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यह ज्ञान से उतरती, राग-द्वेष की संसद है, नित नये राग हैं,सुर- असुरों के, देव सारे स्वर्ग सिधारे, पर अब भी आशा नित नहाती ओ,भारतभाग्यविधाता।
एक छोटा सा मन था जो छोटी सी प्रेम कहानी में उलझा रहा, बहुत आशा से निराशा की ओर जा फिर आशा पर टिका रहा।
राह ही तो है राह ही तो है निकल जायेगी जंगलों से, पहुँचा देगी इधर से उधर,कहीं भी। राह ही है जो प्यार को पकड़ स्वरों में ढल, धुनों को गुनगुनायेगी। राह ही है जो बदल जायेगी, सतयुग, त्रेता ,द्वापर होते हुये कलियुग में आ जायेगी। *** *** महेश रौतेला
मैं इस संसृति का हिस्सा हूँ तुम संसृति का हिस्सा हो, खो जाऊँ तो मिल जाऊँगा तुम सा अगाध बन जाऊँगा। हम संसार की बातों में सुबह-शाम बीताते जायेंगे, अर्धसत्य से पूर्ण सत्य तक उर्ध्व राह ढूंढते जायेंगे। जो संगीत यहाँ बजता है उसमें गीत मिलाते जायेंगे, हम पशुता को छोड़छाड़ मानवता का संघर्ष सजायेंगे। जो भाषा की लाठी पकड़-पकड़ भारत को यों नकार रहे हैं, हम भारत की भाषा को कह सबकी पहिचान बना रहे हैं। क्षुद्र जिनका लक्ष्य रहा वे मिट जायेंगे मिट्टी में, पार्थ, इस संघर्ष की मीमांसा में शिशुपाल चक्र से कट जायेंगे। ** महेश रौतेला
लेकिन सन्तोष है: बहुत निराशा है मन में कि इतना भ्रष्टाचार है पैसे का लेन-देन है, लेकिन सन्तोष है कि अच्छाई भी है। बहुत निराशा है मन में कि नदियां गदली हो चुकी हैं दूषित बहुत नाले हैं, पर सन्तोष है कि कुछ शुद्धता बनी हुयी है। मन बहुत उदास है कि कुछ पक्षियां विलुप्त हो गयी हैं कुछ जंगल कट चुके हैं पर सन्तोष है कि अभी भी आशा जीवित है। बहुत उदिग्न हूँ कि युद्ध लड़े जा रहे हैं, गलत इधर भी है गलत उधर भी है, लेकिन सन्तोष है कि अच्छाई अभी भी है। उधर इतनी घूस है इधर उतनी घूस है, कहीं झूठे नोटिस हैं कहीं झूठी जाँच है, लेकिन अच्छी बात है कि अभी भी सच पर विश्वास है। **** *** महेश रौतेला
कष्ट यहीं रह जायेंगे सुख-दुख बैठे रह जायेंगे। यह भाषा, वह भाषा बोलते-बोलते चुप हो जायेंगे, यह राह, वह राह चलते-चलते गुम हो जायेंगे। इस कहानी,उस कहानी को कहते-कहते विराम ले लेगें, इस ममता, उस ममता में ठहर सब कुछ छोड़ जायेंगे। इस किताब, उस किताब को पढ़ मौन जायेंगे, कभी इसकी, कभी उसकी आलोचना करते-करते आलोचना के पात्र बन जायेंगे। इस विभाजन, उस विभाजन में रह खाली हाथ चल देंगे, शिकायतों पर विराम लग क्षणभर में सब शान्त हो जायेंगे, कष्ट यहीं रह जायेंगे। *** महेश रौतेला
यह जग कान्हा तेरा है तो ये महाभारत खूनी किसका है! हर पग टेढ़ा, हर पग भटका यह सीधी राह किसकी है! देखा तुमको जग के संग तो युद्ध सारे किसके हैं! दुनिया सारी सुर विहीन है गीत सारे किसके हैं! कुछ साकार, कुछ विराट है यह नींद प्यारी किसकी है, पथ से आना,पथ से जाना यह चक्र पुराना किसका है! *** महेश रौतेला
यह जग कान्हा तेरा है तो ये महाभारत खूनी किसका है! * महेश रौतेला
प्रिय शहर की प्रिय बातें उगते सूरज सी लगती हैं। कहाँ गया मित्रों का झुंड जो प्रेम पत्र से दिखते थे! * महेश रौतेला
अहमदाबाद विमान दुर्घटना: क्षणभर जीना क्षण में मरना, गंतव्य चुना था भवितव्य विकट था। लोक यहीं है परलोक निकट है, क्षण की महिमा क्षण में संकट। सुख भी छूटा दुख भी छूटा, क्षण का उदभव क्षण में टूटा। किसको पूजा किसको छोड़ा, गंतव्य चुना है मंतव्य अटल है। क्षण में जीना क्षण में मरना दुर्घटना का संदेश क्रूर है। * महेश रौतेला
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