hindi Best Moral Stories Books Free And Download PDF

Stories and books have been a fundamental part of human culture since the dawn of civilization, acting as a powerful tool for communication, education, and entertainment. Whether told around a campfire, written in ancient texts, or shared through modern media, Moral Stories in hindi books and stories have the unique ability to transcend time and space, connecting people across generations and cult...Read More


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  • कुबेर - 29

    कुबेर डॉ. हंसा दीप 29 अपने अलावा और लोगों पर नज़र जाती तो कुछ चिन्ताएँ कम होतीं।...

  • फ्लाई किल्लर - 4

    फ्लाई किल्लर एस. आर. हरनोट (4) उसे महसूस हुआ कि उसका रक्तचाप बढ़ रहा है। उसने तत्...

  • घेराव - 1

    घेराव (कहानी पंकज सुबीर) (1) घटना को देखा जाए तो एसी कोई बहुत बड़ी घटना भी नहीं...

कुबेर - 29 By Hansa Deep

कुबेर डॉ. हंसा दीप 29 अपने अलावा और लोगों पर नज़र जाती तो कुछ चिन्ताएँ कम होतीं। वह अकेला नहीं है जो यह सब सहन कर रहा है, इस भावना से हिम्मत बनी रहती। कई ऐसे परिवार थे जिन्होंने अप...

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मूड्स ऑफ़ लॉकडाउन - 16 By Neelima Sharma

मूड्स ऑफ़ लॉकडाउन कहानी 16 लेखिका: रिंकी वैश अधूरी कहानियों के खंडहर “ज़िंदगी और मौत ऊपर वाले के हाथ में है जहाँपनाह, जिसे न आप बदल सकते हैं न मैं। हम सब तो रंगमंच की कठपुतलियाँ हैं...

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हूफ प्रिंट - 2 By Ashish Kumar Trivedi

माने हुए व्यापारी किशनचंद भगनानी के बेटे मानस भगनानी की इंगेजमेंट श्वेता रामचंद्रन के साथ होती है। इस इंगेजमेंट की सुर्खियां सही तरह से मीडिया में फैलती उससे पहले ही मानस के स्टड फ...

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फ्लाई किल्लर - 4 By SR Harnot

फ्लाई किल्लर एस. आर. हरनोट (4) उसे महसूस हुआ कि उसका रक्तचाप बढ़ रहा है। उसने तत्काल बिजली जला दी थी। वह दूसरे कमरे में सोई पत्नी को उठा कर रक्तचाप मापने की मशीन को मंगाकर अपना रक्त...

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घेराव - 1 By PANKAJ SUBEER

घेराव (कहानी पंकज सुबीर) (1) घटना को देखा जाए तो एसी कोई बहुत बड़ी घटना भी नहीं है कि उस पर इतना हंगामा हो। लेकिन अगर शहर का इतिहास देखें तो यही छोटी सी घटना बारूद के घर में जलती ह...

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तालियाँ By Husn Tabassum nihan

तालियाँ कवि कौशल प्रताप मंच पे धाक जमाए हुए थे। उनके एक-एक शब्द पर स्रोता झूम रहे थे। उल्लासित हो रहे थे। बेसाख्ता तालियाँ पीट रहे थे। कौशल प्रकाश के चेहरे पर अजब सी आभा थी। चेहरे...

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होने से न होने तक - 13 By Sumati Saxena Lal

होने से न होने तक 13. कौशल्या दी लखनऊ आ कर क्यों रह रही हैं इसके सबने अलग अलग कारण बताए थे। दीदी के पति की अपने पिता से नहीं पटती इसलिए चली आई हैं वे। किसी ने यह भी बताया था कि वे...

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कहानी किससे ये कहें! - 1 By Neela Prasad

कहानी किससे ये कहें! नीला प्रसाद (1) 31 अगस्त 1991. सुबह-सुबह आसमान में छाए घने काले बादल इंगित कर रहे हैं कि किसी भी क्षण वर्षा शुरू हो जा सकती है। लगभग साढ़े तीन दशक लंबी नौकरी क...

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किसी ने नहीं सुना - 6 By Pradeep Shrivastava

किसी ने नहीं सुना -प्रदीप श्रीवास्तव भाग 6 ‘समझ में नहीं आता कि तुम्हारा पति कैसा है। और साथ ही तुम भी। तुम कहीं से भी कम खूबसूरत नहीं हो। न ही किसी बात से अनजान इसलिए आश्चर्य तो य...

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विश्वासघात By Renu Gupta

आकाश के सुरुचिपूर्ण ढंग से बने हुए मकान सुकून में उनके पहले शिशु के नामकरण संस्कार के उपलक्ष में आयोजित भोज में भारी संख्या में आमंत्रित मेहमान आ रहे थे। अपने मित्रों, रिश्तेदारों...

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फिर मिलेंगे... कहानी - एक महामारी से लॉक डाउन तक - 4 By Sarvesh Saxena

मंजेश और अर्पित भी लेट गए |अर्पित - "अच्छा क्या होगा? अगर कोरोना पूरे शहर में फैल जाए" |मंजेश - "ऐसा ना बोलो यार मैंने कई डॉक्टर और करोना पीड़ित मरीजों के वीडियो देखे हैं, बहुत भया...

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ज़िन्दगी कुछ और ही होती... By Lajpat Rai Garg

ज़िन्दगी कुछ और ही होती... मध्य दिसम्बर की एक संध्या। सूर्य क्षितिज के पश्चिमी छोर पर बड़े से वृताकार में नीचे की ओर तेजी से जाता हुआ। शहर का मशहूर पार्क जहां शहर के हर भाग से लोग...

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देह की दहलीज पर - 6 By Kavita Verma

साझा उपन्यास देह की दहलीज पर संपादक कविता वर्मा लेखिकाएँ कविता वर्मा वंदना वाजपेयी रीता गुप्ता वंदना गुप्ता मानसी वर्मा अब तक आपने पढ़ा :-मुकुल की उपेक्षा से कामिनी समझ नही...

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स्पीड ब्रेकर By Govind Sen

स्पीड ब्रेकर गोविन्द सेन हफ्ते-दो हफ्ते में कोई न कोई स्पीड ब्रेकर मिल ही जाता है। अमूमन सुबह घूमकर लौटने में मुझे सवा घंटा लगता है। लेकिन जब कोई स्पीड ब्रेकर मिल जाता है तो पन्द्र...

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खोह By Amitabh Mishra

खोह वह राजधानी का सबसे अधिक जनसंख्या वाला जनसंख्या केघनत्व वाला इलाका होगा । बहुत छोटे से क्षेत्रफल का किफायती इस्तेमाल ऊंचाईमें कर तमाम बहुमंजिला इमारतें बना दी गई थीं...

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हलंत By Hrishikesh Sulabh

हलंत हृषीकेश सुलभ बात बहुत पुरानी नहीं है। कुछ ही महीनों पहले की बात है। वह हादसों का मौसम था। उन दिनों सब कुछ अप्रत्याशित रूप से घटता। जिस बात की दूर-दूर तक उम्मीद नहीं होती, वह ब...

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प्रगल्भा By Dr Lakshmi Sharma

प्रगल्भा “मेम, हमें नाम लिखवाना है.” घनानन्द की आंसुओं में डूबी कविताओं वाली क्लास अभी-अभी खत्म हुई ही है. मैंने स्टाफ रूम में आ कर अभी राहत की साँस भी नहीं ली है कि ये सिरदर्द सिर...

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सुनो पुनिया - 1 By Roop Singh Chandel

सुनो पुनिया (1) घाम की चादर आंगन के पूर्वी कोने में सिकुड़ गई थी. पुनिया ने मुंडेर की ओर देखा और अनुमान लगाया सांझ होने में अधिक देर नहीं है. ठंड का असर काफी देर पहले से ही बढ़ने लगा...

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राज - भाग -२ By Anil Sainger

अगला एक हफ्ता पास-पड़ोस का आना-जाना और पार्टी का माहौल बना रहा | देर रात जब भी अंकुर सोने के लिए कमरे में आता तो दादा-दादी उसके साथ ही बेड पर बैठ उसका माथा बारी-बारी से तब तक सहलाते...

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और कहानी मरती है - 3 - अंतिम भाग By PANKAJ SUBEER

और कहानी मरती है (कहानी - पंकज सुबीर) (3) ‘अच्छा’ माही कुछ निर्णायक स्वर में बोला, और कुर्सी से उठकर खड़ा हो गया। अपने शरीर पर लिपटा एकमात्र टावेल भी उतारकर फ़ैंक दिया उसने। अब वह ए...

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काले कोस, अंधेरी रातें - 3 - अंतिम भाग By Kavita Sonsi

काले कोस, अंधेरी रातें (3) छोट उम्र से ही सबका सपोर्ट थी ...सबका खयाल रखती थी ...देहरादून से भी जब आती तो मेरे लिए कुछ- न –कुछ जरूर लेकर आती, दो डिब्बा चूड़ी, नेलपालिस चाहे फिर घर क...

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तन्हाईयाँ By Husn Tabassum nihan

तन्हाईयाँ जैसे ही उन्होंने व्हिस्की के पैग को हलक़ में उंडेला, व्हिस्की खिलखिला उठी- ‘‘पी डालूंगी ढक्कन को! जनबूझ के हमसे पंगा ले रहा है। खंजड़ न कर दूं तब कहना....पी...डालूंगी‘‘ पैग...

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चंपा पहाड़न - 3 By Pranava Bharti

चंपा पहाड़न (3) “शी नीड्स ए डॉक्टर ---” जैक्सन बुदबुदाए और पास खड़े मह्तू से आस-पास के बारे में पूछताछ करने लगे | “साहेब ! दूसरे गाँव में एक बैद जी रहते हैं, नाथूराम बैद, वो बहुत मशह...

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मारिया By Zakia Zubairi

मारिया ज़किया ज़ुबैरी सभी एक दूसरे से आँखें चुरा रहे थे। अजब-सा माहौल था। हर इंसान पत्र-पत्रिकाओं को इतना ऊँचा उठाए पढ़ रहा था कि एक दूसरे का चेहरा तक दिखाई नहीं दे रहा था। सिर्फ़...

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बड़ी बहू By Kumar Gourav

-----------मदना का हाथ आ गया थ्रेसर में ,देखते ही ट्रैक्टर का ड्राईवर और मजदूर सब फरार हो गया । बगल केे खेत में फसल काटते मजदूर ने जमींदार साहब के घर पर खबर किया "अपने थ्रेसर में ह...

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धनिया - 5 - अंतिम भाग By Govardhan Yadav

धनिया गोवर्धन यादव 5 पहाड़ की चोटी से उतरती देनवा अपनी अधिकतम गति से शोर मचाती हुई आती है और फिर एक बड़ी-सी पहाड़ी पर से झरना का आकार लेते हुए गहराईयों में छलांग लगा जाती है। तेजी...

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सुखदेव की सुबह By Govind Sen

सुखदेव की सुबह गोविन्द सेन सुखदेव सुबह पाँच बजे उठ जाते हैं । उनकी उम्र का काँटा 50-55 के बीच कहीं अटका है । जब से उन्हें शुगर निकली है और डॉक्टर ने रोज घूमने की सलाह दी है, वे निय...

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अहसास. By Amitabh Mishra

अहसास बरसों बाद रामेश्वर मिला। मुलाकात रेलवे स्टेशन पर हुई थी। मैं छोटे भाईको छोड़ने गया था। वही वह दिखा। किसी सरकारी काम से आया था । सुबह हीआया था और अब वापस जा रहा है। उसने यह बत...

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परित्यक्त By Dr Lakshmi Sharma

परित्यक्त “माँ....मुझे कुछ पैसे चाहिये.” सारांश की आवाज पौष माह का पाला मारी सी है, ठंडी से जकड़ी और ठिठुरती सी. “फिर से? अभी महीना पहले ही तो तुम्हारे अकाउंट में दस हजार ट्रांसफर ....

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ये चकलेवालियां, ये चकलेबाज - 3 - अंतिम भाग By Neela Prasad

ये चकलेवालियां, ये चकलेबाज नीला प्रसाद (3) शाम शाम होते - होते ऐसा लगा जैसे हम सब एक दूसरे के सामने नंगे हो गए। मैं तो खैर नई थी पर लगा कि जैसे सबों को सबों का पता था पर फिर भी किस...

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स्वप्न जैसे पाँव By Hrishikesh Sulabh

स्वप्न जैसे पाँव हृषीकेश सुलभ यह एक हरा-भरा क़स्बाई शहर था, जिसे कोशी नदी की उपधाराओं ने चारों तरफ़ से घेर रखा था। एक तो, जिसका नाम सौरा था, शहर को दो भागों में बाँटती हुई ठीक ब...

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चोर. By Pawan Chauhan

चोर रात के खाने का निबाला अभी मुहॅं में डाला ही था कि चोरऽऽ चोरऽऽ का शोर मेरे कानों से टकराया। मैं चैंका लेकिन यह सोचकर खाने में मशगूल हो गया कि रोज़ रात को गॉव में रहने लगे ईंट बना...

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कुबेर - 29 By Hansa Deep

कुबेर डॉ. हंसा दीप 29 अपने अलावा और लोगों पर नज़र जाती तो कुछ चिन्ताएँ कम होतीं। वह अकेला नहीं है जो यह सब सहन कर रहा है, इस भावना से हिम्मत बनी रहती। कई ऐसे परिवार थे जिन्होंने अप...

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मूड्स ऑफ़ लॉकडाउन - 16 By Neelima Sharma

मूड्स ऑफ़ लॉकडाउन कहानी 16 लेखिका: रिंकी वैश अधूरी कहानियों के खंडहर “ज़िंदगी और मौत ऊपर वाले के हाथ में है जहाँपनाह, जिसे न आप बदल सकते हैं न मैं। हम सब तो रंगमंच की कठपुतलियाँ हैं...

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हूफ प्रिंट - 2 By Ashish Kumar Trivedi

माने हुए व्यापारी किशनचंद भगनानी के बेटे मानस भगनानी की इंगेजमेंट श्वेता रामचंद्रन के साथ होती है। इस इंगेजमेंट की सुर्खियां सही तरह से मीडिया में फैलती उससे पहले ही मानस के स्टड फ...

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फ्लाई किल्लर - 4 By SR Harnot

फ्लाई किल्लर एस. आर. हरनोट (4) उसे महसूस हुआ कि उसका रक्तचाप बढ़ रहा है। उसने तत्काल बिजली जला दी थी। वह दूसरे कमरे में सोई पत्नी को उठा कर रक्तचाप मापने की मशीन को मंगाकर अपना रक्त...

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घेराव - 1 By PANKAJ SUBEER

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तालियाँ By Husn Tabassum nihan

तालियाँ कवि कौशल प्रताप मंच पे धाक जमाए हुए थे। उनके एक-एक शब्द पर स्रोता झूम रहे थे। उल्लासित हो रहे थे। बेसाख्ता तालियाँ पीट रहे थे। कौशल प्रकाश के चेहरे पर अजब सी आभा थी। चेहरे...

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कहानी किससे ये कहें! - 1 By Neela Prasad

कहानी किससे ये कहें! नीला प्रसाद (1) 31 अगस्त 1991. सुबह-सुबह आसमान में छाए घने काले बादल इंगित कर रहे हैं कि किसी भी क्षण वर्षा शुरू हो जा सकती है। लगभग साढ़े तीन दशक लंबी नौकरी क...

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किसी ने नहीं सुना - 6 By Pradeep Shrivastava

किसी ने नहीं सुना -प्रदीप श्रीवास्तव भाग 6 ‘समझ में नहीं आता कि तुम्हारा पति कैसा है। और साथ ही तुम भी। तुम कहीं से भी कम खूबसूरत नहीं हो। न ही किसी बात से अनजान इसलिए आश्चर्य तो य...

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फिर मिलेंगे... कहानी - एक महामारी से लॉक डाउन तक - 4 By Sarvesh Saxena

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ज़िन्दगी कुछ और ही होती... By Lajpat Rai Garg

ज़िन्दगी कुछ और ही होती... मध्य दिसम्बर की एक संध्या। सूर्य क्षितिज के पश्चिमी छोर पर बड़े से वृताकार में नीचे की ओर तेजी से जाता हुआ। शहर का मशहूर पार्क जहां शहर के हर भाग से लोग...

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देह की दहलीज पर - 6 By Kavita Verma

साझा उपन्यास देह की दहलीज पर संपादक कविता वर्मा लेखिकाएँ कविता वर्मा वंदना वाजपेयी रीता गुप्ता वंदना गुप्ता मानसी वर्मा अब तक आपने पढ़ा :-मुकुल की उपेक्षा से कामिनी समझ नही...

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स्पीड ब्रेकर गोविन्द सेन हफ्ते-दो हफ्ते में कोई न कोई स्पीड ब्रेकर मिल ही जाता है। अमूमन सुबह घूमकर लौटने में मुझे सवा घंटा लगता है। लेकिन जब कोई स्पीड ब्रेकर मिल जाता है तो पन्द्र...

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खोह By Amitabh Mishra

खोह वह राजधानी का सबसे अधिक जनसंख्या वाला जनसंख्या केघनत्व वाला इलाका होगा । बहुत छोटे से क्षेत्रफल का किफायती इस्तेमाल ऊंचाईमें कर तमाम बहुमंजिला इमारतें बना दी गई थीं...

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हलंत By Hrishikesh Sulabh

हलंत हृषीकेश सुलभ बात बहुत पुरानी नहीं है। कुछ ही महीनों पहले की बात है। वह हादसों का मौसम था। उन दिनों सब कुछ अप्रत्याशित रूप से घटता। जिस बात की दूर-दूर तक उम्मीद नहीं होती, वह ब...

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प्रगल्भा By Dr Lakshmi Sharma

प्रगल्भा “मेम, हमें नाम लिखवाना है.” घनानन्द की आंसुओं में डूबी कविताओं वाली क्लास अभी-अभी खत्म हुई ही है. मैंने स्टाफ रूम में आ कर अभी राहत की साँस भी नहीं ली है कि ये सिरदर्द सिर...

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सुनो पुनिया - 1 By Roop Singh Chandel

सुनो पुनिया (1) घाम की चादर आंगन के पूर्वी कोने में सिकुड़ गई थी. पुनिया ने मुंडेर की ओर देखा और अनुमान लगाया सांझ होने में अधिक देर नहीं है. ठंड का असर काफी देर पहले से ही बढ़ने लगा...

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राज - भाग -२ By Anil Sainger

अगला एक हफ्ता पास-पड़ोस का आना-जाना और पार्टी का माहौल बना रहा | देर रात जब भी अंकुर सोने के लिए कमरे में आता तो दादा-दादी उसके साथ ही बेड पर बैठ उसका माथा बारी-बारी से तब तक सहलाते...

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मारिया By Zakia Zubairi

मारिया ज़किया ज़ुबैरी सभी एक दूसरे से आँखें चुरा रहे थे। अजब-सा माहौल था। हर इंसान पत्र-पत्रिकाओं को इतना ऊँचा उठाए पढ़ रहा था कि एक दूसरे का चेहरा तक दिखाई नहीं दे रहा था। सिर्फ़...

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बड़ी बहू By Kumar Gourav

-----------मदना का हाथ आ गया थ्रेसर में ,देखते ही ट्रैक्टर का ड्राईवर और मजदूर सब फरार हो गया । बगल केे खेत में फसल काटते मजदूर ने जमींदार साहब के घर पर खबर किया "अपने थ्रेसर में ह...

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धनिया - 5 - अंतिम भाग By Govardhan Yadav

धनिया गोवर्धन यादव 5 पहाड़ की चोटी से उतरती देनवा अपनी अधिकतम गति से शोर मचाती हुई आती है और फिर एक बड़ी-सी पहाड़ी पर से झरना का आकार लेते हुए गहराईयों में छलांग लगा जाती है। तेजी...

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सुखदेव की सुबह By Govind Sen

सुखदेव की सुबह गोविन्द सेन सुखदेव सुबह पाँच बजे उठ जाते हैं । उनकी उम्र का काँटा 50-55 के बीच कहीं अटका है । जब से उन्हें शुगर निकली है और डॉक्टर ने रोज घूमने की सलाह दी है, वे निय...

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ये चकलेवालियां, ये चकलेबाज - 3 - अंतिम भाग By Neela Prasad

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स्वप्न जैसे पाँव By Hrishikesh Sulabh

स्वप्न जैसे पाँव हृषीकेश सुलभ यह एक हरा-भरा क़स्बाई शहर था, जिसे कोशी नदी की उपधाराओं ने चारों तरफ़ से घेर रखा था। एक तो, जिसका नाम सौरा था, शहर को दो भागों में बाँटती हुई ठीक ब...

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चोर. By Pawan Chauhan

चोर रात के खाने का निबाला अभी मुहॅं में डाला ही था कि चोरऽऽ चोरऽऽ का शोर मेरे कानों से टकराया। मैं चैंका लेकिन यह सोचकर खाने में मशगूल हो गया कि रोज़ रात को गॉव में रहने लगे ईंट बना...

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