कभी अँधेरा कभी सवेरा
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कवर पेज पर अगर अन्धकार चन्द्रमा तारे ,थोडा निराशा वाद की झलक मिले तो उसी पेज में दूसरी तरफ उगता हुआ सूर्य प्रकाश पक्षी ,सुबह, दिखा दी जाए और स्पेक्टेटर दूर कहीं कोने में खड़ा न दुखी है न हंस रहा है, (दुखी तो कतई न रखें )एक गंभीरता ,शून्यता से मिश्रित भाव ही होने हैं
ये सुझाव है बाकी आप कविताएँ और टाइटल से अंदाज़ लगा सकतें है बस एक गुजारिश है पाठकों के द्रष्टिकोण और कविताओं के विषय की वजह से दुःख और निराशा नहीं रखा जाना है बल्कि दुःख और निराशा पार करके अब कुछ विरोधात्मक और संबलता के मिश्रित भाव हैं, अन्धकार से प्रकाश की ओर ग्यात्यात्मकता भी दिखाई जा सकती है कवर पेज के दोनों ही भाग कवर होने हैं| सूचना पढ़ने की बाद दोनों ही पेज डिलीट कर दिए जाएँ और कवर पेज लगाया जाए यहाँ |
धन्यवाद !!
विषय-सूची
सपने मत देखो डर लगता है ! ...................................................४
हंसती थी तो भी अच्छी थीं ........................................................६
हर तरफ सूरज निकला है ...........................................................८
जन्नत कहाँ है ?.......................................................................१०
हम अब मर चले हैं !.................................................................११
पैसे की माया ...........................................................................१३
रानी बिटिया हो रहीं तेज़ ...........................................................१५
मैं कौन हूँ ?..........................................................................१७
सपने मत देखो डर लगता है !
उड़ते रहो हमेशा सब कुछ अच्छा लगता है,
धरती हो या अम्बर सब कुछ अपना लगता है
सपने मत देखो डर लगता है !!
उड़ती नाव चली हर खेमे की ,
पंख लगा के ऐसे
नील गगन में ,
चील देखती रह गयी ,
टकरा बादल से , नभ में न कोई आये ,
कौन बताये इनको नरक दूर नहीं यहाँ से,
दूर कोई अपना जब यहाँ से छूटता है,
क्यूँ मुझसे ही रूठता है ,
देकर एक हवाई मुस्कान दिल मेरा वो खुश कर देता है
भूली धरती से कोई बेचारा दर्द से रोक मुझे देता है
उड़ते रहो हमेशा सब कुछ अच्छा लगता है
सपने मत देखो डर लगता है !!
उड़ना ही नहीं जानता हर कोई ,
उछल उछल वो मुक्त हवा
बन एक पल में बह जाता है ,
पूछे अगर कोई तू ,
नीचे अब क्यूँ नहीं आता है?
और मगन हो तेज़ तूफानी वह हो जाता है ,
पल में धक्का लगते ही टूटे पत्तों जैसा हो जाता है ,
उड़ते रहो हमेशा सब कुछ अच्छा लगता है
धरती हो या अम्बर सब कुछ अपना लगता है
सपने मत देखो डर लगता है !!
बार-बार ये सब कुछ होता है ,
दिल ही दिल से पूछे ये मेरे साथ ही ऐसा क्यूँ होता है ???
अकेला नहीं है तू ,दुनिया में धड़कती साँसों के साथ ऐसा ही तो होता है ||
दिल तो पागल है कभी ये उड़ता है ,कभी ये सोता है|
उड़ते रहो हमेशा सब कुछ अच्छा लगता है|
धरती हो या अम्बर सब कुछ अपना लगता है|
सपने मत देखो डर लगता है !!
हंसती थी तो भी अच्छी थीं
हँसती थीं तो भी अच्छी थीं, रोतीं थीं तो भी बुरी नहीं ,
चिल्लाती थीं तो दम मेरा निकले
फिर भी हम दो फिट उछलें ,
जिंदा थे उनकी बाँहों में ,
मरने का वो सुकून दे सकीं नहीं,
हँसती थीं तो भी अच्छी थीं, रोतीं थीं तो भी बुरी नहीं ,
जीते जी उनके ,मिट जाते हम तो अच्छा होता,
तड़प के ये दिल उनकी बाँहों में सबसे सच्चा होता,
गिरती थीं वो जब चोट मुझे लगती थी ,
खंजर नहीं तलवार नहीं सीने में फिर भी चुभती थी,
हँसती थीं तो भी अच्छी थीं, रोतीं थीं तो भी बुरी नहीं ,
सेवा में प्रियतमे–दास
बन सुबह-शाम अँखियाँ न झपकती थी ||
प्रियतमे-ख़ास कह जब वो मुझे बुलाती थी
लगता था सबको ऐसे, इशारों पर मुझे नचाती थी
क्या जाने वो सब ? टूटे दिल को करीबी
का अहसास दिलाती थीं , झूठीं हो अगर तो भी गम क्या
कोयल जैसी मीठी आवाज़ तो सुनाती थीं ||
हँसती थीं तो भी अच्छी थीं, रोतीं थीं तो भी बुरी नहीं ,
कैसी भी हों आखिर !!! भूखा होता मैं, सूखी रोटी और मक्खन
प्यारे हाथों से वही खिलाती थी.
चुटकी मेरी बजते ही
परी बन जादुई छड़ी घुमाती थीं ,
पाकर बेलन और कढ़ाई मेरी आँखें शरारती हो जाती थीं ||
पूछता मैं - परी हो तुम फिर मुझसे ही क्यूँ खाना बनवाती थीं!!
सुनकर!! ये , वो हंसने लगती थीं ||
हँसती थीं तो भी अच्छी थीं, रोतीं थीं तो भी बुरी नहीं ||
हर तरफ सूरज निकला है
भैया!!! हर तरफ सूरज निकला है,
सब कोई फिर क्यूँ पिछड़ा है ??
जो हाँथ थे खाली पहले ,
नहीं उठते थे, पानी भरने पर
सरपट चलते अब खाने की थाली पर,
लग रहा अब महंगाई है कम,
या पुट्ठुओं में आ गया है दम
फिर भी रुके-रुके से हैं ये कदम ?
नहीं बढ़ाते हाँथ जो कोई यहाँ फिसला है,
सब कहते मुझे छोड़,कोई यहाँ अगला है,
मदद करेगा वही जो कोइ बिरला है ,
भैया!!! हर तरफ सूरज निकला है,
सब कोई फिर क्यूँ पिछड़ा है ??
सबने अब पैसे को अब अपनी मुट्ठी में कस के पकड़ा है ,
आज वही है राजा यहाँ जो धन संपत्ति में तगड़ा है
भूखे,कमजोर भिखमंगे को मदद करे कौन
अब तो कलियुग का लफड़ा है !!!!!!
भैया!!! हर तरफ सूरज निकला है,
सब कोई फिर क्यूँ पिछड़ा है ??
शाकाहारी बनो का हर ओर नारा है,
फिर भी जनता का गरम पारा है,
कट रहे पशु हो रही निर्मम हत्या ,
किसका अब सहारा है ?
पशु मानव से सच में हारा है!!!!
अबला बन रही अब सबला है !
सच्चाई की बात बोलने वाला अब हकला है !!!!
भैया!!! हर तरफ सूरज निकला है,
सब कोई फिर क्यूँ पिछड़ा है ??
छा रही मीडिया दिलो - दिमाग पर
बच्चा हो या जवान हर कोई तबियत से उछला है,
जान रहे सब राजनीति हो या व्यापार किसमें क्या कितना बिगड़ा है ?
भैया!!! हर तरफ सूरज निकला है,
सब कोई फिर क्यूँ पिछड़ा है ??
पैसा है एक कमाऊ फल,
भावनाओं का रिश्ता तो बस लिपटा एक छिलका है
भूखा है अगर कोई , उतार के इसे जो झट से फेंका है,
ख़तम हो गया एक तो फ़ौरन दूसरे को दिल दे डाला है ,
टूटा है बस एक मोती जीवन का, शेष अभी पूरी माला है,
भैया!!! हर तरफ सूरज निकला है,
सब कोई फिर क्यूँ पिछड़ा है ??
जन्नत कहाँ है ?
कोई कहता धरती जन्नत है ,कोई कहता अम्बर जन्नत है,
मैं कहता हूँ प्राणी हो तुम !! प्राणियों को रखो खुश तो हर पल जन्नत है
हो रहा अत्याचार मानव से मानव पर, क्रोधित हूँ! मैं इस कलयुगी दानव पर ,
बच्चा बूढ़ा जवान और नर नारी बढ़ रही बेकारी बेरोजगारी , लाचारी
दिनों-दिन बिछ रहीं लाशें छायी है हत्या,रंगदारी और लूटमारी ||
बढ़ रही ग्लोबल वार्मिंग, गरम कर धरती को ,
और काला ये गगन, मांग रहे सब खुदा से मन्नत हैं
कोई कहता धरती जन्नत है ,कोई कहता अम्बर जन्नत है,
मैं कहता हूँ प्राणी हो तुम !! प्राणियों को रखो खुश तो हर पल जन्नत है
इंसान ही इंसान के लिए हुआ है पैदा
कर रहे हैं क्यूँ ये , नोटों का सौदा ???
मांग रहे थोड़ा कम है और बढ़ाओ ज्यादा,
एक है लालची नर दूसरी है मादा
जिसे मायावी सपनों की सबसे जादा जरूरत है, हर वक़्त पैसा मांगने का महुरत है
फर्क नहीं पड़े - कोई कहे धरती जन्नत है ,कोई कहे अम्बर जन्नत है,
फिर भी - मैं कहता हूँ प्राणी हो तुम !! प्राणियों को रखो खुश तो हर पल जन्नत है ||
दूर तलक ! कोई ये न कह सके की इंसान से अच्छी हमारी फ़ितरत है !!
हम अब मर चले हैं !
मंदिर टूटा - मस्जिद टूटा
सबका घर-बार छुटा ,
हो गया शुरू फसाद और दंगा ,
निकली धार कटी तलवारें , तमंचे और कारतूस ,
नहीं हो रहा किसी को महसूस,
कटेंगे सर ,बिछेंगी लाशें बचेंगे टूटे घर और झाड़-फूस |
होगी राजनीति जब लगेगा पता मरने वालों में नहीं है
कोई हिन्दू - मुस्लिम सिख -इसाई ,
मिलें हैं वो रहते थे जो गली में प्यार से आज हों चलें हैं गायब ,
ऐसे कि याद नहीं कि निशाँ छोड़ गये हैं या खुद निशाँ हों चलें हैं |
हम भी क्या करें
देख के जीते थे उनको आज मर चले हैं ,
क्या करें !! खूनी बारिश में अब ग़रीबी के घाव धुल चले हैं??
दस बार तड़प के भी
खुले दिल से ज़िन्दगी हँसते न थकती थी ,
चमक थी वो चेहरे पे उनके कि घायल चिड़िया
दर्द भूल चहकती थी ,
ख़तम हो गया जैसे एक संसार बसा हुआ नगर में ,
बस देर है तो परदे पर उनका शोक समाचार सुनने की,
वक़्त हो चला है एक सन्देश की चाह है इस जहाँ में ,
रोक उसको मैं ये पूछता हूँ
निर्दोषों की सांसों में मासूमियत न थी ,
या काटने वालों में इंसानियत न थी |
इतने प्यार से आज हों चलें हैं गायब ,
ऐसे कि याद नहीं कि निशाँ छोड़ गये हैं या खुद निशाँ हों चलें हैं |
हम भी सब देख थक चलें हैं
याद उनको कर अब हम भी शायद मर चलें हैं |||
पैसे की माया
कब ख़तम होगी गरीबी सोचते ये मैंने जागती रातें हैं काटी,
नर का कोई मोल नहीं अब ,
हर जगह धन और पैसे की ही परिपाटी है |
है अगर रोकड़ा जेब में तो
लूला लंगड़े के पास भी समझो भगवान् की लाठी है|”
मत भूलो! अब तो ये ही अपना सच्चा साथी है ,
बिना इसके सब समझते ये
इंसान नहीं बेकार लकड़ी की काठी है |
हो तुम अटकल पच्चू या हो बुद्धि तेज़
नोट छापते हो तुम रोज़
गले लगाते सब बन के राजा भोज ,
रखते ढेरों पकवान और दर्जनों भोज |
आता है मन में उनके एक ख्याल
रखना है इसका रोज ख्याल ,
जी रहे हम कलयुग में कब खिच जाये यहाँ खाल,
तो खाने के लाले पड़ जायेंगे ,
और दोनों हाथ से जायेगा पूरा माल ,
कौन लेगा हमारा हवाल,?
तभी याद आयेंगे राजा भोज जो
कभी मिले थे और मिलते थे पैसों की ताल से ताल
मिल गयी मदद तो ठीक है नहीं तो दूसरे वाले भी तो हैं जो करते हैं पैसों का जादू और
हाथ मारकर बनाते हैं टकसाल
रुपये तो उनके बाएँ हाथ का खेल है
जिससे करते वो धमाल ,
अब डर नहीं कुछ कब बर्बाद हो जायें हम
जब साथ हैं वो ,
जो हैं खुद एक धमाल !!!
झोली छोटी हो या विकराल , चाहे जितने हो मकड़जाल ,
बंद कर लेते हैं मुट्ठी में सब कुछ जैसे हो कालों के काल ,
काम आते हैं हमेशा यही हम तो ईंट की छत हैं
यही तो हैं सदाबहार बाऊंड्रीवाल
करके रिस्क कवर अल्लाह की तरह ये बचा लेते हैं हमारी जान माल ||
वरना बिना पैसे के किस काम का ये ज़हान है ?
पैसा है यहाँ तभी तो साँसों में धड़कती ये मासूम जान है !|
हीरे की कीमत है जादा यहाँ !!,
इंसान तो करोड़ो की भीड़ में भी अपनी रूह से अनजान है |
पैसा और इसके रंग ही हैं सब कुछ
क्या करे बेचारा ! वो, आखिर इस समाज में यही तो देता उसे सम्मान है |
इंसान तो करोड़ो की भीड़ में भी अपनी रूह से अनजान है |||||
रानी बिटिया हो रहीं तेज़
राजा पूत नहीं मिल रहे गम क्या पास में अब रानी बिटिया है,
माथे तिलक दूर हो चले ,अब हर जगह चमकती बिंदिया है,
उठा के एक हाँथ में तीर कमान ,
दूसरे में है नन्ही जान
आँचल में छिपा उसे रसिकों को
आँखें –मिचौली करते झेला है !
पति परमेश्वर साथ में हैं उसके ,
सब पर नाचता उसका हिम्मतरूपी पहिया है
नहीं सताता अब उसे कोई ,देख धनुष हाँथ में ,
उड़ी अब हर किसी की निंदिया है
राजा पूत नहीं मिल रहे गम क्या, पास में अब रानी बिटिया है,
माथे तिलक दूर हो चले ,अब हर जगह चमकती बिंदिया है,
ढूंढ रही फिर भी वह कहाँ
छुपी मिटटी की तेल की पिपिया है ?
देख खोजते उसको ये,बोल पड़े सब
-तुम हो देवी दुर्गा शक्ति ! जैसी, ठहरे हम अधम अनाड़ी बिलकुल घटिया हैं
देना चाहो सजा अगर, मार लो हमको पड़ी सामने वो सूखी पटिया है
राजा पूत नहीं मिल रहे गम क्या पास में अब रानी बिटिया है,
माथे तिलक दूर हो चले ,अब हर जगह चमकती बिंदिया है,
कल तक वो बनती थी सुल्ताने-सुलतान की सुल्ताना
आज धूल चाटती रजिया हैं
मांग रही हैं माफ़ी आज !
मिल जाये अगर तलवारे-साज ,बहू बिटिया के आगे
सबसे पहले इन्ही की फंटी और इन्ही की सरिया है,
औरत ही औरत के लिए बनी काल का जरिया है,
शायद बदल गए वो दिन ,मार दहाड़ -चीखती अब ये, छीन के हिस्सा
झन्न से फेंकती थरिया है !!
राजा पूत नहीं मिल रहे गम क्या पास में अब रानी बिटिया है,
माथे तिलक दूर हो चले ,अब हर जगह चमकती बिंदिया है|||
मैं कौन हूँ ?
मत पूछो कि !
मैं कौन हूँ ?
खुदा ही जाने मैं क्यूँ बेचैन हूँ ?
रत्ती भर सुख न मिला कभी जीवन में, मैं तो दुःख का चैन हूँ !
ढूंढ शमा की चिंगारी , प्रातः मद्धिम ज्वाला
खो जाता हूँ अतीत में ,
मत पूछो कि !
मैं कौन हूँ ?
खुदा ही जाने मैं क्यूँ बेचैन हूँ ?
लेकर टुकड़ों को मन की उजली थाली में रखता हूँ ,
कुछ जूठे , कुछ बिखरे, कुछ सादे टुकड़ों को
तौल-तौल के रखता हूँ | कितने अच्छे थे या थे बुरे सभी !!
सोच इसे मैं खो जाता हूँ,
उलझ –सुलझ कर मैं खुद को ही गड्ढे में पाता हूँ|
खुद को कोस नहीं पाता , जाकर कहीं खो जाता हूँ,
उत्तर मिलने की आशा में धरती–अम्बर देख-देख,
भटक दिशाशूल में जब-तब
सूरज और चाँद से गुहार लगाता हूँ
अल्लाह के दर्शन हो जाएँ
चलो उनसे ही अपनी पुकार लगाता हूँ!!
उसे खोजते मैं पल में ही खो जाता हूँ !!
मत पूछो कि !
मैं कौन हूँ ?
खुदा ही जाने मैं क्यूँ बेचैन हूँ ?
देख दूसरों को न मिलता चैन मुझे,
क्या है मुझमें उसे खोजता रहता मैं,
अपने मुक्त गगन में यही सोचता रहता मैं,
भरी धूप में चलते-चलते खुद को ही कोंचता रहता मैं,
मत पूछो कि !
मैं कौन हूँ ?
खुदा ही जाने मैं क्यूँ बेचैन हूँ ?
मन की आशाओं -उम्मीदों से ही मैं हर सुबह झट उठ लेता हूँ ,
रोता-हँसता मैं हर पल आखिर जी लेता हूँ !!
एक दिन तो आना है जब मुझमें दुर्गुण का खात्मा हो जाना है,
पैदा हूँ इंसान जैसे, इंसान तो कैसे ही बन जाना है,
रखना है संतोष तब तक क्या चाहना है ??
खुदा ने भेजा है धरती पर मुझे,
सत्य हूँ!!! झूठ नहीं हूँ
फिर भी!!
मत पूछो कि !
मैं कौन हूँ ?
खुदा ही जाने मैं क्यूँ बेचैन हूँ ?