लगता है यह रिश्ता कब तक चलेगा? तुम और तुम्हारा रहन सहन कितना गवांर है, कब तक रोहन उसे बर्दाश्त करेगा। "

शिखा ने बीच में उसे टोकते हुए कहा, " अपनी बकवास बंद करो, रोहन जी ने कहा है वह मुझसे प्रेम करते हैं, इसलिए मुझे तुम्हारी बातों में कोई दिलचस्पी नहीं है। "

पारूल हंसते हुए बोली, " तुम चाहे जो भ्रम पालना चाहो पाल लो। रोहन ने शादी केवल उस बच्ची के कारण की है। वह मुझसे अब भी मिलता है । कैफे ब्लू में आज भी मुझसे मिलने आएगा पांच बजे के करीब । तुम्हें विश्वास ना हो तो आकर देख लेना । वैसे एक सलाह दे रही हूं अगर रोहन को बांधे रखना चाहती हो अपने से तो थोड़ा स्मार्ट कपड़े पहना करो। " कहकर पारुल ने फोन काट दिया ।

शिखा को पारूल की बातें सुनकर बहुत गुस्सा आया । उसकी हिम्मत कैसे हुई इतनी बकवास करने की। लेकिन उसके दिल में जो हल्की सी संशय की लकीर थी उसको पारूल ने पुख्ता कर दी थी। उसे लगता था रोहन ने उससे रिश्ता केवल नियति के लिए जोड़ा था और अब नियति को सुरक्षित और खुशनुमा माहौल देने के लिए रिश्ता जुड़े हुए हैं । उसके दिमाग में विचारों का मंथन चल रहा था। वह इन बातों को नज़र अंदाज कर देना चाहती थी लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा था । आखिर नियति को शांति के पास छोड़कर पांच बजे वह कैफे ब्लू पहुंच गई । वहां रोहन और पारुल को हंस हंस कर बात करते देख उसे बहुत हताशा महसूस हुई। शिखा को उम्मीद थी रोहन वहां नहीं होगा और पारूल की बात झूठी साबित हो जाएगी।

वहां से तो शिखा अपनी उपस्थिति जाहिर किए बिना खामोशी से आ गई, लेकिन दिल में हाहाकार मचा हुआ था। यह तो वह समझ गई थी की यह पारुल का षड्यंत्र है। उसे फोन कर के बुलाया और रोहन को अपनी दोस्ती का वास्ता देकर बुला लिया होगा। बुरा उसे रोहन और पारुल के बीच की सहज दोस्ती लग रही थी। वह रोहन को अपने इतना करीब देखना चाहती थी । प्रेम और दोस्ती दोनों का संगम उनके रिश्ते में समाहित हो । वह बहुत उदासी महसूस कर रही थी उसे लग रहा था उसका रहन-सहन पहना ओढ़ना रोहन के स्तर का नहीं था।

शाम को जब रोहन घर आया तो उसे उम्मीद थी शिखा पहले दिन की तरह उसे देखते ही चहक उठेगी । लेकिन इसके विपरीत वह बहुत उदास और खोई खोई सी लगी। रोहन बिल्कुल नहीं समझ पाता था ऐसा क्या हो जाता है अचानक उसका व्यवहार बदल जाता है हर बार। सबसे बड़ी बात पूछो तो बताती भी नहीं है, मन ही मन न जाने क्या जाल बुनती रहती है। रोहन ने पूछ ही लिया, " क्या हुआ तबीयत ठीक नहीं है क्या, खामोश क्यों हो ?"

हल्की सी मुस्कुराहट के साथ शिखा बोली, " नहीं ठीक है बस ऐसे ही, क्या किया सारे दिन?"

रोहन आश्चर्य से बोला, "क्या करना था ऑफिस में ही था । हां दो बजे के करीब पारुल का फोन आया था। मिलना चाहती थी पुरानी दोस्ती की खातिर। मुझे भी उसके साथ जो किया उसका अफसोस था इसलिए मिलने चला गया। "

शिखा को एक बात इस उत्तर से समझ आ गई रोहन दिल का बिल्कुल साफ था, चाहता तो यह बात छुपा सकता था । उसने पूछा, "वह आगे क्या करने की सोच रही है। "

रोहन नियति को गोद में लेते हुए बोला, " कह रही थी एक महीने के लिए विदेश घूमने जा रही है, फिर आकर पिता के व्यापार में लग जाएगी। इस बीच उसके पिता उसके लिए जो लड़का पसंद करेंगे शादी कर लेगी। "

शिखा रोहन के मुख को ध्यान से देख रही थी। पारुल की शादी की बात करते हुए उसके चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी, जैसे उसे इस बात से कोई अंतर नहीं पड़ रहा हो। लेकिन शिखा को लगा उसे और थोड़ी मेहनत करनी होगी, रोहन के दिल में इस शादी को लेकर कोई अफसोस ना हो।

रविवार को तीनों बाजार गए कपड़े लेने । नियति के लिए एक से एक सुंदर कपड़े और खिलौने रोहन ने शिखा के साथ पसंद करके खरीद लिए। फिर शिखा को बोला, "तुम भी अपनी पसंद की कुछ और कपड़े खरीद लो, मैं तब तक नियति को संभालता हूं । "

शिखाअसमंजस में थी, कैसे कपड़े खरीदे। जिस तरह के कपड़े पहनती थी कुछ तो वह खरीद चुकी थी। उसे लगा उसे कुछ पारुल के स्टाइल के कपड़े खरीदने चाहिए । वैसे तो वह दुबली पतली थी, कोई भी पोशाक उस पर जचती थी । लेकिन उसने मिनी स्कर्ट और शॉर्ट्स कभी पहने नहीं थे, थोड़ा असहज महसूस कर रही थी । उसने कुछ इस तरह के पाश्चात्य रंग ढंग के कपड़े चुने और चेंजिंग रूम में चली गई। मिनी स्कर्ट और टैंक टॉप पहनकर जब बाहर आई तो असहज महसूस कर रही थी । फिर भी रोहन के सामने झूठे आत्मविश्वास के साथ खड़ी हो कर पूछ रही थी, "कैसी लग रही हूं?" रोहन ने मुस्कुराते हुए कहा, " बहुत सुंदर, तुम पर सब तरह की पोशाके फबती हैं। "

सुनकर शिखा को अच्छा लगा लेकिन वह इतना असहज हो रही थी बार-बार स्कर्ट को नीचे की तरफ खींच रही थी ।

दूसरी पोशाक शिखा एक काली नेट की वन पीस पहन कर आई। उसको पहन कर चलते हुए बहुत सचेत हो रही थी कहीं हवा के कारण उठ ना जाए। रोहन उसके निकट आकर बोला, " शिखा तुम कुछ भी पहनो सुंदर लगती हो, फिर क्यों ऐसी पोशाक चुन रही हो जिसमें तुम सहज नहीं महसूस कर रही हो?" शिखा झेंपते हुए बोली, " ऐसा कुछ नहीं है, पहले नहीं पहनती थी ऐसे कपड़े तो उसका मतलब यह नहीं है अब भी नहीं पहन सकती हूं। "

रोहन उसकी तरफ प्रेम से देखते हुए बोला, "अगर तुम्हारी इच्छा है तो अवश्य पहनो, जो तुम्हें अच्छा लगता है। लेकिन मुझे प्रभावित करने के लिए ऐसा कुछ मत करना जिसमें तुम्हें परेशानी महसूस हो। तुम्हारी सादगी, तुम्हारा व्यवहार, तुम्हारी खूबसूरती को इतना बढ़ा देते हैं कि तुम्हें बाहरी आडंबरों के बारे में सोचने की आवश्यकता नहीं है। तुम जैसी हो मुझे वैसे ही बहुत अच्छी लगती हो। " शिखा को अपनी ओर अपलक देखते हुए वह बोला, " यकीन मानो सच बोल रहा हूं। तुम मुझे नफरत और गुस्से में घूरती थी, हर समय मुझ से लड़ने को तैयार रहती थी। बिना बाल बनाए बदरंगे कपड़े पहन घूमती रहती थी फिर भी मुझे तुम से प्रेम हो गया। "

शिखा को लगा वह रोहन को ठीक से समझी ही नहीं । वह सुलझा हुआ इंसान है जो उसे प्रेम और सम्मान दोनों देगा। उसकी आंखें नम हो गई, वह बेकार इतना परेशान हो रही थी। वह रोहन के सीने से लग गई । रोहन की गोदी में नियति थी जो दबाव महसूस कर रोने लगी। रोहन हंसते हुए बोला, " मेरी बाहों में दो लड़कियां हैं दोनों ही रो रही है । एक को चुप कराना मुश्किल दो को कैसे चुप कराऊंगा। चलो जल्दी करो शिखा जो पसंद आ रहा है ले लो। नियति थक गई है इतनी देर से घर के बाहर हैं। "

शिखा ने बिना किसी दबाव के खरीदारी की और उसे रोहन के साथ बहुत आनंद आया । घर पहुंचकर थकान तो थोड़ी महसूस कर रही थी लेकिन संतुष्ट और खुश थी। रात को भोजन करके, नियति को सुलाकर उसने टीवी चलाया और अपना मनपसंद सीरीयल देखने लगी। रोहन भी उसके निकट सोफे पर बैठ गया। इसके पहले कि वह खिसक कर थोड़ा दूर होती रोहन ने खींच उसे बाहों में कस लिया। शिखा को इस तरह रोहन के इतने निकट बैठकर बहुत सुकून मिल रहा था। सीरियल की तरफ से ध्यान कब का हट गया था। दोनों बहुत देर तक इधर-उधर की बातें करते रहे।

अगले दिन रोहन ऑफिस चला गया। शिखा को अब रोहन के प्रेम को लेकर दिल में कोई शंका नहीं थी। उसने सुषमा से बात की और अपनी जेठानी से भी। सारा दिन वह बहुत प्रफुल्लित रही, उसके दिल पर कोई बोझ नहीं था। रोहन ने दो तीन बार फोन पर उससे बात कि तो उसे बहुत अच्छा लगा । वह उसका बेसब्री से इंतजार कर रही थी तभी फोन की घंटी बजी। शांति ने बताया पारुल का फोन है । शिखा ने एक बार सोचा मना कर दे, उसका बात करने का मन नहीं था। बेकार में मूड खराब करने से क्या फायदा।

लेकिन फिर शिखा के दिमाग में आया इस बार पारूल को बता ही दे कि अब पारुल की उपस्थिति से उसे कोई अंतर नहीं पड़ता। शिखा ने आत्मविश्वास के साथ फोन पर कहा, " हां पारुल बोलो क्या कहना चाहती हो?"

पारुल बोली, " उस दिन तुमने देख लिया होगा रोहन कैसे मुझसे मिलने आया था और कितना प्रसन्न था मुझसे बात करके । "

शिखा बोली, " हां पारूल तुम रोहन की अच्छी दोस्त हो इसलिए वह तुमसे मिलने भी आया और तुमसे बात करके खुश भी हुआ। लेकिन मेरा रिश्ता अब रोहन जी से दोस्ती से कुछ अधिक है। इसलिए तुम्हारी इन बेकार की बातों से हमारे रिश्ते में कोई अंतर नहीं पड़ने वाला। "

पारुल हंसते हुए बोली, " इस गलतफहमी में मत रहना, रोहन मेरा था और भविष्य में वापस मेरे पास आ जाएगा। " शिखा को उसकी बात सुनकर गुस्सा आ गया, तेज आवाज में बोली, "गलतफहमी में तुम हो और रोहन तुम्हारे पास कभी नहीं आएगा। सात फेरों का सामाजिक बंधन तो है ही प्रेम का अटूट बंधन भी है हमारे बीच। रोहन मुझसे बहुत प्यार करता है और मैं भी उनसे उतना ही प्रेम करती हूं । "

पारुल बोली, " तुम केवल उसकी दौलत से प्रेम करती हो । "

शिखा चिल्लाते हुए बोली, " दौलत से नहीं मैं रोहन से प्यार करती हूं और मैं उनकी खुशी के लिए कुछ भी कर सकती हूं । मेरे प्राण बसते हैं उनमें, मैं उनसे बहुत प्रेम करती हूं । "

तभी उसे लगा उसके पीछे कोई आकर खड़ा हो गया है। वह पलटती देखने के लिए तभी रोहन ने हाथ बढ़ाकर फोन काटते हुए कहा, " बस बस मेरी शेरनी इतना जोर से मत चिल्लाओ सारे मोहल्ले को नहीं सुनाना है । मुझसे धीरे से कहते हुए शर्म आ रही थी और अब मुहब्बत का इजहार इतने ज़ोर ज़ोर से चिल्लाकर कर रही हों। "

फिर पीछे से उसको बाहों के घेरे में लेते हुए बोला, "मुझे बहुत खुशी है तुमने मेरे प्रेम को स्वीकार किया। "

***