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divya

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@paldivya173gmail.com145515


हा अब खुश हुं मैं ,,

क्योंकि अब खुशियों की, तलाश नहीं करती।

सब खो चुकी हूं शायद,,
अब कुछ भी पाने की ,आस नहीं करती ।

शायद बिखरी हुई हूं
अब जुड़ने की, कोशिश नहीं करती ।

जो भी है आज
जी लेती हूं उस आज में कल की तलाश नहीं करती।

सब्र रखती हु अब,
बेवजह ख्वाहिशों की, आस नहीं रखती ।

हा शायद इसलिए खुश हूं मै,
क्योंकि अब खुशियों की, तलाश नहीं करती।

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