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Kanchan Rautela Rawat

Kanchan Rautela Rawat

@kanchanrautelarawat160412


पापा होते तो ,
प्यारी कहानी होती।
पापा होते तो,
खुशनुमा ज़िंदगानी होती।
पापा होते तो,
दुख नहीं आने देते।
पापा होते तो,
मुझे कहीं जाने नहीं देते।
पापा की हर बात,
जब याद आती है....
तब तब आँखें मेरी,
भर आती है।
वो बातों को घुमा कर ,
मुझे समझाना...
पल पल में बातें बताकर,
मुझे हँसाना...
वो लेम्प के उजाले में परछाई बनाना...
मेरे खेलों में मेरा साथ निभाना....
कंधे पर बिठा कर मुझे नचाना ...
अपनी गोदी में मुझे सुलाना....
क्या क्या याद करूँ ?
क्या क्या भूल जाऊँ ?
समझ नहीं आता...
कैसे उन पलों को लाऊँ?
काश आप वापस आ पाते....
काश मुझे गले लगा पाते....
नहीं जाने देती आपको...
रोक लेती अपने लिए।
खुदगर्ज़ हूँ, पर बेटी हूँ,
आप नहीं जानते,
अब कितनी अकेली हूँ ।।
- अल्फाज़-ए-ज़िन्दगी

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रात महक महक गयी,
ढलते सूरज के अलविदा के साथ....
ये जो फूल हैं,
हरसिंगार के....
दिलाते हैं याद तेरी....
कि कैसे तुमने ठुकराया था,
बेजुबाँ सच्चा प्यार मेरा...
चंद कागज़ के टुकड़ों की ख़ातिर,
निश्छल सा इकरार मेरा।।

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वो तेरा कल थी,मैं तेरा आज हूँ...
वो थी बेवफाई की हस्ती,
मैं वफ़ा का ताज हूँ..
जब तक सांसें चलेंगी,
तब तक साथ निभाऊँगी...
चाहे कितना कर ले रुसवा,
तेरे संग संग चलती जाऊँगी..
वादा जो किया है मैंने,
ना छोडूंगी तेरा साथ...
बस साथ चलता रह,
हाथों में डाले हाथ..
बस इतना याद रख,
गुरूर काम ना आएगा....
जैसा तू बोयेगा,
वैसा ही फल पाएगा..
वक़्त का पहिया है ये,
चलता जाएगा...
जहाँ से शुरू हुआ है,
वहीं पर आ थम जाएगा..
इसीलिए विनती है तुमसे,
ऐसा तुम व्यवहार करो...
दिल को जो यूँ छू जाए,
इतना तुम प्यार करो..
इतना तुम प्यार करो।।
- कंचन रौतेला रावत

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वक़्त की रेत में,
चुपके से समा गये..
वो पाँव के निशां ।
जिन्हें कभी छोड़ा था,
सुनहरी यादें समझ कर ।

-Kanchan Rautela Rawat

दुनिया से तुम कभी ना डरना।
मुसीबतों से डट कर लड़ना ।
खुदगर्जी से रहना दूर।
किसी को मत करना मजबूर।
तुम हो मेरी प्यारी बेटी।
इतना कहना मनोगी?
चाहे कुछ भी हो जाए,
दिल ना कभी दुखाओगी।

मान हमेशा बड़ों का रखना।
छोटो को तुम देना प्यार।
भूल ना जाना माँ का कहना ।
माँ की शिक्षा, माँ का प्यार ।

माँ की छोटी-छोटी बातें ।
रखती थी मैं उनका ख्याल।

फिर एक दिन देखा मैनें ,
एक भी सीख ना आयी काम ।
मैंने जिनको अपना माना,
करने लगे वही बदनाम ।

बात बड़ों की मानी मैनें,
छोटो को दिया सम्मान ।
पर मुझे बेवकूफ कहकर,
किया गया मेरा अपमान ।

मरणासन्न में पहुंच गयी थी,
भूल गया अपना ही प्यार।
लोगों की बातों में आकर,
करने लगा मेरा तिरस्कार ।

फूट-फूट कर रोयी मैं फिर,
माँ को बोली, यही है प्यार?

माँ तुमने मुझको अपनाया,
भला बुरा मुझको सिखलाया।

लेकिन इन बातों ने मुझको,
हंसी का है पात्र बनाया ।

मैनें सीख लिया जीवन में,
ज्यादा संस्कारी मरता है।
फूहड़ है जो, ढोंगि है जो,
वो इस दुनिया में बसता है।

अपना आत्मसम्मान बड़ा है,
उसकी इज्जत करना सीखो।
दुनिया से क्या लेना देना,
अपने पथ पर बढ़ना सीखो ।


- कंचन रौतेला रावत।

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