यादे
तेरी यादे हर पल आती हैं
तु ना रहे हैं तो तेरी एहसास होती हैं
पल भर के गुस्से को यु दिल पे लगाया
के अब बातो के लिए जगह ही नही बची
अब आलम ये हैं के अधुरी खवाहिशो को लेकर जी रही हुँ मैं
इज़हार
उनकी याद अक्सर मुझे रुलाती हैं
होकर भी हुए ना वो मेरे
अकसर उनको दुवाओ मे मांगा हैं मैंने
पर अफ्सोस दिल मे रह गई कुछ बाते
बता ही ना सकी उनको
रुठ कर वो यु गए मुझसे के अब तो बोलाना भी मुशकिल हैं
सवाल
अपनी हँसी मे आंसू छुपा लेना
रुठे लोगो को प्यार से मना लेना
किसी के खुशी मे शामील हो कर
अपनी खुशी ढुढं लेना
आइने के सामने खुद को निहार लेना
कभी उसकी बातो को याद कर के खुद मे हँसते हुए रो लेना
राह मे चलते हुए खुद को तन्हा पा लेना
गिरते हुए आंसू मे उसकी तस्वीर नज़र आ जाना
उसके नाम को कलम उठाते ही लिख देना
कभी खुद से सावल करना
क्यू चाहा उसे जो कभी मेरा ना हुआ
प्यार था वो मेरा , या एक भुल जो भुले ही नही जाता
अंधेरा
रोशनी की तलाश करते करते
अंधेरे ने हाथ थाम लिया
कितनी रातो मे खुद को तडपते हुये देखा है मैंने
अब आलम ये हैं के ना रातो मे निंद हैं और ना तडप
कभी सोचती हुँ तन्हा बैठ कर के शायद मेरी ही तन्हाई ने
मुझे अंधेरे मे चलना सिखा दिया
अब तो आंशू भी नही के रोऊ
कभी खुद पे तो तो कभी अपनी बेबसी पे हँसती हुँ
क्या ज़िंद्गी ने रुख मोडा मेरा
जब तन्हा थी तो कहने को थे अपने
आज बेबस हुँ तो निगाहे दुर तक जाकर लौट आती हैं
अपने
अपने वो नही होते
जो आपके साथ हर जगह हो
अपने वो हैं जो आपको हर मोड पर साथ रहे
आपकी नम आंखे भी देख कर आपकी दिल
की बातो को समझ ले
लोग तो बहुत हैं
तस्वीरो मे साथ खडे होने के लिये
पर अपना तो वो हैं
जो आपकी तक्लीफो मे खडा रहे
रूठे हुए
कुछ रूठे हुए लम्हे
कुछ टुटे हुए रिश्ते
हर कदम पर काँच बनकर ज़खम
देते हैं
और हमे खबर भी नही होता हैं
आंखो मे आंशू हैं पर पता नही क्यू
लोगो को दिखता नही
खामोशियाँ ज़िंद्गी की नाशूर बन गई
और मैं युही खुद को खामोश रखती चली गई
अच्छा लगता हैं
गिरना भी अच्छा हैं
औकाद का पता चलता हैं
बढते हैं जब हाथ उठाने को
आपनो का पता चलता हैं
जिन्हे गुस्सा आता हैं
वो लोग सच्चे होते हैं
मैंने झूठो को अक्सर
मुस्कुराते हुए देखा हैं
सिख रही हूँ अब मैं
इंसानो को पढ्ने का हुनर
सुना हैं चेहरे पे किताबो से ज्यादा लिखा होता हैं
गुज़ारना
अपनी तक्दीर मे तो कुछ ऐसे ही
सिलसिले लिखे है
किसी ने वक़्त गुज़ारने के लिए
अपना बनाया
तो किसी ने अपना बनाकर
वक्त गुज़ार लिया
क्या करु या खुदा
खुद को सझना ही भूल गई हूँ मैं
अलग रहना
अकेले रहने का भी एक अलग ही सुकुन हैं
ना किसी को पाने की उम्मीद
ना किसी के छोड जाने का डर
पर शायाद मेरी उम्मीद बढ गई
ओर मेरा डर बढता ही चल गया
किस किस से अपनी उम्मीदो को बताऊ
अब तो डर ने ही दिलो पर घर बना लिया
सच
किसी ने सही कहा हैं
के हम किसी के लिए उस वक्त तक
खाश होते हैं
जब तक उन्हे कोई दुसरा नही मिल जाता
ओर हम यही सोचते रह जाते हैं
के ह्म उन्के ज़िंद्गी के वो हिस्सा हैं
जो कभी भूला नही जाता
पर अफसोस के ये कड्वी बातो को
समझने मे वक़्त गुज़र गया
आंशू
आंशू को समझाया मैंने
के यू ना आया करो मेहफिल मे
तुम्हारे आते ही लोगो मे मैं मज़ाक बन जाती हुँ
तो आंशू ने मुझसे चुपके से कहा
तुम्हे अकेला देखते ही खुद को रोक नही पाती
एक मैं ही तो हुँ जो तुम्हारा साथ
कभी नही छोडती
वरना जो तुम्हारे अपने थे
वो तो कब का भुल चुके हैं तुम्हे
अफ्सोस किसी ने तुम्हे समझा नही
ओर जो समझा उसने साथ नही दिया
तन्हा
तेरे होने पर खुद को तन्हा समझू
या खुद को खुशकिस्मत
समझ ही नही आता के उनके रेह्ने पर खुश रहुँ
या अपनी किस्मत पर हसूँ
मैं बेवफा हुँ या बेवफा तुम्हे बेवफा समझू
झखम भी देते हैं वो
और बडे प्यार से मल्हम लगाते हैं
ये तुम्हारी आदत समझू या इसे तेरी अदा समझू
पता चलता हैं
मुझे मेरी ज़िंद्गी की सच्चाई तब पता चली
जब रास्ते मे पडे फूलो ने मुझसे कहा
दुसरो को खुश्बू देने वाले
अक्सर युही कुचले जाते हैं
जिसकी किमत कुछ भी नही होता हैं
ओर फिर एक दिन रेत मे मिल जाते हैं
अहमियत
हमे अपनी आवाज़ की अहमियत
का पता तब चलता हैं
जब हमे खामोश कर दिया जाता हैं
और ह्म चुप चाप
आइने मे खुद को देखते ही रेह जाते हैं
तक्दीर
अपने गम की नुमाइश ना कर
अपने नसीब की आजमाइश ना कर
जो तेरा हैं वो तेरे पास
खुद आएगा
उसे पाने की हर रोज़ खवाहिश ना कर
तक्दीर बदल जाएगी
अपने आप ही
मेरे बंदे बस मुस्कुराना सिख ले
वजह की तालाश ना कर
वादा
किसी ने मुझसे वादा किया
पर अफ्सोस उस वादे को निभा ना सका
तक्लिफ तो यू मेरे दिल मे घर बना लिया
जैसे वो उनका हैं
जब यादो को सोचा याद करु
तो कमब्खत वादे याद आगए
ओर यादे तो इंसान को तोड देता हैं
ना किसी को को अपनी हाले दिल बयान कर सकती हुँ
और ना दिखा सकती हुँ
बदलना
किसी ने मुझसे बडे प्यार से पुछा
ये बदलना क्या होता हैं
मैंने बडे प्यार से कहा
बदलना??
खुद मे सोचती रेह गई
मिशाल किसकी दुँ
अपनो की
या मौसम की
जो मुझे समझने पर मज़बूर कर दिया
के कहना क्या हैं
बिखरना
मैं बिखर कर रेह गई
ओर वो चुप चाप मेरा तमाशा देखते रेह गए
तालियो की शोर तो नही
पर दिल कही का ना रहा
नफरत हो गई खुद से
के आइने से नज़रे फेर लेती हुँ
सम्भालने को भी किसी का साथ ना रहा
दिल दुखता चल गया
ओर उनका हद खतम ही ना हुआ
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