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Sarika Sangani

Sarika Sangani

@sarikasanganigmail.com202923
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वह उड़ी बेखौफ ,कर लिया शिखर सर
फिर रुक गई ,दो चार कदम वापस मूड गई। वह जानती है उसे स्वीकृति तब ही मिलती है जब वह पीछे हटती है।आखिर औरत जो है।
- Sarika Sangani
@sanganiwtites

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पुरुषप्रधान समाज ने खुदकी सहूलियत के हिसाब से मापदंड बनाए। जिसको स्त्रियोंकीही सुरक्षितता का नाम दिया गया।अत्यधिक सुरक्षितता ने उनको अबला बना दिया ,कुंठित कर दिया वरना ये आसमान तो उनका भी उतनाही था, पर वे उड़ न पाई।
- Sarika Sangani
@sanganiwrites

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सदियों से मन ही मन कुंठित हो रही लड़कियां अब अपने पैरों पर खड़ी होकर अपना खोया सम्मान प्राप्त करना सीख गई है। शायद इसीलिए अब शादी मायने नहीं रखती।
@sanganiwrites
- Sarika Sangani

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किस मंदिर जाऊं मैं,
कौन देव को भजूं मै
मैने तो इन पुस्तकों को साथ लिया है
इन्ही में ब्रह्म को पाया है।
भगवान को क्या जानूंगी मै
अभी इंसान को समझ नहीं पाई हूं।
गीता,बाइबल , कुरान में जीवन का मर्म खोज रही हूं।

- Sarika Sangani

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ए दिले नादान,
तू क्यों मचलता है बारबार,
तू रोता है, तड़पता है।
लूटा के उसपर सारा प्यार
खुद को अकेला पाता है।
कितना समझाती हु इस दिल को
पर यही गलती करता हर बार
झूठे प्यार को सच मानकर आखिर धोखा ही मिलता है।




- Sarika Sangani

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कुछ उलझी सी लगती है ये जिंदगी जब बार बार अपने सपनों को टूटते हुए देखती हु मै। जिंदगी में क्या करना चाहा था क्या हो गई हूं। उदास हो जाती हूं।गमोंको महसूस करती हूं। पर किसी से कुछ कह नहीं पाती।
कुछ उलझी सी लगती है ये जिंदगी जब अपने बच्चों को यूं आपस में लड़ते हुए देखती हूं। जब वे नादान गैर जिम्मेदार से लगते है।जानती हु उनके जवां उम्र का तकाजा है,वे ऐसाही बर्ताव करेंगे,उनकी फिक्र करती हु क्या करूं एक मा के मन को समझा नहीं पाती।
कुछ उलझी सी लगती है जिंदगी जब चुपचाप रिश्तोंमे पड़ी दरारों सह जाती हूं। हां कभी इस मनमुटाव से सहम जाती हु। पर किसी से कुछ पूछती नहीं।किसी से कोई शिकायत करती नहीं।जानती हु धीरे धीरे अकेली हो रही हु मैं, पर अब रिश्तों में समझौता नहीं कर पाती।
कुछ उलझी सी लगती है ये जिंदगी जब घर में बिखरी किताबें , फैले कपड़े, जमी हुई धूल और मेरी ढेर सारी दवाईयां देखती हु। क्षमता से अधिक काम करने लगती हु और थक हार कर बैठ जाती हु। पता है मुझे मेरा हालचाल तो कोई पूछेगा नहीं। फिरभी सबका ख़्याल रखती हु पर खुदको सम्भाल नहीं पाती।
कुछ उलझी सी लगती है ये जिंदगी जब मुसीबतें पीछा नहीं छोड़ती। खुशी के चंद पल चंद ही होते है, और ग़म की पूरी रात होती है । सब कुछ जानते हुए भी नासमझ बन जाती हु। सब ऊपरवाले पे छोड़ रखा है मैने। सोचती हूं चाहे जैसी भी है, उलझी ही सही आखिर अपनी ही तो है , इसीलिए इसी जिंदगी को हंसते हुए जीए जाती हु, मै लड़वैया हूं। मैदान छोड़कर भाग नहीं सकती।
चाहे फिर कुछ उलझी सी लगे यह जिंदगी।
@sanganiwrites

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Dear all readers, followers, my new story is published for you to feel the essence of love"आसमां से आंखों तक का बोझ"। प्यार के रंग हजार, उसमें से एक अपने प्यार को समझना उसी पे आधारित छोटीसी कहानी , संवेदनशील लोगोंको अपनी भावनाएं इसमें व्यक्त होती हुई प्रतीत होगी।आपका बहुत बहुत धन्यवाद।

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वो जो तुम जिंदगी में आगे बढ़ने के लिए प्रयत्न करते वक्त लोग क्या कहेंगे यह सोचते हो न तभी तुम दो कदम और पीछे चले जाते हो।
- Sarika Sangani

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दुनियाका सबसे दयनीय चेहरा
उसका होता है जो किसी से उधार मांगता है।
और दुनिया सबसे मक्कार
चेहरा भी उसी इंसान का होता है
जब आप उधार वापस मांगते हो।
- Sarika Sangani

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हर इंसान की रचना निरंतर प्रगति होने के लिए ही है, बशर्ते वह "भय" शब्द को अपने जीवन से हटा दे।
- Sarika Sangani