वाह साहब ! by Yogesh patil in Hindi Novels
रात के करीब नौ बजे थे। सड़कें हल्की पीली रोशनी में डूबी हुई थीं और शहर की हवा में सर्दी की नमी घुली थी। विशाल, हल्के नशे...
वाह साहब ! by Yogesh patil in Hindi Novels
अगले दिन :सुबह करीब 10 बजे की धूप परदे की दरारों से अंदर झांक रही थी, तभी विशालका फोन बजा और उसकी नींद टूटी। उसने आधी बं...