Maikash ki kavitae in Hindi Poems by Shreyas Apoorv Narain books and stories PDF | मैकश की कविताएं

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मैकश की कविताएं

“सर्द दर्द”

सर्द दर्द की चाहत थी,हमने इश्क गुजारा किया/

जब सोचा दुनिया छू लें,हमने उन्हें संवारा किया/

देखें हैं जो लोग उसे,उस हसरत में वो बात नहीं,

जिस चाहत से कल हमने,शब् भर उन्हें निहारा किया/

स्वाद छुअन ये अगन,जलन,तपन ये टूटन की हरदम,

कैसे वो ना जान सके,जब वक़्त ने उन्हें हमारा किया/

बरबस बस लेकिन किन्तु परन्तु,वैसे ही जाने अब जाने दो,

लफ्ज उन्होंने बोले थे तब,जब भी हमसे किनारा किया/

महफ़िल में जब भी हम भटके,यादें आयीं थाम ले गयीं,

उनके दिल ने टूट कर “मैकश”,जब भी हमें पुकारा किया/

“मैकश”

१९-१०-२०१५

“अधूरी ही रहे”

तलाश मोहब्बत की हमारी अधूरी ही रहे/

ऐ खुदा किसी की दुआ तो पूरी सी रहे/

शरबत बना दें वो होंठों से गिरते जाम को,

मसलन एक कतरा प्यास सुरूरी सी रहे/

कैद है जुल्फ में स्याह भंवर एक रात का,

बेशक उसकी शाम यहाँ जरूरी सी रहे/

बना देते हैं पोरों से पैरों के एक सूना जग,

जाने कल उनकी चाहत में कमजोरी सी रहे/

अक्स खिला दे चाँद का उनके चेहरे में ‘मैकश’,

गर सागर की लहर कोई मगरूरी सी रहे/

“मैकश”

०५-०१-२०१६

“एक भी पहलू”

अब तो एक भी पहलू न रुकते हैं वो यहाँ,

जहाँ उनका अदब बेहिसाब आता था/

मैं तो सवालों के जालों में उलझ ही जाता हूँ,

जहाँ उनका बाअदब जवाब आता था/

ना कर पाया कभी वो गुरूर उन्हें खोकर मैं,

जहाँ निकल कर उनका रुआब आता था/

हर एक महफ़िल से ना हासिल वो बुलंदी भी,

जहां से पढकर वो हुस्ने-किताब आता था/

दरख्त ही दरख्त हैं दीखते हैं अब यहाँ “मैकश”,

दिल में जहाँ चश्मे-बेबस हिजाब आता था/

“मैकश’

२२-४-२०१५

“कुछ गुजारिश”

कुछ गुजारिश हमें कर लेने दो,अपनी भी बात कर लेना/

अभी इश्क है तो दिन दो रहने,दिल टूटे तो रात कर लेना/

हमें बदलना मंजूर नहीं,जैसे हैं वैसे ही चाह लो तुम,

अभी हमें मौजूँ तुम कर लो,बाद किसी को साथ कर लेना/

देख तुझसे घायल हैं हजारों यहाँ,जरा सा ही रहम कर दे,

वाकिफ नहीं तुझसे आशिक तेरे,कल हो जाए तो घात कर लेना/

रश्क,मुश्क,अश्क को दे दे,आह वाह चाह को ले जा,

करने को जकात बस प्यार का,तू दिल को ताक रख लेना/

कैसे कहा हम ना बदले हैं,जरा पूछ तू नब्ज औ रूह से,

कल हम ना होंगे फिर तो,इस ग़ज़ल से मुलाकात कर लेना/

जाना हम तो तेरे कायल थे,घायल गयी क्यों कर के तू,

आज चले जा संग तू उसके,कल आगे फिर हाथ कर देना/

“मैकश”

०३-१०-२०१५

“क्यों देखा करते हो चेहरा मेरा”

क्यों देखा करते हो चेहरा मेरा,यहाँ ना कुछ उकेरा हुआ है/

ना तपिश सूर्य की गश्त है करती,ना ही चाँद का अँधेरा हुआ है/

ना यहाँ बसंत है पागल,ना ही काली प्रेम छाया उसपर,

दिल को अपने पाकर भी हमने,कुछ ना कुछ बिखेरा हुआ है/

याद तुम्हारी आती है जब,पढ़ लेते हैं अपनी ही ग़ज़लें,

यकीनन हर हर्फ़ में कहीं,तेरा ही नक्श उकेरा हुआ है/

जब भी दिल दुखता है अपना,याद तुम्हारी मरहम सी,

यहाँ ना अब इस टूटे दिल में,जख्मों का बसेरा हुआ है/

आँखों को चुभती रहती थी ये,टीस भरी एक काली रात,

रौशन हुआ है नूर का हक़,तेरे चेहरा का सवेरा हुआ है/

उसको जाने दे अब ‘मैकश’,था यार पुरानी महफ़िल का,

काफिला भी दीवानों का,ना तेरा हुआ ना मेरा हुआ है/

“मैकश”

३०-११-२०१५

“तेरा प्यार रहे”

कल सर्द हवाएं जब भी आयें,उनमे तेरा प्यार रहे/

जीतूँ मैं या रहूँ बेनतीजा,तुझमे मेरी हार रहे/

कल जब भी शमशीर निकालो,हाथ सलामत रखना खुद के,

हम सब कुछ सह जायेंगे,गर उनमे तेरा वार रहे/

हमको भी चाहत महलों की,कीमत बड़ी हमारी है,

पर बेमोल बिके हैं अब तक,जिससे तेरा अधिकार रहे/

कभी समझ ना पायेंगे,जो हमने आज बताया उनको,

वाह मिली हर ग़ज़ल पर,बस तेरे लिए बेकार रहे/

मेहँदी जो रचती हाथों में,कल सदायें देगी तुझको,

ऐसे ही बनते रहे जोड़े,जिससे तेरा व्यापार रहे/

हम गरीब हैं दिल के जाना,दोगे कुछ तो भला हो जाए,

आज कहे देते हैं है प्यार हमे,कल दिल ये लाचार रहे/

चलो तुम्हारा कहना माना,कर्ज तुम्हारी साँसों का है,

आज बदन को ढंक दो हाथों से,कल कफ़न पर हार रहे/

दिल दीवाना है तेरा,प्यार में पागल हम कहलाते हैं,

आज हमे तुम लूट लो ‘मैकश’,फिर कोई तैयार रहे/

“मैकश”

२०-१०-२०१५

“कुछ सुना देता हूँ मैं”

सुनो आज कुछ सुना देता हूँ मैं/

तू साथ है मेरे तो गुनगुना लेता हूँ मैं/

-वक़्त ना जाया कर,वो तो फरामोश है/

मेरे गीत लबों पे हैं,तब तू क्यों खामोश है/

संजीदा है तू,या बस ख्याल हैं मेरे,

बेबाक है जिन्दगी,पर तू क्यों मदहोश है/

खोकर तुम्हे फिर से अपना बना लेता हूँ मैं...

सुनो आज......

-वो याद आता है मुझे,माँ का बेटा कहना/

रुला जाता है मुझे,पिता का बेटा कहना/

बहना कहती है,तू तो मेरा प्यारा भाई है,

सब कुछ यूं ही बदले,पर तू अच्छा बेटा रहना/

फिर से वो छोटा झुनझुना उठा लेता हूँ मैं...

सुनो आज......

“मैकश”

आइये कुछेक दुआएँ तो दें।

वो हमें दर्द की सदायें तो दें।

आइये कुछेक दुआएँ तो दें।

जिन्दा तो हैं पर साँसे अकेली हैं,

आइये कुछ साफ़ हवाएँ तो दें।

मुश्किल है उड़ने में पंछियों को भी,

आइये कुछ आप फिजाएँ तो दें।

कब से रुका हुआ है दर्दे-दिल,

आइये उन्हें आप हटायें तो दें।

वादे निभाने में वो थोड़े कच्चे हैं,

आइये उन्हें हम निभाएं तो दें।

दिल का सितमगर दिल का जुल्मी,

आइये उन्हें हम सजाएँ तो दें।

जिन्दा ही क्या वो जो गुनाह ना करें,

आइये उन्हें हम खतायें तो दें।

वो तनहा समझते हैं हर कदम खुदको,

आइये उन्हें अपना बताएं तो दें।

पढ़ नहीं सकते वो गजल अधूरी,

आइये 'मैकश' उन्हें पढ़ायें तो दें।

'मैकश'

एक निर्मोही सफ़र

चलता जा रहा हूँ मैं फिर इक रस्ते पर।

जानता हूँ शायद मेरी मंजिल क्या है।

थोड़ी थकन भी है थोड़ी टूटन भी।

पैर साथ नहीं है मेरे जाने क्यों।

शायद घुटनों में बगावत है पैरों से।

कभी दर्द टीस भी देता है,कभी सुकूँ भी।

यही तो रीत है एक निर्मोही से सफ़र की।

कुछ हमसफर भी हैं,पर हमराज नहीं।

तेरी कमी कल तक थी,पर आज नहीं।

कभी हिचकोले खाता हूँ,कभी शिकायत करता हूँ।

जाने क्या करना है मुझको,जाने क्या करता हूँ।

'मैकश'

तू इस दिल को ले जा

तुझे मांगे तेरे उपहार के बदले में क्या दे दूँ,

ऐ दिल,ये तेरा दिल है,तू इस दिल को ले जा।

वो हर रात आके छुपता है मेरे सपनोँ की तह पर,

ऐ ख्वाब,किसी रोज मेरे,दिल में ही छुप जा।

धड़कन में बसता है जो बस उसकी ही शह पर,

ऐ गम,तू एक याद बन,मेरे दिल में बस जा।

मेरी हर बात में छुपता है वो एक दर्द सा बनकर,

ऐ दर्द,तू हमदर्द बन,हर दिल में बस जा।

मत्थे बहुतेरे टेके हैं तेरे दरबार में ऐ मालिक,

ऐ खुदा,खुद इंसान बन,बस दिल में बस जा।

'मैकश'