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शब्द ArUu ✍️
मैं कभी किसी के सामने वो नहीं बन पाई जो मैं वास्तव में हूं पहन रखे है मैने नकाब हजारों🖤 ArUu ✍️
बधाई हो हम ही वो लोग है जो कलि पुरुष का मार्ग प्रशस्त कर रहे है। ArUu ✍️ - ArUu
एक पीढ़ी का ढोंग दूसरी पीढ़ी के लिए रिवाज और तीसरी पीढ़ी के लिए परंपरा बन जाता है🙃 और बड़े अफसोस के साथ कहना पड़ता है कि भारत जो कि कभी विश्वगुरु था अब एक अंधभक्तों का देश है जहां हर रिवाज परम्परा बिना सवाल या जानकारी के आंखे मूंद के मान ली जाती है भले वो सकारात्मक हो या नकारात्मक🫠 ArUu ✍️
आज भी लोगों की सोच देख कर बड़ा अफसोस होता है गांव में जब गिरदावरी क्रॉप कटिंग करने जाते है तो लोगों का व्यवहार देख कर बड़ा आश्चर्य होता है कुछ लोग पूछते है मैडम आपकी जात क्या है ? चलो यहां तक ठीक है हद तो तब होती है जब मैं बताती हूं कि प्रजापत कुम्हार हूं तो पूछते है कौनसे कुम्हार अब ये चीज मुझे और ज्यादा अटपटी लगती है बेकार बिना मतलब की जिसका कोई सर पैर नहीं शायद मुझे ये बताना भी बड़ा बकवास सा लगता है कि भाई मै कुम्हार हूं ऐसा नहीं है कि मुझे अच्छा नहीं लगता या मुझे इस सवाल से कोई दिक्कत है पर मुझे दिक्कत बस उस जवाब से है बस बात इतनी सी है कि मुझे बस जो मैं हूं उससे पहचाना जाए जिसके लिए मैने मेहनत की या जो मैं खुद के बल बूते पर हूं उससे मुझे जाना जाए ना कि उससे जो होने में मेरा कोई हाथ नहीं लोग जाने क्यों गर्व करते है किस चीज का गर्व करते है शायद ऊपर वाले को कोई अर्जी डाल के दुनिया में आए हो...और अर्जी डालने की व्यवस्था ऊपर दरबार में होती तो शायद कोई जानबूझ के इस भेदभाव का शिकार नहीं होना चाहता। सोशल मीडिया पर देखे तो एक ट्रेंड सा बन गया है अपनी जात पर गर्व करने का और दूसरी जाति को निचा दिखाने का जब ऐसे लोगों के देखती हूं तो तरस आता है मुझे उन पर आज ही की बात है एक आदमी बोले... मैडम इतने साल हो गए मैने ST SC के खेत का धान नहीं खाया...वो शायद मुझे बताते हुए गर्व कर रहा था पर मुझे उसकी सोच पर अफसोस हो रहा था। इतनी चाहत नहीं रखती कि किसी का दिल दुखाउ पर अर्ज सिर्फ इतनी सी है कि कोई जानबूझ कर किसी इंसान का दिल ना दुखाए... मैं बार बार अपने ब्लॉग में लिखती आई हूं कि ये जात पात उच्च नीच सब मानव निर्मित है...अपने फायदे के लिए प्रथम मानव मनु द्वारा लिखित पुस्तक मनु संहिता भी मेरी समझ से परे है...एक सोची समझी साजिश है इंसान से इंसान को दूर करने की मैं तो ये भी नहीं मानती कि मनु संहिता ब्रह्मा पुत्र मनु द्वारा लिखी गई है...क्योंकि सृष्टि के प्रारंभ में जातिवाद था ही नहीं उस वक्त तो कर्म आधारित व्यवस्था थी ये तो वैदिक काल की देन है...आज इतने वर्षों बाद भी इंसानों की ये अवस्था देख हृदय बड़ा विचलित सा हो जाता है। हम लोग इंसानों में ही भेद किए बैठे है...मेरे कई करीबी रिश्तेदार कहते है कि इसको पढ़ा लिखा के गलती कर दी...पर मैं समझती हूं कि अगर मैं किसी इंसान को बस एक इंसान के रूप में देख पा रही हूं...भगवान के बनाए मिट्टी के पुतलों में भेद नहीं कर रही तो मेरा पढ़ना लिखना बेकार नहीं गया क्योंकि पढ़ी नहीं होती तो समझ ही नहीं पाती कि हम सब ही एक ही सांचों में ढले इंसान है जिन्हें इंसानों की कंपनी द्वारा जात का टैग लगाया हुआ है ArUu ✍
कुछ दिन पहले एक उपन्यास पढ़ा था गुनाहों का देवता वो उपन्यास ऐसा है मानो लेखक ने अपने अंदर के पूरे प्रेम को सुधा के चरित्र में पिरो दिया हो...शायद उस वक्त मैं ये इतना नहीं समझ पाई जितना अब समझ पा रही हूं पर उसे दोबारा पढ़ने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही। सुधा जितना उच्च कोटि का प्रेम करना कहा संभव है ... और चंदर की आदर्शवादिता का परिणाम भी सुधा जैसी देवी ने भुगता🥲इसका अंत भी एक सामाजिक विडंबना है जो आज के जमाने में भी प्रासंगिक है और जाने कितनी ही सुधा को अभी सहना है....कितनी ही सुधा की बलि अभी तक चंदर को देनी है😅
मुझे लगता है लिखना सबसे सुखद कला है कितना सुंदर सा अनोखा वरदान है लिखना आप वो सभी चीजें लिख सकते है जो कभी किसी से कह नहीं पाए या वो जो आप किसी से कहना नहीं चाहते वो भी जो कभी कह नहीं पाओगे अंतर्मुखी के लिए तो ये एक वरदान जैसा है कुछ न कह पाओ तो लिख लो कभी गुस्सा हो तो लिख लो जब किसी पर प्यार उमड़ आए तो लिख लो किसी चीज से कुंठित हो तो लिख लो खुशी से मन भर आए तो लिख लो जब रुआंसे हो जाओ और कोई सुनने वाला न हो तो लिख लो जब मन के भाव व्यक्त न कर पाओ तो लिख लो जब अकेले हो और सबसे हार जाओ तो लिख लो जब कोई खुशी बांटने वाला न हो तो लिख को जब खुद से ही कोई शिकायत हो तो लिख लो जब कही मन न लगे तो लिख लो जी खालीपन से भर आए तो लिख लो भीड़ भरी दुनियां में एकांत चाहिए तो लिख लो क्योंकि ये कोरे पन्ने कभी किसी को अकेला छोड़ कर नहीं जाते वो साथ देते है हर क्षण वो चाहते है खुद से मिलाना खुद पर यकीन करवाना कितना ही प्यारा उपयोग कर सकते है हम शब्दों का जो अनकहा रह गया हो सदा के लिए वो लिख कर सच में लिखना किसी वरदान सा है ये कोरे पन्ने खिल खिला उठते है अनकहे मन के भावों से ArUu ✍️
सहारे इंसान को अपाहिज़ बना देते है। मेरे पिता श्री की ये पंक्तियां जीवन में बहुत बार ये अहसास करवाती है कि वाकई इंसान अकेले जब लड़ना सीख जाए तो उसे किसी की जरूरत न रहे ...जीवन सरल हो जाए पापा ने एक बात कही थी कि एक बेल जो किसी रस्सी के सहारे ऊपर चढ़ती है उस रस्सी को काटते ही वो धड़ाम से नीचे आ गिरती है क्योंकि वो किसी ओर के कंधे पर चढ़ ऊंचाई पर खड़ी थी और जब वो कंधा न रहा तो वो नीचे आ गिरी। हम इंसान भी कुछ ऐसे ही है...जिंदगी में सहारे चाहते है... और वो सहारे जब छीन जाते है तो धड़ाम से जमीन पर आ गिरते है। इसलिए बहुत से महानुभाव कह गए कि जो अकेला लड़ना सिख गया उसे दुनियां की कोई ताकत नहीं हरा सकती हां सफर थोड़ा मुश्किल होता है पर रोमांचक और खुद से मिलने का होता है। ArUu ✍️
एक चेहरा बहुत याद आता है...जिसे गुजरे जमाना हो गया पर उसे याद कर दिल आज भी भर आता है उनका साथ कुछ वक्त और मिल जाता उनके साथ बीते लम्हे कुछ समेट लेती मैं खुद में अतीत बन गया है सब कुछ पर अतीत में जीना मैं नही भूलती कितना ही समझा लू पर खुद से शिकायत करना मैं नहीं भूलती एक कसक हमेशा रह जाती है कि काश उन आखिरी दिनों में थोड़ा रब से भी लड़ लेती जो विधि का विधान था उससे जिरह कर कुछ क्षण मैं चुरा लेती...पर ये कसक बस हर घड़ी जेहन में रह जाती है और वहीं यादें बार बार मस्तिष्क की दीवारों से टकरा मुझे शिथिल कर जाती है। रात का सन्नाटा भी भीतर एक शोर कर जाता है क्यों नहीं माॅं पास ये ख्याल चहुओर कर जाता है जैसे तैसे समेट मैं अपनी वेदनाएं खुद को रोज बनाती हूं बिन माॅं जिए कैसे ये कठिन पाठ खुद को पढ़ाती हूं। जो हुआ वो तो होना ही था आखिर कार मुझे अपना प्रिय शख्स तो खोना ही था पर फिर सुबह से शाम ढलते बिखर सी जाती हूं ArUu है सबसे मजबूत ये बात भूल सी जाती हूं फिर अतीत में गोते लगाती खुद को कही गहरेे यादों के समंदर में पाती हूं बस इसी तरह खुद को पाने और खोने का सिलसिला हर रोज दोहराती हूं।
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