kartavya in Hindi Moral Stories by Nirpendra Kumar Sharma books and stories PDF | कर्तव्य,,

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कर्तव्य,,

बाहर शहनाइयों का शोर, मेहमानों की चहलपहल और शादी की सजावटों के बीच सुरेखा सोच रहीं थी की अब जल्दी ही उनकी बेटी संजना विदा होकर ससुराल चली जायेगी ।
बेटी का विवाह करके उनका बहुत बड़ा कर्तव्य पूरा हो जाएगा लेकिन बेटी से बिछोह का ख्याल अनायास ही उनकी आंखें भिगो गया।

उन्हें याद आने लगा पच्चीस साल पहले का एक ऐसा ही दिन, ऐसी ही सजावट ऐसी ही चहलपहल, अंतर बस ये था कि उसदिन दुल्हन सुरेखा खुद थीं, अपने आप में सहमी सिमटी उन्नीस साल की सौन्दर्यपूर्णा सुकुमारी सुरेखा।
उस दिन भी उनके मन में विछोह के ख्याल आया रहे थे ,अपने परिवार अपने माता पिता से विछोह बार बार उनकी आंखें भीग रही थी ऊपर से उन्होंने अपने होने वाले पति सुरेश को देखा तक भी नहीं था।

सुरेखा, ससुराल आकर दो ही दिन में वह समझ गयी कि सुरेश बहुत सुलझे हुए मितभाषी हंसमुख इंसान हैं और सुरेखा अब उनकी जिंदगी, सुरेखा को अपने मान पर अभिमान था की सुरेश उसे सर आंखों पर रखते हैं।

प्यार के दिन गुजरते देर नही लगती ऐसे ही सुरेश ओर सुरेखा के प्यार के भी दस साल देखते ही देखते गुजर गए ,इसी बीच सुरेखा दो बेटियों संजना और सपना की माँ बन गयी।

दो बेटियाँ!! उसकी ससुराल में उसके दो बेटियां होने पर सुरेखा के सम्मान में बहुत कमी आ गई थी अलबत्ता सुरेश जरूर हमेशा मुस्कुराकर कहते अरे बेटियाँ तो आजकल बेटों से बहुत आगे हैं ऊपर से बुढ़ापे में भी बेटियां बेटों से अधिक ध्यान रखती हैं मां बाप का ओर फिर हंसते हुए कहते, सुरु तुम देखना मेरी बेटियां डॉक्टर बनेंगी और मेरा नाम रोशन करेंगीं।

कुछ दिन से सुरेश के सीने में हल्का दर्द हो जाता था सुरेखा उन्हें अस्पताल दिखाने जाने को कहती तो वह ये कहकर टाल देते की "अरे कुछ बही बस जरा गैस है चूर्ण ले लूँगा ठीक हो जाएगा।
लेकिन इस दिन दर्द न चूर्ण से ठीक हुए ना गोली से , सुरेखा जल्दी में उन्हें लेकर अस्पताल गयी तब पता चला हार्ट अटैक आया है, और स्थिति घातक है बीमारी वहुत बढ़ चुकी है।
रात दिन एक करके भी डॉक्टर सुरेश को बचा ना सके। 

सुरेखा अपनी दो बेटियों को लेकर अकेली रह गई, ससुराल वालों ने उसे ये कहकर घर से निकाल दिया कि उसके दो बेटियां पैदा करने के कारण ही सुरेश दिल का मरीज बन गया यही उनके बेटे की मौत का कारण है।
सुरेखा रोती रही लेकिन उसकी किसी ने नहीं सुनी।
अब महानगर में अकेली औरत दो बेटियां लेकर कहाँ जाए, मायके में भी स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी , फिर भी वह मायके आ गयी।

सुरेखा धीरे धीरे सामान्य हो गयी, पढ़ी लिखी तो वह थी ही तो थोड़े प्रयास से उसे एक हॉस्पिटल में नौकरी मिल गई।
अपनी मेहनत से सुरेखा ने सालभर में ही खुद को संभाल लिया और मायके के पास ही अलग किराये का मकान ले लिया।
दोनों बेटियां स्कूल में पढ़ती थीं जिंदगी ठीक चल रही थी अचानक एक दिन छोटी बेटी सपना चक्कर खाकर गिर गयी।

डॉक्टर को दिखाने पर पता लगा कि मिर्गी की बीमारी है।
सुरेखा एक बार फिर परेशान हो गई । सपना के दौरे बढ़ते ही जा रहे थे अच्छे से अच्छा इलाज कराया लेकिन कुछ लाभ बा हुआ सुरेखा के पति सुरेश ने सुरेखा के नाम से एक जमीन खरीदी थी वह भी बिक कर सपना के इलाज की भेंट चढ़ गई।
एक दिन सुरेखा को किसी ने बताया कि कोई वैध हैं जो मिर्गी का इलाज करते हैं।
पहले तो इसे विस्वास नहीं हुआ उसने सोचा जब इतने बड़े बड़े डॉक्टरों की दवाइयां ठीक नहीं कर पायीं तो जड़ी बूटियां,,,,?? 
लेकिन उनकी बड़ी बहन के कहने पर सुरेखा  वैधजी से मिली और आश्चर्य जनक परिणाम मिले तीन महीने में ही सपना पूरी तरह ठीक हो गयी।
इसी बीच संजना ने एक बैंक में संविदा पर नोकरी कर ली सुरेखा का परिवार फिर अपनी जिंदगी में खुश था संजना इर सुरेखा की मिली जुली कमाई से उनका जीवन सामान्य चल रहा था , और आज संजना की शादी, सुरेखा फिर अकेली ,,

अभी वह सोच ही रही थी तभी संजना की आवाज आई," मम्मा कहाँ हो आप ??, बारात आ चुकी है सब आपही को ढूंढ रहे हैं जल्दी चलिए।
हाँ!!, चल आती हूँ , सुरेखा ने चुपके से आंसू पोंछ कर कहा।
सुरेखा जब नीचे आयी तो हेमन्त दूल्हा बना घोड़ी पर बैठा द्वार पर पहुंच चुका था सुरेखा ने मुस्कुराकर उसकी आरती की, एक बार फिर उसकी आंखें आंसुओं से भर गयीं लेकिन ये खुशी के आंसूं थे क्योंकि हेमन्त ने उसे वचन दिया था कि संजना अपनी आधी तनख्वाह सपना की शादी तक सुरेखा को देती रहेगी और हेमन्त को भी वह दामाद नहीं बेटा ही समझे ।
हेमंत एक कॉरपोरेट कंपनी में अच्छे पद पर है, शादी में दहेज लेने पर जब हेमन्त अड़ गए थे तब सुरेखा बहुत परेशान हो गयी थी उसने डरते हुए पूछा था," क्या चाहिए दहेज में बता दीजिए हम सोचकर जबाब देंगे" बदले में हेमन्त ने मुस्कुराकर एक पर्चा उनकी तरफ बढ़ा कर कहा था ,"हमें तो अभी जबाब    चाहिए तुरंत।
कांपते हाथों से सुरेखा ने पर्चा खोला तो उसमें लिखा था एक मां के प्रति हमारा कर्तव्य निभाने देने का वचन मुझे और दामाद नही बेटे का मान"।
सुरेखा की आंखे तब भी भीग गयीं थीं और उसने बस हां में सर हिलाया था।
सुरेखा बहुत खुश थी हेमन्त जैसा दामाद पाकर जो उसे एक सगे बेटे से बढ़कर मान देता है।
  संजना को भी हेमन्त ने कह दिया की मां को किसी चीज़ के लिए परेशान ना करे ; संजना को शादी में जो जरूरत की चीज हो हेमन्त खुद दिला देगा।

कहाँ खो गयीं मम्मा, इस बार हेमन्त ने सुरेखा की तन्द्रा तोड़ी, और वह  "कहीं नहीं " कह कर मुस्कुरादी।
सुरेखा समझ ही नहीं पाती है कि कर्तव्य कौन निभा रहा है; वह या  उसके बेटियाँ और दामाद हेमन्त।

अब तो सपना ने भी जॉब शुरू कर दी है।
फिर भी हेमन्त और संजना रोज एक बार सुरेखा से जरूर बात करते हैं और उसकी हर ज़रूरत जा ध्यान रखते हैं।