- -परिप्रेक्ष्य / स्वीकृति
‘प्रस्तुत कहानी में चित्रित किये गए सभी दृश्य , घटनाएं ,पात्र, kahaaniकहानी का शीर्षक,सभी काल्पनिक हैं इनका किसी क्षेत्र विशेष में घटी सजीव घटना से कोई सरोकार नहीं है यदि इन घटनाओं, पात्रों ,दृश्यों का किसी सजीव घटना से सम्बन्ध पाया जाता है तो ये महज संयोग मात्र होगा| इसमें लेखक का कोई उत्तरदायित्व नहीं होगा | कहानी की विषय वस्तु, संवाद ,आदि लेखक के स्वतंत्र विचार हैं | पाठकों से अनुरोध है लेखक का कहानी को मनोरंजन के साथ साथ उन्हें उद्देश्य से भी अवगत कराना है |
लाल पत्थर
दोपहर का वक़्त हो चला था और वो लाल पत्थर ऐसे चमक रहा था जैसे किसी सुन्दर स्त्री के तमतमाए लाल चेहरे पर एकदम से पीतिमा की सुनहरी बौछार हो रही हो | बताशे वाला ,रेड़ीवाला और चने वाला सभी दो वक़्त की रोटी कमाने के चक्कर में पसीना -पसीना हो रहे थे | बमुश्किल से ही एक-आध ग्राहक कभी बताशे वाले के पास, कभी चने वाले ,कभी रेड़ीवाले के पास आ जाते थे | इतनी चिलचिलाती धूप में जब सब अपने घरों या आफिसों में बैठकर नीम्बू पानी या खीरा काटकर खा रहे थे उस समय गरीब जनता उसी नीम्बू और खीरे के बेचने के भरोसे अपने रात की रोटियों की तैयारी कर रही थी | भूखे सोने में जो दर्द होता है उसे वही समझ सकता है | जिसने कभी अपनी ज़िंदगी में चाय या केवल पानी पीकर कई दिन काटे हो | फुटपाथ पर सामान बेचने वाले अक्सर इस दर्द से गुजरते हैं |
जिस सड़क पर ठेले वाले चना बतासे या नीम्बू पानी लगाते थे | उस सड़क का नाम लाल पत्थर पड़ गया था कभी किसी दौर में ये लाल पत्थर मशहूर रहा होगा अपने किसी कारनामे के कारण जैसे किसी समाजसेवक ने बरसों पहले पेड़ पौधे रोपे हो और इस काम की याद के चलते लाल पत्थर गड़वा दिया हो या फिर ख़ुदाई हुयी हो सड़क बनवाने के चक्कर में या कुंआं खोदने के चक्कर में और ये सब न हुआ हो तो किसी एक करामाती ने अफवाह फैला मारी हो कि यहाँ हीरे-जवाहरात गड़े हुए हैं और फिर कुछ निकला हो या न लेकिन मज़े और ख़ुदाई की सनसनी के चलते ’ लाल पत्थर ‘ नामकरण कर दिया गया हो |
कितने बरस बीत गए कितनी पीढ़ियाँ पैदा हुईं और निकल गयी कितने खून हुए, कितनी दुर्घटना हुयी , कितने तूफ़ान ,कितने कर्फ्यू , और न जाने कितनी काली अँधेरी रातों का ये लाल पत्थर गवाह बना हो लेकिन आज तक न म्युनिसिपल्टी वालों को ये सुध हुयी न किसी समाजसेवक का इस ओर ध्यान गया कि आधुनिक युग में जहाँ हर भवन इमारत, एतिहासिक धरोहरों का जीर्णोधार हो रहा है लगे हाथ इस पर भी एक कोट लाल पेंट का करवा दें |
वैसे ऐसा नहीं है कि लोगों की ही केवल गलती रही हो दरअसल वह पत्थर भी अपने चारों तरफ के तंग इलाके से घिरा हुआ था एक तरफ नाले के बजबजाते गंदे पानी की अड़चन, तो दूसरी ओर बिजली के तारों का जाल वाले खम्भे की अर्थिंग बिलकुल सामने डेरा डाले हुए शांत पड़ी थी अब बचे दो और कोने जिसमें एक तरफ नाले में पड़े गंदे कूड़े के चलते मिट्टी की कटान से गड्डा हो चला था जिसमें अक्सर कुत्ते , बिल्ली ,पिल्ले और बकरी और कभी कदार -सूअर अपनी छाप छोड़ जाते थे |और आख़िरी कोने जो उसकी बदहाली का भाग्य खोल सकता था वह धरती के सबसे खतरनाक जीव यानी मानव द्वारा २४ घंटे बंद ही रहता था | ये तो किस्मत थी बेचारे उस लाल पत्थर की |
लेकिन शेरू नाम के कुत्ते से इन दिनों वह लाल पत्थर कुछ लोगों की नज़र में शायद आने लगा था | शाम होते ही जब ठेले वाले अपना धंधा समेटने को होते थे तब शेरू गड्डे से होते हुए पत्थर के सामने जाकर अपनी पूँछ हिलाने लगता और एक टक देखते रहता और फिर अपने दाँतों के बीच से बड़ी सी जीभ निकाल लेता और कई मिनटों तक ऐसे ही खड़ा रहता | शुरुआती दिनों में जब लोग समझने की कोशिश ही कर रहे थे कि आखिर बात क्या है!! क्यूँ शेरू लाल पत्थर के पास ही आकर अचानक गुमसुम सा हो जाता था ??
तब किसी को अंदाजा भी नहीं था कि वह लाल पत्थर वास्तव में किसी के खून से लाल हुआ था ! कुछ दिन पहले ही शेरू ने अपनी जाने-जिगर जिस पर उसका दिल आ गया था , इसी बाज़ार में तेज़ी से भागते हुए देखा था, कुछ कुत्ते उसका पीछा कर रहे थे और तभी उसने आकर सबको ऐसा खदेड़ा था कि दुबारा उस इलाके में वे कभी दिखाई नहीं दिए | ये सुनने में कुछ अटपटा सा और हास्यपूर्ण लगता है पर दिल तो हर एक जीव के पास है चाहे वह इंसान हो या कुत्ता,बिल्ली, चिड़िया कोई भी | और जब ईश्वर ने दिल दिया है तो जाहिर है कि प्यार भी करना जानते ही होंगे |
एक दीवानापन, एक दिल्लगी, एक अदा ,एक मुस्कुराना ,एक चपलता जैसे इंसानों के प्यार में होती है वैसी न सही लेकिन स्पर्श और आँखों से ही अपना प्यार जताते कई दिन हो चले थे शेरू को | उसको अपने बच्चों की माँ के दर्शन नहीं हुए थे बहुत ढूँढा तब जाकर सूंघते हुए वह उस लाल पत्थर तक पहुँच पाया था जहाँ उसकी प्रेमिका ने अपनी आख़िरी सांस ली थी | विचित्र बात ये थी कि किसी को भी ये बात पता नहीं लग पायी थी कि वह कहाँ चली गयी थी |
न तो लोग शेरू की उदासी को भांप पाए थे हांलाकि उससे सब बहुत प्यार करते थे और वह भी सभी का चहेता था लेकिन कलियुग और कलियुग के लोग कब व्यस्त हो जाए इसका उन्हें भी खुद नहीं पता होता अब पैसा की किल्लत हो या सरकार का अतिक्रमण हटाओ अभियान हो | या मोहल्ले बाज़ार का कोई दंगा हो या बिजली, पानी का भूचाल आया हो कुछ भी हो सब बड़े गंभीर हो चले थे शायद यही वजहें थी कि कोई शेरू के दुःख को समझ नहीं पाया था | पर जब से वह लाल पत्थर के पास खड़े होकर आंसू बहाने लगा था तो चने वाले बताशे वाले रेडी वाले समझ गए थे कि क्या मामला है !
रात को एक तेज़ रफ़्तार वाहन ने बुरी तरह रौंदते हुए उसकी प्रेमिका को परलोक पहुंचा दिया था| शेरू बस पीछे से भौंकते रह गया था | काफी दूर तक पीछा भी किया | उस रात एक घंटे तक लगातार भौंकता ही रहा था | पर सुनने वाला कोई नहीं था, तड़प कर रह गया था | वापस आया तो उसको आख़िरी बार देख भी नहीं सका था | संभवतः म्युन्सिपल्टी वाले उठा ले गए थे | आज इत्तेफाकन समय पर वे सब पहुँच गए थे या शेरू की किस्मत में ही नहीं लिखा था कि वह आख़िरी बार अपनी प्रेमिका के दर्शन कर पाए |
लेकिन अब चार दिन बाद उसने सूझबूझ से वह लाल पत्थर ढूँढ लिया था जहाँ उसकी प्रेमिका के खून के धब्बे लगे हुए थे और आख़िरी सांस ली थी | लोग तो पहले से ही व्यस्त थे दूसरा वह लाल पत्थर नाम का था कोई देखता भी नहीं था | अगर वह लाल पत्थर ही लोगों के दिलों में जिंदा होता तो जरुर वह शेरू को बता देता|
एक और बात नयी जरुर हुयी थी कि शेरू के लाल पत्थर को चूमने से उसे कलियुगी लोगों के दर्शन नसीब हो गए थे | और अब सभी बरसों से धूल फांकते उस लाल पत्थर का नाम लेने लगे थे और कहने लगे थे बेचारा उस लाल पत्थर से लिपट लिपट कर रोता है| पत्थर में यदि संवेदना होती तो उसे इस पूरे वृत्तान्त पर थोड़ी कुटिल हंसी आ ही गयी होती || || समाप्त ||