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मेरे लिए एक्सीडेंट एक मजेदार अहसास है क्योंकि इसके बाद मुझे काफी चीज़ें सीखने को मिली और लाइफ का पहला अनचाहा ओर अनजाना moment भी हां इसका मतलब ये नहीं कि ये बार बार होता रहे ऐसा मैं चाहती हूं...पर ये मेरे लिए अनोखा किस्सा बन गया है जिसे लिखने का अहसास भी काफी अनोखा होता है...कुछ मज़ेदार किस्सों के साथ एक्सिडेंट के दौरान युद्ध छिड़ गया था तो back to duty मजबूरी बन गया और घर वालों को बार बार परेशान करना पड़ा क्योंकि दो पहिया गाड़ी चलाना मेरे वश में नहीं था और अब 4 महीने के बाद भी मैने अपनी प्यारी प्रिंसेस (एक्टिवा) को हाथ नहीं लगाया है खैर उस वक्त कार से पापा या भाई पाली से भाद्राजून तक छोड़ने आते थे पर बार बार उनको परेशान करना भी अच्छा नहीं लगता तो सोचा अब से बस में आना जाना शुरू करु ... तो तय रहा कि अब अगली बार बस में जाऊंगी फिर क्या पूरी रात आंखे बंद करते ही बस आंखों के सामने घुम रही थी क्योंकि क्लेविकल बोन सेंसिटिव होती है और उस वक्त तक बोन इतनी strong नहीं हुई थी तो मेंटली में इतनी प्रिपेयर्ड नहीं थी बस के सफर के लिए.. ऐसे में रात भर मुझे बस चलती हुई नहीं बल्कि हवा में उड़ती या पानी में गोते लगाते हुए दिखाई दी...मेरे लिए रात भर सोना काफी मुश्किल सा रहा । दूसरे दिन जब मैने बस में सफर किया तो ये मेरी उम्मीदों से कही ज्यादा आसान था...थोड़ा दर्द ओर uncomfortable था पर इतना नहीं जितना ज्यादा मैने सोच लिया था और उसके बाद मैने कई दफा बस का सफर किया जो मेरे लिए पहले से ज्यादा आसान होता गया हां पहली यात्रा थोड़ी मुश्किल रही.. कई बार जिंदगी में हम कई परिस्थितियों को पहाड़ जितना मुश्किल समझ लेते है पर वो इतनी मुश्किल नहीं होता... इसका अहसास हमें उस परिस्थिति का सामना करने और बार बार efforts और प्रैक्टिस करने पर होता है। जिंदगी में बहुत मुश्किल परिस्थितिया आती है पर वो कभी बिना सिखाए नहीं जाती...तोहफे में कुछ कीमती निधि हमेशा दे जाती है और देखो आज 4 महीने बाद बस के सफर के दौरान ये किस्सा मैं लिख रही हूं...हल्की सी मुस्कान और पहले से ज्यादा मजबूती के साथ हैं न जिंदगी आसान और रोमांचक ArUu ✍️
मुश्किल होता है उन्मुक्त स्त्री बन जाना उससे भी कठिन होता है एक स्त्री के लिए ये स्वीकार कर लेना कि वो खुद के लिए जी सकती है जब उन्मुक्त गगन में विचरण करती वो पतंग की भांति धरा से दूर ...बहुत दूर मुक्त गोते लगा रही होती है तो दूर ही दूर धरा पर कोई उसकी डोर थामे रखता है...पर जाने क्यों जब वो अपनी उच्चतम बुलंदी पर होती है तो डोर थामे इंसान को खुद पर संशय हो जाता है...उसे लगता है जैसे वो अब और देर तक उस पतंग की उड़ान नहीं देख पाएगा... या शायद पतंग के आत्मविश्वास के आगे उसका आत्मबल कुछ क्षिण हो जाता है या शायद उसे लगता है कि उस पतंग को थामे रखना उसके लिए कुछ कठिन हो गया है। इसी डर से छोड़ देता है वो पतंग की डोर को कई पतंगे साहसी होती है , वो जा ठहरती है किसी अज्ञात ऊंचाई पर और कुछ पतंगे आ गिरती है पुनः उसी धरा पर ...उन्हीं कदमों को चूमती जिनसे संभाली न गई एक नाजुक सी डोर भी... ArUu ✍️
कुछ चीजें जिंदगी में कमाल का सबक दे देती है। मेरे एक्सिडेंट को लगभग 3 महीने हो गए... क्लेविकल बोन में फ्रैक्चर था तो अभी भी मेरे राइट हैंड में मूवमेंट नहीं लौटा है...वो मुझे अपने लेफ्ट हैंड से कुछ वजनी लगने लगा है...उससे कुछ भी काम नहीं हो पा रहा अगर थोड़ा सा हाथ इधर उधर करना हो तो भी दूसरे हाथ का सहारा लेके या दूसरे हाथ से पकड़ कर उसमें कुछ मूवमेंट हो पाता है...जो हाथ मेरे लिए इतना इंपॉर्टेंट था बचपन से लेके अभी 3 महीने पहले तक जिस हाथ की तारीफ करते मैं नहीं थकती थी वो हाथ अब बोझ सा लगने लगा है...क्योंकि राइट हैंड मेरे लिए अवेलेबल नहीं है तो मैंने लेफ्ट वाले से सारे काम करना सिख लिया है...3 महीने हो गए मैने राइट हैंड से खाना नहीं खाया और भी छोटे मोटे काम में लेफ्ट वाले से कर लेती हूं...हां लिखने के लिए मुझे अभी भी राइट हैंड की ही जरूरत पड़ती है... बस यही फर्क है...जिंदगी में बस इतना ही समझ आया कि हमारे लिए हर चीज बस तब तक जरूरी है जब तक वो हमारे काम आ रही है वरना हम दूसरे ऑप्शन ढूंढ लेते है... और काम खत्म होते ही चीज़ें बोझ बन जाया करती है...बस राइट हैंड जितना वैल्यूएबल बनना है ताकि हर हाल में लिखने के लिए तो उसकी जरूरत पड़े ही पड़े।।।😌
आज मैंने टटोला खुद को, मुझे महसूस हुआ — मैं अब पहले जैसी नहीं रही। करुण, संवेदनशील, नाज़ुक, मासूम,निश्चल, स्निग्ध मन... शायद वो सब मैं कहीं किसी धुंधले मोड़ पर छोड़ आई हूं। जब मैं बार-बार रोई, गिड़गिड़ाई, बेबस ,मौन में भीगी रही हर बार मैंने अपने भीतर की स्त्री को मृदुता की कब्र में धकेला। कितनी दफा मैंने खुद को कोसा — क्यों हूं मैं इतनी संवेदनशील? क्यों हूं मैं इतनी करुण? क्यों मेरी आंखें इतनी अश्रु-बोझिल हैं कि हर बात में बह जाना जानती हैं? क्यों हूं मैं इतनी नाज़ुक कि मुझे बार-बार तोड़ा जाता है? मेरी ओर से हर दफा पाषाण सा रुख मोड़ा जाता है। और मैंने जाना — मेरे भीतर की वही कोमल स्त्री मेरे लिए सबसे घातक है। मैंने उसे अनजाने, कई बार, बिन बोले, बिन देखे, अपनी ही कठोर हथेलियों से दफ़ना दिया। अब मैं शिलाखंड सी हो गई हूं। मेरा कुछ स्त्रीत्व मुझसे छूट गया है — या शायद वो मर चुका है, हो चुका है किसी बंजर आत्मा का अवशेष, या शायद अब भी किसी कोने में, बिन हरकत, बिन स्पंदन, कोमलता के श्मशान में निस्पंद पड़ा है। कभी सोचती हूं — क्या सच में मर जाती है वो? या बस बेजान छाया बनकर मेरी परछाइयों में पलती रहती है? शायद वो अब भी किसी पाषाण की भीतरी दरार में सिहरती सांसों की तरह है, शायद वो अब भी मेरी करुणा की दरकती दीवारों में दबी हुई है। कभी रात की खामोशी में जब मैं अपनी हथेलियों को देखती हूं, तो लगता है — शायद मेरी उंगलियों में अब भी थोड़ा सा स्पर्श बचा है, शायद मेरी जर्जर आत्मा में अब भी कोई दबा हुआ विलाप बाकी है। शायद मेरी भीतर की स्त्री मरी नहीं है, शायद वो थकी है, चुप है, सिहरती है, और मैं — शायद अब उसे फिर से छूने की हिम्मत नहीं रखती। ArUu ✍️
जिंदगी हमेशा वैसी नहीं होती जैसी हम चाहते है। जिंदगी वैसी होती है जैसा उसे होना होता है। वो किताबों जैसी बिल्कुल नहीं होती ...की अंत में बस happy ending हो कई बार कहानी अधूरी रह जाती है और किताबों से भी ज्यादा सुंदर हो जाती है। ArUu💫
एक कहानी पढ़ रही थी अमृता प्रीतम की उसमें कुछ लाइंस थी... गमला कितना भी बड़ा हो पर गमले में चंपा के फूल नहीं खिलते...फूलों को खिलने के लिए पौधे की जड़ों को धरती की जरूरत होती है। हम भी कई दफा रिश्तों को गमलों में रोप देते है और उम्मीद लगाए रखते है कि उसमें फूल खिलेंगे। किसी ने मुझसे एक रोज कहा था रिश्तों को जितनी आजादी दोगे जितना उन्हें प्यार से सिंचोगे वो उतने ही महक के साथ फलेंगे फूलेंगे। इसलिए रिश्तों को गमले की बजाय धरती में रोप देना बेहतर है ताकि उनकी जड़े गहरी हो...और फूल दूर तक खुशबू फैला देने वाले🥰 ArUu ✍️
एक जिंदगी में जिंदगी ढूंढ रही हूं मैं 🫠 ArUu ✍️ - ArUu
अनंत बार खुद से हार जाने के बाद भी जीतने की जिद है। ArUu ✍️ - ArUu
अब कभी कभी सोचती हूं...वो लोग जो सुसाइडल थॉट्स दिमाग में लाते है या खुद किसी तरह से मरने का इरादा करते है उनको ये समझना चाहिए कि भाई वो काले भैंसे वाला अपना दोस्त तो है नहीं जो पलके बिछाए बैठा है तुम्हें लाने के लिए तुम जिस दुख से मर रहे हो या जिन लोगों को कद्र के लिए मर रहे जब उन्होंने कदर नहीं की तो वो यमराज जी क्यों करेंगे भाई तुम्हारे सुसाइड के चक्कर में उसको ओवर टाइम करना पड़ता है सोचो कितनी मौत आती होगी उन्हें जब वो तुम्हे बिना वक्त लेने आते होंगे। जब सब तय है तो क्यों बिना मतलब उनके प्लान में खलल पैदा करना सोचो तुम सो रहे हो आराम से या फैमिली टाइम हो तो अचानक कोई काम आ जाए ऑफिस का तो कितना बुरा लगता है बस वैसे ही...बेचारे यमराज जी भी जब चैन से बैठे हो ओर उधर कोई लटक गया...मुझे लगता है पूरे रास्ते टकली में मारते मारते ले जाते होंगे🤢 मत करना भाई बहुत मार पड़ेगी मरने के बाद भी🙁 यहां थोड़ा बहुत दुख सह लेना बस वरना वहां कौन जाने कितनी पिटाई हो... ArUu ✍️
और एक दिन जब आप थक जाओ...हारने लगो जब जिंदगी बेकार लगने लगे खुद पर हजार सवाल उठने लगे जब कोशिश कर के थक गए हो। सहेजी गई हर चीज आपके हाथ से फिसल रही हो ...तब समझना ईश्वर आपको मजबूती से लड़ने की प्रेरणा दे रहे है इतनी विपरीत परिस्थितियों में भी ईश्वर पर विश्वास बनाए रखना..क्योंकि जो कुछ हो रहा है वो उनकी मर्जी से हो रहा है और आगे भी जो होगा वो उनकी ही मर्जी से होगा...हो सकता है कुछ वक्त के लिए ये हमें बुरा लगे... अपने अनुकूल न लगे पर यकीन करना सब कुछ खो दोगे तब यही वक्त होगा जब आप खुद को पाआगे...खुद से मिलने का एक सुनहरा मौका होगा बस जब तक खुद को ना पा लो तब तक पॉजिटिव बने रहना...फिर देखना कोई तुमसे जीत नहीं पाएगा😍👍🏻 ArUu ✍️
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