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यमदूत की बहाली गयासुद्दीन के पांच साल के छोटे से शासनकाल के पश्चात उलूंग खाँ ने गद्दी संभाली। राजामुंदरी के एक अभिलेख अनुसार वह पूर्ववर्ती सभी शासकों की अपेक्षा योग्य और विद्वान व्यक्ति था। अपनी सनक भरी योजनाओं एवं दूसरे के सुख दुख के प्रति उपेक्षा भाव के कारण उसे स्वप्नशील और पागल आदि भी कहा जाता था। जब उलूंग खाँ ने दिल्ली की जनता को दौलताबाद चले जाने का हुक्म किया तो कीकट प्रदेश का एक ठठेरा व्यथित होकर घुड़साल में छिप गया। ठठेरा कुछ समय पहले ही जीवनयापन हेतू राजधानी में आकर बसा था। एक एक कर जब सभी सवारियां दौलताबाद को चली गई तो घुड़साल उजाड़ दिया गया। हारकर ठठेरा अपने परिवार को ले पैदल ही कीकट प्रदेश की ओर चल दिया। सफर का महीना था। दुर्भाग्य से भूख प्यास के कारण उसकी मौत रास्ते में ही हो गई। दो दिन तक तो उसका शव रास्ते पर ही पड़ा रहा। यम के दूतों ने उसे ले जाने से ही मना कर दिया। उन्होंने कहा जब हूकूमत बादशाह की है तो रियाया का खुदा ही मालिक है। भला हो ट्विटर का जिसने आरआईपी ह्यूमैनिटी का हैशटैग चलाया । जिसके चलते उन्हें उसे ले जाना पड़ा। यमदूतों ने उसे ले जाकर नरक के द्वार पर पटक दिया। कई दिन हो गए लेकिन न तो उसे भीतर बुलाया न ही वहाँ से भगाया। साल के अंत में फाइल क्लोज कर चित्रगुप्त महाराज भौतिक निरीक्षण के लिए निकले तो उनकी नजर से ये बात छिपी नहीं रह सकी। अधिकारी तलब हुए जबावदारी हुई तो अधिकारियों ने कहा हमारे पास ऐसा कोई दस्तावेज नहीं है जिसके आधार पर इसे नरक में जगह मिले। चित्रगुप्त महाराज ने लोकाचार समझाया चूंकि यह स्वर्ग में नहीं रखा जा रहा इसलिए नरक में रहेगा। अधिकारियों ने पूछा यह नरक में करेगा क्या तो चित्रगुप्त ठठेरे से ही पूछ लिया तुम्हें कौन सा काम आता है। उसने कहा हूजूर बर्तन बनाना और मरम्मत करना जानता हूँ। धीरे धीरे ठठेरा यमदूतों में घुलमिल गया। उनके कामों में सहायता करना । कुछ समय बाद उलूंग खाँ ने फिर दौलताबाद से दिल्ली चलने का हुक्म दिया। इस बीच कीकट प्रदेश में महामारी फैल गई। वहाँ का राजा भी महामारी की चपेट में आ गया। काम बढ़ गयाथा नरक में गैर जरूरी कामों को रोककर सबको ढ़ोने में लगाया गया। ठठेरे को एकबार फिर से अपनी जन्मभूमि को देखने की लालसा लगी । वह भी कीकट नरेश को लानेवाले झुंड में शामिल हो गया। कीकट नरेश उसे देखते ही पहचान गये " का रे गजोधर इहाँ कैसे ? तुम तो सुने दिल्ली बस गये। " ठठेरा अपने सहकर्मियों के सामने झेंप गया " दिल्ली त कब्बे छोड़ दिए मालिक । अब यमदूत में बहाल हो गये हैं।" कीकट नरेश चलने के लिए पलंग के नीचे पैर से चप्पल खोजने लगे "कहाँ ड्यूटी है आजकल स्वर्ग में की नरक में।" ठठेरा हाथ जोड़कर बोला " हमरा त भगवान बनाये ही हैं आपके सेवा के लिए । इसलिए पहले से नरक में ड्यूटी लगाये हुए हैं।" © Kumar Gourav
जोरू का गुलाम राधा आटा गूंधते गूंधते बडबडा रही थी " पता नहीं क्या ज्योतिष पढ रखी है इस आदमी ने हर बात झट से मान जाता है । उसका भी मन करता है रूठने का , और फिर थोडी नानुकुर के बाद मान जाने का । अभी कल कहा सर में दर्द है तो फौरन से झाडू पौंछा बरतन सब करके बैठ गया सर दबाने । आराम पाकर थोड़ा आंखें क्या बंद की, लगा पैर दबाने । पता नहीं इस आदमी में स्वाभिमान नाम की कोई चीज है कि नहीं । पिताजी ने न जाने किस लल्लू को पल्लू में बांध दिया । " तभी आहट हुई तो देखा विनोद बेसिन पर हाथ धो रहे थे । उसने पूछा " सब्जी नहीं लाये क्या । " विनोद झुंझलाकर बाहर की तरफ जाते हुए बोला " जोरू का गुलाम समझ रखा है क्या , सामने सडक पर तो मिलती है खुद क्यों नहीं ले आती । " राधा को तो मन की मुराद मिल गई पल्लू कमर में खोंसकर अपने डायलाग सोचते सोचते वो विनोद के पीछे लपकी । तभी उसके पैरों से कुछ टकराया और वो धडाम से गिर पडी , देखा तो सब्जियां थैले से बाहर निकल कर किचन में टहल रही थी । उनको पकड पकडकर उसने पुनः थैले में बंद करना शुरु कर दिया और मन ही मन बडबडाने लगी " इस आदमी पर न पक्का किसी भूत प्रेत का साया है मेरे मन की सब बात जान जाता है आज ही माँ को फोन करके कहती हूं मसान वाले बाबा से भभूति लेकर भिजवा दे । " उधर से विनोद चिल्लाया " अरे क्या टूटा । " गुस्से में ये भी चिल्लाई " मेरा भ्रम । " Kumar Gourav
मातृत्व गाँव की नई बनी सड़क पर शहरी बाबू की कार के सामने एक बुजुर्ग औरत आ गई । वो बचने की जुगत सोच ही रहा था कि औरत ने जाने का ईशारा किया " तुम जाओ बेटा ,तुम्हारी कोई गलती नहीं , मुझे ही बुढ़ापे में अब कम दिखने लगा है । "
"नशा", को मातृभारती पर पढ़ें : https://www.matrubharti.com भारतीय भाषाओँ में अनगिनत रचनाएं पढ़ें, लिखें और दोस्तों से साझा करें, पूर्णत: नि:शुल्क
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